पुरबी चंपारण का DEO office ने नितीश कुमार के सुशासन को किया दागदार ?

मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार का सुशासन एक बार फिर कटघेरे में खरा होता मालुम दिखाई पर रहा,वजह बना    है,    इस     बार बिहार का education department ,बतायाजाताहै के पूर्बी चंपारणके फेन्हारा पर्खंड के श्री सुनील कुमार पासवान जो एक  गरीब और अनुसूचित जाती से सम्बन्ध रखते हैं,इनसे सरकार ने 6   सालो से भी जेयदा समय तक पंचायत शिक्चक   (shikchak )   के रूप में काम कराया  जब बात वेतन  भुगतान  की आई     तो       उन्हें अवैध करार दिया जा रहा श्री सुनील कुमार उपरोक्त जिला एवं पर्खंड के बारा परसौनी में 2003 से ही लगातार काम करते आ रहे,इनके वेतन पे रोक साल 2006 में  लगा दी      गई ये   कहते हु के  इनका तीसरा पुनर्नियोजन नहीं हुआ इसलिए इनकी बहाली अवैध है 

यहाँ बताते चले के जो भी शिक्चक (shikchak )para teacher  के रूप में कार्ज कर रहे थे सरकार ने अपने एक आदेश

 के जरिये उन्हें पंचायत shikchak मान चुकी ऐसी हालत में श्री सुनील कुमार पासवान और बाकी पंचायत shikchak      अवैध किस कानून के तेहत हुए?एजुकेशन डिपार्टमेंट के अधिकारीयों को इसबात का जवाब देना होगा अगर कोई कहे के इन सभी को बहुत पहले ही हटा दिया गया था उन्हें  ये साबित करना होगा के किस बुनियाद पर और हटाने का आधार क्या     था? यहाँ बताते चले की पूर्व  एवं वर्तमान BEO      के      रिपोर्ट    ने  साबित  कर दिया है के   साल 2003से 2012तक इनका  काम   संतोष 

जनक रहा है इसकी पूष्टि स्कूल adhyakch ने भी की है ,यही रिपोर्ट  त्रिअस्तरिये जाँच टीम जिसे तत्कालीन जिला पदाधिकारी ने गठित 

की  थी      टीम    के   रिपोर्ट    पर  सवलिया    निशान  लगाने    के  साथ ही team के लोगों को भी जाँच के दाएरे में लाती है   और    अगर

 मामले की निगरानी जाँच हुई तो टीम के  लोगों को कई  कारणों   से 

जेल जाने की नौबत तक आ सकती है ,पहली वजह तो  ये  है  के  जब  DM ने जाँच टीम गठित की   तो  रिपोर्ट   DM  को   ही    आगे की करवाई हेतु सोंपा जाना था,मगर बताया जाता है के इस मामले में  ऐसा नहीं किया गया,क्यों नहीं  किया  गया? मामले की जाँच कर रहे  BIHAR HUMAN RIGHTS COMMISSION    में उठने वाला है,जानकारों की माने तो रिपोर्ट इसलिए नहीं   सोंपी  गई  क्योंके के जाँच team को इस बात का  दर था के जाँच  में   ऐसा    कुछ भी ठोस सबूत  नहींमिल पारही थी  जिससे की श्री सुनील कुमार पासवान और बाकी 

पंचायतshikchako को हटाया जा सके,मगर मुखिया चुनाव 2006 की घोसना हो जाने के कारन आचार संहिता औधि में मुखिया पुत्र 

और उनकी भतीजी की बहाली रद्द होने की पूरी खतरा थी ,जानकारों  का मानना है के त्रिअस्तारिये जाँच टीम मिली भगत पहले से थी इसी वजह कर मुखिया और उसके रिश्तेदारों को बचाने के लिए रिपोर्ट को दबा  दिया  गया,अब जबके के मामले की जाँच बिहार मानवाधिकार आयोग कर रहा त्रिअस्तारिये 

जाँच रिपोर्ट का  समाप्त हो चूका , बिहार मानवाधिकार आयोग के 

आदेश के आलोक में होरहे जाँच के बाद अपना गला फंसता देख वरिये पदाधिकारियों ने  मुखिया के   रिश्तेदारों की  बहालियों को  रद्द   कर दिया है,सवाल यहाँ ये पैदा होता है के जब पूर्व BEO ने बहाली को गलत

साबित  कर चुकी थी  उस  समय  बहाली  क्यों  नहीं रद्द की गई ?जिस अवैध बहाली को 2007और उससे पहले रद्द होनी चाहिए  थी  वह 

2012में क्यों हो रही ? अब जबके बहाली  रद्द हो चुकी ऐसी  हालत  में मुखिया  पर FIR  दर्ज क्यों  नहीं  हो  रही    यहाँ    बताते    चले    की 

त्रिअस्तारिये जाँच टीम को और कुछ न मिला तो श्री सुनील कुमार 

पासवान  को  मुखिया के जरिये  स्कूल  के  प्रधानाचार्ज   के   जाली 

hastakchar को आधार बनाकर हटाने सही साबित करना भी मुखिया 

और जाँच टीम की मिली भगत को दरसा रहा,चुके संबधित  HM   ने 

अपने      hastakchar          को      जाली       करार       देते         हुए

कानूनी करवाई की मांग भी की है  इसके   बावजूद       जालसाजों   पे 

कारवाई का नहोना  DEO ऑफिस के कारनामों को उजागर करती है 

के पुरबी चम्पारण के deo ऑफिस गरीब और इमानदारों के लिए किस तरह दुश्मन की भुमिका निभाती तो दूसरी तरफ अमीर और पैसा वालों 

के लिए किस तरह  दोस्त की भूमिका में खरी रहती है?

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