कोरोना: जनता कर्फ़्यू क्या किसी बड़े कर्फ़्यू की आहट है?
गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वायरस पर देश की जनता को संबोधित किया तब ज़्यादातर लोगों को एक नया शब्द सुनने को मिला. वो शब्द है - जनता कर्फ़्यू.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में कहा, "इस रविवार, यानी 22 मार्च को, सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक, सभी देशवासियों को, जनता-कर्फ़्यू का पालन करना है. ज़रूरी ना हो तो घरों से बाहर ना निकले. हमारा ये प्रयास, हमारे आत्म-संयम, देशहित में कर्तव्य पालन के संकल्प का एक प्रतीक होगा. 22 मार्च को जनता-कर्फ़्यू की सफलता, इसके अनुभव, हमें आने वाली चुनौतियों के लिए भी तैयार करेंगे."
इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा, "मैं चाहता हूं कि 22 मार्च, रविवार के दिन हम ऐसे सभी लोगों को धन्यवाद अर्पित करें. रविवार को ठीक 5 बजे, हम अपने घर के दरवाज़े पर खड़े होकर, बाल्कनी में, खिड़कियों के सामने खड़े होकर 5 मिनट तक ऐसे लोगों का आभार व्यक्त करें. पूरे देश के स्थानीय प्रशासन से भी मेरा आग्रह है कि 22 मार्च को 5 बजे, सायरन की आवाज़ से इसकी सूचना लोगों तक पहुंचाएं."
प्रधानमंत्री मोदी के एलान के बाद से ही इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि क्या एक दिन का जनता कर्फ़्यू आने वाले किसी बड़े कर्फ़्यू की आहट तो नहीं.
इस बात का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मोदी ने अपने भाषण में पैनिक में आकर सामान न ख़रीदने का ज़िक्र किया, लेकिन लोग उनके उसी फ़रमान की नाफ़रमानी करने लगे.
बाज़ारों में ज़रूरी सामान ख़रीदने वालों की लाइन लग गई. देश के अलग-अलग राज्यों में कई जगह डिपार्टमेंटल स्टोर पर देर रात तक कतारें देखने को मिलीं.
जनता कर्फ्यू से कितना फ़र्क पड़ेगा?
वॉलंटरी हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया (VHAI ) एक एनजीओ है जो देश भर में फैले हेल्थ एसोसिएशन का सबसे बड़ा नेटवर्क है. इसमें राज्यों के स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग भी काम करते हैं. VHAI के मुताबिक़ प्रधानमंत्री का ये क़दम बेहद सराहनीय है.
बीबीसी से बात करते हुए वीएचएआई के सीनियर डायरेक्टर पीसी भटनागर ने कहा, "कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे कारगर तरीक़ा है सोशल डिस्टेंसिंग. प्रधानमंत्री ने एक दिन नहीं बल्कि 14 घंटे के जनता कर्फ़्यू का एलान किया है. ये सोशल डिस्टेंसिंग का ही नया रूप है. अगर लोगों का मूवमेंट एक दिन के लिए भी ख़त्म हो जाता है. तो इससे बहुत फ़र्क पड़ेगा."
डॉक्टर भटनागर अपनी इस सोच के पीछे दलील भी देते हैं. उनके मुताबिक़ कोरोना वायरस किसी भी सरफेस पर कुछ घंटे तक एक्टिव रहता है. अगर लोग एक दूसरे से मिलेंगे नहीं तो वायरस का फैलना रुक ही जाएगा. उनके मुताबिक़ कोई भी ये नहीं कह रहा कि जनता कर्फ़्यू से वायरस का फैलना पूरी तरह रुक जाएगा, पर इस पर लगाम ज़रूर लगाई जा सकती है.
