जंगे आज़ादी में आर एस एस ने हिस्सा नहीं लिया वह उस दौरान अह आने कल को बनाने में मशरूफ रही मुसलमानों ने जंगे आज़ादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जान व माल की कुर्बानियां दिन । आज आर एस मुसलामानों को मुल्क से वफादारी का सबक सिखला रही है । हमारे खून की रंगत भी उसमें शामिल हैं । ये कैसे कहते हो गुलशन फ़क़त तुम्हारा है ।
शमी अहमद कुरैशी , मुंबई ।
मुल्क की अक्सरियत पशंद गुजरात मॉडल नहीं , सेकुलरिज्म
मौजूदा ज़माना जम्हूरियत ( लोकतंत्र ) का है । यहाँ अवाम के जरिये अवाम की हुकूमत बनती है हमारे मुल्क हिंदुस्तान में " सेक्युलर जम्हूरियत है " मुल्क के मुजाहिदीने आज़ादी ( freedom fighters) और बुज्रुगों ने मुल्क का नेजाम (सिस्टम)चलाने के लिए जो दस्तूर और संविधान बनाया । उसमें सेक्युलर जम्हूरियत को इन्तेहाई अहमियत दी ।दस्तूर की आर्टिकल 14 , 15 , 16 के तेहत मुल्क के हर शहरी को जिन्दा रहने का बिना इम्तियाज़ ( भेद भाव )मजहब व जुबान या किसी भी भेद भाव के बराबरी का सलूक और दस्तूर की आर्टिकल 35 के तेहत हर शहरी को मजहबी आज़ादी हासिल है ।
हमारे मूलमुल्क की बहुत बड़ी आबादी मुत'अद्दद मजाहिब (अनेक धर्मों ) जुबान ( अनेक भाषाओं ) और मुत'अद्दद सकाफतों और तमद्दुनों ( विभिन सांस्कृतिक ) पर आधारित है । यहाँ सैकड़ों सालों से कसरत में वहदत है ( अनेकता में एकता ) है । मगर बद्किश्मती से हमारे मुल्क में 90 सालों से एक जमात ( संगठन ) आर एस एस कौम परस्ति यानी राष्ट्र भक्ति के नाम पर जारहाना हिन्दू फिरका परस्ती ( हिंदुत्व आक्रामक सम्पदायिकता ) पर काम कर रही है । इसकी स्थापना 1925 में हुआ । उसके पहले सर संचालक हेडग्वार थे ।,जो आर एस एस के बानी भी थे । आर एस एस हिन्दुओं में पिछले सौ साल से की जाने वाली अहयाई कोशिशों का नतीजा है । आर एस एस वर्ण वेवस्था , जाती वेवस्था , यकीं रखती है । वह समाज में बरहमन को आला व बरतर मानती है । बरहमनवाद पर यकीन और अमल करती है । आर एस एस हिटलर के नक़्शे क़दम पर चलती है यानी हिटलर के आइडियोलॉजी से प्रभावित है । और हिटलर का शुमार ( गिनती ) दुनिया के इतिहास में जालिम व जाबिर हुक्मरानों में होता है शौक में हिटलर ने जायज और नाजायज को बराबर समझा । जंग व जुदाल किये । कई लाख यहूदियों को गैस के चैम्बर में दाल कर मरवा दिय ।वोट के ही जरिये जर्मनी का हुक्मरां ( साशक ) बना आखिर ख़ुदकुशी के जरिये अपना खात्मा कर लिय ।
आर एस एस का हिंदुत्व का मंसूबा ( प्रोग्राम )मुल्की की अकलियतों ( अल्पसंख्यकों )के लिए ही नहीं बल्कि देश के सभी पिछड़ी और दलित जाती के लोगों के लिए भी खतरनाक है।
आर एस एस हिन्दू राष्ट्र का अलमबरदार है । यह हमेशा हिटलर और नाजियों की तरह आर्यों की बरतरी ( suprimacy) में यकीन रखता है नस्लवाद इन दोनों में सामान रूप से है ।।
