ईरान के परमाणु संकट को 350 शब्दों में समझिए


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ईरान और पश्चिमी देशों के बीच परमाणु समझौता आख़िरकार ख़त्म हो गया है. चार साल पहले ये समझौता हुआ है. आइए जानते हैं कि परमाणु समझौता इस स्थिति में पहुँचा कैसे.

परमाणु समझौता क्या है?

ईरान ने हमेशा से इस बात पर ज़ोर दिया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है लेकिन संदेह ये था कि ये परमाणु बम विकसित करने का कार्यक्रम था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अमरीका और यूरोपीय संघ ने 2010 में ईरान पर पाबंदी लगा दी.
वर्ष 2015 में ईरान का छह देशों के साथ एक समझौता हुआ. ये देश थे- अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, रूस और जर्मनी. इस समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रमों को सीमित किया, बदले में उसे पाबंदी से राहत मिली.
समझौते के तहत ईरान को यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम रोकना पड़ा. ये रिएक्टर ईंधन बनाने के लिए इस्तेमाल होता है और इसका इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने में भी होता है.

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ये समझौता कैसे टूटा?

सबसे पहले मई 2018 में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने समझौते को रद्द करते हुए प्रतिबंध लगाए. ट्रंप चाहते थे कि ईरान के साथ नया समझौता हो, जिसमें ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम और क्षेत्रीय संघर्ष में उसकी भागीदारी रोकने की बात हो.
ईरान ने इससे इनकार किया लेकिन इससे ईरान की मुद्रा स्फ़ीति बढ़ गई और उसकी मुद्रा में गिरावट आई.
मई 2019 में जब प्रतिबंधों को कड़ा किया गया तो ईरान ने भी समझौते में किए गए वादों से मुकरना शुरू कर दिया. ट्रंप के शासनकाल में ईरान और अमरीका के बीच रिश्तों में दरार बढ़ गई. जनवरी 2020 में ये समझौता पूरी तरह टूट गया.
अमरीका ने ईरान के शीर्ष सैनिक कमांडर क़ासिम सुलेमानी को बग़दाद हवाई अड्डे के बाहर हवाई हमले में मार दिया. इसके दो दिन बाद 5 जनवरी को ईरान ने परमाणु समझौते से अपने को पूरी तरह अलग कर लिया.
ईरान ने घोषणा की है कि अब वो समझौते में लगाई गई किसी भी पाबंदी को नहीं मानेगा और उनमें यूरेनियम संवर्धन को कम करना भी शामिल है.

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