दलित के साथ जुल्म और नाइंसाफी की इससे बड़ी और क्या मिशाल हो सकती है ?

         दलित जुल्म की एक मिशाल आपके सामने पेश है ,जो अंग्रेजों के जरिये ढाए गए जुल्म को भी फीका करदे
मामला बिहार के पूर्बी चंपारण से ज़ुरा हुआ है
        उपरोक्त जिला के फेन्हरा ब्लॉक के बारा परसौनी पंचायत के एक ऊँची जाति के एक मुखिया ने अपने बेटे और भतीजी को बहाल कराने के लिए पहले एक दलित जाति के एक पंचायत शिक्षक श्री सुनील कुमार पासवान को एक साजिश के तहत शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों से मिलकर हटा दिया,वह भी इस प्रकार से के सुनील कुमार काम भी 6 सालों से उपर से काम भी करते रहे पर वेतन न मिला ,मगर बैक डोर से बहाल उची जाति के मुखिया के जरिये बहाल रिश्तेदारों के वेतन भुगतान में किसी प्रकार की रुकावट न आई ,मगर श्री सुनील कुमार चुके दलित जाति से संबंध था सो इनका वेतन मिलता तो कैसे,सुनील कुमार दौरते रहे मगर न मुखिया ने इनकी सुनी न बिहार के सुशासन बाबू की वह सरकार जो दलितों और अल्पसंख्यकों के कल्याण के नाम पर सालों से हुकूमत स्थापित है ,बात जब न बनी 6 साल से भी जेयदा अर्से बीत गए,तब बिहार के मशहूर सौतंत्र पत्रकार  सह मानवाधिकार कार्यकर्ता  मोहम्मद कौसर नदीम ने दलित सुनील कुमार को इन्साफ दिलाने के खातिर मोर्चा संभाला ,जनाब नदीम ने पुरे मामले को निष्पक्ष जांच कराने हेतु बिहार राज मानवाधिकार के अध्यक्ष श्री एस एन झा  को पत्र  लिखा ,
राज मानवाधिकार आयोग के आदेश के बाद जांच तो हुई ,पर साल बीत  गए ,पर न जाने मावाधिकार आयोग भी आज तक फैसला न ले सका ,शायद ऐसे संस्थानों में भी कहीं बैठे बरी जाति  कहीं सुनील कुमार पासवान के इन्साफ पाने की राह में रुकावट तो नहीं? ,ये सवाल उठने लगे हैं,कयोंके मामला इतना गंभीर ,और इन्साफ होने में इतनी देरी ? सवाल उठे भी क्यों नहीं ,जिस मानवाधिकार आयोग के आदेश के बाद वारिये अधिकारिओं ने जांच की ,गलत ढंग से बहाल लोगों को हटाया ,लेकिन उनके विरूद्ध  आज तक एफ आई आर तक दर्ज न  हुआ ,यानि ऊँची जाति के जालसाजों के साथ मरौअत और इमानदार दलितों के साथ न इंसाफी?अगर ये नाइंसाफी की मिशाल नहीं तो बिहार के सुशासन बाबू  और उनके कर्ता धर्ता बताएं के ये किस बात की निशानी है .......
       बात यहीं पर ख़त्म हो जाती तो कोई बात नहीं थी ,मगर  अंधा  कानून का ही शायद परिणाम था के मुखिया के बेटे ने एक समय में दो स्थानों पर सालों साल नौकरी भी करता रहा यानि के एक ही समय में वह डाक विभाग का मुलाजिम भी रहा और पंचायात शिक्षक भी ,जरा खुद सोंचिये के भला बगैर किसी आला अधिकारिओं की मिली भगत के संभव हो सकता था .........हम को तो कतई मुमकिन नहीं दिखता लेकिन आप  लोग क्या सोंचते हैं?
        मामले का सबसे मजेदार पहलू तो ये है के वारिये पदाधिकारी अपने को इस मामले में फंसता देख मुखिया के बेटे और भतीजी के वेतन भुगतान पर जब रोक लगाईं तो इन लोगों ने मुख्मंत्री के सेवा यात्रा में जाकर नाइंसाफी की गुहार लगाईं ,मगर सच्चाई सामने पहले ही आ चुकी थी सो वारिये पदाधिकारियों ने अब आगे साथ तो जरूर न दी मगर इन जालसाजों को बचाने में कोई कमी नहीं की ,मसलन प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी ने इन जालसाजों के विरुद्ध कार्रवाई की अनुसंसा कर रख्खी है ,शायद  ऊँची जाति और ऊँची पकड़ का ही नतीजा है के प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी के आदेश के बावजूद न तो जाल जालसाजों से रुपया ही वसूला जा सका है और न अब तक एफ आई आर ही दर्ज हो सका ,ऐसी सूरत में अब नीतीश किस मूह से कहते फिरेंगे के मैं दलित और अल्पसंख्यक प्रेमी हूँ?और हमारे प्रदेश में न्याय के साथ विकास भी हो रहा ?


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