डॉक्टर मुश्ताक अहमद
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सैयद आसिफ इब्राहीम की नियुक्ति पर चेमेगोइयाँ क्यों?
हमारा मुल्क हिन्दुस्तान एक बहूत बरा लोकतांत्रिक देश है और हमारा सविंधान का आधार secularism है .यही वजह है के मुल्क के अन्दर अनेक धर्मों और संस्कृति क्र लोग रहते हैं और उनके अलंबरदारों को ये हक हासिल है के वह अपने मजहब और कर कल्चर के तहफ्फुज के लिए कोई भी क़दम उठा सकते हैं शर्त ये है के उनके क़दम से दुसरे मजहब के लोगों के दिल को ठेस न पहुंचे .कयोंके हमारा सविंधान इसकी इजाजत नहीं देता इसी तरह सविंधान में बराबरी के हक़ की वकालत की गई है .गर्ज के तमाम शहरी को को जिंदगी के विभिन छेत्रों में oportunity हासिल करने का सवैंधानिक अधिकार अधिकार प्राप्त है .लेकिन सच्चाई ये है के आजादी के बाद देश में जिस तरह की फेजा बनी हुई है और खास कर तीन दहाई में जिस तरह भेद भाव करने वाले सोंच के लोगों की वर्चश कायेम हुई तो मुल्क के ख़ास तबके को नजर अंदाज किया जाने लगा .खास कर मुसलमानों के साथ जिस तरह का भेदभाव वाला रवैया अपनाया जाने लगा वह न सिर्फ गैर अखलाकी था बलके सवैधानिक भी .नतीजा ये हुआ के मुल्क का मुसलमान जिन्दगी के विभिन छेत्रों में दिनों दिन पिछरता चला गया गया और आज खुद सरकार की रिपोर्टसच्चर कमिटी ,रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट ने इस हकीकत को जाहिर कर दिया है के मुल्क का मुसलमान दलित से भी बदतर है .दलित से भी बदतर कहने का मतलब साफ़ है के इस मुल्क में दलित समाज की हालत भी बेहतर नहीं है और इससे भी बदतर हालत मुसलमानों की है .जबके हमारा सविंधान मुल्क के तमाम शहरी को जिंदगी जीने के बराबरी के अधिकार की वकालत करता है तो फिर आजादी के 66 सालों बाद भी अगर मुसलमान दलीत समाज से भी तरक्की के मामलों में कोसों दूर हैं तो सवाल पैदा होता है के इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?और आखिर कब मुसलमानों की पिछड़ापन दूर होगी ? कयोंके इस मुल्क में मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत है और जब तक 20 प्रतिशत आबादी पिछड़ा है तो उस वक़्त तक ये देश तरक्की कर सकता है ?इस पर उन लोगों को गौर करने की जरुरत है जो मुसलमानों या दलितों के बारे में भेदभावपूर्ण रवैये का प्रदर्शन करते हैं .आखिर क्या वजह रही के देश के ख़ुफ़िया एजेंसियों के प्रमुख के पद पर अब तक किसी मुसलमान को नियुक्त नहीं किया गया ?और अब के सरकार ने असुली तौर पर आईपीएस कैडर के इमान्दार और फआल ऑफिसर सैयेद आसिफ इब्राहिम को इंटेलीजेंस ब्यूरो( IB )का चीफ बनाने का फैसला किया है तो न सिर्फ सियासी गलियारों में बलके इस मुल्क के इलीट तबकों में भी चेमेंगोइंयाँ शुरू हो गईहैं .खास कर फिरका परश्त संगठन के लोगों ने एक तरह की गलत फहमी फ़ैलाने के साजिश शुरू कर दी है .सियासी तबके में इस नियुक्ति को मुसलमानों को खुश करने वाला क़दम बताया जा रहा है ,जबके सच्चाई ये है के जनाब इब्राहीम को उनके ओहदे पर उनके काबिले फ़ख्र peformance और सेनिओरिटी के आधार पर नियुक्ति की गई है .मुसलमानों को खुश करने वाली बात तब होती जब किसी जूनियर मुस्लिम ऑफिसरको ये ओहदा दिया जाता .इस तरह की चेमेगोइयाँ ये साबित करती है के बा सलाहियत और इमानदारी से आला ओहदे पर काम करने वाले मुस्लिम तबके के अफसरों को किस तरह नजर अंदाज़ करने की साजिशें होती रही हैं .यही वजह है के तिन दशक से मुल्क में IB और रॉ जैसी ख़ुफ़िया एजेंसियां हैं लेकिन मुल्क अब तक किसी मुस्लिम अफसरान को उन एजेंसियों का चीफ होने का मौका नसीब नहीं हुआ .अमर भूसन तत्कालीन स्पेशल सेक्रेटरी RAW ने इस वजह का खुलासा किया है के अब तक अगर किसी मुसलमान को ये ओहदा नहीं दिया गया तो उसके तईं मनफ़ी रवैया( negativ attitude)रहा है .उनका ये भी कहना है के जरुरत इस बात की है के खुफिया एजेंसियों में जेयदा से जेयदा मुस्लिम अधिकारिओं की नियुक्ति होनी चाहिए .सच्चाई भी यही है के मुल्क के मुख्तलिफ रियासतों की police विभाग का मामला हो या राष्ट्रीय अस्तर पर फ़ौज व दिगर हेफाजती दस्ता का मामला।मुसलमानों के बारे में कहीं न कहीं नेगेटिव attitude काम करता रहा है .जिसका सबूत ये है के पुरे मुल्क की आबादी तक़रीबन 20 प्रतिशत लेकिन मज्मुइ तौर पर पुलिस व फ़ौज में मुसलमानों की हिस्सेदारी सिर्फ 6 प्रतिशत .जैसा के सच्चर कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में साबित किया है और अगर जम्मू कश्मीर रियासत के 47000 हजार पुलिस अम्लों को अलग कर दे तो ये सिर्फ 4 प्रतिशतपर पहूच जाती है .
