रणदीप सिंह सुरजेवालाः जिनके लिए राजीव गांधी 'देवदूत' बन कर आए थे


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"मोदी जी की सरकार का नया नारा ये है कि बेरोज़गार युवा बेचे पकौड़े और देश लूट कर ऐश करें भगोड़े"
"भाजपा की थाली अब रहेगी ख़ाली, क्योंकि जनता अब अपने वोट को कांग्रेस की झोली में डालने वाली"
"80 लाख करोड़ का काला धन विदेशों से वापस कब आएगा, 15-15 लाख खातों में कब जमा करवाया जाएगा, सलाना दो करोड़ रोज़गार कब मिलेंगे और अच्छे दिन कब आएंगे, लगता है अच्छे दिन तब आएंगे, जब मोदी जी सत्तासे जाएंगे..."
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला अपने शब्दों के बाण से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अक्सर निशाने पर लेते हुए दिखाई देते हैं.
बोलने की अपनी साफ़-सुथरी शैली और तर्कों के दम पर वह अपनी बात रखते हैं.
सुरजेवाला फिलहाल जींद विधानसभा उपचुनाव में अपनी हारको लेकर चर्चा में हैं. कैथल से विधायक होने के बावजूद वो उपचुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे थे. लेकिन बीजेपी ने ये सीट जीत ली और सुरजेवाला के लिए ये बड़ा झटका माना जा रहा है.
वो कुल पांच बार हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और छठी बार मैदान में थे. साल 2014 में वो चौथी बार विधायक चुने गए थे.
हरियाणा की राजनीति में उनके क़द का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने उन्हें 1996 और 2005 के चुनावों में इंडियन नेशनल लोकदल के नेता और मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला के ख़िलाफ़ मैदान में उतारा था और दोनों बार सुरजेवाला ने उन्हें शिकस्त दी थी.
साल 2014 के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस का प्रदर्शन काफी ख़राब चल रहा था लेकिन रणदीप सिंह सुरजेवाला इस दौरान भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे.

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कम उम्र में हासिल किया बड़ा मुकाम
जाट समुदाय से आने वाले सुरजेवाला कांग्रेस का युवा चेहरा हैं और राहुल गांधी के विश्वासपात्र के तौर पर समझे जाते हैं.
हरियाणा की राजनीति पर नज़र रखने वाली स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार मीनाक्षी कहती हैं, ''सुरजेवाला न सिर्फ़ जाट होने के चलते बल्कि उनके तार्किक बयान और पार्टी का पक्ष मज़बूती से रखने की वजह से स्थानीय राजनीति में होते हुए भी राष्ट्रीय राजनीति में दखल रखते हैं.''
वो कहती हैं, "सुरजेवाला जाट समुदाय के सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे नेताओं में से एक हैं और उनके पिता की एक राजनीतिक विरासत भी रही है."
"वो कम उम्र में राजनीति में आए और विधायक बने. वो बहुत कम उम्र में यूनिवर्सिटी के सीनेट के सदस्य भी रहे थे."
महज 17 साल की उम्र में सुरजेवाला को हरियाणा प्रदेश के कांग्रेस यूथ विंग का जनरल सेकेट्री नियुक्त किया गया था.
छह साल बाद 2000 में वो पहले ऐसे हरियाणा से आने वाले शख्स बने, जिसे इंडियन यूथ कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. इस पद पर वो पांच साल रहे और इतने लंबे वक़्त तक रहने वाले भी वो पहले अध्यक्ष बने.
साल 2004 में उन्हें कांग्रेस पार्टी में सचिव का पद दिया गया और साल के अंत में उन्हें प्रदेश इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.
सुरजेवाला कई बार राज्य मंत्री और कैबिनेट के सदस्य रह चुके हैं.

