दिल्ली चुनाव: बीजेपी को शाहीन बाग का फायदा हुआ?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर तो बढ़ा है लेकिन उसे उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलती दिख रही हैं, रुझानों से साफ़ है कि वह दहाई का आंकड़ा पार नहीं करने जा रही है.
दिल्ली चुनाव से 15 दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह ने प्रचार की कमान संभाली और कई केंद्रीय नेताओं स्मृति ईरानी, राजनाथ सिंह, प्रकाश जावडेकर और हरदीप पुरी समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने रैलियां कीं जिनमें योगी आदित्यनाथ ने खास तौर पर शाहीन बाग का मुद्दा उठाया.
इन रैलियों में बीजेपी ने दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों को एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की और बीजेपी के नेताओं ने एक के बाद एक विवादास्पद बयान दिए.
गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी रैली में वोटरों से कहा था - "मित्रो, बटन दबाओ तो इतने गुस्से में दबाना कि बटन यहां बाबरपुर में दबे और करंट शाहीन बाग में लगे".
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपने समर्थकों से नारे लगवाए-- 'गोली मारों &*% को', वहीं पश्चिमी दिल्ली के सांसद परवेश वर्मा ने शाहीन बाग के लोगों के बारे में कहा कि अगर इन लोगों को नहीं रोका गया तो कल "ये लोग आपके घर में घुसकर माँ-बहनों का रेप करेंगे."
इन बयानों के जरिए बीजेपी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने और राष्ट्रवाद का मुद्दा भी बनाने की कोशिश की.
मनोज तिवारी का दावा
दिल्ली में मतदान के बाद हुए एग्ज़िट पोल के नतीजे आने पर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने ट़वीट किया था, '' सारे दावे फेल होंगे, मेरा ट्वीट संभाल कर रखिएगा और दिल्ली में बीजेपी 48 सीट जीतकर सरकार बनाएगी. कृपया ईवीएम को दोष देना का अभी से बहाना न ढूंढें.''
हालांकि नतीजे आने के बाद मनोज तिवारी ने संवाददाता सम्मेलन में अरविंद केजरीवाल को बधाई दी और कहा कि जनादेश को वो सिर माथे लेते हैं.
उन्होंने कहा ,'' पार्टी हार की समीक्षा करेगी लेकिन इस बात का संतोष हैं कि पार्टी का वोट प्रतिशत 38फीसदी हुआ है.''
लेकिन बीजेपी का दहाई का आँकड़ा छू न पाना , इसका मतलब क्या ये माना जाए कि दिल्ली में हुए विकास के काम बीजेपी के दावों पर हावी हो गए?
वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी मानती हैं, "अरविंद केजरीवाल ने काम किए हैं और उनकी साख भी अच्छी थी. उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में काफी काम किया है लेकिन उसके बावजूद बीजेपी ने आप को कड़ी टक्कर दी है".
वो बताती हैं, ''इसमें कोई शक नहीं है कि केजरीवाल ने अच्छा काम किया है और बीजेपी ने ये चुनाव बिना किसी मुख्यमंत्री के चेहरे और केजरीवाल की प्रो-इनकम्बेंसी के खिलाफ़ लड़ा. हालांकि बीजेपी ने आखिरी समय में प्रचार किया और कारपेट बॉम्बिंग की. बीजेपी हार मानने वाली पार्टियों में से नहीं है और उन्होंने आखिरी समय तक चुनाव लड़ा है और अपनी नंबर टैली को सुधारा है. शाहीन बाग और इससे जुड़े मुद्दों पर बीजेपी के काडर ने उन्हें वोट किया है.''
शाहीन बाग़ और हनुमान चालीसा
चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाया था कि वो शाहीन बाग पर चुप्पी साधे हुए हैं और वहां बैठे प्रदर्शनकारियों को चिकन बिरयानी मुहैया करवा रहे हैं. ऐसे में पत्रकारों ने जब बीजेपी के आरोपों पर केजरीवाल से सवाल पूछा था तो उन्होंने कहा कि उनके विरोधी उन्हें एंटी-हिंदू होने का आरोप लगाते है जबकि वो तो हनुमान के कट्टरभक्त हैं.
