Skip to main content

क्या आधार डेटा चोरी कर चुनाव में राजनीतिक फ़ायदा उठाया जा सकता है?: लोकसभा चुनाव 2019


आधारइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लगभग आठ करोड़ लोगों के आधार डेटा चोरी होने की ख़बर ने एक बार फिर आधार के सुरक्षित होने पर सवालिया निशान खड़े कर दिए.
आरोप लगाए गए हैं कि ये आधार डेटा सेवा मित्र नामक मोबाइल एप के ज़रिए चोरी किए गए. यह मोबाइल ऐप तेलुगू देशम पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए बनाया है.
मामले की गंभीरता को देखते हुए आधार जारी करने वाली एजेंसी भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने तेलंगाना पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई है.
तेलंगाना पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने यूआईडीएआई के पास अपनी जो रिपोर्ट पेश की है उसके आधार पर यूआईडीएआई के डिप्टी डायरेक्टर ने हैदराबाद में माधेपुर पुलिस के पास एफ़आईआर दर्ज़ करवाई है.
तेलंगाना पुलिस की एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर यूआईडीएआई ने मामले की जांच की अपील की है.
यूआईडीएआई की ओर से दर्ज़ शिकायत में बताया गया है, ''हमें 2 मार्च 2019 को एक शिकायत प्राप्त हुई जिसमें बताया गया कि आंध्र प्रदेश सरकार ने सेवा मित्र ऐप के ज़रिए सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों, वोटर आईडी और आधार की जानकारी जुटाई और उनका ग़लत इस्तेमाल किया. जांच के दौरान हमने पाया कि ऐप के ज़रिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोगों के वोटर आईडी और आधार की जानकारियां इकट्ठा की गई थीं. अपने तलाशी अभियान के दौरान हमने आईटी ग्रिड्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के परिसर से चार हार्ड डिस्क बरामद की. उन हार्ड डिस्क को तेलंगाना फ़ॉरेंसिक साइंस लैब में जांच के लिए भेजा गया. जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि इन चार हार्ड डिस्क में अच्छी खासी संख्या में लोगों के आधार कार्ड की जानकारियां थीं. शिकायतकर्ता लोकेश्वर रेड्डी सहित कई लोगों की जानकारियां उन हार्ड डिस्क में मिली. हमारा मानना है कि इस तमाम डेटा को या तो केंद्रीय पहचान डेटा कोष या फिर राज्य डेटा रेजिडेंट हब से हटा दिया गया है.''
आधार नियम 2016 के अनुसार यह अनुच्छेद 38(जी) और 38(एच) के तहत डेटा चोरी का अपराध है. इसके साथ ही सूचना क़ानून 2000 की धारा 29(3) के अनुसार सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों का डेटा निकालना भी अपराध है.
इसके अलावा कोई प्राइवेट कंपनी आधार का डेटा नहीं निकाल सकती. आधार नियम की धारा 65, 66(बी) और 72(ए) के अनुसार यह ग़ैरक़ानूनी है.

शिकायत

यूआईडीएआई की शिकायत में यह आरोप भी लगाया गया है कि आधार का डेटा ग़लत तरीके से निकालने के बाद उसे अमेज़न के वेब प्लेटफॉर्म में रखा गया था.

आधारइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

तेलंगाना एसआईटी के प्रमुख स्टीफन रविंद्र ने बीबीसी तेलुगू को बताया, ''यह मामला हमें साइबराबाद पुलिस के ज़रिए मिला. इसका मुख्य आरोपी अशोक दकावरम अभी फ़रार है और हम उसकी तलाश कर रहे हैं. एक बार वो हमारी पकड़ में आ जाए तो हम यह पता लगाएंगे कि उन्होंने यह आधार डेटा कहां से प्राप्त किया. हम अपनी जांच जारी रखेंगे.''
स्टीफन रविंद्र ने कहा, ''उन्होने सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के आधार और वोटर आईडी का डेटा निकाला. शिकायतकर्ता ने बताया था कि डेटा के आधार पर वो वोटर की राजनीतिक इच्छा को भी जांचते और उसके बाद जो लोग टीडीपी को वोट देने वालों की सूची में नहीं होते उनके नाम वोटर लिस्ट से ही हटा दिया जाता. हम इस मामले की जांच भी कर रहे हैं.''
तेलंगाना एसआईटी ने आंध्र प्रदेश के अन्य विभागों को भी इस संबंध में पत्र लिखा है और उनसे स्पष्टिकरण मांगा. स्टीफन रविंद्र ने बताया कि अभी छह विभागों की तरफ से जवाब मिलना बाकी है.
आंध्र प्रदेश के तकनीकि सलाहकार वेमुरी हरि कृष्णा ने बीबीसी को बताया कि एफ़आईआर की कॉपी अच्छे तरीके से देखने पर कई सवालों के जवाब मिल जाते हैं.

