पटना: बदबूदार, ठहरे काले पानी में घुटती सांसें, डूबती ज़िंदगी- ग्राउंड रिपोर्ट
सितंबर महीने के अंत में तीन दिनों तक इतनी बारिश हुई कि बिहार की राजधानी पटना की दर्जनों नई- पुरानी कॉलोनियों में पांच-छह फ़ीट तक पानी भर गया. यहाँ जनजीवन आज तक अस्त- व्यस्त बना हुआ है.
राहत और बचाव के सरकारी और ग़ैर-सरकारी प्रयास लगभग 10 लाख से अधिक जलजमाव पीड़ितों के लिए काफ़ी कम पड़ गए.
बारिश रुकने और सप्ताह- भर की तेज धूप के बावजूद राजेंद्र नगर, कदमकुआं, पाटलिपुत्र कॉलोनी सहित अनेक इलाकों से अब तक पानी नहीं निकला है. यहाँ आज भी घुटने भर पानी में ज़िंदगी डूब रही है.
ऐसी हर कॉलोनी में लोग पीने के पानी, दूध और ज़रूरी दवाओं के लिए तरसते रहे. पानी के एक बोतल के लिए झगड़े तक हो रहे हैं.
राहत सामग्री वाले ट्रैक्टर पर हज़ार- पांच सौ बोतल पानी रखकर जब कोई टीम पहुँचती है, उसकी सामग्री कम पड़ जाती है. लूट मच जाती है. एक- एक बोतल पाने के लिए कई हाथ एक साथ उठ जाते हैं.
बीमारों- बुज़ुर्गों की दशा दयनीय है. राजेंद्र नगर के चारमीनार अपार्टमेंट के तीसरे तल्ले पर रहने वाली प्रो. प्रतिमा शरण उनमें से एक हैं.
लगभग 65 साल की प्रो. शरण को यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई) की गंभीर बीमारी ने जकड़ रखा है जिसके चलते वो बिस्तर पर हैं. जलजमाव के बीच बीमार प्रो. शरण अपने फ्लैट में पति और बेटे के साथ रह रही हैं.
बाहर की दुनिया को देखने समझने के लिए उनका एकमात्र सहारा उनकी घर की खिड़की थी, लेकिन अपार्टमेंट के कैंपस में मरे जानवरों के तैरती लाश लगातार दिखने पर उन्होंने उस खिड़की को बंद कर लिया है जिससे वो इन दिनों बाहरी दुनिया से जुड़ती थीं.
उनसे सवाल करने पर शुरू में वो थोड़ी असहज दिखीं. फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ और उनकी बेबस आँखें लगभग डबडबा सी गईं. वे सवाल करती हैं कि किसी बीमार की कोई दिनचर्या होती है क्या. उसकी दुनिया तो फ़ोन- टीवी तक ही सिमट जाती है.
उन्होंने कहा, "अभी तीन-चार माह पहले मेरा ऑपरेशन हुआ था, उस वजह से मुझे संक्रमण का ख़तरा रहता है. मधुमेह से भी पीड़ित हूँ. पिछले एक सप्ताह तक किसी से बात नहीं हो पा रही थी. स्थिति यह है कि हम कहीं आ- जा नहीं सकते हैं. कल से फ़ोन पर बात करने का सिलसिला शुरू हुआ है."
आपसी सहयोग
मनोविज्ञान की प्राध्यापिका प्रो. शरण को उस वक्त डर ने समेट लिया था जब कुछ दिनों पूर्व मौसम विभाग ने फिर से बारिश से जुड़ा ऑरेंज अलर्ट जारी किया था. इससे वे अवसाद की स्थिति में आ गई थी.
आपदा की स्थिति जीवन के संघर्ष को और तेज़ कर देती है, लेकिन इसी समय आपको सच्चा साथी भी मिलता है. प्रो. शरण के लिए वो साथी रहे इनके पड़ोसी भीम और नित्या.
वे कहती हैं , "भीम और नित्या ने बहुत मदद की. जब ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया तब उसे सुनकर मैं अवसाद से ग्रसित हो गयी. बुखार भी हो गया था. कारण पता नहीं, लेकिन मच्छर का काटना या बारिश से जुड़ा पुनर्नुमान से जुड़ा अलर्ट वजह हो सकता है. पीने के पानी की कमी से भी काफी परेशानियां हुई. यहाँ बदबू बहुत है."