हिंदुत्व ब्रांड सियासत के बहुत ही अहम् नजरिया साज गोवालकर ने हिन्दू राष्ट्र में अकलियतों के मसले से छुटकारा पाने के लिए हिटलर और मोसोलिनी के मॉडल को अख्तियार करने पर अपनी किताब " we or our national defined " हम और हमारी कौमियत की तशरीह ( मत्बुआ / 1939) लिखा ये बात अच्छी तरह जेहन नशीं रखने की है के उन पुरानी कौमों ने अपनी अकलियतों (ऐल्प्सअल्प्सख्यकों ) के मसले को किस तरह हल किया । ये लोग अपनी सियासत में किसी दुसरे इलाके व अंसर को तस्लीम नहीं करते थे । नक़ल वतन करके आने वालों को फितरी तौर पर खुद को आबादी के असल मजमुआ , राष्ट्रीय नसल में जम कर देना चाहिए उसके कल्चर और जुबान को अख्तियार कर लेना चाहिए और अपनी गैर्मुल्की असलियत को फरामोश करते हुए अपने अलैहदा और गैर्मुल्की तश्खुश के शऊर से दस्तबरदार होकर उन ही के जज्बात का हिस्स बन जाना चाहिए । अगर वह ऐसाऐसा नहीं करतेकरते तो वह राष्ट्रीय नस्ल की मेहरबानी से महज गैर्मुल्की (विदेशी) हैसियत से रहेंगे । वह राष्ट्रीयराष्ट्रीय नस्ल के तमाम जाब्तों और कानूनों की पानंदी करेंगे और किसी हक या इम्तियाज के हक़दार न होंगे । बेरुनी अनासिर के लिए दो ही रास्ते हैं या तो वह खुद को राष्ट्रीय नस्ल में जम कर दें और उसके कल्चर को अख्तियार कर लें या उसके रहमों करम पर उस वक़्त तक रहें जब तक राष्ट्रीय नस्ल उन्हें उसी हालत में रहने दें और राष्ट्रीय नस्ल की मर्ज़ी महा पर मुल्क को छोड़ दें ।अकलियतों के मसले पर सिर्फ यही एक ठोस राये है । सिर्फ यही एक सूरत राष्ट्रीय की सियासत के अन्दर कैंसर से महफूज रह सकती है । जो स्टेट के अन्दर स्टेट पैदा करने की सियासत के खतरे को रोक सकती है यहाँ राष्ट्रीय नसल से मुराद हिन्दू मजहब है ।
मुल्क की आज़ादी के बाद आर एस एस ने ये जाना की अपने हिंदुत्व के अजेंडे को लागू करने के लिए सियासत में आना जरुरी हैहै ।इसके लिए 1950 में जनसंघ के नाम से सियासी पार्टी गठन की ।1952 में देश के पहले पार्लियामेंट्री इलेक्शन में हिस्सा लिया । बाद में जनसंघ को तहलील ( विघटन ) कर दी गयी . 1980 में आर एस एस ने जनसंगजनसंघ की बजाये बीजेपी की तशकील की ।1984 की इलेक्शन में भाग लिया । उसके दो मेंबर पार्लियामेंट पहुंचे । 15वीं लोक सभा में उसके पास 184 मेंबर पार्लियामेंट में पहुंचे 15 वीं लोक सभा में 373 तक पहुँचने का है । विश्व हिन्दू परिषद् और अभिनव भारत ,शिव्शेना ,बजरंगदल ,सनातन धर्म जैसी कट्टर हिंदुत्व संगठन आर एस एस के साथ हैं ।
बबाए कौम ( राष्ट्र पिता ) महात्मा गाँधी के कातिल नाथू राम गोडसे का सम्बन्ध आर एस एस से था । बीजेपी के मत्वक्को ( संभावित ) पी एम नरेंदर मोदी भी आर एस के प्रचारक हैं । गुजरात में 2002 में जो फिरकावाराना फ़सादत (सांप्रदायिक दंग) हुए हिन्दुस्तान की तारीख में बदतरीन फसादात थे । हिन्दुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में वजीर ए आला गुजरात मोदी और उनके प्रशाशन पर फसादात में हिस्सा लेने का इल्जाम लगा । मोदी को कहीं मौत का सौदागर तो कहीं दहशत का सौदागर जैसे अल्फाजों और शब्दों से नवाजा और पुकारा जा रहा है । आर एस एस इसी के लिय मोदी पर लगने वाले इल्जमात ,मोदी की काबलियत के लिए शुमार होते हैं । इसी लिए उसे मुल्क के मत्वक्को ( संभावित ) वजीरे आजम का उमीदवार बनाया है ताकि हिंदुत्व के लिए मोदी इन्तहाई कामयाब हों ।
