जामिया लाइब्रेरी में डंडे बरसाती पुलिस वीडियो की पड़ताल और सवालों के घेरे में दिल्ली पुलिस
15 दिसंबर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन क़ानून के लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर दिल्ली पुलिस की हिंसा का एक नया वीडियो सामने आया है.
29 सेकेंड की इस सीसीटीवी फुटेज में पुलिस एक लाइब्रेरी में बैठे बच्चों पर लाठियां बरसा रही हैं और बच्चे कुर्सियों के नीचे छिपते और पुलिस के सामने हाथ जोड़ते नज़र आ रहे हैं.
जामिया के छात्रों के एक संगठन जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी ने 16 फरवरी को देर रात 1 बजकर 37 मिनट पर ये वीडियो ट्वीट किया. देखते ही देखते ये वीडियो वायरल हो गया.
लेकिन ये वीडियो कहां से आया? और ठीक दो महीने बाद इसे क्यों शेयर किया जा रहा है? ऐसे ही सवालों की पड़ताल बीबीसी ने शुरू की.
हमने जामिया कॉरडिनेशन कमेटी की मुख्य सदस्य सफ़ोरा से बात की. उन्होंने बताया, '' ये वीडियो हमें बीती रात (16 फरवरी) को मिला और ये एम.ए-एमफ़िल की लाइब्रेरी है हमारे यहां, पहली मंजिल पर उसका ही है. कॉलेज एडमिनिस्ट्रेशन ने सीसीटीवी फ़ुटेज की कॉपी पुलिस को सौंपी थी लेकिन उसी वक़्त हमने जब मांगा कि हमें भी शेयर करना है ये वीडियो तो हमें कोर्ट का हवाला दे कर नहीं दिया गया. कॉलेज प्रशासन ने कहा कि ये अहम सबूत है कोर्ट में पेश करेंगे. लेकिन दो महीने बाद भी पुलिस की बर्बरता पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इस मामले को तो जैसे भुला दिया गया है.''
ये वीडियो कहां से मिला? इसके जवाब में सफ़ोरा कहती हैं, ''हमारे यूनिवर्सिटी की लोकल वेबसाइट चलती है, महफिले-ए-जामिया. कल देर रात हमें वहीं से ये वीडियो मिला.''
इसके बाद हमने महफिल-ए-जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सदस्य मोहम्मद हारिफ़ से बात की. हारिफ़ बीएससी फ़िज़िक्स ऑनर्स के छात्र हैं. उन्होंने बताया, '' ये वीडियो 15 फरवरी की देर रात उन्हें व्हाट्सएप ग्रुप 'Student of Bihar ' पर मिला लेकिन जैसे ही इस वीडियो वो भेजने वाले शख़्स से लोगों ने वीडियो से जुड़े सवाल करने शुरू किए उन्होंने डर के चलते वीडियो डिलीट कर दिया और ग्रुप भी छोड़ दिया. मैंने उससे बात की तो वह काफ़ी डरा हुआ था क्योंकि उसे डर था कि वहीं वो फंस ना जाए.''
29 सेकेंड के इस वीडियो को दो वीडियो क्लिप जोड़ कर बनाया गया है. हालांकि इसके ड्यूरेशन पर सवाल भी उठ रहे हैं. बताया जा रहा है कि मूल वीडियो कहीं ज़्यादा लंबा है और उसकी स्पीड भी थोड़ी कम थी.
इस बारे में मोहम्मद हारिफ़ ने बताया, 'वीडियो की स्पीड 10 फ्रेम प्रति सेकेंड थी लेकिन हमने इस वीडियो कि स्पीड 20 फ्रेम प्रति सेकेंड की है ताकि पुलिस की कार्रवाई को साफ़ दिखाया जा सके.'
लेकिन वीडियो की प्रमाणिकता पर सवालों के जवाब मिलने अभी भी बाक़ी थे. इसके लिए हमने जामिया जनसंपर्क अधिकारी अहमद अज़ीम से बात की. उन्होंने बताया, ''ये वीडियो तो असली है लेकिन जामिया के अधिकरिक हैंडल से इसे ट्विट नहीं किया गया है. मेरी समझ में ये असली वीडियो है लेकिन अभी मैं इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता.''
क्या ये वीडियो प्रशासन ने पुलिस को सौंपा था इसके जवाब में उन्होंने कहा, ''मैं अभी इस कुछ नहीं कहूंगा. वक़्त दीजिए हमें. ''
दिल्ली पुलिस की भूमिका एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शनों को लेकर पिछले लंबे समय ले सवालों के घेरे में है. साथ ही इस वीडियो का केंद्र भी वही है. ऐसे में बीबीसी ने इस वीडियो पर दिल्ली पुलिस का रुख़ जानने के लिए जनसंपर्क अधिकारी, दिल्ली पुलिस एम.एस रंधावा से बात की. उन्होंने कहा, ''हमने वीडियो देखा. कुछ भी कहने से पहले जांच करेंगे. पहले हमें देखने दीजिए. ''
इस वीडियो के अब सामने आने के मायने क्या हैं? इस पर सफ़ोरा कहती हैं, ''कोई हमारे साथ नहीं है. दो महीने हो गए हमें नहीं दिखता की कोई ख़ास एक्शन पुलिस पर लिया गया है. हम चाहते हैं कि अब दुनिया जाने हमारे साथ क्या हुआ. न्याय व्यवस्था पर भी यक़ीन है, शायद हम पर ये दरिंदगी देखकर कोई क़दम उठाया जाए. ''
वहीं समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़ दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर (क्राइम) प्रवीर रंजन ने कहा है, ''हमने वीडियो पर संज्ञान लिया है. हम इसकी जांच करेंगे.''
बीबीसी ने अपनी पड़ताल में पाया है कि यूनिवर्सिटी इस वीडियो को असली मान रही है. साथ ही पुलिस ने भी इस वीडियो की प्रमाणिकता पर सवाल नहीं उठाया है. ऐसे में ये वीडियो 15 दिसंबर की शाम 6 बजे के आस-पास का ही है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में बीते 16 दिसंबर को को हुई हिंसा पर दिल्ली पुलिस कहती रही है कि छात्रों ने पुलिस पर पथराव किया था जिसके बाद सिचुएशन पर काबू पाने के लिए पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी. वहीं जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर नजमा अख़्तर ने कहा था कि पुलिस कैंपस में जबरन घुसी और बेगुनाह बच्चों की पिटाई की थी.
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