पढ़ें इस्लाम के प्रति स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी की जुबानी :
पढ़ें इस्लाम के प्रति स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी की जुबानी :
मैंने कर्इ साल पहले दैनिक जागरण मे श्री बलराज मधोक का लेख ‘दंगे क्यों होते हैं ?’’ पढ़ा था। इस लेख में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने का कारण कुरआन मजीद में काफिरों से लड़ने के लिए अल्लाह के फरमान बताए गए थे। लेख मे कुरआन मजीद की वे आयते भी दी गर्इ थी।
इसके बाद दिल्ली से प्रकाशित एक पैम्फलेट (पर्चा) ‘कुरआन की चौबीस आयतें, जो अन्य धर्मावलम्बियों से झगड़ा करने का आदेश देती हैं’ किसी व्यक्ति ने मुझे दिया। इसे पढ़ने के बाद मेरे मन में जिज्ञासा हुर्इ कि मैं कुरआन पढूं। इस्लामी पुस्तकों की दुकान से कुरआन का हिन्दी अनुवाद मुझे मिला।
कुरआन मजीद के इस हिन्दी अनुवाद मे वे सभी आयतें मिली, जो पैम्फलेट (पर्चे) मे लिखी थी। इससे मेरे मन में यह गलत धारणा बनी कि इतिहास में हिन्दू राजाओं व मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुर्इ मार-काट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम हैं। दिमाग भ्रमित हो चुका था, इसलिए हर आतंकवादी घटना मुझे इस्लाम से जुड़ती दिखार्इ देने लगी।
इस्लाम, इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैने एक पुस्तक लिख डाली ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ जिसका अंग्रेजी अनुवाद ‘The History Of Islamic Terrorism” के नाम से सुदर्शन प्रकाशन, सीता कुंज, लिबर्टी गार्डेन, रोड नम्बर-3, मलाड (पश्चिम), मुम्बर्इ-400064 से प्रकाशित हुआ।
हाल ही में मैने इस्लाम धर्म के विद्वानों (उलेमा) के बयानों को पढ़ा कि इस्लाम का आतंकवाद से कोर्इ सम्बन्ध नही हैं। इस्लाम प्रेम, सदभावना व भार्इचारे का धर्म हैं। किसी बेगुनाह को मारना इस्लाम धर्म के विरूद्ध हैं। आतंकवाद के खिलाफ फतवा (धर्मादेश) भी जारी हुआ।
इसके बाद मैंने कुरआन मजीद में जिहाद के लिए आर्इ आयतों के बारे में जानने के लिए मुस्लिम विद्वानों से सम्पर्क किया, जिन्होने मुझे बताया कि कुरआन मजीद की आयतों भिन्न-भिन्न तत्कालीन परिस्थितियों में उतरी। इसलिए कुरआन मजीद का केवल अनुवाद ही न देखकर यह भी देखा जाना जरूरी हैं कि कौन-सी आयत किस परिस्थिति में उतरी, तभी उसका सही मतलब और मकसद पता चल पाएगा।
साथ ही ध्यान देने योग्य हैं कि कुरआन इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) पर उतारा गया था। अत: कुरआन को सही मायने मे जानने के लिए पैगम्बर मुहम्मद(सल्ल0) की जीवनी से परिचित होना भी जरूरी हैं। विद्वानों ने मुझसे कहा, ‘‘ आपने कुरआन मजीद की जिन आयतों का हिन्दी अनुवाद अपनी किताब से लिया हैं, वे आयतें उन अत्याचारी काफिर और मुशरिक लोगो के लिए उतारी गर्इ जो अल्लाह के रसूल (सल्ल0) से लड़ार्इ करते और मुल्क में फसाद करने के लिए दौड़ते फिरते थे। सत्य धर्म की राह में रोड़ा डालनेवाले ऐसे लोगो के विरूद्ध ही कुरआन में जिहाद का फरमान हैं।’’
उन्होने मुझसे कहा कि इस्लाम की सही जानकारी न होने के कारण लोग कुरआन मजीद की पवित्र आयतों का मतलब समझ नहीं पाते। यदि आपने पूरे कुरआन मजीद के साथ हजरत मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी भी पढ़ी होती, तो आप भ्रमित न होते।
मुस्लिम विद्वानों के सुझाव के अनुसार मैने सबसे पहले पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढ़ने के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अन्त तक पढ़ा, तो मुझे कुरआन मजीद की आयतों का सही मतलब और मकसद समझ में आने लगा।
सत्य सामने आने के बाद मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इसी कारण ही मैने अपनी उक्त किताब ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा हैं जिसका मुझे हार्दिक खेद (दुख) हैं।
और इसलिये मैं अपने भुल एवं दुख व्यक्त करते हुए फिरसे एक नयी पुस्तक लिखी जिसका नाम है "इस्लाम आतंक या आदर्श ?"