1999 वाली बीजेपी की केयादत वाली वजीरे आज़म बाजपेयी की सरकार में मरकज ( केंद्र ) में हुकूमत बनी । वह भी आर एस एस के प्रचारक थे । आर एस एस से आदेश लेकर बीजेपी को चलना पड़ता है । अब तो खुल कर आर एस एस इलेक्शन के मैदान में कूद पड़ी है । एक मोनज्जिम और बड़ीबड़ी जमात है । अगर सत्ता ने आ गयी तो न सिर्फ मुसलमानोंमुसलमानों और अकलियतों के लिए बल्कि मुल्क की बेशुमार छोटी जात बेराद्रियों दलितों और महादलितों के लिए भी खतरनाक साबितसाबित हो सकता है
मुल्क का मौजूदा दस्तूर और आईन ( संविधान ) देस के सभी मजहब और भाषा के मानने वालों के लिए इन्तेहाइन्तेहाई इत्मीनान बख्श है ।
गोवालकर जो आर एस एस के सरसंचालक थे अपनी किताब "पंच ऑफ़ थॉट " में लिखा था की " हमारा दस्तूर एक मोटी और भद्दी दस्तावेज है । जिसमें मगरीबी ममालिक ( पश्चिमी देशों )के बहुत सारे डादस्तूरों से मुख्तलिफ मवाद को एक दुसरे में मुत्ताजाद ( विरोधा भाषी ) शकल में रख दिया है । इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हम अपना कह सकें । क्या इसके रहनुमा असूलों में हवालों के लिए कोई एक लफ्ज है । हमारा कौमी मिशन क्या है ? और जिंदिगी में हमारा क़लिदी पैगाम क्या है ? बिलकुल नहीं " आर एस एस दस्तुरे हिन्द में तब्दीली की चाहत रख्त है । जब आर एस एस के बाजपेयी देश के वजीरे आज़म बने । बीजेपी की हुकूमत में दस्तुरे हिन्द में टारतरमीम व इजाफा की खातिर एक कमिटी बना दी गयी । आर एस एस के नजरयात इंसानी एकदार की खातिर इन्तेहाई खतरनाक है । बहुत कुछ छुपा हुआ है । नेज सलहा साल से उसकी बदअमालियों के बेना पर नजरों के सामने है । आर एस एस को कौमी यकजहती ,इंसानी दोस्ती ,अकलियतों के साथ फलाह व बहबूद से नफरत है । जो ऐसा करते हैं उनसे निपटना भी खखूब अच्छी तरह जानती है । ईसाईयईसाईयों और मुसलमानों की जिन्दजियों आर एस एस और उसकी बगल बच्चा जमातें पहले जन संघ अब बीजेपी , विश्व हिन्दू परिषद ,बजरंगदल ,शिवसेना ,अभिनव भारत ,सनातन धर्म वगैरह किस कद्र परिशानी का सबब बनी हुई है । जग जाहिर है आज़ादी से लेकर अब तक कितने ही सांप्रदायिक दंगे हुए ,मुसलमानों को किस कद्र जानी व माली नुक्सनात हुए । फसादात के बाद कायम होने वाले कमिशनों ने फसादातफसादात में आर एस एस औ उसकी हमनवां जमातों पर ; पार्टियों पर इल्जाम लगाए । फिर भी आर एस एस के मोदी फरमाते हैं " हमें मुल्क का चौकीदार बना दो ,हम बहुत अच्छा करेंगे । उनके दौरे हुकूमत में गुजरात में 2002 में फिरकावाराना फसादात में मुसलमानों के साथ क्या हुआ , औ आज़ादी के बाद से अब तक आर एस एस और हिंदुत्व के हाथों मुसलामानों के साथ कितना बहिमाना सलूक हुआ । ये सब जानते हैं ।
नक्श गुजरे हुए लम्हों के हैं दिल पर क्या क्या ?
