कमलेश तिवारी हत्या की जांच को जान बूझ कर भटकाने की कोशिश ? पुलिस के दावे में कितनी सच्चाई? वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र कहते हैं, "जिस तरह से डीजीपी ने इस मामले को सुलझाने का दावा करते हुए इसे ख़त्म करने की कोशिश की है, उससे लगता है कि कुछ ज़्यादा ही जल्दबाज़ी दिखाई जा रही है. उनके बयान से साफ़ पता चलता है कि उसे एक ख़ास दिशा में मोड़ने की कोशिश हो रही है जबकि परिजनों के आरोपों से साफ़ तौर पर पता चलता है कि इसके पीछे आपसी रंज़िश और ज़मीनी विवाद से इनकार नहीं किया जा सकता." सुभाष मिश्र कहते हैं, "जिन लोगों ने एक सँकरी जगह पर जाकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी, उसे पुलिस ढूंढ नहीं पा रही है जबकि उसके पास सीसीटीवी फुटेज हैं, नौकर भी पहचानता है, दूसरे अन्य साक्ष्य भी मौजूद हैं. लेकिन एक ही दिशा में पुलिस अपनी तफ़्तीश को केंद्रित रखे है और वहीं से उसे ख़त्म भी करना चाह रही है."
कमलेश तिवारी हत्याकांड: पुलिस के दावे में कितनी सच्चाई?
लखनऊ में शुक्रवार को हिन्दू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की हत्या को यूपी पुलिस चार साल पहले उनके एक बयान से जोड़कर देख रही है तो परिवार वालों ने एक स्थानीय बीजेपी नेता पर आरोप लगाते हुए सरकार और प्रशासन को भी संदेह के घेरे में लिया है. वहीं पुलिस के दावों पर कई तरह के सवाल भी उठाए जा रहे हैं.
शनिवार को राज्य के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह पत्रकारों के सामने आए और जानकारी दी कि पुलिस ने इस मामले का लगभग पर्दाफ़ाश कर लिया है.
उन्होंने बताया कि गुजरात एटीएस ने तीन लोगों को गुजरात के सूरत से और दो लोगों को यूपी पुलिस ने बिजनौर से हिरासत में लिया है.
ओपी सिंह का कहना था, "हत्या के पीछे कमलेश तिवारी का साल 2015 में दिया गया एक बयान था. पुलिस ने गुजरात से जिन लोगों को हिरासत में लिया है, उनमें मौलाना मोहसिन शेख, फ़ैज़ान और राशिद अहमद पठान शामिल हैं. बिजनौर से अनवारूल हक़ और नईम काज़मी को हिरासत में लिया गया है. पुलिस फ़िलहाल इन सभी से पूछताछ कर रही है."
क्या था बयान
कमलेश तिवारी ने साल 2015 में पैग़ंबर मोहम्मद साहब के बारे में कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की थी. उसके बाद बिजनौर के अनवारूल हक़ और नईम काज़मी ने कमलेश तिवारी का सिर काटकर लाने पर इनाम की घोषणा की थी.
पुलिस ने परिवार वालों की एफ़आईआर के आधार पर इन दोनों को हिरासत में लिया है और पूछताछ कर रही है.
कमलेश तिवारी की पत्नी ने इस आधार पर दो लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई थी कि बिजनौर के दो मौलानाओं ने साल 2016 में उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी. वहीं शनिवार शाम, गुजरात एटीएस ने इसी मामले में एक व्यक्ति को नागपुर से भी हिरासत में लिया.
डीजीपी के मुताबिक, गुजरात एटीएस और यूपी पुलिस की मदद से जो लोग भी अभी गिरफ़्त में आए हैं, वो सिर्फ़ साज़िश में शामिल बताए जा रहे हैं. कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले दो संदिग्धों की पुलिस अभी भी तलाश कर रही है.
हालांकि डीजीपी का कहना था कि उन लोगों की भी पहचान हो गई है और जल्द ही उन्हें भी गिरफ़्तार कर लिया जाएगा. डीजीपी के मुताबिक, घटनास्थल पर पाए गए मिठाई के डिब्बे से अहम सुराग मिले और पुलिस साज़िशकर्ताओं तक पहुंच सकी.
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परिजनों के सवाल
लेकिन दूसरी ओर, कमलेश तिवारी के परिवार वालों का सीधे तौर पर आरोप है कि बीजेपी के एक स्थानीय नेता से उनकी रंजिश थी और इस हत्या के लिए भी वही ज़िम्मेदार हैं.
कमलेश तिवारी की मां कुसुम तिवारी ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि बार-बार मांगने के बावजूद कमलेश तिवारी की सुरक्षा धीरे-धीरे कम होती गई. बताया जा रहा है कि कमलेश तिवारी पिछले एक साल से अपनी सुरक्षा को लेकर मुख्यमंत्री को कई बार पत्र भी लिख चुके थे.
कमलेश तिवारी की मां ने राज्य सरकार पर कमलेश तिवारी के ख़तरे की आशंका को अनदेखी करने का भी आरोप लगाया. इस आरोप को कमलेश तिवारी के एक वीडियो संदेश से भी बल मिल रहा है जिसमें वो अपनी जान को ख़तरा बताते हुए सुरक्षा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं और सुरक्षा न बढ़ने के लिए सीधे योगी सरकार को निशाने पर ले रहे हैं. बताया जा रहा है कि ये वीडियो कमलेश तिवारी की हत्या से कुछ ही दिन पहले का है.
डीजीपी के दावे पर कमलेश तिवारी के बेटे सत्यम तिवारी ने सवाल उठाते हुए इसकी जांच एनआईए से कराने की मांग की है.
