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बनारस: जाति का कार्ड खेलकर DM ने आखिर ‘घास’ को दाल क्यों बना दिया!

वाराणसी के जिलाधिकारी ने उत्तर प्रदेश शासन के मुख्य सचिव के आदेश के बाद भी नहीं दिलाया कोइरीपुर के मुसहरों को सरकारी योजनाओं का लाभ। पत्रकारों को गलत ठहराने के लिए खुद को बेटे को खिला दिया हानिकारक खर-पतवार। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र कानपुर ने अकरी को बताया है खर-पतवार।
 
“प्रदेश के मुसहर जाति बाहुल्य जनपदों यथा- गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, जौनपुर सहित अन्य समस्त जनपदों में निवासरत मुसहर जाति के परिवारों का सर्वे करके उन्हें पात्रता के आधार पर भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा संचालित आवासीय योजनाओं, उनके परिवारों को अंत्योदय सूची में शामिल करने/पात्र गृहस्थी कार्ड (राशन कार्ड) निर्गत करने, पेंशन का लाभ व महिलाओं के लिए संचालित योजनाओं का लाभ अनुमन्य कराने, विद्युत कनेक्शन की सुविधा प्रदान करने, पेयजल हेतु हैंडपंप लगवाने एवं अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अनुमन्य कराये जाने हेतु जनपद स्तर पर मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया जाता है। समाज कल्याण अधिकारी समिति के सदस्य सचिव होंगे जबकि जिला विकास अधिकारी, जिला प्रोबेशन अधिकारी, जिला पूर्ति अधिकारी, अपर जिला अधिकारी (वित्त एवं राजस्व), ऊर्जा विभाग और जल निगम के अधिशासी अभियंता इसके बतौर सदस्य होंगे। उक्त समिति जनपदों में मुसहर जाति के परिवारों को सर्वे कर पात्रता के आधार पर एक माह के अंदर उपरोक्त अनुमन्य सुविधाओं का लाभ उपलब्ध करायेगी और तदनुसार अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी के माध्यम से शासन को उपलब्ध करायेगी।” 
उत्तर प्रदेश शासन के मुख्य सचिव की ओर से मुसहर समुदाय के विकास के लिए जारी शासनादेश की छायाप्रति
उत्तर प्रदेश शासन के मुख्य सचिव ने दो साल पहले सूबे के सभी जिलाधिकारियों और मंडलायुक्तों को यह आदेश दिया था लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ही योगी सरकार का यह आदेश दम तोड़ गया। हिन्दी दैनिक ‘जनसंदेश टाइम्स’ में बृहस्पतिवार को ‘बनारस के कोइरीपुर में घास खा रहे मुसहर’ शीर्षक से छपी खबर के तथ्यों पर विश्वास करें तो गांव के मुसहर बस्ती के बच्चे पिछले तीन दिनों से ‘अकरी’ नामक घास की फली के बीज को खाकर पेट की भूख मिटा रहे थे।
खबर छपते ही प्रशासनिक अमले में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने अखबार के प्रधान संपादक सुभाष राय और स्थानीय संपादक विजय विनीत को समाचार के खंडन का नोटिस भेज दिया।
जिलाधिकारी नोटिस में लिखते हैं, “…24 घंटे के अंदर स्पष्ट करें कि उक्त समाचार पत्र में मुसहरों के घास खाने का जो समाचार प्रकाशित किया गया , वह किस आधार पर किया गया है।….उक्त समाचार का खण्डन प्रकाशित करते हुए यह प्रकाशन भी करें कि आपके द्वारा दिनांक 26.03.2020 के प्रकाशन में जो खबर लिखा गया है, उसमें इस गांव से कोई घास नहीं खा रहा है।” साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि यदि शुक्रवार के अंक में समाचार का खंडन प्रकाशित नहीं होता है तो अखबार और पत्रकारों के खिलाफ विधिक कार्रवाई की जाएगी।
अगर जिलाधिकारी के नोटिस पर गौर करें तो वह खुद स्वीकार करते हैं कि पिण्डरा तहसील के कोइरीपुर गांव स्थित मुसहर बस्ती के बच्चे ‘अकरी (अखरी)’ की बालियां खा रहे थे, हालांकि वह उसे दाल बताते हैं।
वह लिखते हैं, “उक्त प्रकरण में अपर जिलाधिकारी (वि./रा.), उप-जिलाधिकारी (पिण्डरा) एवं तहसीलदार (पिण्डरा) वाराणसी को मौके पर भेजकर जांच करायी गई, जिसमें पाया गया कि उक्त बच्चों के घास खाने का प्रकाशित समाचार एवं तथ्य वास्तविकता के विपरीत है। इस गांव में बच्चे फसल के साथ उगने वाली अखरी दाल और चने की बालियां तोड़ कर खाते हैं व ये बच्चे भी अखरी दाल की बालियां खा रहे थे।”
जिलाधिकारी द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट और उनकी नोटिस में उल्लेखित ‘अखरी’ दाल के दावों की वैज्ञानिक पड़ताल करें तो पाते हैं कि अकरी (जिसे जिलाधिकारी ने नोटिस में ‘अखरी’ लिखा है) चौड़े पत्ते वाली खर-पतवार है। सामान्य बोलचाल में ग्रामीण इसे घास कहते हैं जो दलहनी और अनाज वाली फसलों के साथ उग जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘वीसिया सटाइवा’ है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक नरेंद्र कुमार, सीनियर रिसर्च फेलो आरती यादव और सत्येंद्र लाल यादव भी अपने लेख में इसकी पुष्टि करते हैं।

