चुनाव के समय ही क्यों याद आते हैं शिंदे को बेगुनाह मुसलमान?
चुनाव के समय ही क्यों याद आते हैं शिंदे को बेगुनाह मुसलमान?
Posted by: admin January 13, 2014 in India, Lead Leave a comment
BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : गुजरात के सादिक जमाल मेहतर की हत्या में शामिल आईबी अधिकारी राजेन्द्र कुमार, सुधीर कुमार, यशोवर्धन आजाद, गुरुराज सवादत्ती को सीबीआई द्वारा बचाने का आरोप लगाते हुए सादिक जमाल की हत्या की 11वीं बरसी पर रिहाई मंच ने कहा कि जब तक खुफिया विभागों के षडयंत्रकारी अधिकारी नहीं पकड़े जाएंगे तब तक देश में न तो बेगुनाह मुस्लिमों के फर्जी एनकाउंटर और फर्जी मुक़दमें रुकेंगे और न ही आतंकवादी वारदातों के असली मुजरिम पकड़े जा सकेंगे.
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने कहा कि 2003 में सादिक जमाल मेहतर को खुफिया विभाग के अधिकारियों और मुंबई तथा गुजरात के कथित एनकाउंटर स्पेश्लिस्टों द्वारा नरेन्द्र मोदी को मारने का षडयंत्र रचने के नाम पर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया था. जिसके कई पुख्ता सबूत होने के बावजूद सीबीआई ने आईबी अधिकारियों को आज तक गिरफ्तार नहीं किया है, इतना ही नहीं इस हत्या कांड में शामिल गुजरात पुलिस के आला अधिकारियों डीजी वंजारा और पीपी पांडे जैसे लोगों को भी दूसरे मामलों में जेल में होने के बावजूद आज तक सादिक हत्या कांड में गिरफ्तार नहीं किया गया है.
वहीं इस पूरे मामले में जांच के दौरान इस तथ्य का भी खुलासा हुआ था कि हत्या राजनीतिक कारणों से की गई थी, लेकिन बावजूद इसके सीबीआई ने न तो मुख्यमंत्र नरेन्द्र मोदी से और न ही तत्कालीन गृह मंत्री रहे अमित शाह से ही कोई पूछताछ की. जो साबित करता है कि आईबी अधिकारियों को बचाने और आतंकी घटनाओं के असली गुनहगारों को आजाद रखने में कांग्रेस और भाजपा दोनों एक मत हैं.
आज़मगढ़ रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि आईबी ने जिस तरह मुज़फ्फरनगर दंगों के पीछे आईएसआई तो कभी आईएम तो कभी भटकल बंधुओं को जिम्मेदार बता रही है. उससे साफ हो रहा है कि जो आईबी मोदी के लिए काम करती थी वो आजकल कभी राहुल गांधी तो कभी सांप्रदायिक हिंसा के सवालों से घिरी अखिलेश सरकार के लिए काम कर रही है.
पिछले दिनों जिस तरीके से मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी और उसके बाद मुज़फ्फरनगर से राहत शिविरों को संदेह में लाया गया वो साफ करता है कि राहुल गांधी जिन्होंने कहा था कि राहत शिविरों के लोगों से आईएसआई का संपर्क है. उस बात को पुख्ता करने के लिए यह गिरफ्तारियां की जा रही है.
