अलीग आतंकवादी नहीं हैं सर अलीग भारत रत्न हैं, पदम भूषण हैं, पदम विभूषण हैं, पदम श्री हैं, सुप्रीम कोर्ट के जज हैं, वाइस चांसलर हैं, सेना में हैं, आफिस में हैं, बिजनेस में हैं, देश में हैं, विदेशों में हैं टीवी पर हैं अलीग विश्व के हर कोने में हैं और उभरते सितारे हैं अलीग। और एएमयू न हो गया तैमूर हो गया जिसके छींकने को भी ब्रेकिंग न्यूज बनाकर मीडिया सोचती होगी- हाये रे आज तो बहुत ही प्रोडक्टिव कर लिया हमारे चैनल ने। - रश्मि।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी : मीडिया की नज़रों से उलट मेरे अनुभव से।
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अलीगढ़, तालों का शहर, नालों का शहर, सपनों का शहर, डीलरों का शहर, चाय के नशेड़ियों का शहर, आशाओं का और आशावादियों का शहर। यहां दर्द हैं और हमदर्द भी, यहां रोग हैं और रोगी भी, यहीं बुद्धिजीवी हैं और लुटे हुए आशिक भी। ये सभी रोगी, बुद्धिजीवी, आशावादी और आशिक आपको यहां शाम में किसी भी चाय की टपरी पर चर्चाओं में लिप्त मिल जायेंगे। यहां की हवाओं में और अलीगों में चाय की खुशबू पाये जाने का दाबा वैज्ञानिक कर चुके हैं, अब ये अलीग कौन है? यही ना? चलिये बताती हूं, यहां एमयू में पढ़ने वालों को अलीग कहा जाता है। हैं? क्या कहा आपने? मीडिया हमें आतंकवादी कहती है? अरे।
फिर चलिये आपको पहले अपने ठिकाने की एक छवि देते हुए अपनी ज़िन्दगी के पांच सबसे ख़ूबसूरत सालों का ब्यौरा देती हूं।
एएमयू देश के सबसे पुरानी, ख़ूबसूरत एवं विवादित विश्वविद्यालयों में से एक उच्च कोटि का केंद्रीय विश्वविद्यालय है यह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर ब्रिटिश राज के समय बनाया गया पहला उच्च शिक्षण संस्थान था। यह विश्वविद्यालय 30,000 विद्यार्थियों समेत एक सेन्ट्रल लाइब्रेरी को समेटे हुए है मौलान आजाद लाइब्रेरी में 13.50 लाख पुस्तको के साथ तमाम दुर्लभ पांडुलिपियां भी मौजूद है और यह एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरीज़ में से एक है। यहां शेखी बघारने की ऐसी और भी कई चीजें हैं जो आप एएमयू के गहन अध्ययन के बाद जान जायेंगें क्योंकि ये सब बाते मीडिया के आकर्षण का केंद्र कभी से नहीं रही इसके लिये आपको यहां आना पड़ेगा इस विश्वविद्यालय को जीना पड़ेगा।
अब मैं कौन हूं? तो नमस्ते मैं एक अलीग हूं और मेरा नाम रश्मि है, मैं एएमयू में विधि संकाय की छात्रा हूं। मैं अपने जीवन के चौदह साल विद्या मंदिर में पढ़कर एएमयू आयी। यहां आना मेरे लिए उस वक़्त किसी सज़ा से कम नहीं था पर मेरे पिता ने मुझे किसी तरह यहां आने को राज़ी किया और मैं रोते पीटते, नाक मुंह सिकोड़ते यहां आ पहुंची। मेरे जैसे संस्कृत भाषी, सुबह उठते ही प्रातः स्मरण गाने वाले बालक के लिये ये कोई और ही देश था यहां ब्रह्ममुहूर्त, फज़र और सूर्यास्त, मग़रेब हुआ करते थे, जहां आप किसी भी कोने में हों पांच वक़्त की अज़ान आप तक पहुंच जाना निश्चित है, यहां घूंघट की जगह बुरख़े थे और दीदियों की जगह अप्पियों ने ले ली थी। मेरे लिए यह सब प्रोसेस कर पाना बहुत ही उथल-पुथल से