गया (#Gaya) के करीमगंज मुहल्ला में एक मकान को लेकर बड़ी अनहोनी घटना की आशंका । दहशत में दो परिवार ।
मामला सिविल थाना तहत आने वाले पुरानी करीमगंज मोहल्ले के अब्बास लेन से जुड़ा हुआ ।
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मिल रही सूचना के मुताबिक मामला अदालत में रहने के बावजूद एक पक्ष मकान बेचने के लिए करीमगंज के मशहूर हिस्ट्री_शीटर और आतंक का प्रायः माने जाने वाले शख्स का सहारा ले लिया है ।
कागज पर हस्ताक्षर करने लिए उक्त कुख्यात
और हिस्ट्रीशीटर शख्श और उनके कुछ सहयोगी शफ़ीक़ अहमद और मोइन अहमद के घर बार बार एक काना को भेज कर अपने पास बुलवा रहे ।
घर वालों की माने तो उक्त काना आज दिनांक 5/8/2019 को फिर आया और कहा कि आप दोनों का आधार कार्ड की फोटोकॉपी चाहिए ।
शफ़ीक़ और मोइन अहमद का कहना है कि जो अदालत करेगी वही मान्य होगा ।
क्या है मामला ?
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मिल रही सूचना के मुताबिक मामला अदालत में रहने के बावजूद एक पक्ष मकान बेचने के लिए करीमगंज के मशहूर हिस्ट्री_शीटर और आतंक का प्रायः माने जाने वाले शख्स का सहारा ले लिया है ।
कागज पर हस्ताक्षर करने लिए उक्त कुख्यात
और हिस्ट्रीशीटर शख्श और उनके कुछ सहयोगी शफ़ीक़ अहमद और मोइन अहमद के घर बार बार एक काना को भेज कर अपने पास बुलवा रहे ।
घर वालों की माने तो उक्त काना आज दिनांक 5/8/2019 को फिर आया और कहा कि आप दोनों का आधार कार्ड की फोटोकॉपी चाहिए ।
शफ़ीक़ और मोइन अहमद का कहना है कि जो अदालत करेगी वही मान्य होगा ।
क्या है मामला ?
1.बशीर अहमद
2.मुनीर अहमद
3.अरशद अहमद और उनके पक्ष के कुछ और लोगों का विवाद मकान बेचने को लेकर शफीक अहमद और मोइन अहमद से चल रहा । मामले की निपटारा को ले कर एक पक्ष कोर्ट भी गया , मामला प्रिंसीपल #सब_जज के यहां 63/560 दिनांक 19/8/2017 के रूप में दर्ज भी है ।
इस मामले में अदालत ने क्या फैसला सुनाया शफ़ीक़ अहमद और मोइन अहमद के परिवार को पता तक नहीं ।
इस बीच सवाल उठ रहा कि अदालत में रहते हुए बशीर अहमद , मुनीर अहमद और अरशद अहमद किसी तीसरे पक्ष के पास गए कैसे ?
अगर अदालत ने फैसला दे भी दिया हो तो इसकी सूचना या फैसले की प्रतिलिपि विधिवत रूप से शफ़ीक़ अहमद और मोइन अहमद के परिवार वालों को इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई ?
तीसरा और अहम सवाल यह भी है कि बगैर कानूनी प्रक्रिया पूरा हुए तीसरे पक्ष ने मकान खाली करवाने और खरीद फरोख्त का ठीका किस उम्मीद में लिया ?
इस मामले में अदालत ने क्या फैसला सुनाया शफ़ीक़ अहमद और मोइन अहमद के परिवार को पता तक नहीं ।
इस बीच सवाल उठ रहा कि अदालत में रहते हुए बशीर अहमद , मुनीर अहमद और अरशद अहमद किसी तीसरे पक्ष के पास गए कैसे ?
अगर अदालत ने फैसला दे भी दिया हो तो इसकी सूचना या फैसले की प्रतिलिपि विधिवत रूप से शफ़ीक़ अहमद और मोइन अहमद के परिवार वालों को इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई ?
तीसरा और अहम सवाल यह भी है कि बगैर कानूनी प्रक्रिया पूरा हुए तीसरे पक्ष ने मकान खाली करवाने और खरीद फरोख्त का ठीका किस उम्मीद में लिया ?
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