क्या गजरात के मुसलामानों को कभी इन्साफ मील सकेगा ?
(अहमद मोहिउद्दीन सिद्दीकी )
2 0 0 2 के फसादात में हजारों मुसलामानों को शहीद कर दिया गया . 2 3 हजार घड़ों को लूटकर आग लगा दी गई 297 मस्जिदों और दरगाहों को ध्वस्त कर दिया गया .राष्ट्रीय राज मार्गों और हाई वेज पर बारह सौ होटलों को निशाना बनाया गया और 350 तिजारती मराकिज लूट मार कर बर्बाद कर दिए गए .
गुलबर्ग सोसाइटी के जले हुए और वीरान बंगलों में मैंने अजीब इज़तेराब महसूस किया , 2 8 फ़रवरी 2002को सुबह को जब सात बजे से शाम 7 बजे तक सरकारी मदद से जिनका क़त्लेआम किया गया .....उन शहीदों की रूहें इन्साफ मांग रही हैं गुलबर्ग सोसाइटी के गेट में दाखील होते ही बाएं तरफ कासिम साहेब का बंगला है ,जिनके 1 9 अफराद शहीद कर दिए गए ,कासीम साहेब उस खानदान के वाहीद अफराद हैं जो उन फसादात में जिन्दा बच गए और वह उस वजह जगह रहने वाले तनहा आदमी हैं ,जो अभी तक डेट हुए हैं ,उस केयामत खेज फसादात का ज़िक्र करते हुए कासीम साहेब की हिचकियाँ बंध गईं और बात चीत को कुछ देर के लिए मुझे रोक देना पड़ा ..कासिम साहेब बंगला नंबर 2 और उनकी माँ और दुसरे रिश्तेदार बँगला नंबर 1 6 में मुकीम थे .इन दोनों बंगलों में कुल 1 6 लोग रहते थे , जो सब के सब क़त्ल कर दिए गए .कासिम साहेब अपना बंगला बेच कर कहीं और जाना नहीं चाहते ,उन्हें डर है के अगर उनहोंने अपना बंगला बेंच दिया तो उसके अन्दर की मस्जिद शहीद कर दिया जायेगा .गुलबर्ग सोसाइटी में आज भी पाँच वक़्त की नमाज जारी है .कासिम साहेब शायद मायूस और बरहमी (गुस्से)की हालत में कहते हैं के पुलिस कमिशनर पण्डे चाहते तो उस एक छोटी सी बस्ती को आसानी से सुरक्षा प्रदान कर सकते थे .
गुलबर्ग सोसाइटी के प्रभावितों पर दबाव दाल कर औने पौने उनके बंगले खरीदने की कोशिश की जा रही है ,यहाँ एक बंगले की कीमत लगभग एक कड़ोड़ है .गुलबर्ग सोसाइटी क़त्लेआम केस के अहम् गवाह इम्तेयाज़ खान पठान ,जिन्होंने अदालत में बयान दिया था के वजीरेआला नरेंदर मोदी ने मरहूम मेम्बर ऑफ़ पार्लियामेंट एहसान जाफरी के पुलिस तहफ्फुज तलब करने पर उनसे बदकलामी करते हुए पुछा था के "अभी तू ज़िंदा है मरा नहीं " ? इम्तेयाज खान का कहना था के "हमारे साथ जो हुआ हमारे खानदान और गुलबर्ग सोसाइटी वालों और बाकी गुजरात के मुसलामानों का जो क़त्लेआम और जानी माली नुक्सान किया गया उससे मैंने ठान लिया था के अगर हम अदालत की लड़ाई नहीं लड़ेंगे तो ऐसा दुबारा हो सकता है "इम्तेयाज खान ने बताया के उनपर भी पेट्रोल फेंक दिया गया था ,उन्होंने दूर भाग कर ,पेट्रोल से तर ब तर शर्ट उतार कर अपनी जान बचाई .फसादी व बलवाई गुलबर्ग सोसाइटी की गेट से नहीं बलके उसकी दिवार तोड़ कर हजारों की तादाद में अन्दर दाखिल हो गए थे ,इम्तेयाज बंगला नंबर 1 0 में रहते थे और एहसान जाफरी के पड़ोसी थे .उनहोंने इस फसाद में अपने खानदान के 1 0 अफराद खो दिए ,उनकी माँ ,9 2 वर्षीय दादी ,चाचा ,चचेरे भाई,भाउज ,चचेरे भाई का बेटा ,बहु और उनका 5 साल का लड़का सब के सब बेदर्दी से मार दिए गए .इम्तेयाज ने बताया के फसाद में वह और उनके वालिद बच गए .इम्तेयाज के बड़े भाई फिरोज खान पठान तेजारत के सिलसिले में सूरत गए हुए थे ,इसलिए उनकी जान बच गई
