दिल्ली हिंसा: हिंदू मुस्लिम भाई-भाई से 'कसाई-दंगाई' कैसे बन गए?



दिल्ली हिंसा में घायल एक शख़्सइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
Image captionदिल्ली हिंसा में घायल एक शख़्स

2020 में साल 2002 याद आया. तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सीलमपुर मेट्रो का उद्घाटन किया था. वाजपेयी और मेट्रो, दोनों को देखने हम कुछ दोस्त मेट्रो स्टेशन जाना चाहते थे, लेकिन पुलिसवालों की बैरिकेडिंग और सिर्फ़ डराने के लिए दिखाए गए डंडों ने हमारे कदम रोक दिए थे.
उस रोज़ पहली बार समझ आया था कि 'सुरक्षा के इंतज़ाम' नाम की भी कोई चीज़ होती है. ठीक 18 साल बाद सीलमपुर की लगभग उसी जगह पर आज फिर 'सुरक्षा के इंतज़ाम' हैं.


सीलमपुर की लाल बत्तीइमेज कॉपीरइटAFP
Image captionसीलमपुर की लाल बत्ती

22 से 26 फरवरी के बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में लोग मारे गए लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है और सैकड़ों दुकान, घर आग के हवाले किए जा चुके हैं, 'सुरक्षा के इंतज़ाम' हैं.
26 फरवरी की रात मैं उसी सीलमपुर से उस रास्ते की तरफ़ बढ़ रहा हूँ, जो दंगाइयों के हंगामे की गवाह रही है. बचपन में स्कूल आते-जाते सीलमपुर की जिन गलियों से मैं अपने घर लौटता था, उन गलियों के गेट पर पहरा दे रहे लोग मुझे शक भरी निगाह से देख रहे हैं. लगभग हर गली बंद है.
कुछ दूरी पर मिली-जुली आबादी वाले सीलमपुर का वो धरना स्थल है, जहां से नाग़रिकता क़ानून के ख़िलाफ़ बैठी औरतें 22 फरवरी की रात उठकर जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठ गईं थीं. इसके बाद भड़की हिंसा को देखते हुए ये औरतें वापस अपने पुराने धरनास्थल पर रोज़ बैठने लगीं हैं. रात के क़रीब नौ बज रहे हैं. धरनास्थल में औरतें औरतों की एंट्री से पहले तलाशी ले रही हैं.


दिल्ली के सीलमपुर इलाके में धरने पर बैठी औरतें
Image captionदिल्ली के सीलमपुर इलाके में धरने पर बैठी औरतें

औरतें क्यों उठकर गईं थीं जाफ़राबाद?

इस वक़्त क़रीब 100 औरतें बैठी हुई हैं. मेरे पहुंचते ही कुछ औरतें अपना सिर और मुंह ढकने लगीं. ये औरतें अपना नाम बताने से कतरा रही हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रही तबस्सुम चेहरे पर मास्क लगाकर आईं और कहने लगीं, ''हमने तो 22 फरवरी की रात अपने दलित भाई चंद्रशेखर आज़ाद के लिए कैंडल मार्च जाफ़राबाद तक निकाला था. हमारी रैली तो दलित भाई के सपोर्ट में थी, लेकिन वहां पुलिस हमसे बदतमीज़ी करने लगी. औरतों की भीड़ पर बस चढ़ाने की कोशिश की. तब फिर हम वहीं बैठ गए कि अब नहीं लौटेंगे.''
दूसरे से पूछकर अपना नाम सरताज बताने वाली महिला कहने लगीं, ''मोदीजी तीन तलाक़ क़ानून के वक़्त मुसलमान बहनों को हक देने की बात कह रहे थे. अब जब सड़क पर औरतें बैठी हैं, तो आकर मिल लें न उन्हीं मुसलमान बहनों से. देखो जी, मैं कहूंगी कि जाफ़राबाद पर धरने वाली बात तो बहाना है. हमें पुलिसवालों ने कही कि कपिल मिश्रा को गिरफ़्तार करेंगे, हिंसा हो रही है इसलिए आज लौट जाओ तो हम वहां से वापस यहां आ गए.''
ये औरतें सड़क के जिस किनारे बैठी थीं, उसके दूसरी तरफ़ वाली सड़क से कुछ देर पहले सीएम अरविंद केजरीवाल और एनएसए अजीत डोभाल का काफ़िला निकला था. मैंने इन औरतों से पूछा कि क्या अरविंद केजरीवाल आप लोगों से मिलने आए थे?
जवाब मिलता है, ''भइये हमें तो न पता चला कि इधर से निकले हैं. पुलिस की गाड़ियों की आवाज़ तो लगातार आ रही हैं. अब तुम बता रहे हो, तो बहुत बुरा लग रहा है. हमने इसका कित्ता साथ दिया. कम-से-कम एक बार आकर अपनी बहनों से हाल तो पूछ लेता.''
पास ही बैरीकेडिंग पर लगे एंटी NRC, CAA पोस्टर पर लिखा था- 'मां, मुल्क बदले नहीं जाते.'


