एक तो उसने मासूमों को पकड़ कर जिंदगियां तबाह किया , अपने धर्म को दुनिया की नजर में बदनाम किया , मगर मासूमों की जिंदगी बर्बाद करने वालों और अपने धर्म को बदनाम करने वालों को आपने सजा न देकर कौन सा अच्छा काम किया ? पेश है तीन रोजिय उर्दू अखबार " दावत "( 26th -28th) में छपी रिपोर्ट का हिंदी रुपंतार्ण
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बेक़सुरों की गिरफ्तारी पर भी सजा का प्रावधान होना चाहिए ।
21 जनवरी 2013 के अखबार में दहशतगर्दी के इल्जाम में मुसलमानों की गिरफ्तारी ,रिहाई और उन पर मुक़दमों से सम्बंधित चार खबरें आई , पहला मामला था हरयाना के मेवात का जहां राज पुलिस को वहां न तो कोई दहशतगर्द ,न ही माजी (past ) में इस मुस्लिम बहुसंख्यक एलाले या उसके आस पास के क्षेत्रों में दह्शात्गादी का कोई घटना भी नहीं घटी जिससे की इस क्षेत्र पर शक व सुब्हात किया जा सके ,लेकिन देहली पुलिस जिस तरह देश के अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों को दहशत गर्दी का अड्डा करार देकर वहाँ से बेक़सुरों को गिरफ्तार करने के दरपे है । उसकी नाक के नीचे और पड़ोस में स्थित मेवात कैसे उनकी गिरफ्त में आने से महफूज रह सकता था । चुनानचे आज कल मेवात के मुस्लिम नौजवान उनकी आखों में खटक रहे हैं । अभी दिसंबर में उसने मेवात से दो मुस्लिम नौजवानों हफीज रशीद और शाहीद को उठा कर देहली की जेल में बंद कर दिया , एक तो वह गिरफ्तारी मशकूक थी और ऊपर से अपने दो मुखबिरों लेयाक़त अली और जमीरुद्दीन के हवाले से ये प्रोपेगंडा कर के मुजफ्फरनगर के फसाद पीड़ित लोगों पर भी दहशतगर्दी का शक जाहिर कर दिया ताकि कांग्रेस के महासचीव राहुल गाँधी के बयान को प्रमाणित किया जा सके ( टाइम्स ऑफ़ इंडिया , 11/1/2014 )
अब उसने मेवात के ही एक गाँव मांडी खेड़ा के रहने वाले मुबारक नाम के एक नौजवान को उठाने की कोशिश की बल्कि उठाकर फिरोजपुर झ्ड़का थाना ले भी गई थी लेकिन मुबारक के आदात और एखलाक और कैरेक्टर से वाकिफ इलाके के लोगों ने जम कर विरोध किया और सड़क पर धरना देकर आमदो रफ़्त बंद कर दी तो स्थानिये पुलिस हरकत में आई और चोरी छुपे मोबारक को लेजाने वाली डेल्ही पुलिस के चेंगुल से आज़ाद कराया , सवाल ये है की अगर मुबारक बेक़सूर था तो उसे उठाया क्यों गया ? अगर कसूरवार था तो डेल्ही पुलिस ने उसे क्यों छोड़ दिया ? जवाब इसके अलावा और कुछ नहीं है कि आदत ,पोलिसी और मजहबी भेदभाव से मजबूर डेल्ही पुलिस एक और बेक़सूर मुस्लिम नौजवान को दहशतगर्दी के इलज़ाम में बर्बाद करना चाहती थी ये सब उस वक़्त हो रहा है जब डेल्ही पुलिस के पास केंद्रीय गृहमंत्री सुशिल कुमार शिंदे दहशतगर्दी के इलज़ाम में गिरफ्तार अल्पसंख्यक युवकों के मामलों पर नजर्शानी के लिए एक कमिटी तशकील देने की खातिर रियासतों को मक्तूब ( लैटर )भेजने की बात कह रहे हैं और चिराग तले ही अंधेरा है ,खुद इनके मातेहत पुलिस बेक़सुरों को गिरफ्तार करने का सिल्ल्सिला बंद करने को तैयार नहीं है ,..............................................................!
दूसरी खबर ये थी के मुरादाबाद की पोटा अदालत ने 11 साल और सात माह बाद तीन मुस्लीम नौजवानों 1. जावेद उर्फ़ गुड्डू 2. ताज मोहम्मद 3. मकसूद को बेक़सूर साबीत होने के बाद बाइज्ज़त बड़ी कर दिया , जबकि चौथे मुल्जीम मुमताज़ मिया के खेलाफ मुक़दमे की सुनवाई उसी अदालत में अभी जारी है , इन चारों को STF इंस्पेक्टर " के बाल्यान " ने 13/8/2002 को रामपुर से गिरफ्तार किया था , इन्हें गिरफ्तारी का क्रेडिट तो मिल गया और ये चीज इनके कार्किर्दगी में शामील हो कर इनके प्रमोशन का जरिया भी बन गयी होगी लेकिन बेक़सुरों को क्या मिला ? इनका करियर और जिंदगी तो तबाह हो गयी ,साढ़े ग्गेयारह साल बाद जो इन्साफ मिला है वह इनके नुक्सान की भरपाई नहीं कर सकता जब किसी को नाक़र्दा गुनाहों की सजा साढ़े गयारह साल मिल सकती है जिस इंस्पेक्टर ने गैर कानूनी काम किया है किसी के करियर और जिंदगी से खेलवाड़ किया है उसे इस किये की सजा उसे इसके .........दुगुनी क्यों नहीं दी जा सकती ? बेला वजह लम्बी गिरफ्तारी और दहशतगर्दी में फर्क क्या है ? दोनों में जिंदगियां तबाह की जाती हैं , क्या देश का सविंधान और अदालतें सिर्फ आम लोगों को सजा देने के लिए है ? चाहे वह गलती करे या न करे जब आम आदमी जुर्म करता है उसे सजा दी जा सकती है तो पुलिस अहलकारों के जुर्म करने पर या वर्दी के गलत इस्तेमाल पर सजा क्यों नहीं दी जा सकती ? कसूरवार पुलिस वालों को सजा न देने का नतीजा ये है कि ओ बेक़सुरों पर जेयाद्ती कर के अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं ...............................................!