इम्तेयाज के दोनों बेटे उर्दू मेडियम से तालीम हासील कर रहे हैं ,हालांके गुजरात में उर्दू का जेयादा चलन नहीं है . इस बारे में इम्तेयाज का कहना था के उर्दू से अगर तालीम हासिल की जाए तो दिन भी बच्चों में आ जायेगा .फोका और हदीश भी सीख लेंगें और उन्हें मालुम हो जाएगा के इस्लाम कितना कितना बेहतरीन मजहब है।3 5 वर्षीय इम्तेयाज खान पेशे से इलेक्ट्रीशियन हैं .इम्तेयाज विशेष जांच टीम( SIT)
के रोले से भी सख्त नाराज थे .उनहोंने कहा के मैंने उसके दफ्तर में 1 3 घंटों तक अपना बयान दर्ज करवाया था .उसमें से बाज और ख़ास जरुरी बातों को निकाल दिया गया ,मिशाल के तौर पर एहसान जाफरी और मोदी की बात चीत का जिक्र नहीं किया गया . SITटीम ने भी आम पुलिस वालों की तरह पक्षपात करते हुए ,पीड़ितों को बचाने की कोशिश में ऐसे पुलिस अफसरों को चुना जो इशरत जहां फर्जी मुड़भेड़ में शामिल थे .उनहोंने आई जी गीता जौहरी ,शिवानन्द झा और इंस्पेक्टर गोसवामी गीरी के बारे में शुबहात(शक )का इज़हार किया . .... इम्तेयाज के बड़े भाई फिरोज खान बी .कॉम हैं और महाना 6,000 रूपये कम लेते हैं और इम्तियाज की माहाना 7 हजार है ,रियासती और हुकूमत की तरफ से एक आदमी के लिए 5 लाख कम्पंसेसन मिला है ,अपने तहफ्फुज के लिए दोनों भाइयों ने दस साल में दस घर बदले हैं .इम्तियाज ने तो अपनी दाढ़ी भी मुंड वाली है .गुलबर्ग सोसाइटी केस कुल 6 4 आरोपीयों में जिन में 1 0 जेल में हैं और तीन फरार हैं ,हैरत और तशवीश की बात है ये है के 5 1 आरोपी जमानत पर छोड़ दिए गए हैं
नरौदा पाटिया दंगा :-नरौदा पाटिया दंगा में 1 5 हजार से जेयादा दंगाई 2 8 फ़रवरी 2002 की सुबह 7 बजे हमला शुरू कर दिए ,1 2 घंटो के नंगा नाच के लिए पूरी तैयारी करली थी ,हिथियार की गाड़ी ,पेट्रोल की गाड़ी ,गैस सेलेंड़ेरों से भरी हुई लारी ,उनके साथ थी दंगाई बारी-बारी आते महिलाओं की इज्ज़त लुटते ,लुट मार मचाते ,हत्या करते और घरों को आग लगा देते थे ,थक जाते तो उनकी जगह दुसरे दंगाइयों की टोली आ जाती ,थके हुए दंगाई नाश्ता करके ,शराब पीकर आराम करके फिर लौट आते ..एक दंगाई की बीवी मुसलमान थी ,लेकिन उसे ये एहसास नहीं हुआ के जिस सख्श के साथ वह जिंदगी गुजार रही है ,वह आदमी उसकी कौम का क़त्ल कर रहा है .बी जी पी ने अपने ही काएद के खानदान को नहीं बख्शा .नजीर खान पठान के वक़्त बी जी पी के मुकामी काएद और कार्यकारणी (मज्लिशे शुरा )के रुक्न (सदस्य थे आज कल नजीर खान इस्लामिक रिलीफ कमिटी के एकरा स्कूल में केमिस्ट्री और बायोलॉजी पढ़ा रहे हैं .अदालत में वह भी साबित क़दम (मुस्तैदी के साथ डेट रहना )रहे ,पहले वह मैथ के टीचर थे .