कोई बतलाओ के हम बतलाएं क्या ! लम्बे समय से लंबित दंगा निरोधक कानून पास नहीं हुआ ,तब कांग्रेस के युवराज को गुस्सा क्यों नहीं आया ? मुसलमानों को रिजर्वेशन देने या रिजर्वेशन से मुस्लिम जातों को दूर रखने पर राहुल को गुस्सा क्यों नहीं आया ? क्यों वह इस पे गुफ्तगू भी करना पशंद नहीं करते ? मुस्लिम नौजवानों की बेरोकटोक गिरफ्तारी और बेक़सूर साबीत होने पर भी उनकी अदम त्वज्जहि और दोषी अफसरों के विरुद्ध नहीं हो रही कार्रवाई पर कांग्रेस के युवराज को गुस्सा क्यों नहीं आया ? ............ तुम्ही बतलाओ के हम बतलाये क्या ?



हम शुक्र करें किस का शाकी हों तो किस के हों
रहबर ने भी लूटा है रहजन ने भी लूटा है
गुजिस्ता दो हफ़्तों के दौरान मेरे पास लातादाद फोने आये , कई खतूत आये और जाती गुफ्तगू में बार बार ये जिक्र आया के आखिर मुसलमान इन्तेखाब की सियासत में जायें तो किस के साथ जाएँ ? कोई पार्टी ऐसी नहीं है जिसने धोका नहीं दिया हो , जिस की वजह से जख्म नहीं लगे हों ।बात बिलकुल दुरुस्त भी है ।जब हम सियासी मंजरनामा पर नजर दौराते हैं तो ऐसा ही पाते हैं । मुल्क में लम्बी मुद्दत तक बलके आज़ादी के बाद अब तक जेयादा तर कांग्रेस की ही हुकूमत रही और कांग्रेस के सबब ही मुसलमानों को सबसे जेयादः नुकसान का सामना करना पड़ा है । सिर्फ फसाद ही नहीं बल्कि इक्तसादी और तालीमी पेश्मांदगी के लिए भी जेयादः जिम्मेदारी उसी पर जाती है । वजह साफ़ जाहिर है की जम्हूरी नेजाम में कुछ भी करने से क़ब्ल वोटों की गिनती भी नजर में रहती है और इसी लिए बड़े वोट बैंक पर छोटे वोट बैंक को हमेशा कुर्बान किया जाता है ।इसी लिए कांग्रेस भी हमेशा मुसलमानों और हिन्दुओं दोनों को खुश रखने की कोशिश में रहती है । मुसलमानों को वादों से खुश रखती है और अक्सर्यती (बहुसंख्यक)को अमल (काम)से बात सिर्फ फसाद की नहीं है बल्कि तालीमी और एक्तेसादी (आर्थिक ) शोबों में मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है ,हकीकत मालुम हो जाने के बवजूद मुसलामानों को लुभाने के लिए सिर्फ वादे किये गए , "दो रोटी "फेंकने की कोशिश ! तालीमी वजीफा की तादाद और रक़म दर्ज फेहरिस्त जात और क़बायेल (एस सी ,एस टी )छात्रों के मुकाबिले में अक्लियती तोलोबा (अल्पसख्यक छात्रों )के लिए बहुत कम है ,और शराएत शख्त । अक्लियती मालयाती कमीशन से अकलियतों को जो क़र्ज़ मिलता है उस रक़म की हद बहुत कम है और शरायेत काफी शख्त , जबकि दर्ज फेहरिस्त जात और क़बाएल को मिलने वाले कर्ज की हद भी जेयादा है और शराएत भी बहुत नर्म , कोई बतलाओ की हम बतलायें क्या ? कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी को गुस्सा आया इन्स्दाद बदअनवानी कानून (भ्रष्टाचार रोक थाम कानून )एक हप्ता के अन्दर आनन फानन में मंजूर हो गया , भ्रष्टाचारी नेताओं की अदम अह्लियत से सम्बंधित तजवीज (प्रस्ताव )राष्ट्रपति के दफ्तर से वापस मंग्वाली गई लेकिन तवील मुद्दत (लम्बे समय )से तातुल (लंबित ) के शिकार सम्प्रदायिक रोक थाम बिल और एंटी रायट फाॅर्स की तशकील (गठन ) के लिए युवराज को गुस्सा क्यों नहीं आया ? मुसलमानों को रिजर्वेशन देने या रिजर्वेशन से मुस्लिम जातों को दूर रखे जाने पर उनको गुस्सा क्यों नहीं आता ! क्यों वह उसपर कोई गुफ्तगू भी करना पशंद नहीं करते ? मुसलमान लड़कों की बेरोकटोक गिरफ्तारी और बेक़सूर साबित होने पर भी उनकी अदम त्वज्जहि पर कांग्रेस क्यों नहीं कोई ठोस क़दम उठाती है ? दो फिसद आबादी वाले सीखों की रजामंदी हासिल करने के लिए उन्हें प्रधानमंत्री भी बना दिया गया ,फिर भी वह कांग्रस की तरफ रागिब नहीं हुए ,उनसे भी कम आबादी वाली कायेस्थ बेरादरी को कांग्रेस ने राष्टपति ,वजीरे आज़म (PM)समेत तमाम अहम् ओहदे पेश किये ,हालाकि इनके लोग "आर एस एस "और "भाजपा "नवाज है , लेकिन मुसलमान प्रधानमंत्री कांग्रेस क्यों नहीं बना पायी ? इसलिए की कांग्रेस को सिर्फ मुसलमानों का वोट चाहिए और हम यह आसानी से दे देते हैं ,बीजेपी का जिक्र नहीं करता हूँ ,कयोंकि मुसलमानों की दुश्मनी के मामले में वह कुछ छुपा के नहीं रखती ,जख्म सीधे देती है ,हमला सीधे करती है और जलील करने का कोई मौका नहीं गंवाती कयोंकि वह तो खुली दुश्मन है ,लेकिन हम तो उनका हिसाब कर रहे हैं जिन को दोस्ती का दावा है ,जो हमारे सर पर एहसान का पोटली रखते नहीं थकते , कम्युनिस्ट पार्टियां सीना थोक कर कहती है की उनहोंने बीजेपी से दुश्मनी मोल ही ली है , मुसलमानों की खातिर लेकिन पश्चिम बंगाल में उनकी तवील हुकूमत के दौरान फसाद भी हुए और मुसलमानों की एक्तेसादी हालत ( आर्थिक हालत) भी डगमगाई ही रही , सच्चर कमिटी ने जिन रेयासतों में मुसलमानों की हालत जेयादः खराब होने की बात कही थी उन में हैरत अंगेज तौर पर पश्चिमी बंगाल भी शामिल था..................!

