कांग्रेस को इस बार सबक सिखा दो ।
कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी राहुल गाँधी ने कुछ अरसा पहले बीजेपी की तरफ से वेजराते उज्मा के उमीदवार नरेंदर मोदी के खेलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए कहा था कि मोदी गुजरात फसाद के लिए जिम्मेदार है . राहुल गाँधी ने 2002 के गुजरात फसाद और 1984 के सीख फसाद के त'अल्लुक से ये वाजेह भी की थी के औवल अल्जिक्र में रियासती हुकूमत और उसके अहलकार खुद मलौविस थे ( यानी दंगा में खुद मोदी और उनकी सरकारी मशीनरी की संलिप्तता थी ) जबकि आखिर अल्जिक्र यानी 1984 के फसाद को रोकने के लिए कांग्रेस हुकूमत ने कोशिशें की थीं .......।
राहुल गाँधी ने गुजरात फसादात और नरेंदर मोदी के सम्बन्ध से जो कुछ कहा , उससे किसी को इन्कार नहीं और मुख्तलिफ अदालती तब्सेरों से भी ये वाजेह हो गया है की मोदी का उन दंगो में क्या रोल था । जहाँ तक चंद जांच एजेंसियों के जरिये मोदी के त'अल्लुक से रियासती हाई कोर्ट को सोंपी गयी रिपोर्ट के बेना पर उन्हें अदालत के जरिये क्लीन चीट दिए जाने का मामला है तो ये क्लीन चीट बहर हाल हर्फ़े आखिर नहीं ........यानी के (अंतिम शब्द नहीं ) जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का फैसला किया है ।गुजरात फसाद के त'अल्लुक से तमाम हकायेक और शवाहिद इस मामले में रियासती सरकार की मुजरिमाना अदम फ़'आलियत और फ़सादियों की किसी न किसी शकल में हिमायत का सबूत भी पेश करते हैं इसी लिए राहुल गांधी ने जो कुछ कहा उसके सियासी मक़ासिद होने के बावजूद सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता , लेकिन खुद कांग्रेस के दौरे हुकूमत में जो दीगर फसादात हुए ,राहुल गाँधी को उनको भी सामने रखना जरुरी है ।दूसरी सबसे अहम् बात ये है की गुजरात के उपरोक्त दंगों के तक़रीबन 2 साल बाद ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार बन गई थी लेकिन उसके बावजूद मोदी के खेलाफ क्या कार्रवाई की गई ...........? ये सब जानते हैं .......................................
कांग्रेस की कुछ और दोहरी और दोगली पॉलिसियों को देखिये !......................................................
कांग्रेस के तमाम सेक्युलर दावों के बावजूद मुसलमानों और दीगर अल्पसंख्यकों के दरमियाँ पुर तफरीक रवैया अपनाया है ।।।।।।।।।।। बात सिर्फ फसादात की नही बल्कि जब मुल्क के पसमांदा तबकात और दर्ज फेहरिस्त जातों को रिजर्वेशन देने की बात आती है तो वहाँ भी मुसलामानों को उनके हक से महरूम कर दिया जाता है । हमारा आइन ( संविधान ) मजहबी बुनियाद पर किसी भी शहरी के साथ तफरीक ( भेद भाव ) के खिलाफ है । आइन में दर्ज फेहरिस्त जातों और पसमांदा तब्कात को समाजी इन्साफ देने के लिए उन्हें रिजर्वेशन दिया गया है लेकिन आइन ( संविधान ) में एक तरमीम (बदलाव ) के जरिये ये शक जोड़ दी गयी कि अगर दर्ज फेहरिस्त जात का कोई भी शख्स तब्दीली मजहब करके इसाई या मुसलमान हो जाता है तो वह रिजर्वेशन के फायेदे से महरूम हो जारेगा । अफ़सोस की बात ये है की उपरोक्त शक को ख़त्म कराने के लिए पसमांदा मस्लिम तबकात लम्बे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन न सिर्फ ये के कांग्रेस बल्कि सेकुलरिज्म की मुदई दीगर पार्टीयों का रवैया भी इस मामले पुर तफरीक है ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हलाकि सच्चर कमिटी की रिपोर्ट से ये वाजेह हो चूका है की मुल्क में मुसलमान म'आसी और सामाजी पस्मांदगी का शिकार हैं और तालीम के मामले में दीगर अकलियतों ( अल्पसंख्यकों ) से उनकी हालत बदतर है लेकिन इसके बावजूद पसमांदा मुसलमानों को रिजर्वेशन देने के सवाल पर अभी तक ' यू पी ए 'सरकार ने कोई ठोस क़दम नहीं उठाया ।