तीसरी खबर ये थी कि उत्तर प्रदेश के अलग अलग जेलों में बंद बेक़सूर नौजवानों पर से मुक़द्मात वापस लेने के मामले की सुनवाई मुल्तवी करने की दरखास्त राज सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच से उत्तर प्रदेश सरकार ने ये क़दम उस वक़्त उठाया जब बेंच ने सरकार से कहा था ओ कथित दहशत गर्दी के इलज़ाम में जेलों में बंद नौजवानों पर से मुक़दमों को नहीं उठा सकते कयोंकि वह मुक़द्मात मरकजी हुकूमत (केंद्र सरकार के कानून के तेहत दर्ज किये गए हैं इसलिए इन्हें वापस लेने के लिए केद्र की इजाजत लेनी जरुरी है , एक तरफ तो केंद्रीय गृहमंत्री राज सरकारों से अल्पसंख्यक नौजवानों के खेलाफ मुक़द्मात पर विचार के लिए मक्तूब (पत्र) भेजने की बात कह रहे और दूसरी तरफ रेयास्ति हुकूमत रेहायाई के लिए कुछ करना चाहती है तो केंद्र का कानून रुकावट बन रहा है ,तीसरी तरफ मिस्टर शिंदे की रियासत महाराष्ट्रा में इन्ही की पार्टी कांग्रेस की हुकूमत के सरकारी वकील राजा ठाकरे माले गाँव बम धमाके के नौ मुस्लिम आरोपियों की रिहाई में रुकावट खड़ी कर रहे हैं जिनको " एन आई ए " ने क्लीन चीट दे दी है ....................................................................!सरकारी वकील का सनसनी खेज दावा तो और भी गौर तलब है कि इस मामले की enquiry पहले महाराष्ट्र A T S और CBI ने की थी और इनकी तफ्तीश में इन नौ आरोपियों पर इलज़ाम सही था बाद में सियासी दबाव और सियासी मकसद के तेहत मामले को एन आई ए के सुपुर्द कर दिया गया जिसने इन्हें क्लीन चीट दे दी , सवाल ये है की ATS और सी बी आई ने किसी के इशारे पर या किसी की मर्ज़ी के खेलाफ enquiry की थी और एन आई ए को मामला सोंपने के लिए किसका और क्या सेयासी दबाव था ? और इसमें सेयासी मकसद क्या था ? फिर ये भी सवाल पैदा होता है की क्या एन आई ए को अब तक तमाम मामले किसी सियासी दबाव या किस मकसद के तेहत सोंपे गए हैं , और अब तक जिन जिन मामलों की enquiry की है ओ गलत है । फिर जिस ATS और इसकी enquiry को विश्वस्निये कहा जा रहा है इसकी असलियत भी औरंगाबाद हथियार जब्ती मामले में सामने आ चुकी है जब इसके दो गवाहों ने इनके हवाले से अदालत में दाखिल बयान को गलत बताते हुए अदालत को बतया कि न तो उनहोंने कोई बयान दिया था और न ATS ने इनके हवाले से दाखिल बयान को पढ़ कर सुनाया था ..........................................................................!
एक दुसरे मामले में समाजी कार्यकर्ता नरेंदर दाभोलकर के कतल के मामले में भी गिरफ्तार मनीष नागौरी ने अदालत के सामने ये सनसनी खेज खुलासा किया है कि एक तो इसे सियासी दबाव के तेहत गिरफ्तार किया गया दुसरे महाराष्ट्र ATS राकेश मारिया ने इकबाले जुर्म के लिए मजबूर किया था और इसके एवज में 25 लाख रूपये की पेशकश की थी , गर्ज ये कि दहशत गर्दी के मामलों में अब तक जितने बेक़सूर व बाइज्ज़त बड़ी हो चुके हैं ,पोटा के मामलों के जायेजे में भी ये हकीकत सामने आ चुकी है कि बेक़सूर को ही सजा मिलती है खाह वो टार्चर की सकल में हो या क़ैद की सूरत में कसूरवार पुलिस वालों को नहीं जबकि इनकी दोहरी गलती होती है एक तो ओ लॉ एंड आर्डर की सूरतेहाल को बेहतर नहीं रखते उनकी लापरवाही और गफलत की वजह से सरपशंद अनासीर ( (असामाजिक तत्य ) अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं दुसरे अगर ओ हरकत में भी आते हैं तो सिर्फ बेक़सुरों को गिरफ्तार करते हैं ,आज तक किसी भी हुकूमत और अदालत ने नोटिस नहीं लिया कि आम लोगों को इनकी नाक़रदा गुनाहों की सजा 10 -10 साल , और 15 -15 साल कैद के तौर पर क्यों मिल जाती है ? और पुलिस को उसकी गलतियों की सजा क्यों नहीं होती ?
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