भरा हुआ एक अजीब खूबसूरत अनुभव रहा। मेरे साथ एएमयू में एडमीशन से लेकर अब तक कई रोचक किस्से हुए जो सब बयां कर पाना असंभव है वैसे असंभव देखा जाये तो यह भी है कि मैं एएमयू को शब्दों में बयां कर पाऊं, असंभव तो यह बताना भी है कि इन पांच सालों ने मुझे क्या क्या दिया, कहां से कहां पहुंचा दिया कि आज मैं जो हूं जो तार्किक ढंग से चीज़ों को समझने की शक्ति मुझमें है वो यही है इसी की बदौलत। यहां आयी थी तो बस हिंदी और खड़ी बोली के अलावा कोई और माध्यम नहीं आता था, आज अंग्रेज़ी और उर्दू भी जानती हूं।
ख़ैर उर्दू से एक रोचक किस्सा याद आया जिससे शायद बहुत से लोग अनभिज्ञ हों-
यहां ग्रेजुएशन में एडमीशन के वक़्त अगर आप उर्दू बोर्ड को छोड़कर किसी भी अन्य बोर्ड से हैं तो आपको एलीमेन्ट्री उर्दू लेना कम्पलसरी है जिसका तीन सालों में एक बार ऐग्ज़ाम आपको क्लीयर करना होता है, अब मीडिया इससे पहले ये कहे कि यहां धर्म परिवर्तन की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं एडमीशन टाइम से तो मैं एक और रोचक बात बता दूं कि जो लोग उर्दू मीडियम या उर्दू बोर्ड से होते हैं उनको यहां एलीमेन्ट्री हिंदी लेना कम्पलसरी है। सार स्पष्ट है कि अगर एएमयू के ग्रेजुएट हैं आप तो आपको हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी आना प्रत्यक्ष है।
अब जब एडमीशन के वक्त मुझ संस्कृत भाषी को इस बात की जानकारी हुई मैने यहां पढ़ना सिरे से ख़ारिज कर दिया, पर फिर मेरे पिता के इमोशनल अत्याचार और कुछ नकाबपोश सीनियरों के मुझे उर्दू पढ़ा देने के आश्वासन के बाद मैं यहां आ गयी। मुझे उर्दू का अलिफ़ भी नही आता था पर मेरी सबसे अज़ीज़ या फिर मेरी दूसरी मां कह लीजिये Tuba के मेरे पीछे की गई मेहनत से और मेरा एक नयी भाषा सीखने की लगन के चलते साल के अंत में मुझे उस विषय में 74 नंबर मिले थे।( शुद्ध शेखी)
ख़ैर आज पांच साल से मैं यहां पढ़ रही हूँ, इन पांच सालों में एएमयू से हज़ारों विद्यार्थियों निकलते देखा, एलुमनाई मीट में गर्व से अपनी कामयाबी के किस्से सुनाते देखा, एएमयू को दूसरे नम्बर पर आते देखा, सर सय्यद डे देखे, एएमयू को विकसित होते देखा, सिरे से गिरते हुए देखा और फिर उसी गति से और तेज के साथ उठते देखा, जिन्ना के विवाद को देखा, पाॅलिटिशियन्स का वोट बैंक बनते देखा, क्षेत्रवाद देखा और देखी गंगा जमुना संस्कृति, गांधी के सपने को साकार करते भारतीय अलीग, हर त्यौहार को उसी जुनून से मनाने वाले दोस्तों की टुकड़ियां और जाना पांच सालो में मैने जीवन का सार-
इंसान न किसी धर्म का होता है न जाति का, न क्षेत्र का, न भाषा का, वह अपने कर्मों का होता है और इस तरह बस दो किस्म के इंसान भगवान ने बनाये हैं अच्छे इंसान और बुरे इंसान। ये अच्छे बुरे इंसान आपको हर जगह, हर क्षण, हर गली कूंचे में मिल जायेंगे।
तो अलीग आतंकवादी नहीं हैं सर अलीग भारत रत्न हैं, पदम भूषण हैं, पदम विभूषण हैं, पदम श्री हैं, सुप्रीम कोर्ट के जज हैं, वाइस चांसलर हैं, सेना में हैं, आफिस में हैं, बिजनेस में हैं, देश में हैं, विदेशों में हैं टीवी पर हैं अलीग विश्व के हर कोने में हैं और उभरते सितारे हैं अलीग।
