दिल्ली चुनाव नतीजे: केजरी'वॉल' ने कैसे दी 'शाह' को मात
आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ हो गई है. बीजेपी को उन्हीं का 'करंट' ज़ोर से लगा है.
अब बीजेपी कह रही है, "विजय से हम अहंकारी नहीं होते और पराजय से हम निराश नहीं होते". हालांकि भाजपा का प्रदर्शन 2015 के मुक़ाबले बेहतर ज़रूर हुआ.
कांग्रेस को चुनाव पहले हथियार डालने का पूरा सिला मिला. आम आदमी पार्टी के 50 से ज्यादा रोड शो के मुकाबले में अमित शाह ने 40 से ज्यादा सभाएं की. वहीं राहुल और प्रियांका ने केवल चार रैलियां की.
क्या इन्हीं रोड शो में छिपा है आम आदमी पार्टी के प्रचंड जीत का राज़ या फिर पर्दे के पीछे की रणनीति ने भी किया है कमाल.
आम आदमी पार्टी की जीत का क्या है मंत्र?
शाहीन बाग़ पर फंसे नहीं पर बचे ज़रूर
दिल्ली चुनाव नतीजे पर जब भी चर्चा शुरू होती है, नागरिकता क़ानून के खिलाफ़ शाहीन बाग़ में चल रहे प्रदर्शन का ज़िक्र ज़रूर आता है.
इसी कड़ी में जब एक निजी न्यूज़ चैनल में साक्षातकार के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से शाहीन बाग़ पर सवाल पूछा, तो उनके एक जवाब ने बीजेपी को बैठे बिठाए मुद्दा दे दिया.
मनीष से सवाल पूछा गया, "शाहीन बाग़ पर आम आदमी पार्टी किधर है? इसके जवाब में मनीष ने कहा, "मैं शाहीन बाग़ के लोगों के साथ हूं"
23 जनवरी को मनीष सिसोदिया के इस बयान के बाद भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसे सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया. भाजपा को इसका कितना फायदा मिला इस पर भाजपा वाले ज़रूर विचार करेंगे. लेकिन इतना जरूर है कि आम आदमी पार्टी ने वक्त रहते इस बयान का डैमेज़ कंट्रोल कर लिया.
इस बयान के बाद मनीष ने कोई बड़ा इंटरव्यू नहीं दिया और अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार में जुट गए.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है लेकिन केजरीवाल विरोध प्रदर्शन करने वालों से न तो मिलने गए और न ही प्रदर्शन वालों को हटाने की कोई कवायद छेड़ी. शाहीन बाग़ में फायरिंग के बाद दिल्ली की क़ानून व्यवस्था पर एक ट्वीट जरूर किया.
वरिष्ठ पत्रकार अपर्णा द्विवेदी की मानें तो आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव से बहुत सबक लिया है. दिल्ली में पिछली लोकसभा चुनाव में आप को लग रहा था कि वो दो तीन सीटें ले आएगी. तब उन्होंने बीजेपी के जाल में फंस कर विपक्ष को अटैक करने की कोशिश की थी. इसका उन्हें बहुत नुक़सान हुआ. इस बार विधानसभा चुनाव में उन्होंने ये ग़लती नहीं की.
अपर्णा मानती हैं कि केजरीवाल ने पूरी कोशिश की ताकि मुसलमान वोट उनसे छिटके नहीं और हिंदू वोटर नाराज़ भी न हों. दोनों को एक साथ साधने की कोशिश में ही अरविंद केजरीवाल के टीवी चैनल पर हनुमान चालीसा भी पढ़ा और चुनाव बाद हनुमान मंदिर भी गए.
काम पर वोट मांगे
अगस्त, 2019 में दिल्ली सरकार ने बिजली की 200 यूनिट मुफ़्त देने की घोषणा की थी यानी 200 यूनिट तक ख़र्च करने पर बिजली का बिल ज़ीरो आएगा.
पानी की बात करें तो इस समय दिल्ली सरकार 20 हज़ार लीटर तक पानी मुफ़्त दे रही है. आख़िर के छह महीने में दिल्ली सरकार ने 400 से ज़्यादा मोहल्ला क्लिनिक खुलवाएं, स्कूलों में 20 हज़ार नए कमरे बनवाने का दावा भी किया.
आम आदमी पार्टी ने चुनाव से पहले अपना रिपोर्ट कार्ड जारी करते हुए अपने काम गिनाए. इसी पर उन्होंने अपना नारा भी बुलंद किया, 'मेरा वोट काम को,सीधे केजरीवाल को'
दिल्ली की जनता को इन योजनाओं का पूरा लाभ मिला. चुनाव के नतीजे इस बात को साबित भी करते हैं.
