भीमा कोरेगांव हिंसा मामला: गिरफ़्तारी के एक साल बाद ना तो जमानत और ना ही सुनवाई
"पुणे के नज़दीक भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा में माओवादी शामिल थे. जांच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का भी पता चला. भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार कुछ लोग प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रच रहे थे."
पुलिस का दावा कुछ ऐसा ही है. भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में रिवॉल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन के संरक्षक वरवर राव सहित नौ कार्यकर्ता साल भर से जेल में हैं.
इनके ज़मानत की याचिका अलग अलग अदालतों में कई बार ख़ारिज हो चुकी हैं. कुछ मामलों में सुनवाई और फ़ैसले स्थगित किए जा रहे हैं.
इन मामलों में सुनवाई का स्थगित होना अब एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है.
इन कार्यकर्ताओं के परिजन सवाल पूछ रहे हैं कि ज़मानत और सही ढंग की सुनवाई के बिना इन्हें कब तक जेल में रखा जाएगा.
इसी संदर्भ में इन मामलों और उसमें अब तक हुई प्रगति पर नजर.
हिंसा और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी
भीमा-कोरेगांव में एक जनवरी, 2018 को हिंसा भड़की थी.
पुणे के नज़दीक स्थित भीमा-कोरेगांव में पेशवाओं के ऊपर दलितों की जीत के 200 साल पूरे होने के जश्न के दौरान हिंसा भड़की थी.
इस हिंसा में एक आदमी की मौत हो गई थी और कुछ लोग घायल हो गए थे. घायलों में कुछ पुलिसकर्मी भी थे.
इस मामले की शुरुआत में हिंदू संगठनों के प्रतिनिधि संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने का मामला दर्ज किया गया.
मिलिंद एकबोटे को गिरफ़्तार भी किया गया लेकिन बाद में उन्हें ज़मानत मिल गई. संभाजी भिड़े अब भी लापता हैं.
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सबूतों के आधार पर...
बाद में इस मामले में रिपब्लिकन पैंथर्स जातीय अनातची चलवाल (आरपी) के नेता सुधीर धवले, नागपुर में मानवाधिकार मामलों के वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली के कार्यकर्ता रोना विल्सन, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफे़सर शोमा सेन, प्राइम मिनिस्टर रूरल डेवलपमेंट फेलोशिप (पीएमआरडीएफ) के पूर्व फेलो महेश राउत को जून, 2018 के पहले सप्ताह में मुंबई, नागपुर और दिल्ली से गिरफ़्तार किया गया.
पुलिस के दावों के मुताबिक ये लोग शहरी क्षेत्रों में काम करने वाले शीर्ष माओवादी हैं. पुलिस ने इन लोगों की घरों की तलाशी भी ली.
पुलिस यह भी कह रही है कि तलाशी के दौरान इनके घरों से इलेक्ट्रानिक गैजट, सीडी और दूसरे कागज़ात जब्त करके उसे जांच के लिए पुणे फॉरेंसिक लेबोरेटरी भेजा गया.
पुलिस के मुताबिक ज़ब्त कागज़ातों की जांच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, राजीव गांधी की तरह, हत्या किए जाने की साजिश का पता चला.
पुलिस के मुताबिक इस साजिश के सबूतों के आधार पर ही इन पांच लोगों को गिरफ़्तार किया गया.
दूसरे कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी
इसके बाद महाराष्ट्र पुलिस ने विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों और वकीलों के घरों की तलाशी ली.
इसमें रिवॉल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन के संरक्षक वरवरा राव भी शामिल थे. वरवरा राव को हैदराबाद से गिरफ़्तार किया गया और पुलिस उन्हें पुणे ले गई.
ठीक उसी दिन सामाजिक कार्यकर्ता-वकील सुधा भारद्वाज, नागरिक अधिकारों से जुड़े गौतम नवलखा, सामाजिक कार्यकर्ता-वकील अरुण फरेरा और लेखक-सामाजिक कार्यकर्ता वेर्नोन गोंजाल्विस को अलग अलग जगहों से गिरफ़्तार किया गया.
इनमें फरेरा सुधीरा को रिहा करने की वकालत कर रहे थे.
