क्लीन चीट मीलने के दो साल बाद भी मासूम इंसानों की रिहाई नहीं ? इसके लिए दोषी कौन ? भारत का इमानदार न्यालय ? इमान्दार जांच एजेंसियां ? या कोई और ? और वह है कौन ? दोस्तों याद कीजिये ! इतिहास के पन्नों को पलट कर उस " मुस्लिम दौरे हुकूमत " को जहाँ घंटों में होने वाले फैसले मिनटों में और महीनों के फैसले घंटों में और सालों साल के फैसले महीनों में , जरा सोंचिये के आज के इस कथित आज़ाद हिन्दुस्तान से वह दौर खराब कैसे था ? और ऐसा मुस्लिम बादशाहों की सोंच की वजह कर नहीं बल्की इस्लाम के कानून की खूबी के कारण था , आज बाग़ डोर किनके हाथों में हैं ? ये कहने की जरुरत नहीं, हाँ जिनके हाथों में हैं वह मुसलमान नहीं अब तो मान लो दोस्तो "ं इस्लाम इज द बेस्ट " कयोंकि बेगुनाहों को क़ैद और गुनाहगारों को आज़ाद रखने से भी बड़ा कोई पाप है क्या ? इसलिए अब मत सोंचीये " इस्लाम "को आइडियल मजहब मान ही लीजिये जैसा के चार महीने पूर्व दरभंगा के एक पढ़े लिखे एक " झा " ने इस्लाम को गले लगा लिया और इस बार उमीद करता हूँ के आप .......? जिस तरह केजरीवाल की पार्टी "आप " ज्वाइन करने के लिए बेताब हैं वही बेताबी इस्लाम को जोइनिङ्ग करने के लिए दिखला दीजिये और मासूम इंसानों को जेल में रखने की सोंच रखने वालों और इन्साफ देने में कोताही बरतने वालों को झटका दीजिये ! ऐसे लोगों को जैसा के दरभंगा के एक पढ़े लिखे झा ने कुछ दिनों पहले इस्लाम को गले लगा कर दिया था , और ऐसे झटकों से बदल दीजिये हिंदुस्तान को और बना दीजिये एक इमानदार हिंदुस्तान ,जहाँ जालिम बचे नहीं और मासूम फंसे नहीं ,क्या आप चाहते हैं तो कल ही से इस्लाम के बारे में अध्यन शुरू कर दीजिये और अच्छा लगे तो फिर देर ........मत कीजिये , चूंके यहाँ आप हमेशा के लिए नहीं चंद दिनों की मुसाफिर की तरह आये हैं , और इस सफ़र का कब अंत हो कौन जानता ? तब तक "यू एन आई " के हवाले से प्रकाशित खबर जिसे बिहार के एक उर्दू दैनिक पिन्दार ने दिनांक 19/1/14 को अपने पेज नंबर 6 पे छापा था आप के लिए ........ पढ़िए और समझिये इन्साफ का हाल आज़ाद हिंदुस्तान में ?

मुस्लिम नौजवानों की बाइज्जत रहे पर सी बी आई ने अपना पलड़ा झाड़ा ।
ए टी एस ने आज भी जवाब दाखिल नहीं किया ।,कार्रवाई 17 फ़रवरी 2014 तक स्थगित ।
मुंबई ,18/जनवरी 2014 ( यू एन आई ) 2006 मालेगांव बम धमाके मामले में मोक़द्मों का सामना करने वाले 9 बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को मुक़दमा से बाइज्जत बड़ी किये जाने वाली दरखास्त को उस वक़्त धक्का लगा जब इस मामले की तफ्तीश करने वाली पूर्व जांच एजेंसी सी बी आई ने मुल्जेमिन की रिहाई से सम्बंधित दाखिल किये गए अपने एक जवाब में यह कहकर पल्ला झाड़ लिया के चूंकी इस मामले की आखरी तफ्तीश "एन आई ए " ने की है लिहाजा उससे राये मांगी जाए ।,वाजेह रहे की "एन आई ए " ने गुजिस्ता दिनों इस मामले में अपना जवाब दाखिल किया था और मुस्लिम नौजवानों को क्लीन चीट देते हुए उनकी अर्ज्दास्तों पर फैसला करने का अख्तियार अदालत के ऊपर छोड़ दिया था ।
एक जानिब जहां सी बी आई ने पलड़ा झाड़ने की कोशीश की है तो वहीँ दूसरी तरफ इस मामले के एक अहम फरीक ATS ने अब तक इस मामले में अपना जवाब दाखिल नहीं किया ,बलके आज दुबारा पूर्व की तरह ATS के आला अफसर मोहते ने माजुरी का इज़हार करते हुए कहा कि चूँकि इस मामले के सरकारी वकील राजा ठाकड़े एक दुसरे मामले में शहर से बाहर गए हुए हैं लिहाज़ा उन्हें चार हफ़्तों की मजीद मोहलत दी जाए ,जिसे खसुसी " एन आई ए " की अदालत के जज वाई डी शिंधे ने मंजूर करते हुए मामले की कार्रवाई 17 फ़रवरी तक के लिए स्थगित कर दी ।वाजेह रहे की माले गाँव 2006 बम धमाकों के इल्जेमात के तेहत ATS ने शुरू में 9 मुस्लिम मुल्जेमिन को गिरफ्तार किया था लेकिन " एन आई " की तहकीकात और तफ्तीश और असीमानंद के एतराफे जुर्म (जुर्म की स्वीकारोक्ति )के बाद 16 नवंबर 2011 को मुंबई की खसुसी मकोका अदालत ने सात मुस्लिम मुल्जेमिन को जमानत पर रेहा कर दिया था जिसके बाद जमिअत ऑलोमा के जरिये आरोपियों ने गुजिस्ता दिनों मुक़दमे से बाइज्ज़त बड़ी किये जाने की दरखास्त दाखिल की थी लेकिन किसी न किसी वजह से ये मामला तुल ही पकड़ता चला गया और तकरीबन दो साल से जेयादः वक़्त गुजर जाने के बावजूद भी विशेष न्यालय अपना आखरी फैसला न सुना सकी और मामले की सुनवाई मुल्तवी होते हुए जाती दिखलाई पड़ रही है ।

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"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"