कानपुर स्थित भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक नरेंद्र कुमार, एसआरएफ आरती यादव और सत्येंद्र लाल यादव के संयुक्त लेख में उल्लेखित तालिका
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आइआइपीआर) के अधिकारिक डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘दलहन ज्ञान मंच’ पर भी इसकी पुष्टि है। इसकी अधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद ‘खरपतवार अभिज्ञान प्रणाली’ के ‘रबी’ खण्ड में जाने पर इसकी जानकारी दी गई है

अकरी खरपतवार
आइआइपीआर की इस वेबसाइट पर दलहनी फसलों की सूची भी दी गई है जिसमें अकरी या अखरी फसल का कोई जिक्र नहीं है। इसमें केवल चना, अरहर, मूंग, उड़द, मटर, मसूर, काबुली चना और राजमा को ही दलहनी फसल बताया गया है।
दलहनी फसलों की सूची
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद देश के कृषि क्षेत्र में शोध की सबसे विश्वसनीय और अधिकृत संस्था है। इसके विवरण  में अकरी को दाल नहीं बताया गया है। इसके बावजूद जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा और उनके अधीन अधिकारियों की टीम अकरी को दाल बता रही है। इतना ही नहीं, जिलाधिकारी ने इसे चने और मटर की तरह प्रोटीन को स्रोत भी बताया और कहा कि वह और उनके नाबालिग बेटे ने भी अकरी की बाली खाई।
जिलाधिकारी ने अकरी की बाली खाते हुए अपनी और अपने नाबालिग बेटे की तस्वीर भी मीडिया में जारी की। मीडिया को दिए गए बयान में इसे दाल बताकर सामान्य रूप से खाये जाने वाली फसल बताया जबकि कृषि वैज्ञानिकों की नज़र में यह खर-पतवार है जिसे ज्यादा खाने से सेहत खराब हो सकती है।
अपने बच्चे और अंकरी की “दाल” के साथ फोटो में जिलाधिकारी शर्मा
ऐसे में सवाल उठता है, जिलाधिकारी और उनके अधीन अधिकारी किस आधार पर अकरी घास की फली को दाल की फली बता रहे हैं? मामला इसे दाल बताने तक ही रहता तो ठीक था लेकिन उन्होंने खुद इसे खाया और अपने नाबालिग बेटे को खिलाया भी। साथ ही साथ इसका प्रचार मीडिया के जरिये लोगों के बीच किया जबकि कृषि वैज्ञानिक इसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं। क्या जिलाधिकारी का यह कृत्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है? क्या जिलाधिकारी पर लोगों को गुमराह करने का आरोप नहीं बनता है?
क्या जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा के खिलाफ की खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 की धारा 53(1) के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए जो कहता है, “यदि कोई व्यक्तिजो ऐसे किसी विज्ञापन का प्रकाशन करता है या उस प्रकाशन का कोई पक्षकार हैजिसमें (क) किसी खाद्य का मिथ्या वर्णन हैया (ख) किसी खाद्य की प्रकृति या अवयव या गुण के बारे में भ्रम पैदा होने की संभावना है या मिथ्या गारंटी देता है तो वह दण्ड का उत्तरदायी होगा जो दस लाख रुपये तक हो सकती है।
ग्रामीणों की बातों की मानें तो घास खाने की घटना की सूचना आने के बाद प्रशासन के लोग रात में फोर्स के साथ गांव में पहुंचे और अकरी घास को उखाड़कर ले गए। उनका कहना है कि बड़ी संख्या में प्रशासन के लोग आए थे। आखिरकार वे क्या छिपा रहे हैं?
अगर प्रशासनिक जिम्मेदारियों की नजर से ‘जनसंदेश टाइम्स’ की खबर को देखें तो जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा इसे निभाने में नाकाम रहे हैं। अखबार ने उनकी इसी नाकामी को उजागर किया है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के तत्कालीन मुख्य सचिव राजीव कुमार ने 22 जनवरी 2018 को सभी जिलाधिकारियों और मंडलायुक्तों को पत्र लिखकर प्राथमिकता के आधार पर मुसहरों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की बात कही थी लेकिन जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने इसे गंभीरता से नहीं लिया जबकि मुख्य सचिव ने सभी जिलों से मुसहर समुदाय के हालात पर एक महीने के अंदर रिपोर्ट मांगी थी।

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इतना ही नहीं, सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव-2019 से पहले मुसहरों के लिए जारी उक्त आदेश का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी किया था। इसकी जमीनी हकीकत जानने के लिए वे सूबे की मुसहर बस्तियों का दौरा भी कर रहे थे। ऐसा ही एक दौरान उन्होंने 12 सितंबर 2018 को सोनभद्र के ग्राम पंचायत तिनताली स्थित मुसहर बस्ती का किया था। इस दौरान उन्होंने मुसहरों को प्राथमिकता के आधार पर सरकारी योजनाओं का लाभ देने की बात कही थी। मीडिया ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसके बावजूद कोइरीपुर गांव के मुसहर बस्ती की तस्वीर नहीं बदली। आखिर क्यों? इसका जवाब तो जिलाधिकारी ही दे पाएंगे

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