गणतंत्र दिवस पर क्या ख़ौफ़ में रहते हैं मदरसों के छात्र?



मदरसा

स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) और गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के मौके पर सोशल मीडिया में कुछ ऐसी तस्वीरें वायरल होने लगती हैं जिनमें कुर्ता-पायजामा पहने, सिर पर टोपी लगाए और हाथ में तिरंगा झंडा लिए युवा या बच्चा दिखाई देता है.
आम तौर पर ये छवि एक मदरसे के छात्र की समझी जाती है. भारत में मदरसों को केवल इस्लामी शिक्षा की एक संस्था के रूप में देखा जाता है. हालांकि, कई मदरसों में हिंदी, अंग्रेज़ी, गणित और विज्ञान भी पढ़ाया जाता है.
भारत में विभिन्न फ़िरकों (पंथ) के मदरसे हैं. इनमें सबसे बड़ा मदरसा उत्तर प्रदेश का दारुल उलूम देवबंद है.
हाल में दारुल उलूम देवबंद ने अपने हॉस्टल के छात्रों से कहा था कि वे गणतंत्र दिवस की दो दिन की छुट्टियों में यात्रा करने से बचें.


दारूल उलूम देवबन्द, Darul Uloom Deobandइमेज कॉपीरइटFACEBOOK/DARUL ULOOM DEOBAND

इसका कारण उन्होंने ये बताया कि गणतंत्र दिवस पर सुरक्षा व्यवस्था अधिक रहती है और एक डर का माहौल पैदा हो जाता है. इस नोटिस में ये भी कहा गया कि छात्र बहुत ज़रूरी होने पर ही सफ़र करें और किसी से बहस न करें.
ऐसे सवाल काफ़ी वक़्त से उठते रहे हैं कि मदरसों में गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर कुछ नहीं होता. वहां झंडा नहीं फहराया जाता. साथ ही वहां छुट्टी भी नहीं होती. और तो और बीते साल स्वतंत्रता दिवस पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मदरसों में झंडा फहराना अनिवार्य कर दिया था और अब उनकी रमज़ान की छुट्टियां कम किए जाने की भी चर्चा है.
सवाल ये भी उठता है कि आख़िर गणतंत्र दिवस पर मदरसों में क्या होता है? और क्या मदरसों के छात्रों को इस दिन बाहर किसी तरह प्रताड़ित किया जाता है. इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की हमने दिल्ली के कुछ मदरसों में.


दारूल उलूम देवबन्द, Darul Uloom Deobandइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

गणतंत्र दिवस पर मदरसों में क्या होता है?

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्तफ़ाबाद इलाक़े के बड़े मदरसों में से एक मदरसा अशरफ़िया तालिमुल क़ुरआन देवबंद से ही संबंध रखता है. इसमें तक़रीबन 350 बच्चे पढ़ते हैं जिनमें से 32 छात्र उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के हैं.
इस मदरसे में नाज़रा, हिफ़्ज़, क़िरात की पढ़ाई होती है. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए छात्र दूसरे मदरसों और देवबंद में भेज दिए जाते हैं.


क़ारी अब्दुल जब्बार
Image captionक़ारी अब्दुल जब्बार

साल 1990 से इस मदरसे को संभाल रहे क़ारी अब्दुल जब्बार देवबंद द्वारा छात्रों को दिए गए सुझाव से सहमति जताते हैं. वो कहते हैं कि उन्हें देवबंद की ओर से ऐसी कोई सलाह नहीं मिली है लेकिन छात्रों की ज़िम्मेदारी मदरसों पर होती है अगर वो कहीं जाना चाहते हैं तो उन्हें इसके बारे में पहले सूचना देनी होगी फिर वे जा सकते हैं.
जब्बार कहते हैं, "गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर उनके मदरसे में कार्यक्रम होता है. इस दिन क़ौमी तराना 'सारे जहां से अच्छा' गाया जाता है और इस दिन की अहमियत छात्रों को बताई जाती है."