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Image captionअपने पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला के साथ रणदीप

पिता के भाग्य का सितारा

तीन जून, 1967 को चंडीगढ़ में जन्मे रणदीप सिंह सुरजेवाला अपने मां-बाप की चौथी संतान हैं.
जिस वक़्त उनका जन्म हुआ था, हरियाणा में पहली सरकार बनी थी और उनके पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला को उस सरकार में कृषि मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.
उनके पिता पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं.
पिता ख़ुद यह बात मानते हैं कि रणदीप के आने से उनकी क़िस्मत चमक उठी.
शमशेर सिंह सुरजेवाला ने अपनी आत्मकथा 'मेरा सफर, मेरी दास्तां' में लिखा है "रणदीप का जन्म चंडीगढ़ पीजीआई में हुआ था. जब उसका जन्म हुआ, मैं सरकार में मंत्री था. ये महज इत्तेफाक की बात है या फिर क़िस्मत का कनेक्शन है कि जब-जब रणदीप के जीवन में कोई महत्वपूर्ण मोड़ या ख़ास साल होता तो उस दौरान मैं मंत्री होता था."
"जब रणदीप का जन्म हुआ, मैं मंत्री था, जब उसने 12वीं पास की, मैं मंत्री था. जब वो बीकॉम ऑनर्स पास किया, मैं मंत्री था और जब वो एलएलबी पास किया और शादी हुई, तब भी मैं मंत्री था."
उन्होंने आगे लिखा है, "रणदीप मेरे भाग्य का सितारा है और हरियाणा की राजनीति को भी उससे बहुत उम्मीदें हैं. ये रणदीप की कार्यशैली और उसका अंदाज़ है कि उसके विरोधी और आलोचक भी उसकी कार्य प्रणाली के फ़ैन हैं."

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Image captionदीक्षांत समारोह में रणदीप सिंह सुरजेवाला

यूथ कांग्रेस में रहते हुए साबित की नेतृत्व क्षमता

सुरजेवाला ने मैट्रिक तक की पढ़ाई हरियाणा के जींद से पूरी की. इसके बाद की पढ़ाई के लिए वो चंडीगढ़ चले गए. उन्होंने पहले बीकॉम किया और फिर लॉ की डिग्री ली.
1988 में पंजाब यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 21 साल की उम्र में प्रैक्टिस शुरू की.
लगभग तीन साल तक दिल्ली में वकालत करने के बाद वो पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट आ गए.
1995 में उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में एमए की पढ़ाई पूरी की. रणदीप की शादी साल 1991 में गायत्री से हुई और उनके दो बच्चे, अर्जुन और आदित्य हैं.
प्रदेश यूथ कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने न सिर्फ़ राज्य के भीतर बल्कि राज्य के बाहर भी अपना नाम स्थापित करने में सफलता पाई.
मीनाक्षी बताती हैं, "एक वक़्त था जब सुरजेवाला ने राजस्थान के सूखा प्रभावित इलाक़ों के गौशालाओं के लिए चारे के 121 ट्रक भेज कर युवा कांग्रेस की शक्ति का प्रदर्शन किया."
"इतना ही नहीं 50 लाख लीटर पानी भी उन्होंने सूखे से प्रभावित इलाक़ों को उपलब्ध कराया था. उन्होंने यह दिखाया किया कि युवा शक्ति सामाजिक कार्यों को किस तरह कर सकती है.

