जस्टिस बोबडे होंगे सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जस्टिस शरद अरविंद बोबडे को सुप्रीम कोर्ट का अगला मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने के फ़ैसले पर अपना हस्ताक्षर कर दिया है. जस्टिस बोबडे भारत के सुप्रीम कोर्ट के 47वें मुख्य न्यायाधीश होंगे.
जस्टिस बोबडे 18 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश की शपथ लेंगे. सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. 18 नवंबर को न्यायाधीश बोबडे के कार्यभार संभालने के बाद उनके पास 18 महीने का ही कार्यकाल होगा. न्यायाधीश बोबडे का कहना है कि सभी मुक़दमों में न्याय सुनिश्चित करना उनका फौरी लक्ष्य है.
वो यदि न्यायपालिका में बहु-प्रतीक्षित सुधार करके उन्हें अमल में लाना चाहते हैं तो इसके लिए उनके पास समय बहुत अधिक नहीं होगा. लेकिन उनके सामने चुनौतियां ज़रूर कई होंगी.
परंपरा का पालन करते हुए मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने सेवानिवृत्त होने से ठीक एक महीने पहले अपनी अनुशंसा क़ानून मंत्रालय को भेजी थी.
जस्टिस बोबडे को कितना जानते हैं आप?
24 अप्रैल 1956 को जन्मे न्यायाधीश बोबडे नागपुर में पले-बढ़े. एसएफएस कॉलेज से उन्होंने बीए किया. साल 1978 में नागपुर यूनिवर्सिटी से क़ानून की डिग्री हासिल की.
13 सितंबर 1978 को उन्होंने वकील के तौर पर अपना नामांकन कराया और बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में प्रैक्टिस की. साल 1998 में उन्हें सीनियर एडवोकेट नामित किया गया.
29 मार्च 2000 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया. 16 अक्तूबर 2012 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चीफ़ जस्टिस बनने के बाद अगले ही वर्ष साल 2013 में उन्हें उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनाया गया. उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख़ 23 अप्रैल 2021 है.
न्यायाधीश बोबडे का संबंध वकीलों के परिवार से रहा है. उनके दादा एक वकील थे जिन्होंने शायद कभी कल्पना नहीं की होगी कि उनका पोता एक दिन सर्वोच्च न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश होगा.
उनके पिता अरविंद बोबडे महाराष्ट्र में एडवोकेट जनरल रहे हैं. उनके बड़े भाई दिवंगत विनोद बोबडे भी सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील थे. उनकी बेटी रुक्मणि भी दिल्ली में वक़ालत कर रही हैं. बेटा श्रीनिवास भी मुंबई में पेशे से वकील है.
महत्वपूर्ण फ़ैसले
न्यायाधीश बोबडे ऐसी कई बेंच में शामिल रहे जिन्होंने कई महत्वपूर्ण फ़ैसले सुनाए. इनमें आधार कार्ड से जुड़े फ़ैसले भी शामिल हैं.
एक अन्य मामला उस महिला का है जिसे गर्भपात की इजाज़त नहीं दी गई क्योंकि भ्रूण 26 हफ्ते का हो चुका था और डॉक्टरों का कहना था कि जन्म के बाद शिशु के जीवित रहने की संभावना है.
कर्नाटक सरकार ने माता महादेवी नामक एक किताब पर इस आधार पर प्रतिबंध लगाया था कि इससे भगवान बासवन्ना के अनुयायियों की भावनाएं आहत हो सकती हैं. न्यायाधीश बोबड़े उस बेंच में शामिल थे जिसने इस प्रतिबंध को बरकरार रखा था.
वे उस बेंच का भी हिस्सा थे जिसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भारी प्रदूषण की वजह से पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी. न्यायाधीश बोबड़े अयोध्या विवाद और एनआरसी से संबंधित बेंच में भी रहे. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गोगोई के ख़िलाफ़ जब एक महिला कर्मचारी ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, तो उन्होंने इस मामले में उठाए जाने वाले कदमों को तय करने के लिए न्यायाधीश बोबडे से कहा.
उस समय मुख्य न्यायाधीश गोगोई की आलोचना हो रही थी. न्यायाधीश बोबडे ने न्यायाधीश एनवी रमन और न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी साथ इस आरोप की जांच-पड़ताल की थी जिसमें शिकायत को ग़लत पाया गया था.
लेकिन इसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया जिस पर काफ़ी विवाद हुआ था.
न्यायाधीश बोबडे ने छह वर्ष पूर्व स्वेच्छा से अपनी सम्पत्ति ज़ाहिर की थी. इसमें उन्होंने अपनी बचत 21,58,032 रूपये और फिक्स्ड डिपोज़िट 12,30,541 रूपये बताए थे. उनके पास इसके अलावा मुंबई के एक फ्लैट में हिस्सा है और नागपुर में दो इमारतों का मालिकाना हक़ है.
चुनौतियां
जस्टिस बोबडे के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी उन मामलों को निपटाने की जो लंबित पड़े हैं. भारतीय अदालतों में 3.53 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं.
सर्वोच्च न्यायालय में ही 58,669 मामले लंबित हैं. इनमें से 40,409 मामले तो ऐसे हैं जो बीते 30 वर्षों से लंबित हैं. नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि पांच साल के भीतर लंबित मामलों को निपटाने के लिए लगभग 8,521 न्यायाधीशों की ज़रूरत है.
लेकिन उच्च न्यायालय और निचली अदालतों में 5,535 न्यायाधीशों की कमी है. सर्वोच्च न्यायालय में आज की तारीख़ में न्यायाधीशों की संख्या 31 है. लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय को आठ अतिरिक्त न्यायाधीशों की आवश्यकता है.
'नेशनल जूडिशरी डेटा ग्रिड' के मुताबिक़ 43,63,260 मामले उच्च न्यायालयों में लंबित हैं. मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने इस बात को रेखांकित किया था कि ज़िला और सब-डिविज़नल स्तरों पर स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या 18,000 है.
लेकिन मौजूदा संख्या इससे कम 15,000 ही है. दिल्ली उच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश का कहना था कि जिस गति से मामलों को निपटाया जा रहा है, उस हिसाब से लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए 400 साल लग जाएंगे. वो भी तब जब कोई नया मामला ना आए.
हर साल मुक़दमों की संख्या बढ़ रही है, उसी हिसाब से लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है. इससे 'न्याय में देरी यानी न्याय देने से इंकार' की धारणा बलवती हो रही है. अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या से न्यायाधीश बोबड़े को चिंतित होना चाहिए.
साल 1987 में विधि आयोग ने सुझाया था कि प्रत्येक दस लाख भारतीयों पर 10.5 न्यायाधीशों की नियुक्ति का अनुपात बढ़ाकर 107 किया जाना चाहिए. लेकिन आज ये अनुपात सिर्फ़ 15.4 है
बीबीसी हिंदी से साभार -. https://www.bbc.com/hindi/india-50217724
बीबीसी हिंदी से साभार -. https://www.bbc.com/hindi/india-50217724
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