सीलमपुर के धरनास्थल के सामने वाली जगह
Image captionसीलमपुर के धरनास्थल के सामने वाली जगह

जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन: दूसरे शाहीन बाग़ की आशंका

पैदल आगे बढ़ने पर मुझे सीलमपुर की झुग्गियों में रहने वाला एक लड़का राशिद* मिला, राशिद को मैं जानता हूँ. मैंने तुक्का लगाकर अपने सीलमपुरिया अंदाज़ में कहा, "भइये तेरी फ़ोटो आई थी कैमरे पर, तूने भी ख़ूब पत्थर चला लिए इस बार?"
जवाब मिला, "अबे, थोड़ा-बहुत तो करना पड़ता है, भाई. वरना ये हमें मार देते. बाकी देख भाई. हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई भाई-भाई होते हैं. अब तू ख़बरी चैनल वाला हो गया है मेरा भी इंटरव्यू ले ले, भाई."
मुस्लिम बहुल जाफ़राबाद के मेट्रो स्टेशन के नीचे पहुंचने से पहले राशिद किसी गली में मुड़ चुका था. आगे काफ़ी पुलिस खड़ी थी.


जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन
Image captionजाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन

इस सड़क की सभी दुकानों पर बदलते सीज़न के हिसाब से कभी पतंग तो कभी कूलर या जैकेटें मिलती हैं. फिलहाल 'विरोध का सीज़न' है, तो इन दुकानों के बंद शटरों पर 'NO NRC, CAA' देखने को मिल रहा है.
जाफ़राबाद पुलिस चौकी पार करने पर ईदगाह मस्जिद के पास कुछ लोगों की भीड़ गुस्से में दिखी.
वजह पूछने पर भीड़ ने आरोप लगाया, ''जाफ़राबाद थाने से आठ पुलिसवाले आए. उन्होंने ई-रिक्शा रोका. पूछने पर गाड़ी में बैठे लोगों ने अपना मौमडन नेम बताया, तो चारों को नीचे उतार लिया और लठ फेरा. कहा कि जय श्री राम बोलो. सबने वर्दी पहन रखी थी. वर्दी पर नेम प्लेट नहीं थी. अगर पुलिसवाले ही अशांति फैलाएंगे, तो शांति कैसे होगी?''
दूर कहीं से पुलिस सायरन की आवाज़ को सुनकर भीड़ और मैंने हटना बेहतर समझा.
जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे रैपिड एक्शन फोर्स और पुलिस के जवान कई बसों में बैठे हैं. लगभग हर जवान अपने मोबाइल फ़ोन पर वीडियो देखते हुए थकान उतार रहा है.
यही वो जगह थी, जहां 22 फरवरी की रात औरतों का बैठना और रास्ता जाम करना कुछ लोगों को दिल्ली का दूसरा शाहीन बाग़ बनने की आशंका लगा था.