फ़सादियों ने अपने शिक्षक को भी नहीं छोड़ा .2 8 फ़रवरी को फसाद के दिन पुलिस फायरिंग में एक खाली शेल नजीर खान के कान से टकरा करपैर को जख्मी कर गया ,वह भागने के काबिल नहीं रहे इसलिए अपनी बीवी से कहा के वह उनके बेटे और बेटी को कहीं दूर ले जाकर अपनी और उनकी जान बचाले .बेनजीर अपनी जान बचाने के लिए सड़क के किनारे स्थितसाढ़े चार फिट जमीं के निचे पानी के टैंक में छुप गए .कई घंटो तक पैर से खून बहते रहे कान में बहुत दर्द के बावजूद उन्होंने ठन्डे पानी के उस टैंक में कई घंटे गुजारे . टैंक का ढक्कन उठाकर जब वह बाहर आये तो देखा के चारों तरफ लाशें हे लाशें पड़ी हुई थीं .जिन औरतों का दामन तार - तार हो चुका था वह आखरी सांसें गिन रहीं थीं .बलात्कार के बाद खूंखार दरिंदों ने उनके जिस्म के नाजुक हिस्सों में लोहें की छड़ें और लकड़ियाँ घुसा दी थीं .इस दौरान माया कोडनानी की नजर उनपर पड़ी और वह जोर से चींखने लगी के ( " ताजिया "शब्द फसाद के दौरान मुसलमान की पहचान के लिए खुफिया इशारे के तौर पर किया गया )गर्ज फसादी उनके तरफ दौर पड़े .नजीर दौरे हुए एक जेरे तामीर मकान में दाखिल हो गए .नजीर ने देखा के वहाँ स्टेट रिज़र्व पुलिस के कुछ जवान चोरी में वेयस्त हैं . ये चोर पुलिस वाले उनके साबेका शागिर्द निकले .उन्हें ओस्ताद (गुरु )पर रहम आ गया .उनहोंने अपने ओस्ताद के लिए खाने और दवा का बंदोबस्त किया और उन्हें अपने घर में पनाह दी .इस तरह नजीर की जान बच गई और उन्हों ने अदालत में बेख़ौफ़ बयान दिया .उन्होंने नरेंदर मोदी को एक ख़त भी लिखा ,जिसका जवाब उन्हें अभी तक नहीं मिला .बेनजीर ने जो कुछ देखा था ,वह सब अदालत को बताया ,धमकियां और लालच उन्हें रोक नहीं सकी.
कभी नंबर 1 जवान नगर , नरौदा पाटिया इलाका के रहने वाले नजीर खान रहीम खान पठान ने जब हम से बात की तो एक भीड़ जमा हो गई , नजीर साहेब बहार कहीं जा रहे थे , मेरे बोलवाने पर लौट कर अपने भतीजे आरिफ की दुकान पर आये और दिन की रोदाद बयान करनी शुरू करदी ,दोकान के तरफ इकठ्ठा हुजूम में से लोगों के रोने की सिसकियाँ लेने की आवाज आने लगीं , पुलिस भी वहाँ पहुँच गई , नरौदा पटिया से निकलने के बाद मेरा और मेरे साथी फोटो जर्नलिस्ट हबीब खान का पीछा किया गया , बन्दर भब्कियों की परवाह न करते हुए हमने रुक कर वहाँ की सबसे अहम् सड़क पर नुरानी मस्जिद और उसके करीब व जवार में पाई जाने वाली दोकानो की तशवीरें लीं. उससे कबल हमने एक और अहम् चश्मदीद गवाह 35 वर्षीय शकीला बानो अंसारी से भी उनके मकान में बैठकर बात चीत की .शकीला बानों ,मरहूम कौसर बानों की खालाजाद बहन हैं की बहन हैं। जिनकी कोख में जालिम बाबू बजरंगी ने तलवार घोंप कर जिन्दाह बच्चे को निकाल कर तलवार की नोक पर बुलंद करके लहराया था , इस वाकेया को बयान करते हुए शकीला जज्बात से कांपने लगीं , उन्होंने आंसुओ और सिसकियों के दरमयान बताया के जब जालिमों से बचने के लिए घर छोड़कर महल्ले ली की दूसरी तरफ जाने लगे तो सरकारी लिबास में मलबूस दरिंदों ने हमदर्दी दिखाकर मेरी मां के जेवरात उनके बदन से उतार लिए ,उनके पास जो रक़म थी वह छीन ली और फ़सादियों को इशारा कर दिया .
