जब हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में मिलने वाले लोग "हिन्दू" या "मुसलमान" नहीं होते तो फिर क्या वजह है कि "चुनाव" आते ही हम "हिन्दू" या "मुसलमान" हो जाते हैं ?

Farhad Khan
एक आम आदमी सुबह जागने के बाद सबसे पहले टॉयलेट जाता है, बाहर आ कर साबुन से हाथ धोता है,
दाँत ब्रश करता है,
नहाता है,
कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढता है,
नाश्ता करता है,
घर से काम के लिए निकल जाता है,
बाहर निकल कर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन में या अपनी सवारी से ऑफिस पहुँचता है,
वहाँ पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ चाय पीता है, शाम को वापिस घर के लिए निकलता है,
घर के रास्ते में एक सिगरेट फूँकता है,
बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए मिठाई वगैरह लेता है,
मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुँचता है,
अब आप बताइये कि उसे दिन भर में कहीं कोई "हिन्दू" या "मुसलमान" मिला ?
क्या उसने दिन भर में किसी "हिन्दू" या "मुसलमान" पर कोई अत्याचार किया ?
उसको जो दिन भर में मिले वो थे.. अख़बार वाले भैया,
दूध वाले भैया,
रिक्शा वाले भैया,
बस कंडक्टर,
ऑफिस के मित्र,
आंगतुक,
पान वाले भैया,
चाय वाले भैया,
टॉफी की दुकान वाले भैया,
मिठाई की दूकान वाले भैया..
जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो इनमें "हिन्दू" या "मुसलमान" कहाँ है ?
"क्या दिन भर में उसने किसी से पूछा कि भाई, तू "हिन्दू" है या "मुसलमान" ?
अगर तू "हिन्दू" या "मुसलमान" है तो मैं तेरी बस में सफ़र नहीं करूँगा,
तुझसे सिगरेट नहीं खरीदूंगा,
तेरे हाथ की चाय नहीं पियूँगा,
तेरी दुकान से टॉफी नहीं खरीदूंगा,
क्या उसने साबुन, दूध, आटा, नमक, कपड़े, जूते, अखबार, टॉफी, मिठाई खरीदते समय किसी से ये सवाल किया था कि ये सब बनाने और उगाने वाले "हिन्दू" हैं या "मुसलमान" ?
आम तौर पर हम सबके साथ ऐसा ही है,
शायद ही कोई आज कल के युग में किसी की "जाति" या "धर्म" पूछ कर तय करता है कि फलाँ आदमी से कैसा व्यवहार करना है, हम सबके फ़ोन की लिस्ट में या सोशल मीडिया की फ्रेंड लिस्ट में ना जाने कितने "हिन्दू" या "मुसलमान" होंगे..
क्या आज तक किसी ने कभी भी उनकी पोस्ट लाइक करने से पहले या उस पर कमेन्ट करने से पहले उनकी "जाति" या "धर्म" पुछा ?क्या किसी से कभी कहा कि तुम "हिन्दू" हो या "मुसलमान" हो ?
इसलिए मेरी पोस्ट पर लाइक या कमेन्ट मत करना ?
"जब हमारी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में मिलने वाले लोग "हिन्दू" या "मुसलमान" नहीं होते तो फिर क्या वजह है कि "चुनाव" आते ही हम "हिन्दू" या "मुसलमान" हो जाते हैं ?
"क्या वजह है कि हम चुनाव में किसी "हिन्दू" या "मुसलमान" को चुनने की बजाय किसी "अच्छे ईमानदार इंसान" को क्यों नहीं चुनते जो हमारे देश को तरक्की की राह पर आगे ले जाये । इसलिए सभी हिंदुस्तानी भाई अपने कर्तव्य का पालन करते हुए "जाति" और "धर्म" के नाम पर राजनीति करने वालों पहचानें और "जाति" और "धर्म" के नाम पर राजनीति करने वालों को नकारें..
ये "जाति" और "धर्म" के नाम पर राजनीति करने वाले हम सब हिंदुस्तानी भाइयों को "असंगठित" करके हम पर राज करना चाहते हैं सभी "जाति" और "धर्म" के हिन्दुस्तानी भाई मिल कर इन्हें खदेड़ संगठित हो जाएँ..
क्योंकि हम सब भारतीय हैं जयहिंद जय भारत"
March 31 at 10:35am · Doha, Qatar · Public
More

[Comments] is good,have a look at it! https://mobile.facebook.com/story.php?story_fbid=1109355405773053&id=100000958124852&refid=17&_ft_=top_level_post_id.1109355405773053%3Atl_objid.1109355405773053%3Athid.100000958124852%3A306061129499414%3A2%3A0%3A1472713199%3A3029229642663750481&__tn__=%2As

Comments

Popular posts from this blog

#Modi G ! कब खुलेंगी आपकी आंखें ? CAA: एक हज़ार लोगों की थी अनुमति, आए एक लाख-अंतरराष्ट्रीय मीडिया

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"