डेटा चोरी होने का जिक्र नहीं

वो कहते हैं कि यूआईडीआईए ने कहीं पर भी डेटा चोरी होने का ज़िक्र नहीं किया है.
हरि कृष्णा ने कहा, ''तेलंगाना पुलिस ने अपने अधिकारी क्षेत्र से बाहर जाते हुए 23 फ़रवरी से आईटी ग्रिड कंपनी पर ग़ैरक़ानूनी छापे मारे. इन छापों के बाद उन्होंने सिर्फ़ 2 मार्च का मामला ही रिपोर्ट किया, वो लगातार ग़ैरक़ानूनी छापे मारते रहे और इसे छिपाने के लिए उन्होंने आधार का मामला सामने रख दिया. वो मीडिया और आम जनता को गुमराह करना चाहते हैं.''

वेमुरू हरि कृष्णाइमेज कॉपीरइटVEMURI HARIKRISHNA /FACEBOOK
Image captionवेमुरू हरि कृष्णा

वेमुरी हरि कृष्णा ने दावा किया, ''आईटी ग्रिड के पास किसी तरह के आधार से जुड़ा डेटा नहीं था. और अगर कोई डेटा रहा भी होगा तो वह तेलुगू देशम पार्टी की सदस्यता के दौरान जुटाया गया डेटा होगा. हमने सदस्यता देते वक़्त लोगों ने उनके अलग-अलग पहचान पत्र मांगे थे.''
उन्होंने बताया कि बाद में उन्होंने सदस्यता के लिए अलग-अलग पहचान पत्रों की जगह वोटर आईडी कार्ड को ही पहचान पत्र के प्रमाण के तौर पर मानना शुरू कर दिया.
हरि कृष्णा वायएसआरसीपी पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने चुनाव आयोग में फॉर्म-7 भरा है.
फॉर्म-7 असल में एक अपीलीय पत्र होता है जिसके ज़रिए किसी व्यक्ति के कहीं जाने या फिर मृत्यु होने से उसके नाम को निर्वाचक सूची में जोड़ा या हटाया जाता है.
हरि कृष्णा कहते हैं, ''जगनमोहन रेड्डी ने नेल्लोर की एक आम सभा में खुद यह कहा कि उनकी पार्टी ने फॉर्म-7 की अपील दायर की है. तो ऐसे में यह सवाल कैसे उठता है कि हम वोटरों के नाम काट रहे हैं. जो मामला दर्ज़ हुआ है वह ग़लत है. हमने बैंक खातों से जानकारियां नहीं जुटाई हैं. अगर उनके पास इन आरोपों को साबित करने के लिए सबूत हैं तो वे पेश करें.''

कार्रवाई की मांग

हालांकि वायएसआरसीपी के विधायक गडिकोटा श्रीकांत रेड्डी ने टीडीपी के ख़िलाफ़ कदम उठाने की मांग की है.

सेवा मित्र एपइमेज कॉपीरइटGOOGLE PLAY STORE
Image captionसेवा मित्र एप

उन्होंने कहा, ''सेवा मित्र ऐप को चलाने के लिए डेटा चोरी किया गया. यह बिलकुल ग़लत है. ना सिर्फ आधार डेटा बल्की वोटरों की रंगीन आईडी भी ली गई. कई लोगों के बैंक खातों की जानकारियां ली गईं. इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की जानी चाहिए.''
आंध्र प्रदेश के चुनाव निगरानी संयोजक वी वी राव ने इस बात पर अफ़सोस जताया कि कोई भी सरकार के इस तरह की संवेदनशील जानकारियों पर नियंत्रण नहीं रख पाती. उन्होंने कहा कि सिर्फ आधार डेटा ही नहीं सरकारी एजेंसियों से भी कई जानकारियां चोरी होने की सूचना मिलती है.
उन्होंने कहा कि यह सब प्राइवेट संस्थानों के हाथों में आम नागरिकों की निजता की जानकारी सौंप देने का ही परिणाम है.
ये भी पढ़ेंः

Comments

Popular posts from this blog

#Modi G ! कब खुलेंगी आपकी आंखें ? CAA: एक हज़ार लोगों की थी अनुमति, आए एक लाख-अंतरराष्ट्रीय मीडिया

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"