पिछले दिनों जितने भी टीवी चैनल पर अरविंद केजरीवाल ने इंटरव्यू दिए, उन्होंने शुरूआत इसी बात से की - दिल्ली में आम आदमी पार्टी को काम पर वोट करो, अगर हमने काम नहीं किया तो वोट मत करो.
इसका नतीजा ये है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में 300 यूनिट तक बिजली मुफ़्त देने का वादा किया और बीजेपी ने दो रुपए किलो आटा देने का वादा किया.
आम आदमी पार्टी की दिल्ली में जीत इस बात की ओर इशारा भी करती है - मुफ़्त में बिजली-पानी का ये फ़ॉर्मूला अब दिल्ली के बाहर दूसरे राज्यों में भी लागू किया जाएगा.
इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल से हो भी गई है. सोमवार को ही विधानसभा में बजट के दौरान तीन महीने में जिन घरों में बिजली की खपत 75 यूनिट बिजली की होगी, उन्हें पश्चिम बंगाल में मुफ्त बिजली मिलेगी.
भाजपा ने एक महीने के चुनाव प्रचार के दौरान आतंकवादी, बिरयानी, करंट और न जाने किन किन शब्दों का इस्तेमाल किया. नतीजों से साफ़ है उनके ये मुद्दे उन्हें बहुत ज्यादा सीटें दिलाने में कामयाब नहीं हो पाई.
अपर्णा कहती हैं, "फ्री में बिजली, पानी, बस यात्रा के बाद आगे उनपर दबाव होगा, मेट्रो की यात्रा फ्री करने का. ये आगे की बात है. लेकिन मुफ्त की चीज़ों ने उनके वोट बैंक को संगठित ज़रूर किया है. ख़ास तौर पर महिलाओं को."
इस विधानसभा चुनाव में वोट शेयर की बात करें तो कमोबेश आम आदमी पार्टी 50-55 फीसदी के आसपास ही रहा. इसके पीछे की एक बड़ी वजह अपर्णा बिजली-पानी के मुद्दे को ही मानती हैं.
विधायकों के टिकट काटे
2015 में 70 में से 67 सीट जीतने के बाद भी इस बार आम आदमी पार्टी ने 15 विधायकों के टिकट काटे. उसमें से कई सीटों पर तो उनके जीते हुए विधायक थे, जो बाग़ी हो गए थे, जैसे कपिल मिश्रा, अलका लांबा.
पार्टी का कहना है 'दिल्ली के सभी विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए एक अंदरूनी सर्वे के आधार पर यह फ़ैसला किया गया है'. ये बताता है कि पार्टी ने अपने इंटरनल इंटेलिजेन्स का खूब इस्तेमाल किया. पार्टी के इस निर्णय से नाराज़ कुछ मौजूदा विधायकों ने पार्टी आलाकमान पर गंभीर आरोप लगाए हैं और पार्टी के फ़ैसले पर सवाल खड़े किए.
ऐसे में एक गुंजाइश ये भी बन सकती थी वो विधायक, पार्टी की जड़ें काटने का काम करते लेकिन नतीजों में ऐसा दिख नहीं रहा. कुछ एक सीटों पर बाग़ियों ने अच्छी टक्कर दी लेकिन जीत दर्ज नहीं करा पाए. अलका लांबा तो बुरी तरह हारीं और कपिल मिश्रा भी.
दिल्ली कैंट के विधायक कमांडो सुरेंद्र सिंह, या फिर आंदोलन से राजनीति में आए पंकज पुष्कर हो - इनकी नाराज़गी का पार्टी को नुकसान होता नहीं दिखा.
इसके अलावा आम आदमी पार्टी में चुनाव के ठीक पहले शामिल हुए महाबल मिश्रा के बेटे विनय मिश्रा ने अपनी सीट बचा ली. विनय मिश्रा ने रातों रात आप पार्टी ज्वाइन की थी और पार्टी ने टिकट भी दिया.
मटिया महल से चुनाव से ठीक पहल शोएब इक़बाल को पार्टी में शामिल करना भी आम आदमी पार्टी की अच्छी रणनीति रही. शोएब इक़बाल ने इस सीट पर बड़े अंतर से जीत दर्ज कराई.
केजरीवाल ही चेहरा
दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों से एक बात तो साबित हो गई दिल्ली में केजरीवाल का जादू एक बार फिर चल गया. आप के लिए केजरीवाल ने एक मज़बूत 'वॉल' का काम किया.
जब जब शाहीन बाग़ के मुद्दे पर बीजेपी ने आप को घेरने की कोशिश की, तब तब आम आदमी पार्टी ने भाजपा से उनका मुख्यमंत्री उम्मीदवार का एलान करने की चुनौती दी.