मौजपुर लाल बत्ती का शिव मंदिर
Image captionमौजपुर लाल बत्ती का शिव मंदिर

मौजपुर: वो जगह जहां से मिला था अल्टीमेटम

जाफ़राबाद से पैदल हिंदू बहुल इलाक़े मौजपुर की तरफ़ बढ़ने पर पूरे रास्ते में पत्थर, कांच के टुकड़े बिखरे मिले.
रास्ते में कुछ दुकानें पूरी तरह से जली दिखीं. रात के 10 बजने वाले थे. मैं मौजपुर चौक की उस जगह पर खड़ा था, जहां से 23 फरवरी को कपिल मिश्रा ने पुलिस की मौजूदगी में अल्टीमेटम दिया था, ''ट्रंप के जाने तक तो हम जा रहे हैं, लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे. अगर रास्ते खाली नहीं हुए, उसके बाद हमें लौटकर आना पड़ेगा.''
ट्रंप भारत से और औरतें जाफ़राबाद, चांदबाग दोनों जगहों से जा चुकी हैं. रास्ते भयावह रूप से खाली हो चुके हैं कि कपिल मिश्रा को भी लौटकर मौजपुर आने की ज़रूरत नहीं है.
हालांकि, इस जगह एक चैनल की एंकर ज़रूर आ चुकी थीं. मौजपुर चौक पर खड़ी होकर नामी टीवी एंकर कैमरे के सामने कह रही थीं, ''हालात आप देख रहे हैं कि सब कंट्रोल में है. पुलिस ने अपनी मुट्ठी में हालात को ले लिया है. और ये कब हुआ? जब कल रात अजीत डोभाल हिंसाग्रस्त इलाक़ों में गए.''
दो मिनट बाद बाइक से गुज़रते हुए दो लड़के उस नामी एंकर को चुनौती देते हुए, पुलिसवालों से कहते हैं, ''इसको भगाओ यहां से, एक नंबर की झूठी औरत है ये. अफवाहें फैलाती है, लड़ाई लगवाती है.''


बाबरपुर के पास गद्दे तकिए के शोरूम के बाहर का मंज़र
Image captionबाबरपुर के पास गद्दे तकिए के शोरूम के बाहर का मंज़र

बिना करंट के बाबरपुर

मौजपुर से आगे बढ़ने पर हिंदू बहुल बाबरपुर आता है. बाबरपुर वही जगह है, जहां से गृह मंत्री अमित शाह ने ईवीएम का बटन दबाकर करंट शाहीन बाग़ पहुंचाने की बात की थी.
रात के साढ़े दस बज रहे हैं. सड़क में कई जगह गाड़ियां और कुछ दुकानें जली हुई हैं. सड़क पर घना अंधेरा है क्योंकि बिजली विभाग का करंट नहीं पहुँच रहा है.
विजय पार्क से यमुना विहार बढ़ते हुए रैपिड एक्शन फोर्स के अधिकारी लक्ष्मीचंद ने जानकारी दी, ''हमारे जवान हर 500 मीटर पर तैनात हैं. हर टुकड़ी में लगभग 100 लोग हैं, जो रात भर मार्च करेंगे.''
आगे बढ़ते हुए पथराव का शिकार हुई 'अमन' नाम की एक दुकान दिखी. अमन, जो गायब भी था और हाज़िर भी. इसी जगह से आगे बढ़ने पर दाईं तरफ़ मुस्लिम बहुल कर्दमपुरी है और बाईं तरफ़ हिंदू बहुल यमुना विहार.
कर्दमपुरी की पुलिया के गेट पर लिखा है- 'हम बाबा साहेब के संविधान को टूटने नहीं देंगे.' इस लाइन के ठीक नीचे नागरिक़ता क़ानून के ख़िलाफ़ जो धरनास्थल बनाया गया था, वो अब तबाह हो चुका है.


कर्दम पुरी के पास की जगह
Image captionकर्दम पुरी में धरनास्थल की जगह

सड़क के दूसरी तरफ़ यमुना विहार में कुछ अधेड़ उम्र के आदमी हाथों में डंडा लिए खड़े हैं. पास में एक कार में कुछ पुलिसवाले बैठे हैं. क़रीब 11 बजे का वक़्त है.
वो मेरा नाम पूछते हैं और फिर ज़बर्दस्ती आई-कार्ड का वीडियो बनाने लगते हैं. मेरे आईडी कार्ड खींचने की कोशिश करने पर वो लोग धमकी भरी निगाह से मुझे घूरते हैं.
पुलिस की गाड़ी अचानक उस जगह से चली जाती है.
फिर ये लोग बोलना शुरू करते हैं, ''कर्दमपुरी से मुसलमानों के लड़के आए पेट्रोल बम ले-लेकर. देखो हमारी पार्किंग की सारी गाड़ियां जला दीं. हम पूरी रात जगकर पहरा देते हैं.''
इसी जगह से आगे बढ़ने पर बाईं तरफ़ जाने पर हिंदू बहुल बृजपुरी और भजनपुरा, मुस्लिम बहुल मुस्तफाबाद और चांदबाग पड़ता है. दाईं तरफ़ जाने पर पहले हिंदू बहुल गोकलपुरी और फिर अशोक नगर पड़ता है.