भागते हुए जब बेयारों मददगार लोग नरौदा पाटिया के स्टेट आर्म्ड रिज़र्व पुलिस के दफ्तर पनाह लेने पहुंचे तो उन्हें एक और पुलिस वाले ने गेट पर ही रोक दिया और एक अखबार दिखाते हुए उसने कहा " देखो ! गोधरा की इस तशवीर को ! कारसेवकों को जिन्दाह जलाया गया है . हम तुम्हारा इससे भी बुरा हाल करेंगे .आज यहाँ (मुसलामानों)को जान से मारना ही है .ये ऑर्डर ऊपर से आया है "शकील उससे सवाल करने लगी के "ऊपर से किसका आर्डर आया है ? " पुलिस वालों ने मज्लुमिन को अन्दर दाखील होने से रोक दिया ,पुलिस के दफ्तर के सामने सैकरों मासूमों को हालाक करदिया गया और पुलिस देखती रही,शकीला ने बताया के उनकी माँ और उनके भाउज को शहीद कर दिया ,उस औरत को क़त्ल करने से पहले अजियातनाक मराहिल से गुजारा गया .उनके दो महीने के बच्चे को छीनकर फसादी कहने लगे जब तू ही नहीं रहेगी तो इसको कौन देखेगा ?कुछ केमिकल और पेट्रोल फेंककर आग सुलगाई गई और उसमें उस बच्चे को फेंक दिया गया ,
एक दिसंबर 2012 को जुमा के दिन अदालत ने फैसला दिया उसमें फंसादियों को सजाएं सुनाईं गईं .नरौदा पाटिया फिर तनाव पैदा हो गई छाड़ा बेरादरी के सजायाफ्ता दंगाइयों के घर वाले उग्र होकर एक और वासिल जहन्नम फसादी रति लाल राठौर छाड़ा के घर पहुँच कर एहतेजाज करने लगे के इसने और भवानी ने फसाद कराने पर उकसाया था .रति लाल 2006 में संदेहाश्पद अवस्था में मर गया .भवानी की बेटियाँ घर से बाहर आईं और एहतेजायिओं का धेयान भटकाने के लिए उनहोंने मुसलमानों पड़ोसियों को गाली गलौज देना शुरू किया और मुस्लिम औरतों उनहोंने थूका भी ,पुलिस ने कोई केस उनके खेलाफ दर्ज नहीं किया और तमाशाई बनी रही ,शारांश ये के नरौदा पाटिया के मुसलमान आज भी खौफ और दहशत में जिंदगी बीता रहे हैं और यहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है
वकील शमशाद खान पठान ने ठीक ही कहा के फसाद रुक नहीं और अब भी मुसलामानों को निशान बनाया जा रहा है .इसकी एक मिशाल अखबारात के पन्ने उलटने से मालुम पड़ जायेगी .नवम्बर 2009 में गाये चुराने के बहाने पुलिस ने मुसलमानों के घरों में घुसकर महिलाओं के साथ बदतमीजी की जिसे नोटिस लेते हुए अध्यक्ष राष्ट्रीय महिला आयोग गिरिजा वेयास ने यहाँ एक जांच टीम भेजी थी और इस वाकेया की भरपूर आलोचना हुई थी .
मैंने इस दौरे में बाज ऐसी बातें सुनी और देखी हैं जिन्हें कलमबंद नहीं किया जा सकता ....अगर मुसलामान गुजरात के फसाद को भूल जाते हैं तो फिर उनकी दास्तान तक भी न होगी दास्तानों में .(उर्दू दैनिक पिन्दार पटना के दिनांक 1 5 .0 1 /2013 से लिया गया है .) ..... www.biharbroadcasting.com
नरौदा पाटिया दंगा :-नरौदा पाटिया दंगा में 1 5 हजार से जेयादा दंगाई 2 8 फ़रवरी 2002 की सुबह 7 बजे हमला शुरू कर दिए ,1 2 घंटो के नंगा नाच के लिए पूरी तैयारी करली थी ,हिथियार की गाड़ी ,पेट्रोल की गाड़ी ,गैस सेलेंड़ेरों से भरी हुई लारी ,उनके साथ थी दंगाई बारी-बारी आते महिलाओं की इज्ज़त लुटते ,लुट मार मचाते ,हत्या करते और घरों को आग लगा देते थे ,थक जाते तो उनकी जगह दुसरे दंगाइयों की टोली आ जाती ,थके हुए दंगाई नाश्ता करके ,शराब पीकर आराम करके फिर लौट आते ..एक दंगाई की बीवी मुसलमान थी ,लेकिन उसे ये एहसास नहीं हुआ के जिस सख्श के साथ वह जिंदगी गुजार रही है ,वह आदमी उसकी कौम का क़त्ल कर रहा है .बी जी पी ने अपने ही काएद के खानदान को नहीं बख्शा .