बिजनौरः CAA विरोध मामले में गिरफ़्तार 48 लोगों को ज़मानत, नहीं दे पाई पुलिस सबूत
"मेरे दोनों बेटों को ज़मानत मिल गई है. अब जल्दी ही मेरे जिगर के टुकड़े घर आ जाएंगे."
ये शब्द उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले की नगीना तहसील में रहने वालीं नाज़िरा के हैं.
उत्तर प्रदेश पुलिस ने बीते 20 दिसंबर को इनके दो बेटों सलीम और शाकिर समेत 83 लोगों को सीएए के ख़िलाफ़ विरोध करने के मामले में गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया था.
उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन युवकों पर हत्या के प्रयास, तोड़फोड़, बलवा और पुलिस के साथ मार-पीट जैसे संगीन मामलों की धाराओं के साथ केस दर्ज किया है.
इसके बाद से नाज़िरा के दोनों बेटे जेल में बंद हैं.
लेकिन बीती 28 जनवरी को बिजनौर के अपर सत्र न्यायाधीश संजीव पांडेय ने इन अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस की ओर से अभियुक्त बनाए गए 83 में से 48 को सबूतों के अभाव में ज़मानत देने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?
जज पांडेय ने अपने आदेश में कहा है, "एफ़आईआर में भीड़ द्वारा पुलिस पर फायर करने का उल्लेख भी है. लेकिन किसी भी हथियार की बरामदगी नहीं दिखाई गई है. केस डायरी के अनुसार घटना स्थल से 315 बोर के दो खोखे बरामद हुए हैं. लेकिन अभियोजन पक्ष द्वारा ऐसा कोई भी प्रपत्र न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह स्पष्ट हो कि भीड़ में से किस अभियुक्त ने पुलिस पर फायर किया. अभियोजन के अनुसार इस घटना में किसी भी पुलिसकर्मी या किसी अन्य व्यक्ति को गोली की चोट नहीं आई है. अभियोजन द्वारा किसी फायर आर्म की बरामदगी भी नहीं दिखाई गई है."
जज पांडेय ने अभियुक्तों को जमानत देते हुए कहा, "मेरे विचार में तथ्यों और परिस्थितियों तथा अपराध की प्रकृति को देखते हुए ज़मानत का पर्याप्त आधार है."
'कानून पर था पूरा भरोसा'
कोर्ट के फ़ैसले के बाद सलीम की गली और घरवालों ने राहत की सांस ली है.
सलीम की पत्नी सबा को जब पता चला है कि कोर्ट ने उनके पति को जमानत दे दी है तो ये सुनते ही सबा की आँखों में आँसुओं से भीग गई.
सबा कहती हैं, "मुझे अदालत से इंसाफ़ की पूरी उम्मीद थी. उनकी बाल काटने की दुकान है. हम ऐसे लोग हैं जो रोज़ कमा-खाकर गुजारा करते हैं. लेकिन जबसे पुलिस उन्हें ले गई है तब से हमारा बुरा हाल है."
अपने साल भर के बेटे अर्शिल और खुद को संभालते हुए सबा कहती हैं कि जब से इसके अब्बू जेल गए हैं तब से ये हर रोज़ अपने अब्बू को याद करता है. दरवाज़े पर कोई आहट होते ही तलाशता है कि कहीं अब्बू तो नहीं आ गए. और मैं इतने दिनों से इसे झूठा दिलासा दिलाकर चुप करा लेती थी.
ये कहते-कहते सबा पूछ बैठती हैं कि आख़िर जब ज़मानत हो चुकी है तो अब तक पुलिस ने उनके पति को छोड़ा क्यों नहीं?
गिरफ़्तारी वाले दिन को बयां करे हुए सबा कहती हैं, "हमारे शौहर सलीम और देवर शाकिर तो नमाज़ पढ़ने घर से बाहर गए थे. बाद में पता चला कि पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया है. हमने पुलिस की तमाम मिन्नतें की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. दोनों के जेल जाने के बाद हमें घर का खर्च तक चलाने में परेशानी आने लगी."
सबा से बात करते-करते हमारी नज़र उनके करीब बैठीं नाज़िरा पर पड़ी.
अपने बेटों की जमानत की ख़बर सुनकर नाज़िरा कहती हैं, "अल्लाह जानता है या हम कि अपने बेटों के बिना एक-एक दिन कैसे काटा है. मैं हर रोज़ नमाज़ पढ़ अल्लाह से जल्द ही अपने बेटों की रिहाई की दुआ मांगा करती थी."
83 में से 48 को ज़मानत मिली, आगे क्या?
बिजनौर के अपर सत्र न्यायाधीश संजीव पांडेय ने यूपी पुलिस की ओर से साक्ष्य प्रस्तुत न किए जाने पर 48 लोगों को ज़मानत दे दी है.
इसके साथ ही बाकी 35 अभियुक्तों की सुनवाई के लिए अगले महीने दो तारीख़ें दी हैं.
लेकिन इन 48 लोगों को जमानत दिलाने वाले वकील अहमद जकावत कोर्ट के नतीजे पर अपनी खुशी जाहिर करते हैं.
वे कहते हैं, "कोर्ट ने पुलिसकर्मियों की चोटों को मामूली माना है और अंत में अदालत इसी नतीजे पर पहुंची कि वहां इस तरह का कोई मामला नहीं था, जो लोग नमाज़ पढ़कर लौट रहे थे, उनको पकड़ा, एक कमरे में बंद किया और इसके बाद गिरफ़्तार किया गया."
कोर्ट के आदेश के बाद भी...
कोर्ट की ओर से 48 अभियुक्तों को जमानत दिए जाने का फैसला आने के बाद भी अभियुक्तों के घरवालों के मन में एक डर समाया हुआ है.
डर इस बात का है कि कहीं कुछ ऐसा न हो जाए कि उनके घर के बच्चे घर वापस न आ सकें, कोई अनहोनी न हो जाए.
एक अभियुक्त के रिश्तेदार तल्हा कहते हैं, "हमें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं हमारे बच्चों की ज़मानत की ख़बर मीडिया में आने उनकी रिहाई में समस्या न खड़ी हो जाए."
वहीं, बिजनौर की नगीना तहसील में कोर्ट का फैसला उनके हक़ में आने के बावजूद कुछ लोग इतनी बात कहने से भी गुरेज़ करते दिखे.
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