सत्यम तिवारी ने मीडिया से बातचीत में कहा, "मुझे नहीं पता है कि जो लोग पकड़े गए हैं उन्हीं लोगों ने मेरे पिता को मारा है या फिर निर्दोष लोगों को फंसाया जा रहा है. यदि वास्तव में यही लोग दोषी हैं और इनके ख़िलाफ़ पुलिस के पास पर्याप्त सबूत हैं तो इसकी जांच एनआईए से कराई जाए क्योंकि हमें इस प्रशासन पर कोई भरोसा नहीं है."
पुलिस के दावों में भी विरोधभास
इस मामले में न सिर्फ़ कमलेश तिवारी का परिवार पुलिस के दावों पर सवाल उठा रहा है बल्कि पुलिस की अपनी बातों और गुजरात एटीएस के दावों में भी विरोधाभास दिखाई पड़ रहा है. लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने शुक्रवार को घटनास्थल पर पहुंचने के बाद कहा था कि 'प्रथमद्रष्ट्या यह मामला आपसी रंज़िश का लगता है.'
नैथानी का यह बयान कमलेश तिवारी के परिजनों की आशंकाओं से काफ़ी मेल खाता है जबकि डीजीपी ने इसे चार साल पुराने मामले से जोड़ा है.
वहीं गुजरात एटीएस का कहना है कि उसकी हिरासत में लिए गए तीन लोगों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है जबकि डीजीपी ओपी सिंह का कहना है कि अभी सबसे पूछताछ की जा रही है.
लखनऊ में क्राइम कवर करने वाले कुछेक पत्रकारों ने मामले को अनावृत करने संबंधी डीजीपी की कड़ियों को बिल्कुल सही ठहराया है जबकि कुछ लोग इसे बेहद जल्दबाज़ी में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की जबरन कोशिश बता पर रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र कहते हैं, "जिस तरह से डीजीपी ने इस मामले को सुलझाने का दावा करते हुए इसे ख़त्म करने की कोशिश की है, उससे लगता है कि कुछ ज़्यादा ही जल्दबाज़ी दिखाई जा रही है. उनके बयान से साफ़ पता चलता है कि उसे एक ख़ास दिशा में मोड़ने की कोशिश हो रही है जबकि परिजनों के आरोपों से साफ़ तौर पर पता चलता है कि इसके पीछे आपसी रंज़िश और ज़मीनी विवाद से इनकार नहीं किया जा सकता."
सुभाष मिश्र कहते हैं, "जिन लोगों ने एक सँकरी जगह पर जाकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी, उसे पुलिस ढूंढ नहीं पा रही है जबकि उसके पास सीसीटीवी फुटेज हैं, नौकर भी पहचानता है, दूसरे अन्य साक्ष्य भी मौजूद हैं. लेकिन एक ही दिशा में पुलिस अपनी तफ़्तीश को केंद्रित रखे है और वहीं से उसे ख़त्म भी करना चाह रही है."
कमलेश तिवारी का परिवार शुक्रवार को इस बात पर अड़ा था कि बिना मुख्यमंत्री के आए कमलेश तिवारी का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा लेकिन लखनऊ मंडल के आयुक्त और कमलेश तिवारी के रिश्तेदारों के साथ हुए लिखित समझौते के बाद परिजन अंतिम संस्कार करने को राज़ी हो गए.
लखनऊ मंडल के आयुक्त मुकेश मेश्राम के साथ हुए इस समझौते में परिवार की सुरक्षा बढ़ाने, बेटे को शस्त्र लाइसेंस और नौकरी देने, लखनऊ में मकान देने और उचित मुआवज़ा देने जैसी बातों की शासन से सिफ़ारिश करने की बात कही गई है.
इस बीच, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को सुबह 11 बजे कमलेश तिवारी के परिजनों को मुलाक़ात के लिए अपने सरकारी आवास, पांच, कालिदास मार्ग पर बुलाया है.
कमलेश तिवारी को क़रीब से जानने वाले कुछ पत्रकार बताते हैं कि ख़ुद कमलेश तिवारी भी दबंग छवि के नेता थे और मोहम्मद साहब पर टिप्पणी के बाद उन्हें सुरक्षा मिली हुई थी.
एक पत्रकार नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "साल 2017 से पहले वो अकसर लखनऊ में धरना-प्रदर्शन करते थे. लेकिन 2017 के बाद सब अचानक कम हो गया या यों कहें कि बंद हो गया. इसी दौरान उन्हें पैग़ंबर साहब के ख़िलाफ़ टिप्पणी के चलते सुरक्षा भी मिल गई."
कमलेश तिवारी के परिजनों का आरोप है कि पिछली सरकार की तुलना में इस सरकार ने उनकी सुरक्षा कम कर दी थी और उनके मुताबिक, हत्या के पीछे एक बड़ी वजह ये भी है. कमलेश तिवारी की मां कुसुम तिवारी बताती हैं, "उन्हें अब सिर्फ़ दो गनर मिले हुए थे जो कि घटना वाले दिन वहां थे भी नहीं."
बहरहाल, कमिश्नर के आश्वासन के बाद परिजन शनिवार देर शाम कमलेश तिवारी के अंतिम संस्कार के लिए तैयार हो गए और उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक निवास सीतापुर ज़िले के महमूदाबाद में कर भी दिया गया लेकिन परिजनों की नाराज़गी और न्याय की मांग में उन लोगों ने कोई नरमी नहीं बरती है. इस बीच, कमलेश तिवारी की हत्या से नाराज़ तमाम जगहों पर उनके समर्थकों ने शनिवार को भी प्रदर्शन किए.
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