कोरोना वायरस को लेकर शाहीन बाग़ ने क्या किया है?
शाहीन बाग़ में लकड़ी की चौकियों पर उन महिलाओं की जूतियां और चप्पलें रखी हुई हैं, जो शाहीन बाग़ के धरना स्थल से अपने घरों को लौट गई हैं.
इन महिलाओं ने अपने घर जाने का फ़ैसला इसलिए किया क्योंकि सरकार ने कोरोना वायरस की वजह से फैली महामारी की रोकथाम के लिए 123 साल पुराने एक क़ानून को लागू कर दिया है.
इस महामारी के चलते अब तक भारत में सात लोगों की मौत हो चुकी है. ये जूतियां-चप्पलें शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों की प्रतीकात्मक नुमाइंदगी कर रही हैं. घर वापस जाने से पहले इन महिलाओं ने कहा कि उनका धरना आगे भी जारी रहेगा.
भले ही इसके लिए पांच-पांच महिलाओं को अलग-अलग पाली में बैठ कर ही धरना क्यों न देना पड़े. शनिवार की रात को शाहीन बाग़ में धरने पर बैठी महिलाओं ने तय किया था कि जनता कर्फ़्यू के दौरान भी वो धरना जारी रखेंगी.
लेकिन, इस दौरान केवल पांच महिलाएं ही वहां मौजूद रहेंगी. 36 साल की मरियम ख़ान 15 दिसंबर 2019 से ही इस धरने में शामिल हो रही हैं.
मरियम ने तय किया कि रविवार को जनता कर्फ़्यू के दौरान जो पांच महिलाएं शाहीन बाग़ में धरना जारी रखेंगी, उनमें वो भी शामिल होंगी. मरियम, कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बावजूद धरने पर बैठना चाहती थीं.
पीएम मोदी की अपील
जबकि इसी की रोकथाम के लिए ही सरकार ने रविवार को दिन भर के जनता कर्फ़्यू का एलान किया था.
गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी ने नागरिकों से अपील की थी कि कोरोना वायरस के संक्रमण की शृंखला रोकने के लिए लोग रविवार को अपने घरों में ही रहें.
रविवार सुबह पांच बजे, पांच महिलाएं धरना स्थल पर पहुंचीं और एक दूसरे से दूरी बना कर लकड़ी की चौकियों पर बैठ गईं.
धरने वाली जगह पर ऐसी 70 चौकियां एक दूसरे से दूरी बना कर रखी गई हैं.
पेट्रोल बम
सुबह के क़रीब नौ बजे मरियम ख़ान ने धरना स्थल से क़रीब 500 मीटर की दूरी पर एक हल्के से धमाके की आवाज़ सुनी.
मरियम ने मुझे फ़ोन पर बात करते हुए कहा, "हम यहां एक मक़सद से धरने पर बैठे हैं. लेकिन हम सरकार के आदेश का भी पालन कर रहे हैं. लेकिन जिन लोगों ने यहां पेट्रोल बम फेंके, उन्होंने प्रधानमंत्री के आदेश को नहीं माना है. हम पर पहले भी हमले हुए हैं. और सरकार को चाहिए कि वो हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करें.''
एक और धमाका जामिया मिलिया इस्लामिया के पास भी सुना गया. जहां पर रविवार की सुबह कुछ कारतूस भी बरामद हुए थे. हमें ये जानकारी एक प्रदर्शनकारी साजिद माजिद ने दी, जो रविवार की सुबह एक वॉलिंटियर के तौर पर शाहीन बाग़ के धरना स्थल पर मौजूद थे.
साजिद माजिद ने बताया, ''पेट्रोल बम, धरना स्थल के पीछे लगे बैरीकेड के पास फेंका गया था और पुलिस ने वहां की सीसीटीवी फुटेज ले ली है. और पुलिस कह रही है कि वो इसकी जांच कर रही है. उन्हें बम फेंकने वाली जगह के पास पेट्रोल बम के सुबूत भी मिले हैं.''