मुड़ के देखो तो नजर आते हैं मंजर क्या क्या ?
जंगे आज़ादी में आर एस एस ने हिस्सा नहीं लिया वह उस दौरान अह आने कल को बनाने में मशरूफ रही मुसलमानों ने जंगे आज़ादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जान व माल की कुर्बानियां दिन । आज आर एस मुसलामानों को मुल्क से वफादारी का सबक सिखला रही है ।
हमारे खून की रंगत भी उसमें शामिल हैं ।
ये कैसे कहते हो गुलशन फ़क़त तुम्हारा है ।
मुल्क की आजादी की खातिर मुसलमानों ने सिर्फ नुमाया हिस्सा नहीं लिया ,मुल्क की तामीर व बका में बढ़ चढ़ कर सलहा साल से रहे ।बुलंद व खुबसूरत ताज महल ,कुतुबमीनार ,फतहपुर शिकरी जैसी इमारतें ही नहीं बनवाये हक व इन्साफ ,मसावात ,व बराबरी का दर्श भी सिखलाया । मुल्क की समाजियात की तशकील में भी पेश पेश रहे हैं
आज पर्लिमानी इलेक्शन के पेशेनजर हिन्दुत्ववादी सियासी पार्टियां बीजेपी और शिव्शेना वोटों की खातिर हिन्दुओं के जज्बात को भड़का रहे हैं । कोई कह रहा है मोदी के मुखालिफ पाकिस्तानी हैं ,कोई कह रहा है इलेक्शन के बाद मुसलामानों को देख लेंगे । कोई कह रहा है मोदी सत्ता में आ जाएँे तो मुसलमानों को वैसा ही सबक सिखायेंगे जो 2002 में गुजरात मोदी ने सिखाया । ये सब बातें बीजेपी के संभावित वजीरे आज़म मोदी और बीजेपी आला लीडरान की मौजूदगी में स्टेज से कही गयी ।। किसी ने ऐसी सरअंगेजी के लिए रोका नहीं ? हद तो यह हो गयी इलेक्शन के कानून और काएदे और दस्तूर की खेलाफ वर्जि पर इलेक्शन कमिश्नर ने मोदी के खेलाफ केस रजिस्टर्ड कर लिया । आर एस एस अपना मकासिद ( उद्देश्यों ) की तकमील के लिए किसी भी हद तक जा सकती है । अब तक सत्ता मिला नहीं के ये हाल है । अगर मोदी सत्ता में आ गए तो क्या कुछ न होगा ? इसे रोकने के लिए बेरादराने वतन के साथ ( हिन्दू भाइयों के साथ ) मिलकर मुसलमानों को हिकमत अमली तय करना है । दायेमी हल नहीं तो जुज्वी हल निकले । अल्लाह शुक्र है के सत्ता में निकम्मों ,सर पशंदों ,फिरका परस्तों को रोकने के लिए वोट एक बेहतरीन जम्हूरी हथियार है । बीजेपी के और उनकी बगल बच्चा पार्ट के उमीदवार को शिकस्त देने के लिए मजबु सेक्युलर उमीदार को वोट दिया जाए । जात पात ,जुबान ,मजहब और किसी भी भेदभाव से बालातर होकर वोट का जेयादा से जेयदा इस्तेमाल करें । यही एक जम्हूरी और कारगर तरकीब है । सवाल ये है की मुसलमान ऐसा जेयादा से जेयादा करेंगे । ? इस वक़्त मुसलामानों में जरखरीद डाला ,जमीर फरोश आर एस एस को ताक्वियत व कामयाबी देने के लिए मैदाने अमल में हैं । ये मुस्लिम दानिश्वर ,ओलोमाये दिन और लीडरान भी हैं ,उनसे हमें बचना है ।
उर्दू दैनिक पिन्दार ,दिनांक ,5/5/14
मुल्क की अक्सरियत पशंद गुजरात मॉडल नहीं , सेकुलरिज्म
