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#MumbaiRains मुंबई में तबाही की बारिश ने 24 लोगों की ली जान
महाराष्ट्र में भारी बारिश की वजह से दीवार गिरने की तीन अलग-अलग घटनाओं में 24 लोगों की मौत हो गई है.
महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे में भारी बारिश के कारण दीवार गिरने की कई घटनाएं हुई हैं. बीते 25 घटों के दौरान तीन ऐसी ही अलग-अलग घटनाओं में मुंबई, कल्याण और पुणे में अब तक 24 लोगों की मौतें हो गई है.
पश्चिम मुंबई के मलाड में एक कंपाउंड की दीवार गिरने से बीती रात भारी तबाही हुई और इसमें 15 लोगों की मौत हो गई. शहर में आपदा प्रबंधन के अधिकारियों के मुताबिक अब तक क़रीब 75 लोग घायल बताए गए हैं. राहत बचाव अभियान अब भी जारी है. घायलों को शताब्दी अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मृतकों के परिजनों को 5 लाख मुआवजा देने की घोषणा की है.
एक अन्य घटना में मुंबई के पास कल्याण में दीवार गिरने के कारण तीन मौतें हुई हैं. एक अन्य दीवार गिरने की घटना में दो महिलाओं और एक बच्चे की मौत हो गई.
मुंबई में जारी लगातार मूसलाधार बारिश के कारण शहर पानी-पानी हो गया है. जल जमाव के कारण रेल सेवाएं बाधित हुई हैं, ट्रैफिक में घंटों लोग फँसे रहे और फ्लाइट सेवाओं में देरी हो रही है. म्यूनिसिपल कमिशनर प्रवीण परदेशी ने स्कूल और कॉलेज बंद रखने की घोषणा की है. भारतीय मौसम विभाग का कहना है कि अभी भारी बारिश थमने वाली नहीं है और शुक्रवार तक बारिश जारी रहेगी.
बीते दो दिनों से मुंबई में लगातार बारिश हो रही है. इससे मुंबई शहर में रहने वालों का जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
लेकिन ये पहला मौक़ा नहीं है जब मुंबई वासियों को बारिश के बाद जलभराव की समस्या से दो चार होना पड़ रहा हो.
हर साल बारिश शुरू होते ही सड़कों पर पानी जमा होने लगता है. इसके बाद शहरवासियों को ट्रैफिक जाम से लेकर तमाम समस्याओं से जूझना पड़ता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि वो कौन से कारण हैं जिसकी वजह से मुंबई को हर साल इस समस्या का सामना करना पड़ता है.
क्या भौगोलिक स्थिति है ज़िम्मेदार?
मुंबई को एक ऐसे शहर के रूप में जाना जाता है जो कि सात द्वीपों को जोड़कर बनाया गया है.
इसमें एक ओर समुद्र है. वहीं, दूसरी ओर खाड़ी का क्षेत्र है. एक समय में इन द्वीपों पर 22 पहाड़ियां थीं.
ऐसे में जब पहाड़ी इलाक़ों पर पानी बरसता है तो वह बहकर निचले इलाक़ों और फिर खाड़ी क्षेत्र में जाता है.
लेकिन पहाड़ी और खाड़ी क्षेत्र के बीच एक दलदली भूमि हुआ करती थी जो कि अब मुंबई के उपनगरों में तब्दील हो चुकी है.
ऐसे में बारिश का पानी पहाड़ से बहकर इन उपनगरों में फंस जाता है और यहां जलभराव की समस्या सामने आती है.
सायन, चूनाभट्टी, दादर पश्चिम समेत मुंबई के कई इलाक़े ऐसी ही ज़मीन को कृत्रिम तरीक़े से भरने के बाद अस्तित्व में आए हैं.
2 - दलदली वनों का नाश
मुंबई शहर तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है.
समुद्र, खाड़ी और शहर के बीच दलदली वन हैं जो कि शहर की ज़मीन को समुद्र के पानी से संरक्षित करते हैं.
पर्यावरणविद् ऋषि अग्रवाल मानते हैं, ''पिछले कई सालों से मुंबई में अवैध झुग्गियों और इमारतों के बनने की वजह से दलदली वनक्षेत्र में कमी आ रही है. इस जंगल की वजह से हाई टाइड के समय समुद्री जल मुंबई में घुसने की जगह इस जंगल में फँस जाता है. इसकी वजह से मृदा अपरदन नहीं होता है. लेकिन पिछले कई सालों से ये जंगल ख़त्म हो रहे हैं."
इन वनों पर अध्ययन कर चुके एक अन्य पर्यावरणविद् गिरीश राउत का मानना है कि इस वन क्षेत्र का 70 से ज़्यादा फ़ीसदी भाग हम पहले ही नष्ट कर चुके हैं और ये बहुत ख़तरनाक है."
बारिश और हाई टाइड
मुंबई शहर के इतिहास पर नज़र डालें तो ये शहर हमेशा से जल भराव का शिकार होता रहा है. लेकिन पिछले 15 सालों में ये देखने में आया है कि जलभराव की समस्या हर साल होने लगी है.