बहुजन समाज पार्टी ने बहुजन की सेयासत की जिसमें मुसलमान कहीं फीट ही नहीं थे और सेकुलरिज्म के चैंपियन समाजवादी पार्टी को " यू पी " के मुसलमानों ने बड़ी मेहनत ,कुर्बानियों और हुकूमत के साथ पूरी ताक़त से सत्ता में वापस लाया लेकिन असेम्बली में जबरदस्त अक्सरियत मिलते ही उनके हौसले जवान हुए और नजर डेल्ही पर टिकी ,मुज़फ्फरनगर का फसाद हो गया ।मंजरनामा कहीं भी अहमदाबाद से मुख्तलिफ नजर नहीं आया । यहाँ तक की वजीर ए आला अखीलेश यादव को भी वहां जाने का मौका एक महीने बाद मिला । लखनऊ में बैठे दुसरे मसायेल में उलझे रहे ...........।
लोग जान बचा कर भागे तो कैम्पों में उन्हें पूछने वाला नहीं था । राजाकार तंजीमों की मदद से जो पहुँच सका वह पहुंचा बाकी लोग ठंड में कंपकपाते ,भूख से बिलकते तन ढांपने को शर्मिंदा हुए ,लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा ।दर्जनों बच्चों की मौत हो गई और सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा , अलबत्ता ये हुआ कि हुकूमत ने दो बांस पर तिरपाल दाल कर जिंदगी बचाने का जो मौका उन फसान पीड़ितों को दिया था ,हुक्म हुआ के उन्हें उखाड़ दिया जाए , फिर पुलिस उन बे यारों मददगार (असहाय )
लोगों के सर से तिरपाल हटाने लगी और अरबाबे इक्तेदार " सफई " में नाच गाना दिखाने में मशरूफ हो गए ...............! तुम्ही बताओ की हम बतलाये क्या ? किस किस का हिसाब लीजिये ,किस किस का लेखा जोखा पेश किया जाए ....................!?