देश की खुफिया व सुरक्षा एजेंसियां ने 2002 के बाद जिस तरीके से आतंकवाद के नाम पर गुजरात में इशरत जहां, सादिक तो कभी बाटला हाउस में बेगुनाहों का ठंडे दिमाग से क़त्ल किया कि यह सब गुजरात 2002 का बदला लेने वाले थे, आज वैसे ही हालात मुज़फ्फरनगर को लेकर बनाया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि इन घटनाक्रमों के बीच कथित खुफिया सूत्रों के हवाले से इस बात का कहा जाना कि गोरखनाथ पीठ पर भी आतंकी हमले का खतरा बढ़ गया है और प्रदेश में बड़ी तादाद में आईएम के आतंकी घुस आए हैं, आईबी की नापाक साजिशों का पता चलता है कि आने वाले दिनों में जब गोरखपुर में नरेन्द्र मोदी की रैली होनी है और गणतंत्र दिवस भी आने वाला है, तब आईबी सूबे और देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए आतंकी वारदातों को अंजाम दे सकती है या फिर उन बेगुनाह मुस्लिम युवकों को जिन्हें आईबी आतंकी बता रही है और जो उन्हीं की अवैध हिरासत में हैं, को गिरफ्तार करने का दावा कर सकती है. जैसा कि पिछले दिनों होली के मौके पर लियाकत शाह की फर्जी गिरफ्तारी करके उसने किया था.
गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा राज्यों को आतंकवाद के नाम पर कैद मुस्लिम नौजवानों के मुद्दे पर स्क्रीनिंग कमेटी बनाने के लिए लिखे गए पत्र पर टिप्पणी करते हुए रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने कहा कि यूपीए सरकार को बताना चाहिए कि आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद हजारों मुस्लिम युवकों की याद उसे सिर्फ विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ही क्यों आ रही है.
उन्होंने कहा कि शिंदे को पहले देश को यह बताना चाहिए कि उन्होंने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में आईबी के अधिकारी राजेन्द्र कुमार का नाम सीबीआई की चार्जशीट में आने से बचाने के लिए क्यों आईबी और सीबीआई पर दबाव डाला. उन्होंने कहा कि यह दोहरा रवैया नहीं चल सकता है कि एक तरफ आतंकी वारदातों में लिप्त आईबी अधिकारियों को बचाने की कोशिश करें और वोट के लिए बेगुनाह मुस्लिम युवकों को छोड़ने की बात करें जो उन्हीं आईबी अधिकारियों के सांप्रदायिक षडयंत्रों का शिकार हुए हैं.
प्रवक्ताओं ने कहा कि सपा सरकार के मंत्री अहमद हसन का बयान जिसमें उन्होंने सपा सरकार में एक भी मुस्लिम नौजवान को आतंकवाद के आरोप में न गिरफ्तार करने के दावा किया था को झूठा क़रार देते हुए कहा कि इसी सरकार में 13 मई 2012 को सीतापुर के शकील, आज़मगढ़ के जमातुर फलाह मदरसे के छात्र वसीम बट व सज्जाद बट और गोरखपुर से पिछले होली के दौरान लियाकत शाह को उठाया गया. यहां तक कि शकील के परिजन इस मसले पर अबू आसिम आज़मी और जेल मंत्री व सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी से भी कई बार मिल चुके और मुख्यमंत्री के नाम कई बार ज्ञापन भी दिया है.
प्रवक्ताओं ने अहमद हसन के इस बयान को भी भ्रामक बताया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि मुज़फ्फरनगर के पीडि़तों को सरकार ने दस-दस लाख रूपए दिए हैं. सच्चाई तो यह है कि अब भी पचास से अधिक ऐसी हत्याएं हैं जिन्हें सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा में हुई हत्या माना ही नहीं है. सपा सरकार यदि ईमानदार हैं तो 10-10 लाख रुपए मुआवजा प्राप्त लोगों की सूची जारी करे.
रिहाई मंच ने कहा कि कुछ तथाकथित मुस्लिम धर्म गुरु और सपा नेता अबू आसिम आज़मी जो बेगुनाह मौलाना खालिद की हत्या को बीमारी से हुई मौत बताते हैं और उनकी सरकार मौलाना खालिद की जिन्दगी की कीमत 6 लाख रुपए उनके चचा को देने की कोशिश करती है, वो अबू आसिम आज़मी आजकल मुज़फ्फरनगर में मुसलमानों की कीमत लगा रहे हैं. अबू आसिम आज़मी और ऐसे सरकारी मौलानावों को बताना चाहिए कि उन्होंने भाजपा के दंगाई नेताओं की गिरफ्तारी के लिए अब तक क्या किया है.
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