सारांस ये के दीगर सरकारी विभागों की तरह सुरक्षा विभाग में भी मुसलमानों की प्रतिनिधित्व बहुत कम हयानि निराशाजनक है जो न सिर्फ मुसलामनों के साथ नाइंसाफी है बल्के हमारे सविंधान के तकाजों के भी खेलाफ है ,क्योंके हमारा सविंधान जात,पात और मजहब से ऊपर उठकर तमाम शहरी को उसकी सलाहियत के मुताबिक सरकारी और गैर सरकारी ओहदों की रिकवरी की गारंटी देता है ,लेकिन अब जबके मुख्तलिफ रिपोर्टों से ये हकीकत उजागर हो रही है के के मुसलमानों को सरकारी विभागों में हिस्सेदारी देने के मामले में किसी भी सरकार की नियत साफ़ नहीं रही है क्योंके रियासत बंगाल में तीन दहाइयों से ऐसी सियासी पार्टी हुक्मरां जमात के तौर पर विराजमान रही जिसके बारे में कहा जता है के इस सियासी पार्टी की बुनियाद सेकुलरिज्म है .लेकिन इस रियासत में भी आजादी से पहले 12 प्रतिशत मुसलमान नौकरियों में थे और आज एक फिसद से भी कम है ,इसलिए किसी एक पार्टी को मुसलमानों की बदहाली के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता .मुल्क में दो तरह की ताक़तें काम कर रहीं हैं .एक वह ताक़त है जो जाहिरन सियासी पार्टी के चोलों में काम कर रही है और दूसरी ताक़त वह है के ख्वाह वह किसी पार्टी का चोला ओढ़ रख्खा हो लेकिन मुसलमानों के मामले में भेदभावपूर्ण और क़दम क़दम पर मुसलमानों के लिए रोड़े खरे करते रहे हैं .बहर कैफ syed aasif ibrahim की नियुक्ति और उनकी मेहनत और मुशक्कत और इमानदारी का फल है किसी सियासी पार्टी का तोहफा नहीं ,लेकिन मौजूदा मरकजी हुकूमत के इस एकदाम को काबिले तहसीन इसलिए करार दिया जा सकता है के इस हुकुमत ने इस नियुक्ति में किसी प्रकार की भेदभावपूर्ण रवैया नहीं अपनाया है और सविंधान के तकाजों को की पासेदारी करते हुए हक ब हक दार रसीद को सच साबित किया है .वाजेह हो के जनाब सैयद आसिफ इब्राहीम 1977 बैच के IPS हिं और उनका कैडर मध्य प्रदेश रहा है और उन्हों ने कश्मीर में बरसों काम किया है और उनकी सेवा काबिले तहसीन रही है लिहाजा हुकूमत हिन्द ने अपनी ख़ुफ़िया एजेंसी IB के मौजूदा चीफ निहचल सिन्धु के सबक्दोसी के बाद जनाब इब्राहीम को इस ओहदे से सरफराज किया है .वाजेह हो के सिन्धु 31.12. 12 को रिटायर्ड हो रहे हैं और 1 जनवरी 2013 को जनाब इब्राहीम इस ओहदे पर फाएज होंगे .इस नियुक्ति से मुस्लिम तबके के उन अफसरों की भी होसला अफजाई हुई है जो ईमानदारी के साथ अपने काम को अंजाम देते रहे हैं .इसमें कोई शक नहीं के अगर इंसान के अन्दर खिदमते खल्क का इमानदाराना जज्बा हो और सालेह फ़िक्र रखता हो तो उसे कामयाबी जरुर मिलती है .
हकिमुल्लाह हाली ने ठीक ही कहा है .............परे है चरख नील फाम से मंजिल मुसलमाँ की , सितारे जिसकी गर्दे राह हों ,वह कारवां तो है
पिन्दार उर्दू दैनिक 4/12/12 में प्रकाशित
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