इस पुस्तक में मैनें इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।
और साथ ही मै अल्लाह से, पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं तथा अज्ञानता मे लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूं। जनता से मेरी अपील हैं कि मेरी पहली पुस्तक ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास पुस्तक में जो लिखा हैं उसे शून्य समझें, और मेरी नयी पुस्तक "इस्लाम आतंक या आदर्श ?" का अध्ययन करें और साथ ही अन्य लोगों तक पहुंचाए, धन्यवाद ।।
■■■■
अब जानिए क्या है पुस्तक में ?
एक सौ दस पेजों की इस पुस्तक
"इस्लाम आतंक या आदर्श ?" मे स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी ने खास तौर पर कुरआन की उन चौबीस आयतों का जिक्र किया है जिनके गलत मायने निकालकर इन्हें आतंकवाद से जोड़ा जाता है। उन्होंने इन चौबीस आयतों का अच्छा खुलासा करके यह साबित किया है कि किस साजिश के तहत इन आयतों को हिंसा के रूप में दुष्प्रचारित किया जा रहा है।
साथ ही स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी ने अपनी पुस्तक में मौलाना को लेकर इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं-
इस्लाम को नजदीक से ना जानने वाले भ्रमित लोगों को लगता है कि मुस्लिम मौलाना, गैर मुस्लिमों से घृणा करने वाले अत्यन्त कठोर लोग होते हैं। लेकिन बाद में जैसा कि मैंने देखा, जाना और उनके बारे में सुना, उससे मुझे इस सच्चाई का पता चला कि मौलाना कहे जाने वाले मुसलमान व्यवहार में सदाचारी होते हैं, अन्य धर्मों के धर्माचार्यों के लिए अपने मन में सम्मान रखते हैं। साथ ही वह मानवता के प्रति दयालु और सवेंदनशील होते हैं। उनमें सन्तों के सभी गुण मैंने देखे। इस्लाम के यह पण्डित आदर के योग्य हैं जो इस्लाम के सिद्धान्तों और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं, गुणों का सम्मान करते हैं। वे अति सभ्य और मृदुभाषी होते हैं।
ऐसे मुस्लिम धर्माचार्यों के लिए भ्रमवश मैंने भी गलत धारणा बना रखी थी।
उन्होंने किताब में ना केवल इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियों दूर करने की बेहतर कोशिश की है बल्कि इस्लाम को अच्छे अंदाज में पेश किया है ।।।
मैंने कर्इ साल पहले दैनिक जागरण मे श्री बलराज मधोक का लेख ‘दंगे क्यों होते हैं ?’’ पढ़ा था। इस लेख में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने का कारण कुरआन मजीद में काफिरों से लड़ने के लिए अल्लाह के फरमान बताए गए थे। लेख मे कुरआन मजीद की वे आयते भी दी गर्इ थी।
इसके बाद दिल्ली से प्रकाशित एक पैम्फलेट (पर्चा) ‘कुरआन की चौबीस आयतें, जो अन्य धर्मावलम्बियों से झगड़ा करने का आदेश देती हैं’ किसी व्यक्ति ने मुझे दिया। इसे पढ़ने के बाद मेरे मन में जिज्ञासा हुर्इ कि मैं कुरआन पढूं। इस्लामी पुस्तकों की दुकान से कुरआन का हिन्दी अनुवाद मुझे मिला।
कुरआन मजीद के इस हिन्दी अनुवाद मे वे सभी आयतें मिली, जो पैम्फलेट (पर्चे) मे लिखी थी। इससे मेरे मन में यह गलत धारणा बनी कि इतिहास में हिन्दू राजाओं व मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुर्इ मार-काट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम हैं। दिमाग भ्रमित हो चुका था, इसलिए हर आतंकवादी घटना मुझे इस्लाम से जुड़ती दिखार्इ देने लगी।
इस्लाम, इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैने एक पुस्तक लिख डाली ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ जिसका अंग्रेजी अनुवाद ‘The History Of Islamic Terrorism” के नाम से सुदर्शन प्रकाशन, सीता कुंज, लिबर्टी गार्डेन, रोड नम्बर-3, मलाड (पश्चिम), मुम्बर्इ-400064 से प्रकाशित हुआ।
हाल ही में मैने इस्लाम धर्म के विद्वानों (उलेमा) के बयानों को पढ़ा कि इस्लाम का आतंकवाद से कोर्इ सम्बन्ध नही हैं। इस्लाम प्रेम, सदभावना व भार्इचारे का धर्म हैं। किसी बेगुनाह को मारना इस्लाम धर्म के विरूद्ध हैं। आतंकवाद के खिलाफ फतवा (धर्मादेश) भी जारी हुआ।
इसके बाद मैंने कुरआन मजीद में जिहाद के लिए आर्इ आयतों के बारे में जानने के लिए मुस्लिम विद्वानों से सम्पर्क किया, जिन्होने मुझे बताया कि कुरआन मजीद की आयतों भिन्न-भिन्न तत्कालीन परिस्थितियों में उतरी। इसलिए कुरआन मजीद का केवल अनुवाद ही न देखकर यह भी देखा जाना जरूरी हैं कि कौन-सी आयत किस परिस्थिति में उतरी, तभी उसका सही मतलब और मकसद पता चल पाएगा।