साजिद ने कहा कि दो अज्ञात लोग मोहल्ले में स्थित सेंट्रल बैंक की शाखा के बगल वाली गली से धरना स्थल की तरफ़ आए और उन्होंने पेट्रोल बम फेंके.
मरियम के मुताबिक़, "पेट्रोल बम फेंकने वाले वो दो लोग इस करतूत को अंजाम देने के बाद भाग निकले. हालांकि धरना स्थल पर मौजूद वॉलिंटियर्स और स्थानीय लोगों ने उनका पीछा भी किया."
मरियम का आरोप है कि उन लोगों ने पेट्रोल बम इसलिए फेंके ताकि भारत में महिलाओं के सबसे लंबे समय से चल रहे इस विरोध प्रदर्शन को ख़त्म करा सकें. मरियम आगे कहती हैं- हम पीछे हटने वाले नहीं हैं.
विरोध प्रदर्शन
शाहीन बाग़ में महिलाएं 15 दिसंबर 2019 से नागरिकता संशोधन क़ानून, नागरिकता के नेशनल रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के ख़िलाफ़ धरने पर बैठी हुई हैं. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि वो सरकार के हर दिशा-निर्देश का पालन कर रही हैं.
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प्रदर्शनकारी नियमित रूप से हाथ धो रहे हैं और एक-दूसरे से निश्चित दूरी बना कर रहते हैं. धरना स्थल पर 200 लीटर पानी की टंकी रखी गई है, ताकि वहां मौजूद महिलाएं अपने हाथ नियमित रूप से धो सकें.
एक अन्य प्रदर्शनकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि धरना स्थल को पूरी तरह से साफ़-सुथरा कर दिया गया है. और यहां होने वाले सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं. मंच पर कोई भी भाषण नहीं हो रहा है.
शनिवार की रात को, प्रदर्शनकारियों की एक बैठक में शाहीन बाग़ में धरना जारी रखने या इसे टालने को लेकर मतभेद पैदा हो गए थे. कुछ लोग चाहते थे कि जिस तरह कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण जामिया संयोजक समिति या फिर पुरानी दिल्ली के ईदगाह के प्रदर्शनकारियों ने अपने धरने रद्द कर दिए हैं, उसी तरह, शाहीन बाग़ का धरना भी फिलहाल स्थगित कर दिया जाए.
वहीं, कुछ लोग इस धरने को जारी रखने के पक्ष में थे. जबकि, कई अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी सरकार ने धारा 144 लगा दी है, ताकि कोरोना वायरस के प्रकोप को बढ़ने से रोका जा सके.
पक्ष-विपक्ष
धरना स्थल पर शुरुआत से ही सक्रिय एक महिला ने कहा कि उन्होंने धरना दे रही महिलाओं से अपील की थी कि वो फ़िलहाल इसे स्थगित कर दें. लेकिन, वो अड़ी हुई थीं कि धरना जारी रखेंगी, क्योंकि देश भर में सैकड़ों ऐसे धरने हैं जो शाहीन बाग़ का अनुसरण कर रहे हैं.
अगर शाहीन बाग़ का धरना ख़त्म होता है तो उनका साहस टूट जाएगा. शाहीन बाग़ की महिलाओं ने तब भी यही तर्क दिया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को धरना ख़त्म करने के लिए राज़ी करने के लिए वार्ताकार नियुक्त किए थे.
पुरानी दिल्ली की ईदगाह में चल रहे धरने को 31 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया है. वहां पर एक व्यक्ति धरने पर बैठता है और उसका इंटरनेट पर लाइव प्रसारण होता है. पर, शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वो 31 मार्च तक अपना धरना नहीं स्थगित करेंगे.
इसके बाद तय ये हुआ कि धरना तो जारी रहेगा. पांच-पांच महिलाएं दो-दो घंटे की पाली में बैठ कर धरने को जारी रखेंगी. धरने के दौरान महिलाएं बहुत सावधानी बरतेंगी और अपनी सुरक्षा का ख़्याल रखेंगी. एक-दूसरे से दूर रहेंगी और मास्क पहनकर बैठेंगी.