मौजूदा ज़माना जम्हूरियत ( लोकतंत्र ) का है । यहाँ अवाम के जरिये अवाम की हुकूमत बनती है हमारे मुल्क हिंदुस्तान में " सेक्युलर जम्हूरियत है " मुल्क के मुजाहिदीने आज़ादी ( freedom fighters) और बुज्रुगों ने मुल्क का नेजाम (सिस्टम)चलाने के लिए जो दस्तूर और संविधान बनाया । उसमें सेक्युलर जम्हूरियत को इन्तेहाई अहमियत दी ।दस्तूर की आर्टिकल 14 , 15 , 16 के तेहत मुल्क के हर शहरी को जिन्दा रहने का बिना इम्तियाज़ ( भेद भाव )मजहब व जुबान या किसी भी भेद भाव के बराबरी का सलूक और दस्तूर की आर्टिकल 35 के तेहत हर शहरी को मजहबी आज़ादी हासिल है ।
हमारे मूलमुल्क की बहुत बड़ी आबादी मुत'अद्दद मजाहिब (अनेक धर्मों ) जुबान ( अनेक भाषाओं ) और मुत'अद्दद सकाफतों और तमद्दुनों ( विभिन सांस्कृतिक ) पर आधारित है । यहाँ सैकड़ों सालों से कसरत में वहदत है ( अनेकता में एकता ) है । मगर बद्किश्मती से हमारे मुल्क में 90 सालों से एक जमात ( संगठन ) आर एस एस कौम परस्ति यानी राष्ट्र भक्ति के नाम पर जारहाना हिन्दू फिरका परस्ती ( हिंदुत्व आक्रामक सम्पदायिकता ) पर काम कर रही है । इसकी स्थापना 1925 में हुआ । उसके पहले सर संचालक हेडग्वार थे ।,जो आर एस एस के बानी भी थे । आर एस एस हिन्दुओं में पिछले सौ साल से की जाने वाली अहयाई कोशिशों का नतीजा है । आर एस एस वर्ण वेवस्था , जाती वेवस्था , यकीं रखती है । वह समाज में बरहमन को आला व बरतर मानती है । बरहमनवाद पर यकीन और अमल करती है । आर एस एस हिटलर के नक़्शे क़दम पर चलती है यानी हिटलर के आइडियोलॉजी से प्रभावित है । और हिटलर का शुमार ( गिनती ) दुनिया के इतिहास में जालिम व जाबिर हुक्मरानों में होता है शौक में हिटलर ने जायज और नाजायज को बराबर समझा । जंग व जुदाल किये । कई लाख यहूदियों को गैस के चैम्बर में दाल कर मरवा दिय ।वोट के ही जरिये जर्मनी का हुक्मरां ( साशक ) बना आखिर ख़ुदकुशी के जरिये अपना खात्मा कर लिय ।
आर एस एस का हिंदुत्व का मंसूबा ( प्रोग्राम )मुल्की की अकलियतों ( अल्पसंख्यकों )के लिए ही नहीं बल्कि देश के सभी पिछड़ी और दलित जाती के लोगों के लिए भी खतरनाक है।
आर एस एस हिन्दू राष्ट्र का अलमबरदार है । यह हमेशा हिटलर और नाजियों की तरह आर्यों की बरतरी ( suprimacy) में यकीन रखता है नस्लवाद इन दोनों में सामान रूप से है ।।
हिंदुत्व ब्रांड सियासत के बहुत ही अहम् नजरिया साज गोवालकर ने हिन्दू राष्ट्र में अकलियतों के मसले से छुटकारा पाने के लिए हिटलर और मोसोलिनी के मॉडल को अख्तियार करने पर अपनी किताब " we or our national defined " हम और हमारी कौमियत की तशरीह ( मत्बुआ / 1939) लिखा ये बात अच्छी तरह जेहन नशीं रखने की है के उन पुरानी कौमों ने अपनी अकलियतों (ऐल्प्सअल्प्सख्यकों ) के मसले को किस तरह हल किया । ये लोग अपनी सियासत में किसी दुसरे इलाके व अंसर को तस्लीम