यमुना विहार इलाके की पार्किंग का हाल
Image captionयमुना विहार इलाके की पार्किंग का हाल

गोकलपुरी की टायर मार्केट: पुलिस बोली- डायल 100

गोकलपुरी की टायर मार्केट जलकर राख हो चुकी है. सड़क से अंदर का कुछ नहीं दिख रहा था. मोबाइल की लाइट जलाकर अंदर गए, तो ऐसा लगा कि रात के अंधेरे और दीवार पर जमी कालिख के बीच ज़्यादा काला दिखने की होड़ हो.
एकदम सन्नाटा था. बाहर निकलना ज़रूरी लगा. गोकलपुरी की इस जगह से थोड़ी दूरी पर दयालपुर थाना है और आगे एक पेट्रोल पंप, जिसके बाहर जली हुई गाड़ियां पड़ी थीं.


देर रात गोकलपुरी की टायर मार्केट
Image captionदेर रात गोकलपुरी की टायर मार्केट

उस पेट्रोल पंप पर काम कर रहे एक शख़्स ने बताया, ''उस रोज़ जब दंगाई गाड़ियों में आग लगा रहे थे, मैं भागकर थाने गया था. पुलिस बोली कि अरे, इतना कुछ हो रहा है. हम उधर जाएं कि तुम्हारी आग बुझाएं. हमने पेट्रोल पंप का रास्ता बंद कर दिया था. दंगाइयों से हमारा पेट्रोल पंप बच गया.''
मेरे पूछने पर वो पेट्रोल पंप के मालिक का नाम बताते हैं. आग से बचा ये पेट्रोल पंप किन्हीं कपूर साहब का था. हमारे बात करने के दौरान ही सड़क से दो लड़के अपने कंधे पर एक लड़के को ढोए ले जा रहे थे.
भागकर गए तो देखा कि एक लड़के के सिर से काफ़ी ख़ून बह रहा था. चोट कैसे लगी? एक लड़का कहता है, "सीढ़ियों से गिर गया था." दूसरा उसे डपटते हुए कहता है, "झूठ क्यों बोल रहा है, पत्थरबाज़ी हुई है. उसी में चोट लगी है."
इन लड़कों के लिए कोई गाड़ी नहीं रोक रहा था. ख़ून सड़क पर टपक रहा था. मैं भागकर दयालपुर थाने की दिशा में खड़े पुलिसवाले से कहता हूं कि इस लड़के को अस्पताल पहुंचवाइए, ख़ून निकल रहा है.
पुलिस कॉन्स्टेबल ने जवाब दिया, "100 नंबर पर डायल करो, पुलिस आकर अस्पताल तक छोड़ देगी." मैंने उस पुलिसवाले से कहा कि 'अरे, आप ही तो पुलिस हैं, जब तक पीसीआर आएगी तब तक देर हो जाएगी.' वो मेरी बात सुने बिना थाने की तरफ़ चला गया.
मैंने रास्ते में स्कूटी से जा रहे एक शख़्स को रोका, रुकते ही वो उन लड़कों से उनका नाम पूछने लगा, एक लड़के ने अपना नाम विनय और बाक़ी दोनों ने भी हिंदू नाम बताए. ये सुनते ही स्कूटी वाला शख़्स ''हिंदू यहां कहां रह रहे हैं'' कहकर चला गया.
एक ऑटो काफ़ी मुश्किल से रुका, तो उन तीन लड़कों में से एक ने 'विनय' को पुकारा, "सलमान आ जा, ऑटो मिल गया."


गोकलपुरी पेट्रोल पंप के बाहर जला हुआ ऑटो
Image captionगोकलपुरी पेट्रोल पंप के बाहर जला हुआ ऑटो

तीनों लड़के अस्पताल रवाना हो चुके थे. रात काफ़ी हो गई थी, लिहाज़ा मैं भी घर की तरफ़ लौटने लगा. ऑटोवाले ने रास्ते में कहा, "धरती का बोझ बढ़ेगा, तो कुछ न कुछ करके कम भी तो होगा."
ये अहसास होने पर कि मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन है, उसने कहा, 'अब देखो जी, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई... सब आपस में हैं भाई-भाई.'
ख़ून से सने लड़के की मदद करने वालों के रवैयों की हक़ीक़त देखने के बाद सीलमपुर से कई बार सुन चुकी ये लाइन गोकलपुरी आते-आते फ़र्ज़ी लगने लगती है.