"क्या एक दिन से कोई लाभ होगा? इसके कोई वैज्ञानिक प्रमाण हैं? इस सवाल के जवाब में डॉक्टर भटनागर कहते हैं, बूंद-बूंद से ही सागर बनता है. एक-एक बेबी स्टेप रोज़ लेंगे तो ही फ़र्क पड़ेगा. ये पहले उठाए गए क़दमों का ही नतीज़ा है कि आज मरीज़ों की संख्या भारत में कम है और मरने वालों की भी."
WHO के मुताबिक़ कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ 2.2 दूसरे लोगों को संक्रमित करने की क्षमता रखता है, लेकिन भारत में अब तक ये दर 1.7 ही है. डॉक्टर भटनागर के मुताबिक़ ये इशारा है कि हमने तैयारी पहले से ही ठीक की है.
डॉक्टर भटनागर भी मोदी के इस एलान को आने वाले दिनों की बड़ी तैयारी के तौर पर देखते हैं. उनका कहना है कि आने वाले दिनों में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या अगर बढ़ती है और हमें भी चीन और इटली की तरह लॉकडाउन करने की ज़रूरत पड़ी तो इसके लिए हम कितना तैयार हैं, ये भी पता चल जाएगा.
जनता कर्फ़्यू और लॉकडाउन में अंतर क्या है?
तो क्या एक दिन का जनता कर्फ़्यू लगा कर प्रधानमंत्री मोदी आने वाले दिनों के लिए कितना तैयार हैं उसका ज़ायज़ा लेना चाहते हैं?
इस सवाल के जवाब में डॉक्टर पीसी भटनागर कहते हैं, "जनता कर्फ़्यू एक बॉटम डाउन एप्रोच है. इसका मतलब ये कि जनता इसकी मालिक है और ये उन्हीं से शुरू होगा."
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषण में कहा, "ये है जनता-कर्फ़्यू, यानी जनता के लिए, जनता द्वारा ख़ुद पर लगाया गया कर्फ़्यू."
प्रधानमंत्री के संदेश में ये बात छिपी है कि इस बीमारी से सरकार अकेले नहीं निपट सकती जब तक जनता उनका साथ ना दे. कोरोना से लड़ने की कोशिश में उन्हें जनता की भागीदारी चाहिए.
अभी सरकार ने ये नहीं कहा है कि जनता को इसका पालन करना ही है. अभी ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. ना ही सरकार ने ये कहा है कि ऐसा न करने वालों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई की जाएगी. जनता कर्फ़्यू की सफलता एक तरह का अंदाज़ा देगी कि आने वाले दिनों के लिए हमारी तैयारी कैसी है, कितनी है, और भविष्य में किसी आपात स्थिति के लिए हम कितने तैयार हैं.
लॉकडाउन की स्थिति इससे अलग होती है. डॉक्टर भटनागर के मुताबिक़ लॉकडाउन एक टॉप डाउन एप्रोच है यानी इसका फ़रमान सरकार की तरफ से जारी किया जाएगा और इसका पालन सख़्ती से हो ये सुनिश्चित करने के लिए सरकार दिशा-निर्देश भी जारी कर सकती है, क़ानून का सहारा भी ले सकती है. जैसा हमने इटली और चीन में देखा.
इससे पहले देश में कब लगा जनता कर्फ़्यू?
जानकारों की माने तो हर बीमारी अपने आप में अलग होती है और इसलिए इससे निपटने के लिए अलग-अलग तरीक़ों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
देश में SARS बीमारी हो या भी MARS बीमारी, दोनों ही स्थितियां भयावह थीं. लेकिन कभी इस तरह का जनता कर्फ़्यू जनता ने ना तो सुना ना ही देखा.
कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या भले ही फ़िलहाल कम नज़र आ रही हो, लेकिन इसके फ़ैलने का ख़तरा सबसे ज़्यादा है. इस मामले में ये बीमारी SARS और MARS से अलग है. सूरत में प्लेग बीमारी के दौरान भी भारत ने इसी तरह से तैयारियां की थी. उस वक़्त भी लोगों में पैनिक और डर का माहौल था.
