असम : रिटायर्ड सैनिक सनाउल्लाह के खिलाफ़ जांच करने वाले अधिकारी के खिलाफ़ मामला दर्ज
भारतीय सेना को 30 साल सेवा देने वाले रिटायर्ड सूबेदार मोहम्मद सनाउल्लाह करीब एक हफ़्ते से असम के एक डिटेंशन सेंटर में हैं.
उन्हें 23 मई फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल (एफ़टी) अदालत ने विदेशी नागरिक घोषित कर दिया था.
अब सनाउल्लाह मामले के जांच अधिकारी चंद्रमल दास के खिलाफ़ पुलिस ने मामला दर्ज किया है. जिन कथित गवाहों के आधार पर वो रिपोर्ट तैयार की गई, उनका कहना है कि उन्होंने कभी गवाही दी ही नहीं.
साल 2017 में सेना से रिटायर होने के बाद 52 वर्ष के सनाउल्लाह असम पुलिस की बॉर्डर विंग में सब-इंस्पेक्टर के तौर पर काम कर रहे थे.
जोधपुर, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, सिकंदराबाद, गुवहाटी, पंजाब, मणिपुर जैसी जगहों पर अपनी सेवाएं देने वाले और 2017 में रिटायर हुए मोहम्मद सनाउल्लाह का नाम पिछली साल जारी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की पहली ड्राफ़्ट सूची में नहीं था जिसके बाद उन्हें नोटिस जारी किया गया और मामला फ़ॉरेनर्स ट्राइब्यूनल पहुंचा.
फिर उन्हें गिरफ़्तार कर डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया.
बैकग्राउंड
ऐतिहासिक और आर्थिक कारणों से असम में गैर-कानूनी आप्रवासन एक ज्वलंत मुद्दा रहा है.
राज्य में मार्च 1971 के पहले से रह रहे लोगों को रजिस्टर में जगह मिली है, जबकि उसके बाद आए लोगों के नागरिकता दावों को संदिग्ध माना गया है.
मोदी सरकार के मुताबिक इलाके में रहने वाले अवैध मुस्लिम आप्रवासियों को वापस भेजा जाए. लेकिन उन्हें वापस कहां भेजा जाए ये साफ़ नहीं है क्योंकि बांग्लादेश की तरफ़ से इस बारे में कोई इशारे नहीं मिले हैं कि वो भारत से आने वाले लोगों को लेने के लिए तैयार हैं.
असम में रह रहे करीब 40 लाख लोगों का नाम एनआरसी की पहली सूची में शामिल नहीं था जिसके बाद उन्हें और दस्तावेज़ दाखिल करने के लिए वक्त दिया गया.
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असम की करीब सवा तीन करोड़ की जनसख्या में एक तिहाई मुसलमान हैं.
इस बीच जिस पुलिस अधिकारी चंद्रमल दास की जांच रिपोर्ट के आधार पर सनाउल्लाह को डिटेंशन केंद्र भेजा गया, पुलिस ने उनके खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है.
मामला
मोहम्मद सनाउल्लाह के खिलाफ़ 2008-09 के मामले में तीन कथित गवाहों का बयान और मोहम्मद सनाउल्लाह का कथित इकबालिया है.
ये तीनों कथित गवाह सनाउल्लाह के गांव के रहने वाले स्थानीय लोग हैं जिन्होंने 10 साल पुरानी जांच रिपोर्ट के मुताबिक कथित तौर पर कहा कि उन्हें पता नहीं कि सनाउल्लाह कहां के रहने वाले हैं.
अब इन्हीं तीनों - कुरान अली, सोबाहान अली और अमजद अली - का कहना है कि उन्होंने मामले के जांच अधिकारी चंद्रमल दास से कभी बात नहीं की.
असम के कामरूप ज़िले के अतिरिक्त पुलिस निरीक्षक (हेडक्वार्टर) संजीब कुमार सैकिया के मुताबिक, "इन तीनो लोगों ने एफ़आईआर में आरोप लगाया है कि मामले के जांच अधिकारी चंद्रमल दास ने उनके नामों का दुरुपयोग किया, उनके नकली हस्ताक्षर किए... हमें उन गवाहों के हस्ताक्षरों को क्रॉसचेक करना होगा, उन्हें जांच लैब में भेजना होगा, दूसरे साक्ष्यों के भी स्टेटमेंट लेने होंगे. उसके बाद ही असलियत का पता चलेगा."
चंद्रमल दास पिछले साल रिटायर हो चुके हैं लेकिन 23 मई के फॉरेनर्स ट्राइब्यूनल (एफ़टी) अदालत के फ़ैसले के बाद समाचार चैनल एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति की उन्होंने जांच की वो सनाउल्लाह थे, न कि मोहम्मद सनाउल्लाह, इसलिए ये प्रशासनिक भूलचूक का मामला है.