अशोक नगर
Image captionअशोक नगर

अगली सुबह: अशोक नगर मस्जिद

मस्जिद पर भगवा झंडा, तिरंगा लगाने के वीडियो वायरल हुए तो ये अशोक नगर अपनी अलग पहचान बना गया, दिल्ली में न जाने कितने अशोक नगर हैं लेकिन ये वाला खास हो गया.
मस्जिद की तरफ़ बढ़ने पर गुलफ़ाम नाम के शख़्स की जली दुकान दिखी. बराबर में सुखबीर की दुकान जली तो नहीं थी लेकिन 'सबका मालिक एक' का संदेश देने वाले साईं बाबा के नाम वाली दुकान का बोर्ड आधा जल चुका था.


अशोक नगर में सुखबीर और गुलफाम की दुकान
Image captionअशोक नगर में सुखबीर और गुलफाम की दुकान

मस्जिद से सटे कुछ घर भी जलाए गए थे. ऐसा ही एक घर खुर्शीद आलम और उनके बेटे फैसल का भी है. घर पूरा जल चुका है.
फैसल की अम्मी बिलकिस बताती हैं, ''कुछ वक़्त पहले ही बेटे की शादी हुई थी. सारा दहेज का सामान जला गए. उस रोज़ जब मस्जिद में आग लगी तो पुलिसवाले हमें ले गए. उसी के बाद घरों में आग लगा दी. बैट्री रिक्शा तक जला दिया हमारा. हमने अपनी बहुओं को सेफ्टी की ख़ातिर कहीं और छोड़ रखा है.''
अलमारियों में ज्वैलरी की खाली डिब्बियां पड़ी हुई थीं. दीवार पर स्कूली बच्चों की ड्रैस टंगी हुई थी. फैसल कहते हैं, ''कपड़ों में कुछ नहीं बचा हमारे पास. जो कपड़े पहने हैं, बस वही बचे हैं. उस रोज़ जब आग लगी तो फायर ब्रिगेड से पहले हमारे पड़ोस के हिंदू भाइयों ने आग बुझाई.''
खुर्शीद कहते हैं, ''मेरा सब कुछ जलाकर नाश कर दिया. 40 साल से हम यहां रह रहे हैं, हमारा कोई हक़ नहीं है? बच्चों के स्कूल के बैग, आईडी कार्ड तक चल गए. पड़ोस के जितेंद्र साहेब ने हाथ जोड़कर दंगाइयों से कहा कि इन लोगों को छोड़ दो तो दंगाइयों ने उन पर भी पथराव कर दिया. वो भी मजबूर हो गए, जान बचाकर अंदर चले गए. केजरीवाल, मोदी जी हम क्या करें. कहां से खाएंगे. हमारे सिलेंडर तक चोरी हो गई. चूल्हे तक तोड़ दिए. सारा प्लास्टर गिरने को हैं. उन लड़कों से दोबारा कह दो कि आकर फिर आग लगाएं ताकि हम इसी में जलकर मर जाएँ. हमारी सारी चीज़ें ख़त्म हो जाएं. हम भी न बचें, हमारा मकान भी न बचे. लड़कों को ऐसे दोबारा भेजो.''
खुर्शीद आलम और फैसल अपने जिन हाथों से नमाज़ पढ़ते हुए दुआ करते होंगे, वो हाथ अब आग वाले घर को साफ़ करते-करते काले हो चुके हैं.


अशोक नगर मस्जिद के पास अपने घर की छत पर खड़े फ़ैसल
Image captionअशोक नगर मस्जिद के पास अपने घर की छत पर खड़े फ़ैसल

जहां से दुआएं मांगते थे, जिस मस्जिद में वे दुआ माँगते थे, वह ख़ुद अब दुआओं के सहारे हो गई है. मस्जिद के अंदर की सभी चीज़ों को काफ़ी नुकसान हुआ था. मस्जिद के सामने अब्दुल वाहिद का घर जल चुका था. बगल में जितेंद्र का घर बच गया था. जितेंद्र समेत इलाक़े के कई हिंदुओं ने आग बुझाने और पड़ोसियों की मदद जैसे काम किए थे.
इसी घर के बगल में रिज़वाना हिंसा के बाद घर लौटी हैं. वो अपना पूरा घर रोते हुए दिखाती हैं. पहली बार मुझे यह अहसास हुआ कि टपकते आंसुओं को लिखकर बयान करना कितना मुश्किल है.


