नृत्य से मरुस्थल में जान फूंकने वाले 'क्वीन हरीश' की मौत
'क्वीन हरीश' के नाम से मशहूर राजस्थान के लोक कलाकार हरीश की रविवार को एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई.
हरीश अपनी कला यात्रा के लिए जैसलमेर से निकले और जयपुर के रास्ते पर थे. इसी बीच रविवार को जोधपुर ज़िले में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई. इस हादसे में तीन अन्य लोगों की भी मौत हुई है.
38 साल के हरीश ने राजस्थान के पारम्परिक नृत्यों की प्रस्तुति से ख़ूब शोहरत बटोरी थी. लोक कलाकार की असमय मौत पर उनके प्रशंसक शोक स्तब्ध है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हरीश के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है.
ना तो उन्हें यह कला विरासत में मिली, ना ही हरीश उस समाज से थे जो सदियों से रेगिस्तान में कला को सहेजे हुए है. हरीश सुथार यानी बढ़ई बिरादरी से ताल्लुक़ रखते थे.
लेकिन जब वो मंच पर प्रस्तुति देते तो लोग मंत्र मुग्ध हो जाते. वो पुरुष थे लेकिन अपने महिला वेश और भाव भंगिमा में उन्होंने राजस्थान के घूमर और चकरी नृत्य से अपनी विश्व व्यापी पहचान बनाई.
उनके जिस्म की लचक और लय ऐसा प्रभाव पैदा करते थे कि दर्शक सम्मोहित हो जाते थे. हरीश के अवसान के बाद तमाम साज शोकाकुल है और मंच उदास.
दर्शक दीवाने थे
जैसलमेर में हरीश के नृत्य आयोजन को मंच मुहैया कराने वाले मयंक भाटिया ने बीबीसी से अपना ग़मो-दुःख साझा किया तो भावुक हो गए.
भाटिया कहने लगे, ''हरीश अद्भुत कलाकार थे. वो मच पर नहीं ,लोगों के दिलों में प्रस्तुति देते थे. उनका निधन एक ऐसा नुक़सान है जिसकी कोई भरपाई नहीं कर सकता. यक़ीन नहीं होता कि वर्षों तक अपने फ़न से दिलों पर हुक्मरानी करने वाले हरीश यूँ हमें सदा के लिए छोड़ जायेगें''
मयंक भाटिया कहते हैं, ''पिछले छह साल से उनका नियमित रिश्ता था. वे हर रोज़ झंकार मंच पर अपनी प्रस्तुति देते और अपने फ़न का मुज़ाहिरा करते.''
मयंक बताते हैं कि अक्तूबर से मार्च की समयावधि में उनका शो हॉउसफुल जाता था, कई बार अतिरिक्त कुर्सियां लगानी पड़ती थीं.
कुछ अरसा पहले हरीश ने भारत के शीर्ष कॉर्पोरेट घराने में हुई शादी के दौरान उदयपुर में जब अपनी प्रस्तुति दी तो लोग अभिभूत हो गए.
मयंक भाटिया कहते हैं, ''हरीश जानते थे कि हर इंसान के भीतर एक कलाकार होता है. हरीश जब मंच पर थिरकते, वहां बैठे दर्शको के अंदर का कलाकार भी बाहर आ जाता.''
नारी का किरदार अपनाया
राजस्थान के पुरुष प्रधान समाज में हरीश ने अपनी प्रस्तुति में नारी का किरदार अख्तियार किया और अपनी क़ाबलियत का झंडा गाड़ दिया. उन्होंने भारत के बाहर 60 से ज्यादा देशों में अपनी इस कला का जलवा बिखेरा और तारीफ़ हासिल की.
मंयक भाटिया बताते हैं कि हरीश राजस्थान के पारम्परिक चकरी, घूमर और भवई जैसे नृत्यों की प्रस्तुति में प्रवीण थे, इसके साथ ही बेले डांस में भी उन्हें महारत हांसिल थी.
जैसलमेर में जानकारों ने बताया कि हरीश एक अच्छे कोरिओग्राफ़र और एंकर भी थे. इसके साथ वे डांस क्लासेज भी चलाते थे. उनकी नृत्य पाठशाला में बहुतेरे विदेशी भी आते थे.
जब हरीश की मौत की ख़बर सुनी तो उनके विदेशी शागिर्द ग़मज़दा हो गए. हरीश ने बॉलीवुड फ़िल्मों में भी अपनी कला के ज़रिये हाज़िरी दर्ज करवाई.
जैसलमेर के विमल भाटिया कहते हैं, ''हमने एक चमकता सितारा खो दिया. अभी तो उन्हें बहुत आगे जाना था.''
भाटिया याद कर बताते हैं कि जब भी हरीश जैसलमेर होते ,उनसे नियमित मुलाक़ात होती.
वो कहते हैं, ''सोच भी नहीं सकते कि हरीश ऐसे बेवक्त हमें अलविदा कह जायेंगे.''
यूँ तो हरीश का पुश्तैनी गांव पोकरण के निकट है. मगर हरीश गांवघर से बाहर निकले और अपनी कला को मंच और मुक़ाम देने के लिए जैसलमेर आ गए. उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं. जिनकी उम्र छह और नौ वर्ष है.
हरीश ने अपने पैरों की थिरकन से ऐसी ध्वनि पीछे छोड़ दी है ,जो बियाबान मरुस्थल में लम्बे अर्से तक सुर और साज़ का निनाद सुनाती रहेगी.
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