एक निजी समाचार चैनल पर एंकर के कहने पर अरविंद केजरीवाल ने हनुमान चालीसा का पाठ भी किया था जिसके जवाब में मनोज तिवारी एक न्यूज़ चैनल पर हनुमान चालीसा बांचते दिखाई दिए.
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं बीजेपी, दिल्ली में पिछले 22 सालों से सत्ता से बाहर है उसके बावजूद पार्टी के पास दिल्ली में कोई चेहरा नहीं था और वो प्रचार में देर से भी उतरी है.
वो बीजेपी के इस प्रदर्शन पर कहते हैं, ''नरेंद्र मोदी के साल 2014 में सत्ता में आने के बाद शहरी गरीब में बीजेपी का जनाधार बढ़ा है लेकिन दिल्ली में केजरीवाल के समर्थकों में सेंध नहीं लगा पाई. पहले ये वर्ग कांग्रेस के साथ था और अब ये आप के पास चला गया है और बीजेपी इसे अपनी ओर मोड़ने में नाकाम रही. आखिरी समय में उसने अनाधिकृत कलोनियों को रेगुलर किया लेकिन उसका फायदा भी नहीं हुआ.''
हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस का कमज़ोर होना भी आप और बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा है.
इस पर पूर्णिमा जोशी कहती हैं, "दिल्ली चुनाव में कांग्रेस ने अपनी तरफ से मजबूत उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन पार्टी में जो राष्ट्रीय संकट दिखाई देता है, उससे नेताओं में असमंजस की स्थिति दिखाई देती है. हालांकि कांग्रेस में क्षेत्रीय नेता हैं जैसे पंजाब में अमरिंदर सिंह, मध्य प्रदेश में कमलनाथ या छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल हों ये लोग काम कर रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में संकट साफ़ दिखाई देता और इसका फायदा कहीं न कहीं बीजेपी को हुआ है".
हालांकि प्रदीप सिंह इससे इत्तेफाक नहीं रखते, वे कहते हैं, "अगर कांग्रेस लड़ाई में होती तो वो मुस्लिम वोट को बांटती, झुग्गी झोपड़ी का वोट भी ले जाती जो उसका पारंपरिक वोट रहा है लेकिन देखा जा रहा है कि हर चुनाव में कांग्रेस नीचे ही जा रही है. ऐसे में कांग्रेस के मैदान में न होने से उसका फायदा आप को हुआ है और नुकसान बीजेपी को.''
ज़िम्मेदार कौन - जेपी नड्डा या अमित शाह
लेकिन क्या इस हार के लिए पार्टी के नवनियुक्त अध्यक्ष जेपी नड्डा को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. इस पर विशेषज्ञों का मानना है कि वे अभी नए हैं और लोग उन्हें कम ही जानते हैं.
पूर्णिमा जोशी कहती हैं,"नड्डा को अमित शाह का दायां हाथ माना जाता है और वो विवादों से परे रहने वाले नेता हैं. बहुत शांत रहते हैं और वो अमित शाह के लिए कोई चुनौती भी नहीं हैं."
वो बताती हैं,'' नड्डा को अध्यक्ष पद भले ही हो लेकिन पार्टी अमित शाह ही चला रहे हैं.'' जेपी नड्डा को 20 जनवरी को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था.
वे मानती हैं कि बीजेपी संगठनात्मक तौर पर तो मजबूत हैं लेकिन उसे राज्य इकाइयों को मज़बूत करना होगा. लोग राष्ट्रीय स्तर पर मोदी को वोट कर रहे हैं वो पार्टी को नहीं कर रहे हैं बल्कि मोदी को कर रहे हैं.
लेकिन अगर मोदी उम्मीदवार नहीं है तो पार्टी को वोट नहीं मिल रहे हैं और इसका प्रमाण राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ , पंजाब और झारखंड में हुए चुनाव हैं जहां वे जीत नहीं पाए हैं.
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