राहुल गाँधी ने गुजरात फसादात और नरेंदर मोदी के सम्बन्ध से जो कुछ कहा , उससे किसी को इन्कार नहीं और मुख्तलिफ अदालती तब्सेरों से भी ये वाजेह हो गया है की मोदी का उन दंगो में क्या रोल था । जहाँ तक चंद जांच एजेंसियों के जरिये मोदी के त'अल्लुक से रियासती हाई कोर्ट को सोंपी गयी रिपोर्ट के बेना पर उन्हें अदालत के जरिये क्लीन चीट दिए जाने का मामला है तो ये क्लीन चीट बहर हाल हर्फ़े आखिर नहीं ........यानी के (अंतिम शब्द नहीं ) जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का फैसला किया है ।गुजरात फसाद के त'अल्लुक से तमाम हकायेक और शवाहिद इस मामले में रियासती सरकार की मुजरिमाना अदम फ़'आलियत और फ़सादियों की किसी न किसी शकल में हिमायत का सबूत भी पेश करते हैं इसी लिए राहुल गांधी ने जो कुछ कहा उसके सियासी मक़ासिद होने के बावजूद सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता , लेकिन खुद कांग्रेस के दौरे हुकूमत में जो दीगर फसादात हुए ,राहुल गाँधी को उनको भी सामने रखना जरुरी है ।दूसरी सबसे अहम् बात ये है की गुजरात के उपरोक्त दंगों के तक़रीबन 2 साल बाद ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार बन गई थी लेकिन उसके बावजूद मोदी के खेलाफ क्या कार्रवाई की गई ...........? ये सब जानते हैं .......................................
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कांग्रेस के तमाम सेक्युलर दावों के बावजूद मुसलमानों और दीगर अल्पसंख्यकों के दरमियाँ पुर तफरीक रवैया अपनाया है ।।।।।।।।।।। बात सिर्फ फसादात की नही बल्कि जब मुल्क के पसमांदा तबकात और दर्ज फेहरिस्त जातों को रिजर्वेशन देने की बात आती है तो वहाँ भी मुसलामानों को उनके हक से महरूम कर दिया जाता है । हमारा आइन ( संविधान ) मजहबी बुनियाद पर किसी भी शहरी के साथ तफरीक ( भेद भाव ) के खिलाफ है । आइन में दर्ज फेहरिस्त जातों और पसमांदा तब्कात को समाजी इन्साफ देने के लिए उन्हें रिजर्वेशन दिया गया है लेकिन आइन ( संविधान ) में एक तरमीम (बदलाव ) के जरिये ये शक जोड़ दी गयी कि अगर दर्ज फेहरिस्त जात का कोई भी शख्स तब्दीली मजहब करके इसाई या मुसलमान हो जाता है तो वह रिजर्वेशन के फायेदे से महरूम हो जारेगा । अफ़सोस की बात ये है की उपरोक्त शक को ख़त्म कराने के लिए पसमांदा मस्लिम तबकात लम्बे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन न सिर्फ ये के कांग्रेस बल्कि सेकुलरिज्म की मुदई दीगर पार्टीयों का रवैया भी इस मामले पुर तफरीक है ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हलाकि सच्चर कमिटी की रिपोर्ट से ये वाजेह हो चूका है की मुल्क में मुसलमान म'आसी और सामाजी पस्मांदगी का शिकार हैं और तालीम के मामले में दीगर अकलियतों ( अल्पसंख्यकों ) से उनकी हालत बदतर है लेकिन इसके बावजूद पसमांदा मुसलमानों को रिजर्वेशन देने के सवाल पर अभी तक ' यू पी ए 'सरकार ने कोई ठोस क़दम नहीं उठाया ।
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