झूठ या सच ! क्या पीएम मोदी ने वाक़ई ज़्यादा एयरपोर्ट बनाए? जरूर जानें
अपने देश में सबसे अधिक एयरपोर्ट बनाने का भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दावा क्या वाक़ई में सच है?
प्रधानमंत्री ने बीते सप्ताह ट्वीट किया कि भारत में अब 100 हवाईअड्डे हैं और बीते चार सालों में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद 35 हवाईअड्डे पूरी तरह बनकर तैयार हुए हैं.
विपक्षी पार्टियों पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा था, "आज़ादी के 67 साल बाद, 2014 तक भारत में केवल 65 हवाईअड्डे ही थे. इसका मतलब है कि हर साल मात्र एक हवाईअड्डा बनाया गया."
इस आंकड़ों को देखें तो लगता है कि मौजूदा प्रशासन में हवाईअड्डे बनाने का काम तेज़ी से हुआ है और हर साल औसतन 9 हवाईअड्डे बनाए गए हैं.
लेकिय क्या आधिकारिक आंकड़े भी प्रधानमंत्री के इन दावों की पुष्टि करते हैं?
उपभाक्ताओं की बढ़ती मांग
भारत में नागरिक विमान उड्डयन के बुनियादी ढ़ांचे के विकास के लिए एयरपोर्ट ऑथारिटी ऑफ़ इंडिया ज़िम्मेदार है. इसकी वेबसाइट पर मौजूद सूची के अनुसार भारत में कुल 101 एयरपोर्ट हैं.
भारत में देश के भीतर आने-जाने वाले हवाई यातायात पर विनियामक के तौर पर नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) नज़र रखता है. इसकी रिपोर्ट के अनुसार देश में 13 मार्च 2018 तक 101 घरेलू एयरपोर्ट हैं.
लेकिन अगर हम इससे पहले के वक्त पर नज़र डालें तो तस्वीर धुंधली होती जाती है.
घरेलू हवाईअड्डों की संख्या के संबंध में डीजीसीए के आंकड़े बताते हैं -
- साल 2015 में भारत में 95 हवाईअड्डे थे जिनमें से 31 काम नहीं कर रहे थे यानी "नॉन ऑपरेशनल" थे.
- साल 2018 में देश में कुल 101 हवाईअड्डे हैं जिनमें से 27 "नॉन ऑपरेशनल" हैं.
इसका मतलब है कि 2015 के बाद से भारत में केवल 6 नए हवाईअड्डे बन कर तैयार हुए हैं या फिर हम कह सकते हैं कि और काम करने वाले यानी "ऑपरेशनल" हवाईअड्डे की संख्या 10 हो गई.
ये आंकड़ा प्रधानमंत्री मोदी के 2014 के बाद से 35 हवाईअड्डे बनाने के दावे से काफ़ी कम है.
इसी महीने दिल्ली में एक विमानन से जुड़े एक सम्मेलन में इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) के प्रमुख ऐलेक्ज़ेडर डी ज्यूनियैक ने हवाईअड्डे बनाने की भारत की कोशिशों की तारीफ की थी.
उन्होंने कहा था, "बीते एक दशक में भारत में हवाईअड्डों के बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में जो विकास हुआ है वो आश्चर्यजनक है."
ऐलेक्ज़ेडर डी ज्यूनियैक ने जिस एक दशक की बात की है उसमें साल 2014 के बाद का वो वक्त भी आता है जब मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आई.
यहां पर ये कहना ज़रूरी है कि मौजूदा सरकार के बीते चार साल के कार्यकाल में जो नए हवाईअड्डे खोले गए हैं उनका काम उनसे पहले की सरकार ने शुरु किया होगा, भले ही उन्हें पूरा करने का काम और उनका उद्घाटन मौजूदा प्रशासन में हुआ.
यूके के लॉफ़बोरो विश्वविद्यालय में हवाई परिवहन के बुनियादी ढांचे संबंधी मामलों की जानकार लूसी बड कहती हैं, "एयरपोर्ट बनाने के लिए उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग का आकलन करना, इसके लिए ज़रूरी ज़मीन के अधिग्रहण करना और फिर काम शुरु करने के लिए ज़रूरी धन जुटाना होता है. इसका मतलब है कि एयरपोर्ट बनाने के लिए कई सालों पहले से योजना बनानी होती है."