हालांकि जैसे बीजेपी के शाहीन बाग़ के जाल में आम आदमी पार्टी नहीं फंसी वैसे ही भाजपा आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के दांव में नहीं फंसी.
भाजपा चाह कर भी केजरीवाल के कार्यकाल में किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार का कोई आरोप सिद्ध नहीं कर पाई. आप पार्टी ने ईमानदार केजरीवाल की छवि को पूरी तरह भुनाया.
केजरीवाल ने चुनाव प्रचार में कोई बड़ी रैली नहीं की. छोटे-छोटे रोड शो किया, नुक्कड़ सभाएं की. हर विधानसभा में उन्होंने अपना पूरा वक्त़ दिया. आम आदमी पार्टी के स्टार प्रचारक भी वही थे, रणनीतिकार भी, मुख्यमंत्री का चेहरा भी, पार्टी के संयोजक भी और कार्यकर्ता भी.
चुनाव प्रचार में एक सीट जिस पर उन्होंने सबसे कम ध्यान दिया वो नई दिल्ली सीट थी. लेकिन इस सीट पर कमान संभाल रही थी, उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और बेटी हर्षिता केजरीवाल.
भाजपा के पास दिल्ली में मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा ही नहीं था. इस मजबूरी को उन्होंने रणनीति का हिस्सा बनाने की भी कोशिश की थी. लेकिन सफल नहीं हुए. 2015 में दिल्ली को भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में पैराशूट उम्मीदवार दिया था. पर जनता ने नकार दिया.
दिल्ली बीजेपी के मजबूत चेहरे पर हर्षवर्धन के नेतृत्व में 2013 में दिल्ली बीजेपी ने थोड़ा बेहतर प्रदर्शन जरूर किया था, लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में उनके नाम पर एक राय नहीं बन पाई.
अपर्णा मानती है कि केजरीवाल के खिलाफ न तो बीजेपी के पास कोई चेहरा था और न ही कांग्रेस के पास. केजरीवाल का विकल्प न होना - आम आदमी पार्टी के लिए वरदान साबित हुआ.
प्रशांत किशोर की रणनीति
'केजरीवाल फिर से'
'दिल्ली में तो केजरीवाल'
'आई लव केजरीवाल'
'अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल'
'मेरा वोट काम को, सीधे केजरीवाल को'
पिछले दो-तीन महीने के चुनावी कैंपेन में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में केवल एक नारा नहीं दिया.
मुद्दों और विपक्ष के हमले को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्लोगन देखने को मिले. इन सबके पीछे जो दिमाग काम कर रहा था वो था प्रशांत किशोर का.
चुनाव से ठीक पहले, दिसंबर में अरविंद केजरीवाल ने प्रशांत किशोर की कंपनी IPAC के साथ हाथ मिलाया.
जैसे ही बीजेपी ने शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून को लेकर चल रहे प्रदर्शन को मुद्दा बनाने की कोशिश की, इसके तुरंत बाद आम आदमी पार्टी ने अपना स्लोगन बदल दिया, 'मेरा वोट काम को सीधे केजरीवाल को'. पार्टी के जानकार बताते हैं कि आप की रणनीति बनाने में प्रशांत का बहुत बड़ा हाथ हो न हो लेकिन बीजेपी की उनकी समझ ने अरविंद को सहारा बहुत दिया.
प्रशांत किशोर 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के रणनीतिकार थे.
उन्होंने तय किया बीजेपी जब-जब शाहीन बाग़ का मुद्दा उठाएगी, आम आदमी पार्टी अपने पांच साल का काम गिनाएगी. अरविंद और प्रशांत की जोड़ी जिसे सियासी गलियारे में AK और PK की जोड़ी के नाम से भी जाना जाता है. माना ये जाता है कि आम आदमी पार्टी का एक भी मुसलमान उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल के साथ चुनाव प्रचार के दौरान नहीं दिखा.
आम आदमी पार्टी पर नज़र रखने वालों की मानें, तो ये रणनीति प्रशांत किशोर ने बनाई थी. इसी रणनीति के तहत आम आदमी पार्टी के मुसलमान नेता चाहे अमानतउल्ला हो शोएब इक़बाल दोनों ने मानो मुंह पर ताला जड़ लिया.
आम आदमी पार्टी चुनाव आयोग से पहले रिपोर्ट कार्ड लेकर आई और फिर गैरंटी कार्ड. कांग्रेस और बीजेपी के मैनिफ़ेस्टो के बाद आम आदमी पार्टी ने अपना मैनिफ़ेस्टो भी जारी किया. साफ़ दिखा कि AK और PK की जोड़ी ने जो तैयारी की वो विपक्षी दलों से बहुत ज्यादा थी.
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