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जब राजीव गांधी ने बचाई थी रणदीप की जान
रणदीप सिंह सुरजेवाला के जीवन में एक वक़्त ऐसा भी आया जब वो स्वास्थ्य परेशानियों के कारण कोमा जैसी स्थिति में पहुंच गए थे.
शमशेर सिंह सुरजेवाला ने अपनी आत्मकथा में उन मुश्किल घड़ी का भी ज़िक्र किया है.
उन्होंने लिखा है, "वैसे भी रणदीप को एक बार जीवनदान परमात्मा ने ही दिया, जब राजीव गांधी ने मेरी देवदूत की तरह मदद की थी. 1984 के चुनाव के दौरान जब मैं किसी काम से दिल्ली में था तो मेरे पीछे चुनाव कैम्पेन रणदीप ने शुरू कर दिया था."
शमशेर सिंह ने लिखा है कि यह उसकी शुरुआती कोशिश थी कि उसे हैपेटाइटिस बी हो गया. उन दिनों हैपेटाइटिस बी लगभग लाइलाज बीमारी थी.
"रणदीप की हालत इतनी ख़राब हो गई थी कि वो बेहोश हो गया. स्थिति लगभग कोमा जैसी हो गई थी, तब पीजीआई के डॉक्टरों ने एक इंजेक्शन लिखा, जो उस वक़्त इंग्लैंड में ही मिलता था."
"तब राजीव जी ने आनन-फानन में अपने किसी पायलट मित्र से फोन पर बात की और इंग्लैंड से इंजेक्शन मंगवाया. वह इंजेक्शन रणदीप के लिए संजीवनी बूटी की तरह काम किया."
रणदीप के पिता ने उस पल का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि यह उनकी मां की मौत के बाद उनके जीवन का सबसे भयानक पल था.

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Image captionक्रिकेट की पिच पर चौके-छक्के लगाते सुरजेवाला

राजनीतिक सफ़र में संघर्ष कम नहीं रहे
सुरजेवाला का राजनीतिक सफ़र सफलताओं और संघर्षों से भरा रहा है. उन्हें पार्टी के बाहर और भीतर, दोनों जगहों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.
मीनाक्षी कहती हैं, "जब आप कम उम्र में अपनी काबिलियत से आगे बढ़ने लगते हैं तो आप अपने ही लोगों की नज़र में आ जाते हैं. सुरजेवाला ने उन सभी चीज़ों से लड़ा है और आगे बढ़े हैं. शुरू से उन्हें जो भी ज़िम्मेदारी मिली, उसे सफल तरीक़े से निभाया."
ऐसा भी नहीं है कि वो ख़ास वक़्त के लिए चर्चा में रहे हों. वो लगातार एक समान पार्टी में अपनी अहमियत साबित करते रहे हैं.
वो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के सचिव और कम्यूनिकेशन सेल के प्रभारी रहे हैं और ये दर्शाता है कि उन्होंने पार्टी की अंदरूनी राजनीति से कैसे पार पाया है.

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पार्टी के मुश्किल वक़्त में साथ खड़े रहने वाले सुरजेवाला
साल 2014 में केंद्र में भाजपा जब बड़े जनाधार के साथ सत्ता में आई, कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता बयानबाज़ी से बचने लगे थे. पार्टी के कार्यकर्ता और नेता हताशा के दौर से गुज़र रहे थे.
उस मुश्किल वक़्त में रणदीप सिंह सुरजेवाला मज़बूती के साथ पार्टी का पक्ष देश के सामने रखते थे. यही कारण है कि साल 2014 में कांग्रेस के प्रवक्ता बने सुरजेवाला को एक साल बाद पार्टी के कम्यूनिकेशन विंग का प्रभारी बना दिया गया.
वो शुरुआत से ही कांग्रेस से जुड़े रहे हैं. समय के साथ उन्होंने पार्टी में तेज़ी से अपनी जगह बनाई है.
हरियाणा की राजनीति पर नज़र रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार मीनाक्षी कहती हैं, "सीधी सी बात है कि वो एक काबिल नेता हैं. लोकप्रिय नेता होना अलग बात है, लेकिन तार्किक तरीक़े से अपनी बात रखना, एक अलग बात है."
"सुरजेवाला में ये दोनों खूबियां हैं. पार्टी को ऐसे लोगों की ज़रूरत होती है और यही वजह है कि वो पार्टी मे तेज़ी से जगह बना रहे हैं."
वो जोड़ती हैं, "सुरजेवाला एक विधायक के तौर पर भी सफल रहे हैं. जब भी विधानसभा में विपक्षी पार्टी को घेरना होता है, वो पुख्ता ढंग से अपनी बात रखते हैं."

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