भीषण जलजमाव से प्रभावित राजेंद्र नगर के कई सड़कों पर आज भी तीन से पांच फ़ुट तक पानी जमा है. आठ दिनों से जलजमाव की वजह से पानी का रंग मटमैला से काला हो चला है और बदबू इतनी है कि नाक फट जाए.
नरक में रहने की अनुभूति कैसी होती है इसका अंदाज़ा यहाँ आकर लगाया जा सकता है. घुटने भर से ऊपर तक जमा पानी के बीच उबड़-खाबड़ रोड नंबर 12 पर चलने के दौरान कई बार पैर डगमगाते हैं. अगर पैर में फटे पॉलिथीन या कपड़े फंसते हैं तो सांप के लिपटने सा भाव मन को बहुत डरा जाता है.
सड़क के दोनों ओर बड़े-बड़े आलीशान मकान हैं, लेकिन दशहरे की रौनक यहाँ नहीं दिखती. खाली कर दिए घर इलाक़े की मायूस उदासी बयां कर जाते हैं. अब यहाँ रात में चौकस रहने वाले कुत्ते भौंकते नहीं रोते हैं.
इन भीषण परिस्थितियों के बीच अपार्टमेंट में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी का कहना है कि उन्होंने कई भीषण बाढ़ रिपोर्ट की, लेकिन महज़ तीन दिनों की बारिश की वजह से हुए जलजमाव में वो ऐसे घिरेंगे इसका अंदाज़ा उन्हें कभी नहीं था.
उन्होंने बताया, "पिछले तीस सालों से मैं यहाँ रह रहा हूँ, लेकिन ऐसी स्थिति का सामना कभी नहीं करना पड़ा था. यहाँ पानी गर्दन तक भरा था जो आज घुटने तक आया है. हमारे लिए आशा की किरण सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की बोट ही थी, लेकिन उन्हें बचाव कार्य से हटा दिया गया है ".
बदल गई ज़िंदगी
जलजमाव वाले इलाके में जिंदगी का ढर्रा बदल गया है. इन दिनों यहाँ के लोग घर-अपार्टमेंट के छतों पर जाकर एक दूसरे को देख लेते हैं. न किसी को दफ़्तर, क्लीनिक, कोर्ट जाने की जल्दी होती है और न दुकान. यहाँ वक्त ठहर सा गया है.
अमरनाथ तिवारी कहते हैं , "पहले हमलोग दिनभर एनडीआरएफ़ की टीम के आने का इंतज़ार करते थे. कुछ निजी संस्थानों को छोड़ कोई सरकारी संस्था मदद के लिए यहाँ नहीं आई है."
"लोग विकल्पहीन हैं. बस सब किसी तरह तक चीजों को मैनेज कर रहे हैं. स्थिति नारकीय बनी हुई है. आठ-नौ दिन हो गए और अब तक पानी निकाला नहीं जा सका है. अब दूसरी समस्या महामारी की आ सकती. सुना है डेंगू के करीब पांच सौ मरीज़ पटना के अस्पताल में भर्ती किए जा चुके हैं."
लगभग 10 दिनों से ठहरा पानी पिछले कुछ दिनों से सड़ने लगा है. पानी का रंग मटमैला न रहकर काला हो गया है. इलाक़े के कई लोग घर छोड़कर चले गए हैं और पटना के होटल पहली बार स्थानीय लोगों से भर गए हैं.
अपार्टमेंट के बाहर रिक्शे पर मिले शिव कुमार राम सपरिवार पिछले सोमवार 30 सितंबर को फ़्लैट खाली कर चुके हैं. वे बताते हैं, "हमलोग सपरिवार एक्ज़ीबिशन रोड स्थित एक होटल में शिफ्ट कर गए हैं. यहाँ चोरी का बहुत हल्ला है इसलिए हर दिन घर आकर देख लेते हैं."
भीषण जलजमाव के बीच जो लोग यहाँ से निकल चुके हैं उन्हें चोरी का भय सता रहा है और जो यहाँ हैं उनके जीवन का संघर्ष जारी है.
नीरज सहाय
पटना से, बीबीसी हिंदी के लिए
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