महाराष्ट्र पुलिस के आरोपों के मुताबिक भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में जून में गिरफ़्तार किए गए कुछ लोग माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले हैं.
इन आरोपों के मुताबिक इन लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रची ती और वरवरा राव उन्हें वित्तीय मदद मुहैया करा रहे हैं.
एक साल बीतने के बाद
इन आरोपों के तहत ही पुणे के विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में वरवरा राव के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 (ए), 505 (1) (B), 117, 120 (B) और गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम कानून के तहत 13, 16, 17, 18(B), 20, 38, 39, 40 के तहत मामला दर्ज किया गया.
गिरफ्तारी से पहले बीबीसी से बातचीत करते हुए वरवरा राव ने कहा था कि पुलिस मनगढ़ंत आरोप लगा रही है ताकि भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़काने वाले संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे से लोगों का ध्यान हट जाए.
इन पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इन सभी लोगों को 25 अक्टूबर तक उनके अपने घरों में कैद रखा जाए.
बाद में गौतम नवलखा को घर में नजरबंद रखे जाने से राहत मिली लेकिन बाकी के चारों कार्यकर्ताओं को नवंबर, 2018 में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
विरोध की आवाज़
ये सभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध कई मंचों पर करते रहे हैं.
इनमें अरुण फरेरा और वरवरा राव को पहले भी माओवादियों से सहानुभूति रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
पुणे पुलिस के दावे के मुताबिक ये सभी लोग माओवादियों से जुड़े हुए हैं और इसके सबूत मिलने के बाद ही उन्हें गिरफ्तार किया गया है.
वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं और वामपंथी संगठनों का कहना है कि षड्यंत्र के तहत इन्हें फंसाया जा रहा है और पुलिस विरोध की आवाज़ को शांत कराने की कोशिश कर रही है.
दलित प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बडे को भी फरवरी, 2019 में गिरफ्तार किया गया था, हालांकि पुणे की अदालत ने जब उनकी गिरफ्तारी को गैर कानूनी बताया तब वे रिहा किए गए.
वरवरा राव की पत्नी हेमलता ने अप्रैल, 2019 में भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर वरवरा राव को रिहा करने की अपील की थी. पत्र में ये भी लिखा था कि सुनवाई नहीं रोकी जाए.
पुणे की यरवदा जेल
सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, सुधीर धवले, महेश राउत, रोना विल्सन को जून, 2018 में गिरफ्तार किया गया था.
जबकि वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वेर्नोन गोंजाल्विस को अगस्त, 2018 में गिरफ्तार किया गया. इन सबको पुणे की यरवदा जेल में रखा गया है.
गिरफ्तार के एक साल बीतने के बाद भी मामलों की सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है.
पुलिस मामले की प्राथमिक चार्जशीट नवंबर, 2018 में दाखिल कर चुकी है. इसके बाद फरवरी, 2019 में पुलिस ने सप्लीमेंटरी चार्जशीट में दाखिल कर दिया.
प्राथमिक चार्जशीट को दाखिल हुए भी दस महीनों से ज्यादा समय हो चुका है. लेकिन मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है.
इनके जमानत की याचिकाएं भी लंबित पड़ी हुई हैं.
वरवरा राव की पत्नी के आरोप
वरवरा राव की पत्नी हेमलता ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "ट्रायल में कोई प्रगति नहीं हुई है. जमानत याचिका पर छह महीने से सुनवाई चल रही है. जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रखने वाले जज का ट्रांसफर हो गया. नए जज फिर से सुनवाई करना चाहते हैं."
परेशान हेमलता के मुताबिक उन्हें हाईकोर्ट से भी मदद नहीं मिली.
उन्होंने बताया, "जब हम हाईकोर्ट गए तो कहा गया कि इस पर तो ट्रायल कोर्ट को फैसला लेना है. अगर ट्रायल कोर्ट जमानत याचिका खारिज कर दे तब हाई कोर्ट आ सकते हैं. लेकिन ट्रायल कोर्ट ना तो जमानत दे रही है और ना ही जमानत याचिका खारिज कर रही है. वे इसे अटकाए हुए हैं. वे ना तो जमानत दे रहे हैं और ना ही सुनवाई शुरू कर रहे हैं."