नहीं करते थे । नक़ल वतन करके आने वालों को फितरी तौर पर खुद को आबादी के असल मजमुआ , राष्ट्रीय नसल में जम कर देना चाहिए उसके कल्चर और जुबान को अख्तियार कर लेना चाहिए और अपनी गैर्मुल्की असलियत को फरामोश करते हुए अपने अलैहदा और गैर्मुल्की तश्खुश के शऊर से दस्तबरदार होकर उन ही के जज्बात का हिस्स बन जाना चाहिए । अगर वह ऐसाऐसा नहीं करतेकरते तो वह राष्ट्रीय नस्ल की मेहरबानी से महज गैर्मुल्की (विदेशी) हैसियत से रहेंगे । वह राष्ट्रीयराष्ट्रीय नस्ल के तमाम जाब्तों और कानूनों की पानंदी करेंगे और किसी हक या इम्तियाज के हक़दार न होंगे । बेरुनी अनासिर के लिए दो ही रास्ते हैं या तो वह खुद को राष्ट्रीय नस्ल में जम कर दें और उसके कल्चर को अख्तियार कर लें या उसके रहमों करम पर उस वक़्त तक रहें जब तक राष्ट्रीय नस्ल उन्हें उसी हालत में रहने दें और राष्ट्रीय नस्ल की मर्ज़ी महा पर मुल्क को छोड़ दें ।अकलियतों के मसले पर सिर्फ यही एक ठोस राये है । सिर्फ यही एक सूरत राष्ट्रीय की सियासत के अन्दर कैंसर से महफूज रह सकती है । जो स्टेट के अन्दर स्टेट पैदा करने की सियासत के खतरे को रोक सकती है यहाँ राष्ट्रीय नसल से मुराद हिन्दू मजहब है ।
मुल्क की आज़ादी के बाद आर एस एस ने ये जाना की अपने हिंदुत्व के अजेंडे को लागू करने के लिए सियासत में आना जरुरी हैहै ।इसके लिए 1950 में जनसंघ के नाम से सियासी पार्टी गठन की ।1952 में देश के पहले पार्लियामेंट्री इलेक्शन में हिस्सा लिया । बाद में जनसंघ को तहलील ( विघटन ) कर दी गयी . 1980 में आर एस एस ने जनसंगजनसंघ की बजाये बीजेपी की तशकील की ।1984 की इलेक्शन में भाग लिया । उसके दो मेंबर पार्लियामेंट पहुंचे । 15वीं लोक सभा में उसके पास 184 मेंबर पार्लियामेंट में पहुंचे 15 वीं लोक सभा में 373 तक पहुँचने का है । विश्व हिन्दू परिषद् और अभिनव भारत ,शिव्शेना ,बजरंगदल ,सनातन धर्म जैसी कट्टर हिंदुत्व संगठन आर एस एस के साथ हैं ।
बबाए कौम ( राष्ट्र पिता ) महात्मा गाँधी के कातिल नाथू राम गोडसे का सम्बन्ध आर एस एस से था । बीजेपी के मत्वक्को ( संभावित ) पी एम नरेंदर मोदी भी आर एस के प्रचारक हैं । गुजरात में 2002 में जो फिरकावाराना फ़सादत (सांप्रदायिक दंग) हुए हिन्दुस्तान की तारीख में बदतरीन फसादात थे । हिन्दुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में वजीर ए आला गुजरात मोदी और उनके प्रशाशन पर फसादात में हिस्सा लेने का इल्जाम लगा । मोदी को कहीं मौत का सौदागर तो कहीं दहशत का सौदागर जैसे अल्फाजों और शब्दों से नवाजा और पुकारा जा रहा है । आर एस एस इसी के लिय मोदी पर लगने वाले इल्जमात ,मोदी की काबलियत के लिए शुमार होते हैं । इसी लिए उसे मुल्क के मत्वक्को ( संभावित ) वजीरे आजम का उमीदवार बनाया है ताकि हिंदुत्व के लिए मोदी इन्तहाई कामयाब हों ।