साथ ही ध्यान देने योग्य हैं कि कुरआन इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) पर उतारा गया था। अत: कुरआन को सही मायने मे जानने के लिए पैगम्बर मुहम्मद(सल्ल0) की जीवनी से परिचित होना भी जरूरी हैं। विद्वानों ने मुझसे कहा, ‘‘ आपने कुरआन मजीद की जिन आयतों का हिन्दी अनुवाद अपनी किताब से लिया हैं, वे आयतें उन अत्याचारी काफिर और मुशरिक लोगो के लिए उतारी गर्इ जो अल्लाह के रसूल (सल्ल0) से लड़ार्इ करते और मुल्क में फसाद करने के लिए दौड़ते फिरते थे। सत्य धर्म की राह में रोड़ा डालनेवाले ऐसे लोगो के विरूद्ध ही कुरआन में जिहाद का फरमान हैं।’’
उन्होने मुझसे कहा कि इस्लाम की सही जानकारी न होने के कारण लोग कुरआन मजीद की पवित्र आयतों का मतलब समझ नहीं पाते। यदि आपने पूरे कुरआन मजीद के साथ हजरत मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी भी पढ़ी होती, तो आप भ्रमित न होते।
मुस्लिम विद्वानों के सुझाव के अनुसार मैने सबसे पहले पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल0) की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढ़ने के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अन्त तक पढ़ा, तो मुझे कुरआन मजीद की आयतों का सही मतलब और मकसद समझ में आने लगा।
सत्य सामने आने के बाद मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इसी कारण ही मैने अपनी उक्त किताब ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास’ में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा हैं जिसका मुझे हार्दिक खेद (दुख) हैं।
और इसलिये मैं अपने भुल एवं दुख व्यक्त करते हुए फिरसे एक नयी पुस्तक लिखी जिसका नाम है "इस्लाम आतंक या आदर्श ?"
इस पुस्तक में मैनें इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।
और साथ ही मै अल्लाह से, पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं तथा अज्ञानता मे लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूं। जनता से मेरी अपील हैं कि मेरी पहली पुस्तक ‘इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास पुस्तक में जो लिखा हैं उसे शून्य समझें, और मेरी नयी पुस्तक "इस्लाम आतंक या आदर्श ?" का अध्ययन करें और साथ ही अन्य लोगों तक पहुंचाए, धन्यवाद ।।
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अब जानिए क्या है पुस्तक में ?
एक सौ दस पेजों की इस पुस्तक
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ऐसे मुस्लिम धर्माचार्यों के लिए भ्रमवश मैंने भी गलत धारणा बना रखी थी।
उन्होंने किताब में ना केवल इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियों दूर करने की बेहतर कोशिश की है बल्कि इस्लाम को अच्छे अंदाज में पेश किया है ।।।
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Raftaar Qureshi
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Møhåmmáð Wâsîm
respect
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Abdul Lateef Ansari
Subah ka bhula agar sham ko ghar as jaye to use bhula nhi kehte
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Intakhab Khan
I recpect u
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Rais Ahmmed
hamari bhi jimmedari hai ki hamen asal islam ko lagon ke beech rakhna chahiye .inshaallah hamare hindu bhai asal islam dekhkar hamare karib aayenge.
hamari bhi jimmedari hai ki hamen asal islam ko lagon ke beech rakhna chahiye .inshaallah hamare hindu bhai asal islam dekhkar hamare karib aayenge.
Saddam Khan
Samjo inki bat ko
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Ishrat Hussain
nice
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Arif Hakeem
Quran ko agar sahi tarah samjha jaye to sahi message reflect hogs
Quran ko agar sahi tarah samjha jaye to sahi message reflect hogs
Er Suleman Ansari
zakir naik jo kaam karte h through peace tv logo ko ye program dhekhna chahiye janne k liye bahut kuch h
zakir naik jo kaam karte h through peace tv logo ko ye program dhekhna chahiye janne k liye bahut kuch h
Sarfaraz Ansari
B.j.p k log inhe b atankwadi kah denge
B.j.p k log inhe b atankwadi kah denge
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