और एएमयू न हो गया तैमूर हो गया जिसके छींकने को भी ब्रेकिंग न्यूज बनाकर मीडिया सोचती होगी- हाये रे आज तो बहुत ही प्रोडक्टिव कर लिया हमारे चैनल ने।
- रश्मि।
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2252550971699788&id=100008347217667
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अलीगढ़, तालों का शहर, नालों का शहर, सपनों का शहर, डीलरों का शहर, चाय के नशेड़ियों का शहर, आशाओं का और आशावादियों का शहर। यहां दर्द हैं और हमदर्द भी, यहां रोग हैं और रोगी भी, यहीं बुद्धिजीवी हैं और लुटे हुए आशिक भी। ये सभी रोगी, बुद्धिजीवी, आशावादी और आशिक आपको यहां शाम में किसी भी चाय की टपरी पर चर्चाओं में लिप्त मिल जायेंगे। यहां की हवाओं में और अलीगों में चाय की खुशबू पाये जाने का दाबा वैज्ञानिक कर चुके हैं, अब ये अलीग कौन है? यही ना? चलिये बताती हूं, यहां एमयू में पढ़ने वालों को अलीग कहा जाता है। हैं? क्या कहा आपने? मीडिया हमें आतंकवादी कहती है? अरे।
फिर चलिये आपको पहले अपने ठिकाने की एक छवि देते हुए अपनी ज़िन्दगी के पांच सबसे ख़ूबसूरत सालों का ब्यौरा देती हूं।
एएमयू देश के सबसे पुरानी, ख़ूबसूरत एवं विवादित विश्वविद्यालयों में से एक उच्च कोटि का केंद्रीय विश्वविद्यालय है यह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर ब्रिटिश राज के समय बनाया गया पहला उच्च शिक्षण संस्थान था। यह विश्वविद्यालय 30,000 विद्यार्थियों समेत एक सेन्ट्रल लाइब्रेरी को समेटे हुए है मौलान आजाद लाइब्रेरी में 13.50 लाख पुस्तको के साथ तमाम दुर्लभ पांडुलिपियां भी मौजूद है और यह एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरीज़ में से एक है। यहां शेखी बघारने की ऐसी और भी कई चीजें हैं जो आप एएमयू के गहन अध्ययन के बाद जान जायेंगें क्योंकि ये सब बाते मीडिया के आकर्षण का केंद्र कभी से नहीं रही इसके लिये आपको यहां आना पड़ेगा इस विश्वविद्यालय को जीना पड़ेगा।
अब मैं कौन हूं? तो नमस्ते मैं एक अलीग हूं और मेरा नाम रश्मि है, मैं एएमयू में विधि संकाय की छात्रा हूं। मैं अपने जीवन के चौदह साल विद्या मंदिर में पढ़कर एएमयू आयी। यहां आना मेरे लिए उस वक़्त किसी सज़ा से कम नहीं था पर मेरे पिता ने मुझे किसी तरह यहां आने को राज़ी किया और मैं रोते पीटते, नाक मुंह सिकोड़ते यहां आ पहुंची। मेरे जैसे संस्कृत भाषी, सुबह उठते ही प्रातः स्मरण गाने वाले बालक के लिये ये कोई और ही देश था यहां ब्रह्ममुहूर्त, फज़र और सूर्यास्त, मग़रेब हुआ करते थे, जहां आप किसी भी कोने में हों पांच वक़्त की अज़ान आप तक पहुंच जाना निश्चित है, यहां घूंघट की जगह बुरख़े थे और दीदियों की जगह अप्पियों ने ले ली थी। मेरे लिए यह सब प्रोसेस कर पाना बहुत ही उथल-पुथल से भरा हुआ एक अजीब खूबसूरत अनुभव रहा। मेरे साथ एएमयू में एडमीशन से लेकर अब तक कई रोचक किस्से हुए जो सब बयां कर पाना असंभव है वैसे असंभव देखा जाये तो यह भी है कि मैं एएमयू को शब्दों में बयां कर पाऊं, असंभव तो यह बताना भी है कि इन पांच सालों ने मुझे क्या क्या दिया, कहां से कहां पहुंचा दिया कि आज मैं जो हूं जो तार्किक ढंग से चीज़ों को समझने की शक्ति मुझमें है वो यही है इसी की बदौलत। यहां आयी थी तो बस हिंदी और खड़ी बोली के अलावा कोई और माध्यम नहीं आता था, आज अंग्रेज़ी और उर्दू भी जानती हूं।
