कानून या मजाक ?

                                        कानून या मजाक ?
उर्दू दैनिक पिन्दार में दिनांक 30.11.2012 को सम्पादकिये पृष्ठ  पर प्रकाशित
महाराष्ट्रा सरकार को एक एक बार फिर शर्मिंदगी उठानी पढ़ी और कानून के गलत इस्तेमाल पर वह आज फिर से कटघेरे में लडिया फिर घिर गई है .facebook विवाद के सिलसिले में सरकार ने ठाणे के दो पुलिस अधिकारीयों SP ठाणे ग्रामीण rawindar sen gaonkar और सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर srikant pingle को सस्पेंड कर दिया गया है सनद रहे के उपरोक्त दोनों पुलिस अधिकारी ने शिव सेना के kaarjkartaon का दबाओं में 18 नवम्बर को शाहीन dhadha और रेनू श्रीनिवासन के खेलाफ न सिर्फ मुकदमा दर्ज किया गया था बलके उन्हें गिरफ्तार करते हुए अदालत मर पेश कर दिया ,जबके ये मामला इस कद्र संवेदनशील न था .जब इस गिरफ़्तारी पर जनता ने गुस्से का इज़हार किया तो सरकार को जाँच करवानी पड़ी .और जाँच रिपोर्ट आने के बाद उपरोक्त दोनों पुलिस अधिकारीयों को दोषी पाया गया .साथ ही हाई कोर्ट ने भी इस मामले में सख्त क़दम उठाते हुए पाल घर के judicial magistate R B bagade का तबादला कर दिया .बेला शुबा किसी भी मुल्क के लिए उसका कानून हर फर्द और समाज से ऊपर होता है और हर हर शहरी के लिए लाजमी है के उसका एहतराम करे .उसके तक़द्दूस और उसके वक़ार को हर हाल में बरकरार रख्खे .लेकिन गुजिस्ता चाँद महीनो से हमारे मुल्क की पुलिस खास कर maharastra पुलिस हिन्दुस्तानी कानून को के वक़ार को मजरुह करने पर तुली हुई है .कई बार प्रशासन को शर्मिंदगी उठानी परी .कुछ माह पहले कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के खेलाफ दुसरे अधिकारियों (उसमे maharastra सरकार भी शामिल थी )ने गलत धारा का इस्तेमाल करते हुए मुक़दमा दर्ज किया था ,लेकिन अदालत में वह उसे शाबित न कर सकी ..और आखिर कार शर्मिंदगी उठानी परी क्यों के आदालत के जरिये फटकारे जाने के बाद संबधित अधिकारीयों के पास इल्जाम वापस लेते हुए केस से दस्तबरदारी इख्तेयार करने के सेवा कोई चारा न था .अगर इस घटना पर बारीकी से गौर किया जाये तो किसी फर्द या अधिकारी की बे इज्ज़ती नहीं बलके हिदुस्तानी कानून की और सविंधान की की तौहीन है जिसके लिए सम्बंधित लोगों को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता ,लेकिन अफ़सोस के इस सिलसिले में दोषी अधिकारीयों के खेलाफ कोई ठोस करवाई नहीं की गई और इससे भी जेयदा अफ़सोस की बात ये है के सरकार और पुलिस प्रशासन ने इस घटना से सबक भी हासिल नहीं किया असुली तौर पर तो ये होना चाहिय था के वह आइन्दा के लिए संभल जाते और किसी भी मामले में बेला सोंचे समझे या किसी के दबाव में आकर कानून का गलत इस्तेमाल नहीं करते लेकिन ऐसा हुआ नहीं .असीम त्रिवेदी की घटना के चंद माह बाद ही maharastra जिला के ठाणे में पुलिस ने एक मर्तबा फिर ऐसी गलती  गई दोहराई गई .और दो मासूम लड़कियों शाहीन और रेनू के खेलाफ शिव सेना के दबाव में आकर धरा 295A और 505 आईटी  एक्ट के तेहत मुक़दमा दायर कर दिया गया और स्थानिये अदालत में पेश भी किया गया और मोकामी अदालत ने भी कानून की धजयां उड़ाते हुए इन दोनों लड़कियों के खेलाफ फरदे जुर्म भी दाखिल करदी और उन्हें 15 हजार रूपये की अदाएगी के मुच्कले के बाद जमानत मंजूर की .ये पूरा मामला हिन्दुस्तानी सविंधान और कानून की सरीह खेलाफवर्जी था और अवाम ने उसके खेलाफ आवाज बुलंद करते हुए अपनी जिमेदारी निभाई  के आज के दोषी अधिकारीयों को निलंबन का सामना करना परा इस घटना के बाद शायद सियासी पार्टियों और कायेदीन के दबाव में काम करने वाले पुलिस मुलाजेमिन संभल जाएँ और अपने फरायेज की तकमील के दौरान कानून की बाला दस्ती को बचाकर रखें .कानून की बाला दस्ती को कायेम करने के लिए वेजारते दाखेला और बॉम्बे हाई कोर्ट ने जो फैसले किये हैं उसकी अवामी हलकों में प्रशंशा हो रही .यही वजह है के पुलिस मुलाजेमीन के निलंबन के खेलाफ शिव सेना की जानिब से पाल घर बंद मनाया गोया के शिव सेना खुद को हिन्दुस्तानी कानून से ऊपर समझ रही है .शिव सेना का ये काम यक़ीनन दस्तुरे हिन्द की तौहीन के बराबर है और इस पर पार्टी के जिम्मेदरान से पूछ ताछ की जनि चाहिए .अगर ये गलत सोच आम हो गई तो फिर मुल्क का शिराजा बिखर जायेगा,ऐसा फहली बार नहीं हो रहा है ,सेना ने इससे पहले भी कई बार दस्तुरे हिन्द व कानून का खुला मजाक उड़ाया है बलके कुल शिव सेना कायेद रावत ने बाल ठाकरे की यादगार कायेम करने से संबधित जो बयान दिया था वह भी तो हिन्दुस्तानी कानून और अदालत के अहानत के हे मुत्रादीफ है,रावत ने कहा था "बाल ठाकरे पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए भगवान का दर्जा रखते हैं और उनकी आखरी रस्म जिस जगह अंजाम दी गई वह जगह हमारे लिए अयोध्या से कम नहीं इसलिए अदालत और हुकूमत शिवा जी पार्क में बाला साहेब की याद गार के केयाम में रुकावट न डाले .रावत ढके छुपे अल्फाज में अदालत और  हुकूमत को वार्निंग दे रहे हैं और इसी सोच को सख्ती से कुचलने की जरुरत है कयोंके अगर ये आम हो जाये तो लोकतंत्र के लिए बहुत नुकसानदेह होगी .मुल्क की शांति और मजबूती के लिए दस्तूर और कानून की बालादस्ती जरुरी है ,इससे इनकार नहीं किया जा सकता .अब ये अदालत और कानून के रखवालों की जिम्मेदारी बनती है के वह कानून को अपने घर की बांदी समझने वालों से किस तरह निपटते हैं .?

 


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