लोकसत्ता अख़बार से जुड़े पत्रकार संदीप आचार्य बताते हैं, "पिछले कई सालों से मुंबई की बारिश का पैटर्न बदल चुका है. अब बहुत कम समय में बहुत ज़्यादा पानी बरसता है. उसी वक़्त अगर चार मीटर से ऊपर की हाई टाइड आए तो मुंबई में काफ़ी जलभराव होता है."
मौसम विभाग के निदेशक कृष्णानंद होसालिकर इस बात को नहीं मानते हैं.
उनका कहना है, "बारिश का पैटर्न बदला है या नहीं, ये तय करने के लिए हमें लगभग 25 से 30 सालों की बारिश के आँकड़ों का अध्ययन करना होगा. तब जाकर हम पुख़्ता तौर पर हम ये कह पाएंगे."
"मुंबई में बारिश टुकड़ों में गिरती है. इसमें ज़्यादा, बहुत ज़्यादा और तीव्र इन तीन श्रेणियां हैं. अगर दिन में 20 सेंटीमीटर से ज़्यादा बारिश हो तो उसे तीव्र श्रेणी की बारिश कहते हैं. ऐसी बारिश मौसम में चार या पाँच बार ही होती है. अगर ऐसी बारिश हो रही हो और हाई टाइड आए तो मुसीबतें बढ़ जाती हैं."
मुंबई में बारिश का पानी समुद्र तक बहा कर ले जाने के लिए पाइप लाइनें हैं. जब हाई टाइड होता है तो समुद्र में गिरने वाले इन पाइपों के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं ताकि समंदर का पानी अंदर न आ जाए.
ऐसे में जब तेज बारिश हो जाए और हाई टाइड की वजह से पानी बाहर ले जाने वाले पाइप भी बंद हों तो शहर में पानी भरना लाज़मी है.
शहर के विकास में कमियां
आचार्य कहते हैं, "कुछ साल पहले तक मुंबई का क्षेत्रफल साढ़े चार सौ वर्ग किलोमीटर था. अब ये छह सौ तीन वर्ग किलोमीटर हो चुका है. ये अतिरिक्त क्षेत्र समंदर में कंक्रीट-मिट्टी डालकर हासिल किया है."
नगर विकास से जुड़े विषयों को जानने वाले सुलक्षणा महाजन बताती हैं, "ये क्षेत्र बढ़ते हुए हमनें नाले, रास्तों और पानी जाने के रास्तों पर गौर नहीं किया. किसी भी शहर को बसाने की योजना बनाते हुए पहाड़, तराई क्षेत्र, नदी और नालों जैसे चार भौगोलिक चीज़ों पर ग़ौर करना ज़रूरी होता है. शहर के नक्शे पर इन चीज़ों को चिह्नित किया जाता है ताकि आने वाले समय में इनका ख्याल रखा जाए. लेकिन मुंबई का विकास करते समय इन चीज़ों को नज़रअंदाज किया गया."
जलभराव की समस्याएं ज़्यादातर उपनगरों में सामने आती हैं.
इसका कारण बताते हुए महाजन कहती हैं, "ब्रिटिश राज में जल निकासी को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त क़दम उठाए गए थे. वर्ली के पानी को समंदर तक ले जाने वाला नाला इसका एक बड़ा उदाहरण है. साल 1951 तक मुंबई के उपनगर मुंबई नगरपालिका के अंतर्गत नहीं आते थे. लेकिन 1951 के बाद धीरे-धीरे ये सभी इलाक़े एमसीजीएम के तहत आ गए. लेकिन इन इलाक़ों में जलनिकासी के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई."
आचार्य मानते हैं कि सड़क निर्माण के दौरान जलनिकासी की व्यवस्था नहीं की जाती है.
वो कहते हैं, "जब सड़कों का निर्माण किया गया तब ये ध्यान नहीं रखा गया कि सड़क के मध्य का भाग थोड़ा ऊंचा और सड़क के किनारों पर नालियों हों ताकि सड़क पर गिरने वाला पानी सड़क से निकल जाए."
प्रशासनिक कारण
मुंबई शहर 14 से ज़्यादा अलग-अलग सरकारी विभागों के अधीन है.
उदाहरण के लिए, मुंबई का कोई क्षेत्र बीएमसी के अधीन है तो उससे सटा हुआ दूसरा हिस्सा रेलवे के अधीन है.
ऐसे में शहर से जलनिकासी सुनिश्चित करने के लिए इन सभी एजेंसियों का साथ काम करना बहुत ज़रूरी है.
लेकिन अक्सर इन एजेंसियों में आपसी तालमेल का अभाव नज़र आता है.
इसके साथ ही मुंबई में बारिश से पहले नालों को साफ़ करने को लेकर विभागों के बीच तनातनी देखने को मिलती है.
जलभराव के बाद विभाग एक दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालते हुए नज़र आते हैं.
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