Budget 2020: बजट से नौकरी के कितने अवसर पैदा होंगे? - नज़रिया

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साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के छह साल बाद भी नौकरी के अवसर और अर्थव्यवस्था रफ़्तार नहीं पकड़ सके हैं. ऐसा तब है जब 'अच्छे दिन' का वादा किया गया था.
वास्तव में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से उनके दूसरी बार बजट पेश करते समय बहुत सारी उम्मीदें थीं. उनसे उम्मीद थी कि वो एक विश्वसनीय रोडमैप और रणनीति पेश करेंगी जिससे अर्थव्यवस्था को रफ़्तार मिलेगी. साथ ही वादे और उम्मीदें पूरी होंगी.
2020-21 का आम बजट ऐसे समय पर आया जब अर्थव्यवस्था बेहद सुस्त है, कर संग्रह में भारी कमी आई है और विनिवेश की प्रक्रिया अपनाई जा रही है. इन सब कारणों से वित्त मंत्री की ख़र्च करने की क्षमता बेहद कम हो गई अगर ऐसा न होता तो वो अर्थव्यवस्था में थोड़ी तेज़ी ला सकती थीं.
जो बजट उन्होंने पेश किया वो उम्मीदों और बाधाओं के बोझ से दबा हुआ था. अर्थव्यवस्था के लाभ के लिए न ही उसमें कोई रोडमैप था और न ही कोई रणनीति.
ये इरादों और प्रस्तावों के अनावश्यक विवरणों से भरा हुआ था. सरकार की कमाई और ख़र्चों के बीच का अंतर जिसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है, हालिया वित्तीय वर्ष में बढ़कर कुल जीडीपी के 3.3 फ़ीसदी से 3.8 फ़ीसदी हो गया है.
राजकोषीय घाटे में इतनी बढ़ोतरी के बावजूद योजनाओं में ख़र्च का आबंटन विकास को पुनर्जीवित करने के लिए बहुत कम है.
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मनरेगा के बजट में कमी

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम यानी मनरेगा में 2020-21 के लिए आवंटित की गई रक़म 2019-20 की तुलना में 9,500 करोड़ रुपये कम है. पीएम किसान योजना के लिए आवंटित की गई राशि 20,000 करोड़ तक बढ़ गई है.
इन दो फ़्लैगशिप योजनाओं में दिया गया सबसे अधिक पैसा ग्रामीण जनता तक पहुंचेगा जिनमें ख़र्च करने की अधिक प्रवृत्ति होती है. इससे ख़र्च और खपत बढ़ेगी और विकास में बढ़ोतरी होगी.
मध्यावधि में स्थाई आजीविका के ज़रिए अधिक से अधिक लोगों को आय अर्जित करने में सक्षम बनाकर अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी की जा सकती है जिससे प्रधानमंत्री मोदी का 'सबका साथ सबका विकास' का वादा भी पूरा होता है.
यहां तक कि ऊंची विकास दर वाले वर्षों में भी अर्थव्यवस्था से कई नौकरियां पैदा नहीं होती. इकलौता बजट गहरी संरचनात्मक समस्या को हल नहीं कर सकता है. यह संकट इस साल के बजट के साथ भी है.
इस सरकार के पिछले बजटों में भी ऐसा देखा गया है कि वो इस समस्या की गहराई और गंभीरता को नहीं समझता और न ही सार्थक रूप से समस्याओं को हल करने का प्रयास करता है.
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कौशल विकास में 3,000 करोड़

इस बजट में ऐसे प्रस्ताव हैं जिसके परिणाम में नौकरियां पैदा होंगी लेकिन वो इतनी संख्या में नहीं होंगी जो हर साल श्रम बल में शामिल होने वाले सभी युवाओं को नौकरी दे सके.
युवाओं के कौशल विकास के लिए 3,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है जिससे वो शिक्षक, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ़ और विदेश में देखभाल करने वाले व्यक्ति के रूप में नौकरी पा सकेंगे.
स्वास्थ्य एवं कौशल विकास मंत्रालय पेशेवर निकायों के साथ मिलकर एक स्पेशल ब्रिज कोर्स डिज़ाइन करेंगे जो नौकरी देने वालों के मानकों के हिसाब से युवाओं के कौशल को तराशेगा. इसमें विभिन्न देशों की भाषा की ज़रूरत को भी जोड़ा जाएगा.
देश में सामान्य चिकित्सकों के साथ-साथ विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है. इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए बड़े अस्पताल बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना है जिसमें नेशनल बोर्ड ऑफ़ एग्ज़ामिनेशन्स के तहत रेज़िडेंट डॉक्टरों की पर्याप्त क्षमता होगी. इस नेशनल बोर्ड ऑफ़ एग्ज़ामिनेशन्स के तहत डिप्लोमा और फ़ैलोशिप भी दी जाएगी.
टायर-2 और 3 शहरों में एक अटैच मेडिकल कॉलेज का प्रस्ताव है जिसके तहत नर्स और दूसरे स्टाफ़ की नौकरियों के अवसर पैदा होंगे. यह अटैच मेडिकल कॉलेज ज़िला अस्पतालों में ही पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत बनेंगे.
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इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्माण पर बल

इसके अलावा युवाओं की रोज़गार क्षमता में बढ़ोतरी करने के लिए 150 उच्च शैक्षणिक संस्थानों में मार्च 2021 तक एप्रेंटिसशिप कोर्स की शुरुआत होगी. साथ ही देश में शहरी स्थानीय निकायों में इंटर्नशिप के अवसर दिए जाएंगे जिससे एक साल में इंजीनियर तैयार हों
बजट में मोबाइल फ़ोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण को लेकर प्रोत्साहन पर भी बल दिया गया है जिससे फ़ैक्ट्री की नौकरियां पैदा हो सकें. लेकिन इसमें और क्या-क्या होगा उसके बारे में बाद में बताया जाएगा.
सरकार इलेक्ट्रॉनिक सामानों और उसके निवेश के लिए और अधिक नीतियों की घोषणा कर सकती थी. जो एक अवसर शायद छूट गया.
इस बजट की एक ख़ुशख़बरी बैंकों में रखे पैसे को लेकर बीमा की रक़म है. पहले धोखेबाज़ी या घाटे के कारण बैंक के बंद होने पर जमाकर्ताओं को केवल एक लाख रुपये देने का वादा था जो अब बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया गया है.
जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को आईपीओ के ज़रिए स्टॉक एक्सचेंज में लाने के फ़ैसले का हमेशा से स्वागत है. इसके परिणाम में बेहतर शासन और पारदर्शिता आएगी. साथ ही इस विनिवेश के ज़रिए सरकार को पैसे जुटाने में भी मदद मिलेगी.
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