सनाउल्लाह, कुरान अली, सोबाहान अली और अमजद अली, ये सभी असम के कामरूप ज़िले में कलाहीकाश गांव के रहने वाले हैं.
शुरुआती 'जांच'
मामले के दस्तावेज़ 2008-09 के हैं. लेकिन मोहम्मद सनाउल्लाह के खिलाफ़ असम पुलिस बॉर्डर ऑर्गनाइज़ेशन की जांच आखिर क्यों शुरू हुई, ये साफ़ नहीं हैं.
1962 में बनी असम पुलिस बॉर्डर ऑर्गनाइज़ेशन का शुरुआती काम था पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ को रोकना.
जानकार बताते हैं बहुत से मामलों में बॉर्डर पुलिस खुद ही जांच शुरू कर देती है.
असम के हर पुलिस स्टेशन में असम पुलिस बॉर्डर ऑर्गनाइज़ेशन की एक यूनिट मौजूद रहती है.
इस टीम के पास पासपोर्ट की जांच, नागरिकता के दस्तावेज़ों की जांच जैसे काम होते हैं.
असमिया भाषा में लिखे 2008-09 के सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक कलाहीकाश गांव के रहने वाले कुरान अली, सोबाहान अली और अमजद अली ने कथित तौर पर कहा कि उन्हें नहीं पता कि मोहम्मद सनाउल्लाह कहां के रहने वाले हैं.
अमजद अली ने कथित तौर पर कहा, "मोहम्मद अली (सनाउलाह के पिता) हमारे इलाके के नहीं हैं, इसलिए इनकी नागरिकता के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है."
कुरान अली ने कथित तौर पर कहा, "सनाउल्लाह हमारे गांव के स्थायी निवासी नहीं हैं."
सोबाहान अली ने भी कथित तौर पर लगभग यही कहा.
लेकिन अब इन तीनों का कहना है कि उन्होंने जांच अधिकारी चंद्रमल दास से कभी बात नहीं की.
बीबीसी से बातचीत में 65 साल के कुरान अली ने कहा, "मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है. न मैं उनसे कभी मिला हूं. ये बयान कहां से आए वो चंद्रमल दास ही जानते हैं. 2008-09 के दौरान मैं गौहाटी में था... 1981-2014 तक मैंने वाटर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में चपरासी की नौकरी की.... मैं सनाउल्लाह को 1985 से जानता हूँ... वो बहुत अच्छे लोग हैं."
मोहम्मद सनाउल्लाह का घर कुरान अली के घर से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर है.
सोबाहान अली का भी यही कहना है.
पेशे से किसान 68 वर्ष के सोबाहान अली कहते हैं, "उनके साथ हमारे घर जैसे संबंध हैं. हम (उनके खिलाफ़) क्यों केस करेंगे. हमारा घर उनसे एक किलोमीटर की दूरी पर है. मैं चंद्रमल दास से कभी मिला. न कभी उनका नाम सुना. हमें बयान के बारे में पता भी नहीं."
कथित इकबालिया बयान
आधिकारिक दस्तावेज़ों में मोहम्मद सनाउल्लाह का कथित इकबालिया बयान भी है जिसमें उन्होंने कहा कि उनका जन्म ढाका के कासिमपुर गांव में हुआ, "वहां के थाने का नाम मुझे पता नहीं है. मेरे पिता जन्म यहीं हुआ था, मेरा जन्म भी यहीं हुआ था... मेरे अपने नाम पर कोई ज़मीन नहीं है. मैं लिख-पढ़ नही सकता हूँ... मेरे जांच अधिकारी ने मेरी नागरिकता के बारे में मुझसे दस्तावेज़ मांगे हैं लेकिन मैं उन्हें कोई दस्तावेज़ नहीं दे पा रहा हूँ."
मोहम्मद सनाउल्लाह के परिवार के मुताबिक उन्होंने कभी ये कथित इकबालिया बयान दिया ही नहीं.
उनकी बेटी शहनाज़ अख़्तर के मुताबिक पिछले साल 2018 में उनके पिता को जब पता चला कि उनका एनआरसी की पहली ड्रॉफ़्ट सूची में नहीं है तो वो एनआरसी केंद्र गए और तब उन्हें अपने ऊपर चल रही 10 साल पुरानी जांच के बारे में पता चला.
वो कहती हैं, "उससे पहले उन्हें अपने बारे में चल रही जांच के बारे में पता ही नहीं था... जब उन्हें इस बारे में पता चला तो वो भौंचक्के रह गए."
मोहम्मद सनाउल्लाह के वकील मामले को गुवहाटी हाई कोर्ट ले गए और सुनवाई सात जून को है.
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