अशोक नगर के ऑटो चालक राशिद, जिनका घर पूरी तरह जल चुका है
Image captionअशोक नगर के ऑटो चालक राशिद, जिनका घर पूरी तरह जल चुका है

बाहर निकलते हुए ऑटो चलाने वाले मोहम्मद राशिद अपना जला घर दिखाने ले गए. सब राख था. घर की बच्ची निशा की पानी की बोतल हो या फिर आग बुझाने वाला छोटा सिलेंडर. सब राख था. राशिद ने बताया कि आग बुझाने वाला छोटा सिलेंडर घर में इसलिए रखा था कि कभी छोटी-मोटी आग लगे तो बुझाया जा सके.
राशिद नहीं जानते थे कि एक रोज़ ऐसी आग लगेगी कि बुझाने के काम आने वाली चीज़ें जल जाएंगी.


बृजपुरी इलाका
Image captionबृजपुरी इलाका

बृजपुरी: चांद मोहम्मद ठेकेदार, मकान मालिक कौशिक

अशोक नगर से भजनपुरा की तरफ़ बढ़ने पर हिंदू बहुल बृजपुरी और उससे सटा मुस्लिम बहुल मुस्तफाबाद आता है.
वेद प्रकाश कौशिक के घर से अब भी धुआं निकल रहा है. बाहर इस घर को बनाने वाले ठेकेदार चांद मोहम्मद खड़े हैं. वो कहते हैं, ''बड़े प्यार से कौशिक साहेब का घर बनाया था. पूरा इलाका वाह-वाह करता था. किसी की नज़र लग गई.''
एक हिंदू का घर मुसलमान ने बनाया. जो घर जला, वो किसका था? हिंदू का या मुसलमान का?


बृजपुरी इलाके में कौशिक का घर
Image captionबृजपुरी इलाके में कौशिक का घर

इस सवाल का जवाब सोचता मैं कुछ दूरी पर अरुण मॉर्डन स्कूल में दाखिल हुआ. स्कूली के मेन गेट से लेकर दूसरी मंज़िल की लाइब्रेरी तक सब ख़ाक हो चुका है.
रिकॉर्ड रूम दिखाते हुए स्कूल की कैशियर नीतू रो पड़ीं. कहने लगीं, इन लोगों ने कुछ नहीं छोड़ा, मस्जिद की तरफ़ से खूब पत्थर मारे गए.


स्कूल की कैशियर नीतू रिकॉर्ड रूम दिखाते हुए
Image captionस्कूल की कैशियर नीतू रिकॉर्ड रूम दिखाते हुए

रिकॉर्ड रूम से बच्चों की कॉपियां, किताबें जली या अधजली हालत में बिखरी पड़ी हैं. आर्ट एंड क्राफ्ट की किताब ऐसे जली है कि किसी डराने वाली पेंटिंग की तरह लगने लगी है.
'कक्षा आठवीं- अ, रोल नंबर 27. नाम- अंशुका जयसवाल.' इस चिट लगी बच्ची की कॉपी पलटी तो जो पहला पन्ना खुला, उस पर सवाल लिखा था- 'भारत एक खोज' पुस्तक के लेखक का नाम बताइए?
आजकल हर सवाल के जवाब में जो नाम आता है, वही नाम इस कॉपी में लिखा मिला- नेहरू.


स्कूल की बच्ची की कॉपी
Image captionस्कूल की बच्ची की कॉपी

कम्प्यूटर रूम जल चुका था. क्लास के पंखों की ब्लेड पिघलकर मुड़ गई थी. स्कूल से निकलते हुए नोटिस बोर्ड पर नज़र गई. लिखा था, ''देरी से आने वाले बच्चों को सुबह आठ बजे के बाद स्कूल में घुसने नहीं दिया जाएगा.''
ये स्कूल बचा रह जाता, अगर आठ बजे के बाद आए दंगाई इस लाइन को पढ़कर लौट जाते.


इस बंद रास्ते के पीछे ही रोज़े अली का घर है, जो अब जल चुका है.
Image captionइस बंद रास्ते के पीछे ही रोज़े अली का घर है, जो अब जल चुका है.

मुस्तफ़ाबाद, भागीरथी विहार, इंदिरा विहार

मुस्तफ़ाबाद पुलिया पर भी धरनास्थल बना था. इसी पुलिया पर रोज़े अली मिले. बताने लगे, ''हिंदू बहुल भागीरथी विहार में घर है मेरा. उसे आग के हवाले कर दिया. मैं तो जा भी नहीं पाया हूं वहां तक. कैसे जाऊं. रास्ता बंद है. उधर बहुत ख़तरा है. कल इसी रास्ते से अपने बीवी-बच्चों को लेकर भागा हूँ.''