मोहम्मद ज़ैद
Image captionमोहम्मद ज़ैद

14 साल के मोहम्मद ज़ैद मेरठ से हैं और वो इस मदरसे में उर्दू-अरबी पढ़ते हैं. उनसे जब पूछा गया कि 15 अगस्त पर क्या होता है तो उन्होंने कहा कि इस दिन पतंग उड़ाई जाती है.
ज़ैद कहते हैं कि वो इस दिन कहीं नहीं जाते और मदरसे में ही रहते हैं. उनके कुछ दोस्त ज़रूर बाहर घूमने जाते हैं.


मोहम्मद साहिल ख़ान
Image captionमोहम्मद साहिल ख़ान

इसी मदरसे में हाफ़िज़ा करने वाले 19 साल के मोहम्मद साहिल ख़ान स्वतंत्रता दिवस के बारे में कहते हैं कि इस दिन हमारा देश आज़ाद हुआ था. साहिल कहते हैं कि वो स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर हमेशा इंडिया गेट जाते रहे हैं.


मौलाना हसीब-उर-रहमान (सबसे बाएं)
Image captionमौलाना हसीब-उर-रहमान (सबसे बाएं)

मदरसों के छात्रों में ख़ौफ़ होता है?

मुस्तफ़ाबाद में ही बरेलवी फ़िरक़े से संबंध रखने वाला मदरसा इस्लामिया हुसैनिया नूरिया है. यहां दिल्ली से बाहर के 30 छात्र हैं जो यहीं रहकर पढ़ाई करते हैं.
इस मदरसे में जब मैं पहुंचा तो वहां गणतंत्र दिवस कार्यक्रम के लिए झंडे पहले से आए हुए रखे थे. इस मदरसे की ज़िम्मेदारी देख रहे मौलाना हसीब-उर-रहमान देवबंद की सलाह से सहमत नहीं दिखते हालांकि वो कहते हैं कि छात्रों को बाहर जाने पर हमेशा चौकन्ना रहना चाहिए.
इसकी वजह वो ये बताते हैं कि चंद लोग हैं जो डर फैलाना चाहते हैं और इससे मदरसों के छात्रों को सिर्फ़ गणतंत्र दिवस ही नहीं बल्कि हर वक़्त दिक़्क़त हो सकती है.
गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इस मदरसे में क्या होता है? इस पर वो कहते हैं, "हम हर बार मदरसे में झंडा फहराते हैं और छात्रों इस दिन के इतिहास और अहमियत के बारे में बताया जाता है. साथ ही क़ौमी तराना और देश पर शेर-ओ-शायरी भी होती है."


नाहिद अख़्तर
Image captionनाहिद अख़्तर (बीच में)

इसी मदरसे में पढ़ने वाले किशनगंज (बिहार) के नाहिद अख़्तर गणतंत्र दिवस की अहमियत बताते हैं. वो कहते हैं कि इस दिन हमारे देश का आईन (संविधान) लागू हुआ था.
वो कहते हैं, "मैं यौम-ए-जम्हूरिया (गणतंत्र दिवस) पर हर साल मदरसे से बाहर जाता हूं और मुझे कभी कोई ख़ौफ़ नहीं महसूस हुआ और मैं आज भी घूमने जाऊंगा."
लोनी (उत्तर प्रदेश) के मोहम्मद शहज़ाद कहते हैं कि उन्हें कभी कहीं सफ़र करने में कोई डर नहीं लगा और वह इस साल भी घूमने ज़रूर जाएंगे.


जुनैद का परिवार
Image captionजुनैद का परिवार

जून 2017 में ईद की ख़रीदारी कर लोकल ट्रेन में दिल्ली से अपने घर बल्लभगढ़ जा रहे 16 साल के जुनैद की हत्या कर दी गई थी. उस समय वह कुर्ता-पायजामा और टोपी पहने हुए थे. ट्रेन के सहयात्रियों से उनकी सीट को लेकर बहस हुई थी.
जाफ़राबाद में बाबुल उलूम नामक मदरसे में 250 से अधिक दिल्ली के बाहर के छात्र पढ़ते हैं. इन्हीं में से एक हैं मेवात (हरियाणा) के 15 वर्षीय अब्दुल्ला. अब्दुल्ला कहते हैं कि कपड़ों के कारण सफ़र के दौरान लोग उन्हें घूरते हैं.