नजीर खान पठान के वक़्त बी जी पी के मुकामी काएद और कार्यकारणी (मज्लिशे शुरा )के रुक्न (सदस्य थे आज कल नजीर खान इस्लामिक रिलीफ कमिटी के एकरा स्कूल में केमिस्ट्री और बायोलॉजी पढ़ा रहे हैं .अदालत में वह भी साबित क़दम (मुस्तैदी के साथ डेट रहना )रहे ,पहले वह मैथ के टीचर थे .फ़सादियों ने अपने शिक्षक को भी नहीं छोड़ा .2 8 फ़रवरी को फसाद के दिन पुलिस फायरिंग में एक खाली शेल नजीर खान के कान से टकरा करपैर को जख्मी कर गया ,वह भागने के काबिल नहीं रहे इसलिए अपनी बीवी से कहा के वह उनके बेटे और बेटी को कहीं दूर ले जाकर अपनी और उनकी जान बचाले .बेनजीर अपनी जान बचाने के लिए सड़क के किनारे स्थितसाढ़े चार फिट जमीं के निचे पानी के टैंक में छुप गए .कई घंटो तक पैर से खून बहते रहे कान में बहुत दर्द के बावजूद उन्होंने ठन्डे पानी के उस टैंक में कई घंटे गुजारे . टैंक का ढक्कन उठाकर जब वह बाहर आये तो देखा के चारों तरफ लाशें हे लाशें पड़ी हुई थीं .जिन औरतों का दामन तार - तार हो चुका था वह आखरी सांसें गिन रहीं थीं .बलात्कार के बाद खूंखार दरिंदों ने उनके जिस्म के नाजुक हिस्सों में लोहें की छड़ें और लकड़ियाँ घुसा दी थीं .इस दौरान माया कोडनानी की नजर उनपर पड़ी और वह जोर से चींखने लगी के ( " ताजिया "शब्द फसाद के दौरान मुसलमान की पहचान के लिए खुफिया इशारे के तौर पर किया गया )गर्ज फसादी उनके तरफ दौर पड़े .नजीर दौरे हुए एक जेरे तामीर मकान में दाखिल हो गए .नजीर ने देखा के वहाँ स्टेट रिज़र्व पुलिस के कुछ जवान चोरी में वेयस्त हैं . ये चोर पुलिस वाले उनके साबेका शागिर्द निकले .उन्हें ओस्ताद (गुरु )पर रहम आ गया .उनहोंने अपने ओस्ताद के लिए खाने और दवा का बंदोबस्त किया और उन्हें अपने घर में पनाह दी .इस तरह नजीर की जान बच गई और उन्हों ने अदालत में बेख़ौफ़ बयान दिया .उन्होंने नरेंदर मोदी को एक ख़त भी लिखा ,जिसका जवाब उन्हें अभी तक नहीं मिला .बेनजीर ने जो कुछ देखा था ,वह सब अदालत को बताया ,धमकियां और लालच उन्हें रोक नहीं सकी.
कभी नंबर 1 जवान नगर , नरौदा पाटिया इलाका के रहने वाले नजीर खान रहीम खान पठान ने जब हम से बात की तो एक भीड़ जमा हो गई , नजीर साहेब बहार कहीं जा रहे थे , मेरे बोलवाने पर लौट कर अपने भतीजे आरिफ की दुकान पर आये और दिन की रोदाद बयान करनी शुरू करदी ,दोकान के तरफ इकठ्ठा हुजूम में से लोगों के रोने की सिसकियाँ लेने की आवाज आने लगीं , पुलिस भी वहाँ पहुँच गई , नरौदा पटिया से निकलने के बाद मेरा और मेरे साथी फोटो जर्नलिस्ट हबीब खान का पीछा किया गया , बन्दर भब्कियों की परवाह न करते हुए हमने रुक कर वहाँ की सबसे अहम् सड़क पर नुरानी मस्जिद और उसके करीब व जवार में पाई जाने वाली दोकानो की तशवीरें लीं. उससे कबल हमने एक और अहम् चश्मदीद गवाह 35 वर्षीय शकीला बानो अंसारी से भी उनके मकान में बैठकर बात चीत की .शकीला बानों ,मरहूम कौसर बानों की खालाजाद बहन हैं की बहन हैं। जिनकी कोख में जालिम बाबू बजरंगी ने तलवार घोंप कर जिन्दाह बच्चे को निकाल कर तलवार की नोक पर बुलंद करके लहराया था , इस वाकेया को बयान करते हुए शकीला जज्बात से कांपने लगीं , उन्होंने आंसुओ और सिसकियों के दरमयान बताया के जब जालिमों से बचने के लिए घर छोड़कर महल्ले ली की दूसरी तरफ जाने लगे तो सरकारी लिबास में मलबूस दरिंदों ने हमदर्दी दिखाकर मेरी मां के जेवरात उनके बदन से उतार लिए ,उनके पास जो रक़म थी वह छीन ली और फ़सादियों को इशारा कर दिया .