साथ ही वो अपने हाथ को लगातार साफ़ करती रहेंगी. साजिद माजिद कहते हैं, ''हम देखते हैं कि 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है.''
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन क़ानून 2019 के ख़िलाफ़ शाहीन बाग़ में चल रहे धरने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 23 मार्च तक के लिए टाल दी थी.
हालांकि, रविवार को हुई वारदात में कोई घायल तो नहीं हुआ. लेकिन, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पुलिस की टीम को घटना स्थल से पांच-छह पेट्रोल बम मिले हैं. ये आरोप भी लगे हैं कि वहां सिगरेट और पान बेचने वाली छोटी सी दुकान को भी बम हमले में नुक़सान पहुंचा है. हालांकि, साजिद माजिद का कहना था कि बैरीकेड के पास रखा थोड़ा सा सामान ज़रूर जल गया था. बाक़ी किसी दुकान को कोई नुक़सान नहीं हुआ.
पाबंदियाँ
इससे पहले दिल्ली सरकार ने घोषणा की थी कि राजधानी में 31 मार्च तक ऐसा कोई धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक आयोजन नहीं हो सकता, जिसमें 50 से ज़्यादा लोग शामिल हों. ये ख़बर लिखे जाने तक भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 400 के क़रीब पहुंच चुकी थी. दिल्ली को पूरी तरह से लॉकडाउन किया जा चुका है.
केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए 1897 के एपिडेमिक डिज़ीज़ एक्ट को लागू कर दिया है. इस क़ानून के लागू होने से सरकार को ये ताक़त हासिल हो गई है कि वो महामारी को फैलने से रोकने के लिए अस्थायी नियम और क़ायदे लागू कर सकती है.
इसके अंतर्गत महामारी फैलने से रोकने के लिए बनाए गए नियम-क़ायदे तोड़ने वालों पर जुर्माना लगाया जा सकता है. या फिर उन्हें जेल में भी बंद किया जा सकता है. इस क़ानून की धारा तीन के अनुसार इसका उल्लंघन करना, भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत ऐसा अपराध है, जिसके लिए सज़ा दी जा सकती है.
ये क़ानून भारत में पहली बार, प्लेग की महामारी रोकने के लिए लागू किया गया था. तब यानी उन्नीसवीं सदी के अंत में प्लेग की वजह से भारत में हज़ारों लोगों की जान चली गई थी.
मरियम ने कहा कि जो महिलाएं 70 बरस या इससे ज़्यादा उम्र की हैं, उन्हें अब धरना स्थल पर नहीं आने दिया जा रहा है. इसी तरह, 10 साल से कम उम्र के बच्चों को भी नहीं आने दिया जा रहा है.
शाहीन बाग़ में धरने पर बैठे लोगों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाख़िल की गई हैं. ताकि, कोरोना वायरस को फैलने से रोका जा सके. लेकिन, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्हें धरना स्थल की साफ़-सफ़ाई का पूरा ख़्याल है और इस बारे में हर ज़रूरी एहतियात बरता जा रहा है.
इसीलिए, स्थानीय महिलाओं को कहा गया है कि वो किसी बाहरी व्यक्ति को धरना स्थल पर लेकर न आएं. और, धरने वाली जगह पर आने वालों की जांच भी की जा रही है कि उन्हें बुख़ार तो नहीं है. महिलाएं बुर्क़ा भी पहन रही हैं और ख़ुद को पॉलीथीन से भी ढंक रही हैं, ताकि वायरस से ख़ुद की हिफ़ाज़त कर सकें.
इसके अलावा, किसी इमरजेंसी से निपटने के लिए दो डॉक्टर भी धरना स्थल पर मौजूद रहते हैं.
मरियम ने कहा, ''हम यहां संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. और सरकार को इस बात को देखना चाहिए. हम ने हर उस बात का पालन किया है, जो उन्होंने करने को कहा. लेकिन, हम धरना जारी रखेंगे. फिर चाहे चार महिलाएं बैठें या केवल एक.''
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