हेमलता के मुताबिक, "अदालत में 10 सुनवाई पूरी हो चुकी है लेकिन अब तक एक भी गवाह का बयान दर्ज नहीं हुआ है. वे इसे जमानत याचिका के आदेश में देरी के लिए बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. कोर्ट में पब्लिक प्रासीक्यूटर शिवाजी पवार ने कहा कि इस मामले में अभी 290 सुनवाई और होगी."
हेमलता के मुताबिक पुलिस नए मामले भी थोप रही है और इस मामले को दूसरे असंबंधित या लंबे समय से चले आ रहे मामलों को भी जोड़ रही है.
'उनकी पत्नी हूं, ये साबित करना पड़ता है'
हेमलता ने आरोप लगाते हुए कहा, "उन लोगों ने छत्तीसगढ़ के अहीर पुलिस स्टेशन में एक मामला लैंड माइन बिछाने का दर्ज किया है. इसी तरह का एक मामला कर्नाटक में दर्ज किया है. उनकी कोशिश जमानत मिलने के बाद भी जेल में रखने की है."
उदासी के साथ हेमलता बताती हैं, "मैंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा. कोई जवाब नहीं आया. मैंने तेलंगाना के मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा, वहां से भी कोई जवाब नहीं आया. अपातकाल के दौरान वरवरा राव और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल विद्यासागर राव एक ही जेल में थे. मैंने उन्हें भी पत्र लिखा. उन्होंने उसे मुख्यमंत्री कार्यालय में फारवर्ड कर दिया. यही सब हुआ है. इससे आगे कुछ नहीं."
हेमलता के मुताबिक वरवरा राव का स्वास्थ्य भी लगातार गिर रहा है.
उन्होंने बताया, "पिछला एक साल बेहद मुश्किल भरा रहा है. वरवरा राव की क्षमता पहले जैसी नहीं रही, उम्र भी बढ़ रही है और स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है. छत्तीसगढ़ की यात्रा के दौरान उन्हें 20 साल बाद पाइल्स हो गया. इसके चलते शरीर का बहुत सारा खून बह जाता है."
राजनीतिक कैदी
हेमलता के मुताबिक जेल में भी उन्हें ढंग की सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.
उनके मुताबिक, "शोमा सेन को आर्थराइटिस है. लेकिन उन्हें कोई खाट नहीं दी मिली है. वरवरा राव को भी कुर्सी और खाट नहीं मिली है. कहीं इतनी ख़राब स्थिति नहीं थी. सुरेंद्र गाडलिंग को जेल में जाने के बाद स्टेंट लगा है."
हेमलता के मुताबिक वह दस दिनों पहले ही पुणे गई थीं. पुणे आने जाने की अपनी मुश्किल के अलावा उन्हें दूसरी मुश्किलें भी झेलनी पड़ती हैं.
हेमलता बताती हैं, "पुणे जेल के प्रावधान विचित्र हैं. अगर मुझे वरवरा राव से मिलना है तो मुझे हैदराबाद पुलिस से प्रमाणित करना पड़ता है कि मैं उनकी पत्नी हूं. उनके सरनेम वाले लोगों को ही उनसे मिलने की इजाजत मिलती है. हमारी बेटियों ने शादी के बाद अपना सरनेम नहीं बदला है. इसलिए उन्हें मिलने देते हैं. बेटे के बेटे को मिलने की इजाजत है लेकिन हमारा कोई बेटा नहीं है और बेटियों के बच्चों को मिलने की इजाजत नहीं है."
हेमलता इन मुश्किलों के बारे में आगे बताती हैं, "गिरफ्तार लोगों में एक की पत्नी ने अपना सरनेम नहीं बदला है. इसलिए उन्हें अपने पति से मिलने की इजाजत नहीं मिल रही है. इतना ही नहीं, जब हम मिलने के लिए जाते हैं, तो हमें एक फॉर्म में गैंग का नाम लिखना होता है. एक कॉलम है गैंग टाइटिल का. मैंने उनसे कहा कि वे लोग किसी गैंग के सदस्य नहीं हैं. राजनीतिक कैदी हैं. लेकिन वे लोग समझते नहीं हैं. ऐसे में मैं उस कॉलम में रिवॉल्यूशनरी राइटर्स एसोसिएशन लिखती हूं."
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