1999 वाली बीजेपी की केयादत वाली वजीरे आज़म बाजपेयी की सरकार में मरकज ( केंद्र ) में हुकूमत बनी । वह भी आर एस एस के प्रचारक थे । आर एस एस से आदेश लेकर बीजेपी को चलना पड़ता है । अब तो खुल कर आर एस एस इलेक्शन के मैदान में कूद पड़ी है । एक मोनज्जिम और बड़ीबड़ी जमात है । अगर सत्ता ने आ गयी तो न सिर्फ मुसलमानोंमुसलमानों और अकलियतों के लिए बल्कि मुल्क की बेशुमार छोटी जात बेराद्रियों दलितों और महादलितों के लिए भी खतरनाक साबितसाबित हो सकता है
मुल्क का मौजूदा दस्तूर और आईन ( संविधान ) देस के सभी मजहब और भाषा के मानने वालों के लिए इन्तेहाइन्तेहाई इत्मीनान बख्श है ।
गोवालकर जो आर एस एस के सरसंचालक थे अपनी किताब "पंच ऑफ़ थॉट " में लिखा था की " हमारा दस्तूर एक मोटी और भद्दी दस्तावेज है । जिसमें मगरीबी ममालिक ( पश्चिमी देशों )के बहुत सारे डादस्तूरों से मुख्तलिफ मवाद को एक दुसरे में मुत्ताजाद ( विरोधा भाषी ) शकल में रख दिया है । इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हम अपना कह सकें । क्या इसके रहनुमा असूलों में हवालों के लिए कोई एक लफ्ज है । हमारा कौमी मिशन क्या है ? और जिंदिगी में हमारा क़लिदी पैगाम क्या है ? बिलकुल नहीं " आर एस एस दस्तुरे हिन्द में तब्दीली की चाहत रख्त है । जब आर एस एस के बाजपेयी देश के वजीरे आज़म बने । बीजेपी की हुकूमत में दस्तुरे हिन्द में टारतरमीम व इजाफा की खातिर एक कमिटी बना दी गयी । आर एस एस के नजरयात इंसानी एकदार की खातिर इन्तेहाई खतरनाक है । बहुत कुछ छुपा हुआ है । नेज सलहा साल से उसकी बदअमालियों के बेना पर नजरों के सामने है । आर एस एस को कौमी यकजहती ,इंसानी दोस्ती ,अकलियतों के साथ फलाह व बहबूद से नफरत है । जो ऐसा करते हैं उनसे निपटना भी खखूब अच्छी तरह जानती है । ईसाईयईसाईयों और मुसलमानों की जिन्दजियों आर एस एस और उसकी बगल बच्चा जमातें पहले जन संघ अब बीजेपी , विश्व हिन्दू परिषद ,बजरंगदल ,शिवसेना ,अभिनव भारत ,सनातन धर्म वगैरह किस कद्र परिशानी का सबब बनी हुई है । जग जाहिर है आज़ादी से लेकर अब तक कितने ही सांप्रदायिक दंगे हुए ,मुसलमानों को किस कद्र जानी व माली नुक्सनात हुए । फसादात के बाद कायम होने वाले कमिशनों ने फसादातफसादात में आर एस एस औ उसकी हमनवां जमातों पर ; पार्टियों पर इल्जाम लगाए । फिर भी आर एस एस के मोदी फरमाते हैं " हमें मुल्क का चौकीदार बना दो ,हम बहुत अच्छा करेंगे । उनके दौरे हुकूमत में गुजरात में 2002 में फिरकावाराना फसादात में मुसलमानों के साथ क्या हुआ , औ आज़ादी के बाद से अब तक आर एस एस और हिंदुत्व के हाथों मुसलामानों के साथ कितना बहिमाना सलूक हुआ । ये सब जानते हैं ।
नक्श गुजरे हुए लम्हों के हैं दिल पर क्या क्या ?