बढ़ रहे हैं हवाई यात्रा के प्रशंसक
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत को अपनी एयरपोर्ट क्षमता और अधिक बढ़ाने की ज़रूरत है, और विमानन क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का और विस्तार करने की मौजूदा बीजेपी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं भी हैं.
बीते साल सरकार ने टू-टियर शहरों यानी छोटे शहरों को हवाई रास्तों और बड़े शहरों से जोड़ने के लिए "उड़ान" योजना शुरु की.
इस साल की शुरुआत में विमानन मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि भारत को साल 2035 तक 150 से 200 एयरपोर्ट की ज़रूरत होगी. बीते दो दशकों से अधिक के वक़्त में भारत ने अपने विमानन को विदेशी निवेश के लिए खोला है.
यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है और देश में हवाई सेवाएं देने वाली कंपनियों के बीच भी प्रतिस्पर्धा है जिसके कारण हाल के सालों में हवाई यात्रा की क़ीमतों में भी गिरावट देखी गई है.
अधिक वक़्त लेने और आरामदेह ना होने के बवजूद भी अनेक भारतीय अब भी लंबी दूरी की यात्रा के लिए रेल को ही पसंद करते हैं क्योंकि ये सस्ता है.
हालांकि, लुसी बड कहती हैं, "भारत में मध्यवर्ग के ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जिनके पास ख़र्च करने के लिए अधिक धन है और वो वक़्त को अधिक महत्व देते हैं. उनकी बढ़ती मांग के कारण घरेलू हवाई मार्गों के विकास को भी प्रोत्साहन मिल रहा है."
सच कहा जाए तो देश की राजधानी दिल्ली और उसकी आर्थिक राजधानी मुंबई के बीच दो घंटे का हवाई रास्ता अब दुनिया का सबसे व्यस्त रास्ता बन गया है.
मौजूदा क्षमता को बढ़ाना होगा
आईएटीए के मुताबिक़ आने वाले 20 सालों में भारत में हर साल हवाई मार्ग से यात्रा करने वालों की संख्या 50 करोड़ से अधिक हो जाएगी.
लेकिन हाल में आई इसकी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हवाईअड्डे की संख्या (हर 10 लाख व्यक्ति की हवाईअड्डे पर एयरपोर्ट की संख्या) के मामले में भारत की रैंकिंग कम है.
आईएटीए के अनुसार इस क्षेत्र की क्षमता का पूर विकास करने के लिए, "सही समय पर और सही जगह पर, सही प्रकार के बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी."
वास्तव में, कुछ जानकारों का मानना है कि यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी का आलम कुछ ऐसा है कि भविष्य में बड़े शहरों को दूसरे हवाईअड्डे की आवश्यकता होगी.
विमानन मुद्दों पर सलाह देने वाले समूह सीएपीए के दक्षिण एशिया निदेशक विनीत सोमैया कहते हैं, "2030 तक भारत के सभी छह बड़े शहरों को दूसरे हवाईअड्डे की ज़रूरत होगी. तब तक शायद मुंबई को तीसरे हवाईअड्डे की ज़रूरत पड़ जाए."
"और वास्तव में भारत के अन्य बड़े शहरों में सभी मौजूद 40 बड़े हवाईअड्डे भी अपनी पूरी क्षमता में चल रहे होंगे और उनकी क्षमता को और बढ़ाने की ज़रूरत होगी."
इस साल की शुरुआत में आई सीएपीए की एक रिपोर्ट में ये अनुमान लगाया गया है कि "2022 तक भारत की हवाईअड्डों की व्यवस्था अपने बुनियादी क्षमता से अधिक का भार संभाल रही होगी."
हालांकि इस रिपोर्ट के अनुसार, "2016 के बाद से एयरपोर्ट की क्षमता बढ़ाने के लिए पुनरुद्धार के काम ने तेज़ी पकड़ी है."
नए हवाईअड्डे बनाने की योजना के साथ-साथ मौजूदा हवाईअड्डों का विस्तार करने और इनके लिए धन की व्यवस्था करने के नई तरीकों को भी विकसित किया जा रहा है.
बीबीसी न्यूज़ से साभार ।
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