बुश, जूता, कुत्ता और तनाव!
Shahid Sayyidain
बुश, जूता, कुत्ता और तनाव!
बगदाद में बुश पर जूता चला। बुश मुस्करा रहा है। वह इसे मजाक मान रहा है। पर अमेरिका और पूरी दुनिया के बुद्धिजीवी और पत्रकार तनाव में हैं। बुश तनाव में होता है तो दुनिया में तनाव बढ़ता है। बुश जब मुस्कराता है तब भी तनाव बढ़ता है। जूता चलाने वाले पत्रकार मुंतदेर-अल-जैदी ने जो कहा वह मजाक नहीं था। पर दुनिया देख रही है कि बुश को ऐसे मजाक पसंद हैं। इस मजाक को हम इस क्रम देखते हैं- जैदी ने पहला जूता फेंकते वक्त यह कहा-"कुत्ते, ये लो इराक़ी लोगों की ओर से आपको आख़िरी सलाम है." और जब दूसरा जूता फेंका-"ये इराक़ की विधवाओं, अनाथों और मारे गए सभी लोगों के लिए है. इसके बाद बुश ने कहा- "मैंने अपने कार्यकाल में कई बार इस तरह की अजीब घटनाएँ देखी हैं. ये महज ध्यान आकर्षित करने का तरीक़ा था. इससे इराक़ी पत्रकार भी दुखी हैं." इस पर अब एक इराकी की प्रतिक्रिया- "जॉर्ज बुश को एक या दो नहीं 100 जूते मारने चाहिए. कोई नहीं चाहता है कि वे यहाँ आएँ." द न्यूयार्क टाइम्स यह कहता है- एक इराकी टीवी के पत्रकार मुंतदेर-अल- जैदी द्वारा रविवार को इराकी प्रधानमंत्री के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बुश पर जूते चलाने की घटना ने इराक में अमेरिकी सेना की उपस्थिति पर बहस छेड़ दी है। इस घटना की त्वरित सुनवाई होनी चाहिए। जैदी के लिए सक्षम वकील किया जाना चाहिए। बुश को इस घटना को अंतहीन जूतों के स्रोत के मजाक के तौर पर नहीं देखना चाहिए। युद्ध उन्मादी बुश के लिए दुनिया का संघर्ष और तनाव ही मजाक है। उनका मनोरंजन इसीसे होता रहा है। इराक और अफगानिस्तान में लड़ी गई लड़ाइयां उनके लिए शायद एक कंप्यूटर गेम जैसी ही रोचक होंगी। अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ दुनिया तनाव में थी, मगर बुश को लगा अब अपना खेल खेलने का वक्त शुरू हुआ। इसके बाद जो खेल खेला गया वह अभी तक जारी है। एक वाक्या है, जो बताता है कि दुनिया का सारा तनाव अंततः कुत्तो को ही झेलना पड़ता है। बॉस का तनाव अपने अधिनस्थ कर्मचारी पर उतरता है। तनाव में आया कर्मचारी घर जाकर खाना फेंक देता है कि सब्जी ठीक नहीं बनी। बीवी को खरी-खोटी सुनाता है। तनाव में आई बीवी अपना गुस्सा रोटी मांगने आए बच्चे पर निकालती है। दो झापड़ खाकर रोता हुआ बच्चा घर से निकलता है और बाहर बैठे कुत्ते को पत्थर मारता है। इस तरह सारा तनाव अंततः कुत्तों को ही झेलना पड़ता है। यह परिस्थितियां तय करती हैं कि अगर आप बॉस की हैसीयत में हैं तो कल को कुत्ते की हैसीयत तक पहुंच सकते हैं। इसलिए कभी इन्सानीयत को नहीं भूलना चाहिए। इन्सान बने रहोगे तो दुनिया का तनाव कम होगा। -सुधीर राघव ( Sunday, November 30, 2008)
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