भागते हुए जब बेयारों मददगार लोग नरौदा पाटिया के स्टेट आर्म्ड रिज़र्व पुलिस के दफ्तर पनाह लेने पहुंचे तो उन्हें एक और पुलिस वाले ने गेट पर ही रोक दिया और एक अखबार दिखाते हुए उसने कहा " देखो ! गोधरा की इस तशवीर को ! कारसेवकों को जिन्दाह जलाया गया है . हम तुम्हारा इससे भी बुरा हाल करेंगे .आज यहाँ (मुसलामानों)को जान से मारना ही है .ये ऑर्डर ऊपर से आया है "शकील उससे सवाल करने लगी के "ऊपर से किसका आर्डर आया है ? " पुलिस वालों ने मज्लुमिन को अन्दर दाखील होने से रोक दिया ,पुलिस के दफ्तर के सामने सैकरों मासूमों को हालाक करदिया गया और पुलिस देखती रही,शकीला ने बताया के उनकी माँ और उनके भाउज को शहीद कर दिया ,उस औरत को क़त्ल करने से पहले अजियातनाक मराहिल से गुजारा गया .उनके दो महीने के बच्चे को छीनकर फसादी कहने लगे जब तू ही नहीं रहेगी तो इसको कौन देखेगा ?कुछ केमिकल और पेट्रोल फेंककर आग सुलगाई गई और उसमें उस बच्चे को फेंक दिया गया ,
एक दिसंबर 2012 को जुमा के दिन अदालत ने फैसला दिया उसमें फंसादियों को सजाएं सुनाईं गईं .नरौदा पाटिया फिर तनाव पैदा हो गई छाड़ा बेरादरी के सजायाफ्ता दंगाइयों के घर वाले उग्र होकर एक और वासिल जहन्नम फसादी रति लाल राठौर छाड़ा के घर पहुँच कर एहतेजाज करने लगे के इसने और भवानी ने फसाद कराने पर उकसाया था .रति लाल 2006 में संदेहाश्पद अवस्था में मर गया .भवानी की बेटियाँ घर से बाहर आईं और एहतेजायिओं का धेयान भटकाने के लिए उनहोंने मुसलमानों पड़ोसियों को गाली गलौज देना शुरू किया और मुस्लिम औरतों उनहोंने थूका भी ,पुलिस ने कोई केस उनके खेलाफ दर्ज नहीं किया और तमाशाई बनी रही ,शारांश ये के नरौदा पाटिया के मुसलमान आज भी खौफ और दहशत में जिंदगी बीता रहे हैं और यहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है
वकील शमशाद खान पठान ने ठीक ही कहा के फसाद रुक नहीं और अब भी मुसलामानों को निशान बनाया जा रहा है .इसकी एक मिशाल अखबारात के पन्ने उलटने से मालुम पड़ जायेगी .नवम्बर 2009 में गाये चुराने के बहाने पुलिस ने मुसलमानों के घरों में घुसकर महिलाओं के साथ बदतमीजी की जिसे नोटिस लेते हुए अध्यक्ष राष्ट्रीय महिला आयोग गिरिजा वेयास ने यहाँ एक जांच टीम भेजी थी और इस वाकेया की भरपूर आलोचना हुई थी .
मैंने इस दौरे में बाज ऐसी बातें सुनी और देखी हैं जिन्हें कलमबंद नहीं किया जा सकता ....अगर मुसलामान गुजरात के फसाद को भूल जाते हैं तो फिर उनकी दास्तान तक भी न होगी दास्तानों में .(उर्दू दैनिक पिन्दार पटना के दिनांक 1 5 .0 1 /2013 से लिया गया है .) ..... www.biharbroadcasting.com
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