अब्दुल्ला
Image captionअब्दुल्ला

वो कहते हैं, "मेट्रो में लोग टोपी देखकर कहते हैं कि देखो ये कहां जा रहे हैं. लोग मुंह भी फेर लेते हैं. ट्रेन में कई बार सीट पर से हमें उठा दिया गया है. मैं 26 जनवरी पर मदरसे में ही रहता हूं और यहां जो कार्यक्रम होता है उसी में शामिल होता हूं. मैं कहीं नहीं जाता हूं, न ही कहीं जाऊंगा."


मौलाना मोहम्मद दाऊद
Image captionमौलाना मोहम्मद दाऊद

देशभक्ति पर सवाल

"पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की जीत पर मुस्लिम मोहल्लों में पटाखे फूटते हैं. वो देशभक्त नहीं होते. उनमें पाकिस्तान के लिए प्यार भरा पड़ा है." व्हाट्सऐप पर शेयर की जाने वाली ये बातें आपने कभी न कभी किसी न किसी के मुंह से भी ज़रूर सुनी होंगी.
बाबुल उलूम मदरसे के प्रिंसिपल मौलाना मोहम्मद दाऊद सवाल करते हैं कि मुसलमानों से देशभक्त आख़िर कौन है.
वो कहते हैं, "देवबंद और उससे जुड़े सभी मदरसे बहुत पहले से गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर छुट्टी करते रहे हैं और वहां झंडा भी फहराया जाता है. हमारे रसूल मोहम्मद साहब का फ़रमान है कि जिस मुल्क़ में रहते हो उससे मोहब्बत करो. अगर कल सीमा पर ज़रूरत पड़ती है तो हम पहले होंगे जो वहां जाएंगे जान देने के लिए. और ये बेकार की बात है कि हम हुब्बुल वतनी (देशभक्ति) का सर्टिफ़िकेट मांगते फिरें."


लाल किले से जामा मस्जिद का नज़ाराइमेज कॉपीरइटAFP
Image captionलाल किले से जामा मस्जिद का नज़ारा

मुल्क़ के लिए दे सकते हैं जान

हालांकि, वो कहते हैं कि बीते चार-पांच साल में देश में नफ़रत का माहौल खड़ा हो गया है और इस दौरान कुछ मुट्ठी भर लोग नफ़रत फैला रहे हैं. वो राह चलते मदरसों के बच्चों को छेड़ देते हैं, उनकी दाढ़ी पर सवाल खड़े कर देते हैं, इसी के चलते देवबंद ने यह सलाह दी है.
वो कहते हैं, "देश में 95 फ़ीसदी ग़ैर-मुस्लिम भाई अच्छे हैं और अगर नफ़रत फैलाने वाले 90 फ़ीसदी हो जाएंगे तो यहां रहना मुश्किल हो जाएगा."
मौलाना दाऊद की ही तरह मौलाना हसीब का भी ऐसा ही मानना है. उनका कहना है कि उनके पूर्वज इसी ज़मीन में दफ़्न हैं तो वह किसी और देश को क्यों चाहेंगे.
हसीब कहते हैं, "हम इस मुल्क़ के लिए जान और माल दोनों दे सकते हैं. हुब्बुल वतनी का संदेश सिर्फ़ हदीसों से ही नहीं बल्कि क़ुरआन में भी मिलता है. मेरे साथ तक़रीबन 20 साल पहले दो जगहों पर मेरी दाढ़ी और पहनावे के कारण दुर्व्यवहार हुआ लेकिन मैं देश से ग़द्दारी किसी भी क़ीमत पर नहीं कर सकता और मैं यहीं रहूंगा."
2014 में मोदी सरकार बनने के बाद गायों की तस्करी के नाम पर कई मुसलमानों को पीटा गया. यहां तक की उनकी हत्या भी कर दी गई.
क़ारी अब्दुल जब्बार कहते हैं, "नबी मोहम्मद साहब का फ़रमान है कि कभी भी अपने बादशाह को बुरा न कहो."

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