दिल्ली हिंसा

भागीरथी विहार के रास्ते पर विकास कुमार माथे पर चोट लिए बैठे थे. वो बोले, ''दंगाइयों को रोकने की कोशिश की. मुस्लिम भाइयों का घर जलाने से मना किया तो मेरे ही पत्थर मार दिया. क्या करता. पीछे हट गया.''


विकास कुमार भीड़ से शांत होने की अपील कर रहे थे
Image captionविकास कुमार भीड़ से शांत होने की अपील कर रहे थे.

इस जगह से हम एक 'सीक्रेट जगह' पर गए. यहां आम आदमी पार्टी से अब निष्कासित हो चुके पार्षद ताहिर हुसैन छिपे हुए थे. एक वायरल वीडियो में ताहिर अपने घर की छत से पत्थर, पेट्रोल बम बरसाती भीड़ के साथ हाथ में डंडा लिए दिखे थे. ताहिर पर इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के लिए काम करने वाले अंकित शर्मा की हत्या का भी आरोप है.
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इन आरोपों से इनकार किया और खुद को दंगाई नहीं, बल्कि दंगा पीड़ित बताया.
धीरे-धीरे वो जगह सीक्रेट नहीं रह गई थी. मीडिया के कैमरों की भीड़ के साथ शोर बढ़ता जा रहा था. ताहिर के कुछ सहयोगी हमें उस जगह से सुरक्षित बाहर ले गए. यहां से इंदिरा विहार की ओर बढ़ते हुए कुछ एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती जा रही हैं. एक एंबुलेंस में कफन में लिपटी लाश ले जाई रही है.
कुछ लोग टैम्पू में और कुछ पैदल सामान लेकर कुछ दिनों के लिए किसी और ठिकाने की ओर जा रहे हैं.


अशफाक़ और तसलीम
Image captionअशफाक़ और तसलीम, जिनकी शादी की एक साथ ही तस्वीर देख नहीं पाया.

वेलेंटाइंस डे की शादी और 11 दिन बाद मौत

कुछ ही दूरी पर घरों में जाकर बिजली का काम करने वाले 22 साल के अशफ़ाक़ का घर है. अशफ़ाक़ की 14 फ़रवरी को शादी हुई थी. 25 तारीख़ को ही ये लोग बुलंदशहर से दिल्ली लौटे थे और कहीं से घर लौटते हुए अशफ़ाक़ को गोली लगी और वो नहीं रहे. अशफ़ाक़ के पिता और पत्नी तसलीम अलग-अलग मंज़िलों पर लोगों से घिरे बैठे हैं.
अशफ़ाक़ के अब्बा कहते हैं, ''अब तो हमारा रोज़ का मरना है. हम सरकार से क्या मांग करेंगे. बस हमारे बच्चे को इंसाफ़ मिल जाए और हिंदू मुस्लिम एकता बनी रहे. जब से मेरे बच्चे के साथ ऐसा हुआ है. हर हिंदू के घर जा रहा हूं कि हमारी वजह से कोई दिक़्क़त तो नहीं हो रही. बस यही ध्यान रखना पड़ रहा है कि गुस्से में आकर कोई हिंदुओं का घर न जला दे, उन्हें गाली न बक दे. पड़ोस में हिंदू मंदिर में हमने लोगों का पहरा बैठाया है कि कहीं कोई गुस्सा न निकाल दे.''
अशफ़ाक़ की पत्नी तसलीम ज़्यादा बोल नहीं पाईं. लेकिन एक वादे की बात पता चली. अशफ़ाक़ ने तसलीम से कहा था कि जब आओगी तो तुम्हें दिल्ली घुमाऊंगा. बिना दिल्ली घुमाए, बिना वादा निभाए अशफ़ाक़ दुनिया से जा चुके हैं. अब्बा की आंखों को बेटे की मिट्टी(लाश) का इंतज़ार है. तसलीम की आंखों में इतने आंसू थे कि सारे इंतज़ार बहे जा रहे थे.
दोनों की शादी की कोई तस्वीर मांगने पर पता चला कि सारी तस्वीरें लैपटॉप में हैं. लैपटॉप का पासवर्ड सिर्फ़ अशफ़ाक़ को पता था.