कोरोना वायरस पूरी तरह से नई बीमारी है, इसलिए अब तक इससे निपटने का ऐसा प्रयास देखने को नहीं मिला है जो हर देश में लागू किया जा सके. हर देश अपनी सुविधा और क्षमता के अनुसार काम कर रहा है.
जनता कर्फ़्यू उसी तरह का एक नायाब पहल है. वॉलंटरी हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (VHAI) इसमें सरकार की मदद करेगी. इस पहल से लोगों को जोड़ने के लिए अपने वॉलंटियर के ज़रिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर उन्हें देश भर से सहयोग भी मिलना शुरू हो गया है. देश भर के व्यापरियों ने फेडरेशन ने तय किया है कि रविवार को 7 करोड़ व्यापारी जनता कर्फ़्यू में भाग लेंगे. बयान जारी कर फेडरेशन ने कहा है कि व्यापरियों से जुड़े लगभग 40 करोड़ कर्मचारी भी उस दिन अपने घर पर रह कर जनता कर्फ़्यू में शामिल होंगे.
कहां से आया जनता कर्फ्यू का कॉन्सेप्ट?
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा है, "आज की पीढ़ी इससे बहुत परिचित नहीं होगी, लेकिन पुराने समय में जब युद्ध की स्थिति होती थी, तो गाँव गाँव में ब्लैकआउट किया जाता था."
पुराने ज़माने के उस ब्लैकआउट का ज़िक्र करते हुए उन्होंने आगे कहा, "घरों के शीशों पर काग़ज़ लगाया जाता था, लाइट बंद कर दी जाती थी, लोग चौकी बनाकर पहरा देते थे. मैं आज प्रत्येक देशवासी से एक और समर्थन मांग रहा हूं."
साफ़ है भारत के इतिहास में जनता कर्फ़्यू कोई नई बात नहीं है. इतिहासकार रिज़वान कादरी के मुताबिक़ 1956- 1960 जब अलग गुजरात राज्य बनाने का अंदोलन चल रहा था तब भी इस तरह के क़दम उठाए गए थे.
बीबीसी से बातचीत में रिज़वान कादरी ने कहा, "महा गुजरात आंदोलन के नेता इंदुलाल याग्निक थे. उनकी पहल पर नेहरू की सभा में जनता कर्फ़्यू की वजह से लोग शामिल ही नहीं होते थे. बस कुछ हज़ार लोग उनकी सभा में जाते थे, जबकि वो इतने बड़े नेता थे. नेहरू के सामने इंदुलाल याग्निक बहुत छोटे नेता थे, लेकिन उनकी सभा में हज़ारों की संख्या में लोग आते थे.
इतिहासकार रिज़वान के मुताबिक़ जनता कर्फ़्यू को शाब्दिक अर्थ में ही केवल ना समझे. इसका मतलब है जनता की किसी भी मुहिम में भागीदारी. किसी भी आंदोलन में जनता जुड़ जाए, और उसे अपने जीवन का मक़सद बना ले तो उसका नतीजा बेहतर निकलता है. गुजरात में दूसरे स्टूडेट मूवमेंट नव निर्माण आंदोलन में भी यही देखने को मिला था.
लेकिन किसी बीमारी के खिलाफ़ लड़ने में इसका पहली बार इस्तेमाल ज़रूर किया जा रहा है.
जनता कर्फ़्यू के दौरान, कोरोना से निपटने में हमारे देश के मेडिकल स्टाफ़ और दूसरे सदस्य जो इस बीमारी को फैलने से रोकने में जुटें है, उनका हौसला बढ़ाने के लिए करतल ध्वनि से स्वागत करने के लिए शाम 5 बजे का वक़्त भी तय किया गया है.
ये एलान भी प्रधानमंत्री मोदी ने किया है. पिछले दिनों इटली में भी इस तरह की एक पहल देखने को मिली थी.
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