मगर कब तक ? इन सब मामलों के लिए जितने जिम्मेदार वह लोग हैं ,जितने जिम्मेदार अरबाबे सेयासत हैं उनसे कहीं जेयादः जिम्मेदार हम खुद हैं ,कयोंकि हम उंगलियाँ पकड़ कर चलने की आदी हो गए हैं ,उससे भी बढ़ कर हम मतलब परस्त ,मौका परस्त और मुफाद परस्त हो गए हैं ।नुक्सान होता है जम कर ,कटते मरते हैं तो मिल्लत और समाज की याद आती है ,लेकिन जैसे ही सकून मिलता है हम अपनी रोटी और दूसरों का चूल्हा बुझाने की कोशिश में मशरूफ हो जाते हैं तब हमें किसी भाई बहन ,बाप चाचा भतीजा की याद नहीं आती है.............और फिर भी पूछते हैं की क्या करें .भूख लगती है तो पूछते हो कि क्या करें ? खाना खाते हों न भाई ! प्यास लगती है तो पूछते हो कि क्या करें ? पानी पीते हो तो फिर इस मामले में 66 साल गुजर जाने के बाद भी आप किसी नतीजे पर क्यों नहीं पहुँच रहे हैं । ऐसा नहीं कि आप कोई फैसला नहीं कर पा रहे हैं ,बात यह है कि आप कोई फैसला करना ही नहीं चाहते हैं । जब आप कुछ करना ही नहीं चाहते हैं तो आप से कोई जबरदस्ती क्या करवा सकता है। हम आप सब की एक आदत बन गई है । हम चर्चा करते हैं ,हम बहस करते हैं लेकिन हम क़दम आगे नहीं बढाते . अमल का वक़्त आता है तो हाथ बढ़ा कर पानी भी नहीं पीना चाहते हैं ,बल्कि चाहते हैं कि कोई
पिला दे ,अगर कोई पानी पिला देता है तो उसके ममनून नहीं होते , बलके कीड़े निकालते हैं कि पानी पिलाने में जरुर उसका फायेदा होगा ,उसने गंदे हाथ से पानी पिला दिया ,उसने थोड़ा कम पानी दिया .......ऐसी बहुत सारी बातें ।

देहली के लोग बद उन्वानी से कीमतों में इजाफा से ,बिजली के बिल से ,पानी की किल्लत से परीशान थे। उन्होंने फैसला किया और पलक झपकते बड़ी पार्टी का दावा करने वाली पार्टियों को धुल चटा दिया ,यू पी में मुसलमानों ने क्या किया था ,डेल्ही के अवाम ने क्या किया सामने दिखाई दे रहा है ,फिर हम उसे देखने और समझने की कोशिश क्यों नहीं करते ? क्यों अपनी हुकूमत अमली तय नहीं कर पा रहे हैं ? किस्मत को कोसने और दूसरों को मुरीद इलज़ाम ठहराने से कुछ नहीं होगा ।खुद अमल करना होगा ,और दूसरों से इमानदारी की उमीद रखने से पहले खुद इमानदार बनना होगा ,और इत्तेहाद का ढोंग करने के बजाये इत्तेहाद के लिए कोशिश करना पड़ेगा ,जिस दिन हमने सच मुच इमानदारी से इत्तेहाद की कोशिश की ,हम मुत्तहित हो जायेंगे ,और जिस दिन हम मुत्तहिद हो गए उस दिन यही पार्टीयां आप से आप की समस्या पूछेगी और वोट मांगने से पहले आपका सामस्या हल करने की कोशिश करेंगे ,लेकिन उस मुकाम तक पहुँचने के लिए हमें खुदगर्जी और नेफाक की नफ्सियात से बाहर आना होगा ।

(राशीद अहमद -अहमद कौमी तंजीम , पटना , 12 /1 /14 )

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