मुड़ के देखो तो नजर आते हैं मंजर क्या क्या ?
जंगे आज़ादी में आर एस एस ने हिस्सा नहीं लिया वह उस दौरान अह आने कल को बनाने में मशरूफ रही मुसलमानों ने जंगे आज़ादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जान व माल की कुर्बानियां दिन । आज आर एस मुसलामानों को मुल्क से वफादारी का सबक सिखला रही है ।
हमारे खून की रंगत भी उसमें शामिल हैं ।
ये कैसे कहते हो गुलशन फ़क़त तुम्हारा है ।
मुल्क की आजादी की खातिर मुसलमानों ने सिर्फ नुमाया हिस्सा नहीं लिया ,मुल्क की तामीर व बका में बढ़ चढ़ कर सलहा साल से रहे ।बुलंद व खुबसूरत ताज महल ,कुतुबमीनार ,फतहपुर शिकरी जैसी इमारतें ही नहीं बनवाये हक व इन्साफ ,मसावात ,व बराबरी का दर्श भी सिखलाया । मुल्क की समाजियात की तशकील में भी पेश पेश रहे हैं
आज पर्लिमानी इलेक्शन के पेशेनजर हिन्दुत्ववादी सियासी पार्टियां बीजेपी और शिव्शेना वोटों की खातिर हिन्दुओं के जज्बात को भड़का रहे हैं । कोई कह रहा है मोदी के मुखालिफ पाकिस्तानी हैं ,कोई कह रहा है इलेक्शन के बाद मुसलामानों को देख लेंगे । कोई कह रहा है मोदी सत्ता में आ जाएँे तो मुसलमानों को वैसा ही सबक सिखायेंगे जो 2002 में गुजरात मोदी ने सिखाया । ये सब बातें बीजेपी के संभावित वजीरे आज़म मोदी और बीजेपी आला लीडरान की मौजूदगी में स्टेज से कही गयी ।। किसी ने ऐसी सरअंगेजी के लिए रोका नहीं ? हद तो यह हो गयी इलेक्शन के कानून और काएदे और दस्तूर की खेलाफ वर्जि पर इलेक्शन कमिश्नर ने मोदी के खेलाफ केस रजिस्टर्ड कर लिया । आर एस एस अपना मकासिद ( उद्देश्यों ) की तकमील के लिए किसी भी हद तक जा सकती है । अब तक सत्ता मिला नहीं के ये हाल है । अगर मोदी सत्ता में आ गए तो क्या कुछ न होगा ? इसे रोकने के लिए बेरादराने वतन के साथ ( हिन्दू भाइयों के साथ ) मिलकर मुसलमानों को हिकमत अमली तय करना है । दायेमी हल नहीं तो जुज्वी हल निकले । अल्लाह शुक्र है के सत्ता में निकम्मों ,सर पशंदों ,फिरका परस्तों को रोकने के लिए वोट एक बेहतरीन जम्हूरी हथियार है । बीजेपी के और उनकी बगल बच्चा पार्ट के उमीदवार को शिकस्त देने के लिए मजबु सेक्युलर उमीदार को वोट दिया जाए । जात पात ,जुबान ,मजहब और किसी भी भेदभाव से बालातर होकर वोट का जेयादा से जेयदा इस्तेमाल करें । यही एक जम्हूरी और कारगर तरकीब है । सवाल ये है की मुसलमान ऐसा जेयादा से जेयादा करेंगे । ? इस वक़्त मुसलामानों में जरखरीद डाला ,जमीर फरोश आर एस एस को ताक्वियत व कामयाबी देने के लिए मैदाने अमल में हैं । ये मुस्लिम दानिश्वर ,ओलोमाये दिन और लीडरान भी हैं ,उनसे हमें बचना है ।
उर्दू दैनिक पिन्दार ,दिनांक ,5/5/14
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