अमन
Image captionअमान

इस दौरान 16 साल के अमान अहमद के चाचा इरशाद से संपर्क हुआ.
फ़ोन पर इरशाद रोते हुए बोले, ''घर से दूध लेने निकला था. अमान को ऐसे गोली मारी कि कनपट्टी फाड़ते हुए गर्दन से गोली निकली है. इकलौता लड़का था. अमान के अब्बा लोकल डायपर बनाकर बेचते हैं. मैं अस्पताल गया तो मेरा बच्चा...मेरा कलेजा का टुकड़ा पलक झपकाकर मुझसे कुछ कह रहा था. न जाने क्या कह रहा था.''
इरशाद से मैंने अमान के घर का पता पूछा तो उन्होंने मेरे पुराने घर के ठीक सामने वाले घर का पता दिया. जिस घर की की छत पर खड़े होकर मैं पतंग उड़ाता था. मैं उस लड़के को नहीं जानता था, छत को जानता था. पतंग का सीज़न ख़त्म नहीं होना चाहिए.


भजनपुरा का पेट्रोल पंप
Image captionभजनपुरा का पेट्रोल पंप

अफ़साना...

भजनपुरा, चांदबाग की तरफ़ बढ़ने पर पहले उस पेट्रोल पंप पर निगाह गई, जिसे दंगाइयों ने जला दिया था. 'ज्वलनशील पदार्थों को दूर रखें' वाली तख्तियां तक नहीं दिखीं.
सड़क पार करने पर भूरे ख़ान की तबाह हुई फलों की दुकान और जला हुआ घर दिखा. कई गायें अधझुलसे संतरे और मौसमी खा रही थीं.


भूरा ख़ान की दुकान के पास संतरे, मौसमी खाती गाय
Image captionभूरा ख़ान की दुकान के पास संतरे, मौसमी खाती गाय

आगे एक तरफ़ चांदबाग की तबाही में जलने के बाद की काली दीवारें थीं. दूसरी तरफ़ चमकदार रौशनी से नहाती बसों में 'ग्राउंड ज़ीरो' से टीवी पर बड़ी बहस की तैयारी हो रही थी. प्रवक्ताओं का मेकअप हो चुका था.
इसी जगह से कुछ किलोमीटर दूर अंकित शर्मा की मां का रो-रोकर बुरा हाल था. करावल नगर में भी एक चायवाला श्याम बीबीसी के रिपोर्टर रजनीश कुमार से चीख-चीखकर कह रहा था, ''मेरा कोई नहीं है. मैं मोदी, मोदी करता हूं. मुझे इसलिए टार्गेट किया गया. अपने बच्चों को छिपाया. जान बचाकर भागे. सारा सामान लूट लिया.''
लगभग सभी हिंसाग्रस्त इलाक़ों में जाकर ये साफ दिखा कि मिक्स आबादी वाले इलाक़ों में नुकसान मिक्स रहा. दूसरे इलाके जहां जो बहुसंख्यक रहा, वहां अल्पसंख्यकों ने नुक़सान झेला.
इन सभी इलाक़ों में जाने वालों से नाम जानने के बहाने धर्म पूछा जा रहा है. यह आग उस कानून की चिंगारी से लगी है जिसका मकसद दूसरे देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना बताया जा रहा है.
भजनपुरा की मज़ार के पास उस रोज़ जो फूल बिखरे थे. वो अब सूख चुके हैं. मज़ार के बाहर एक जोड़ी चप्पल उतरी हुई हैं. अंदर कोई औरत मज़ार पर अगरबत्ती जला रही है. अगरबत्ती के जलने से जो ख़ुशबू आई, उससे आगज़नी की जो बदबू थी वो कुछ कम हुई.


मज़ार में अगरबत्ती जलाने के बाद अफसाना
Image captionमज़ार में अगरबत्ती जलाने के बाद अफसाना

मज़ार से निकलने पर अफ़साना नाम की इस औरत से मैंने पूछा- आपको डर नहीं लगा, दो दिन पहले ही तो आग लगाई गई है.
अफ़साना जवाब देती हैं, ''आज पीर का दिन है न, गुरुवार. हर बार अगरबत्ती जलाने आती थी बाबा के यहाँ. आज कैसे रुक जाती. देखो पूरी मज़ार जल गई लेकिन बाबा की चादर नहीं जली. जब कहर नाज़िल हो रहा था, तब भी घर बैठे-बैठे दुआएं मांग रहे थे. जिन्होंने आग लगाई, वो इंसान थोड़े ही थे. इस मज़ार पर उतने मुसलमान नहीं आते, जितने हिंदू आते हैं. हिंदू मुस्लिम भाई, भाई ही होते हैं. हमने तो यही दुआ कि हिंदू मुसलमान हमेशा शांति से रहें.''
जल चुकी मज़ार में जलाई अगरबत्ती की खुशबू बाहर तक आने लगी थी.
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