क्या गजरात के मुसलामानों को कभी इन्साफ मील सकेगा ?

                          नरौदा पाटिया दंगा :-नरौदा पाटिया दंगा में 1 5 हजार से जेयादा दंगाई 2 8 फ़रवरी 2002 की सुबह 7 बजे हमला शुरू कर दिए ,1 2 घंटो के नंगा नाच के लिए पूरी तैयारी करली थी ,हिथियार की गाड़ी ,पेट्रोल की गाड़ी ,गैस सेलेंड़ेरों से भरी हुई लारी ,उनके साथ थी दंगाई बारी-बारी आते महिलाओं की इज्ज़त लुटते ,लुट मार मचाते ,हत्या करते और घरों को आग लगा देते थे ,थक जाते तो उनकी जगह दुसरे दंगाइयों की टोली आ जाती ,थके हुए दंगाई नाश्ता करके ,शराब पीकर आराम करके फिर लौट आते ..एक दंगाई की बीवी मुसलमान थी ,लेकिन उसे ये एहसास नहीं हुआ के जिस सख्श के साथ वह जिंदगी गुजार रही है ,वह आदमी उसकी कौम का क़त्ल कर रहा है .बी जी पी ने अपने ही काएद के खानदान को नहीं बख्शा .नजीर खान पठान के वक़्त बी जी पी के मुकामी काएद और कार्यकारणी (मज्लिशे शुरा )के रुक्न (सदस्य  थे आज कल नजीर खान इस्लामिक रिलीफ कमिटी के एकरा स्कूल में केमिस्ट्री और बायोलॉजी पढ़ा रहे हैं .अदालत में वह भी साबित क़दम (मुस्तैदी के साथ डेट रहना )रहे ,पहले वह मैथ के टीचर थे .फ़सादियों ने अपने शिक्षक को भी नहीं छोड़ा .2 8 फ़रवरी को फसाद के दिन पुलिस फायरिंग में एक खाली शेल नजीर खान के कान से टकरा करपैर को जख्मी कर गया ,वह भागने के काबिल नहीं रहे इसलिए अपनी बीवी से कहा के वह उनके बेटे और बेटी को कहीं दूर ले जाकर अपनी और उनकी जान बचाले .बेनजीर अपनी जान बचाने के लिए सड़क के किनारे स्थितसाढ़े चार फिट जमीं के निचे पानी के टैंक में छुप गए .कई घंटो तक पैर से खून बहते रहे कान में बहुत दर्द के बावजूद उन्होंने ठन्डे पानी के उस टैंक में कई घंटे गुजारे . टैंक का ढक्कन उठाकर जब वह बाहर आये तो देखा के चारों तरफ लाशें हे लाशें पड़ी हुई थीं .जिन औरतों का दामन तार - तार हो चुका था वह आखरी सांसें गिन रहीं थीं .बलात्कार के बाद खूंखार दरिंदों ने उनके जिस्म के नाजुक हिस्सों में लोहें की छड़ें और लकड़ियाँ घुसा दी थीं .इस दौरान माया कोडनानी की नजर उनपर पड़ी और वह जोर से चींखने लगी के ( " ताजिया "शब्द फसाद  के दौरान मुसलमान की पहचान के लिए खुफिया इशारे के तौर पर किया  गया )गर्ज फसादी उनके तरफ दौर पड़े .नजीर दौरे हुए एक जेरे तामीर मकान में दाखिल हो गए .नजीर ने देखा के वहाँ स्टेट रिज़र्व पुलिस के कुछ जवान चोरी में वेयस्त हैं . ये चोर पुलिस वाले उनके साबेका शागिर्द निकले .उन्हें ओस्ताद (गुरु )पर रहम आ गया .उनहोंने अपने ओस्ताद के लिए खाने और दवा का बंदोबस्त किया  और उन्हें अपने घर में पनाह दी .इस तरह नजीर की जान बच गई और उन्हों ने अदालत में बेख़ौफ़ बयान दिया .उन्होंने नरेंदर मोदी को एक ख़त भी लिखा ,जिसका जवाब उन्हें अभी तक नहीं मिला .बेनजीर ने जो कुछ देखा था ,वह सब अदालत को बताया ,धमकियां और लालच उन्हें रोक नहीं सकी .  (उर्दू दैनिक पिन्दार पटना के दिनांक 1 5 .0 1 /2013 से लिया गया है  शेष भाग बाद में) .....  www.biharbroadcasting.com 

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