ख़ैर उर्दू से एक रोचक किस्सा याद आया जिससे शायद बहुत से लोग अनभिज्ञ हों-
यहां ग्रेजुएशन में एडमीशन के वक़्त अगर आप उर्दू बोर्ड को छोड़कर किसी भी अन्य बोर्ड से हैं तो आपको एलीमेन्ट्री उर्दू लेना कम्पलसरी है जिसका तीन सालों में एक बार ऐग्ज़ाम आपको क्लीयर करना होता है, अब मीडिया इससे पहले ये कहे कि यहां धर्म परिवर्तन की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं एडमीशन टाइम से तो मैं एक और रोचक बात बता दूं कि जो लोग उर्दू मीडियम या उर्दू बोर्ड से होते हैं उनको यहां एलीमेन्ट्री हिंदी लेना कम्पलसरी है। सार स्पष्ट है कि अगर एएमयू के ग्रेजुएट हैं आप तो आपको हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी आना प्रत्यक्ष है।
अब जब एडमीशन के वक्त मुझ संस्कृत भाषी को इस बात की जानकारी हुई मैने यहां पढ़ना सिरे से ख़ारिज कर दिया, पर फिर मेरे पिता के इमोशनल अत्याचार और कुछ नकाबपोश सीनियरों के मुझे उर्दू पढ़ा देने के आश्वासन के बाद मैं यहां आ गयी। मुझे उर्दू का अलिफ़ भी नही आता था पर मेरी सबसे अज़ीज़ या फिर मेरी दूसरी मां कह लीजिये Tuba के मेरे पीछे की गई मेहनत से और मेरा एक नयी भाषा सीखने की लगन के चलते साल के अंत में मुझे उस विषय में 74 नंबर मिले थे।( शुद्ध शेखी)
ख़ैर आज पांच साल से मैं यहां पढ़ रही हूँ, इन पांच सालों में एएमयू से हज़ारों विद्यार्थियों निकलते देखा, एलुमनाई मीट में गर्व से अपनी कामयाबी के किस्से सुनाते देखा, एएमयू को दूसरे नम्बर पर आते देखा, सर सय्यद डे देखे, एएमयू को विकसित होते देखा, सिरे से गिरते हुए देखा और फिर उसी गति से और तेज के साथ उठते देखा, जिन्ना के विवाद को देखा, पाॅलिटिशियन्स का वोट बैंक बनते देखा, क्षेत्रवाद देखा और देखी गंगा जमुना संस्कृति, गांधी के सपने को साकार करते भारतीय अलीग, हर त्यौहार को उसी जुनून से मनाने वाले दोस्तों की टुकड़ियां और जाना पांच सालो में मैने जीवन का सार-
इंसान न किसी धर्म का होता है न जाति का, न क्षेत्र का, न भाषा का, वह अपने कर्मों का होता है और इस तरह बस दो किस्म के इंसान भगवान ने बनाये हैं अच्छे इंसान और बुरे इंसान। ये अच्छे बुरे इंसान आपको हर जगह, हर क्षण, हर गली कूंचे में मिल जायेंगे।
तो अलीग आतंकवादी नहीं हैं सर अलीग भारत रत्न हैं, पदम भूषण हैं, पदम विभूषण हैं, पदम श्री हैं, सुप्रीम कोर्ट के जज हैं, वाइस चांसलर हैं, सेना में हैं, आफिस में हैं, बिजनेस में हैं, देश में हैं, विदेशों में हैं टीवी पर हैं अलीग विश्व के हर कोने में हैं और उभरते सितारे हैं अलीग।
और एएमयू न हो गया तैमूर हो गया जिसके छींकने को भी ब्रेकिंग न्यूज बनाकर मीडिया सोचती होगी- हाये रे आज तो बहुत ही प्रोडक्टिव कर लिया हमारे चैनल ने।
- रश्मि।
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