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कोरोना वायरस: क्या 'वर्क फ्रॉम होम' ला रहा है नई मुसीबतें?
कोरोना वायरस संक्रमण के मामले भारत में तेज़ी से बढ़ रहे हैं. भारत में अब तक कोरोना वायरस की वजह से चार लोगों के मौत की पुष्टि की जा चुकी है जबकि दो सौ से अधिक लोग संक्रमित हैं.
संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सार्वजनिक जगहों को, जहां बड़ी संख्या में लोग जमा हो सकते हैं, उन्हें बंद किया जा रहा है.
कई कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम करने (वर्क फ्रॉम होम) की सुविधा दी है. यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि 'कम्युनिटी ट्रांसमिशन' को रोका जा सके. हालांकि घर से काम करने वाले अधिकतर लोग अब नई मुश्किलों से जूझ रहे हैं.
कई लोग मानसिक तनाव और दबाव झेल रहे हैं. इसकी कई वजहें हैं. बीबीसी ने अलग-अलग क्षेत्रों की कंपनियों में काम करने वाले लोगों से बात की और उनकी परेशानियां जानने की कोशिश की.
एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले रवि (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि उनका काम उतना ही है जितना वो ऑफ़िस में बैठकर करते थे लेकिन घर से काम करने में उन्हें इस बात का दबाव महसूस होता है कि कहीं उनके मैनेजर ये न समझें कि वो घर में आराम कर रहे हैं.
रवि कहते हैं, "वर्क लोड तो वैसा ही है लेकिन जो काम पूरा करना है उसका दबाव बढ़ गया है. ऑफ़िस में हम यही काम करते हैं लेकिन अभी हम घर पर हैं तो हमें यह दिखाना पड़ता है कि हम वाकई काम कर रहे हैं, घर में आराम नहीं कर रहे. यह दिखाने के लिए हम कई एक्टिविटी करते रहते हैं ताकि मैनेजर्स को लगे कि हम सक्रिय हैं.''
हालांकि वो यह भी कहते हैं कि मैनेजमेंट की ओर से काम को लेकर कोई दबाव नहीं डाला जा रहा है.
हर वक़्त ऑनलाइन रहने का दबाव
रवि दिल्ली में अपने भाई के साथ रहते हैं जो एक एनजीओ में बतौर एसोसिएट मैनेजर काम करते हैं. रवि के भाई ने बताया कि वो एनजीओ में ऑपरेशन का काम देखते हैं और उन पर काफ़ी दबाव है कि काम सही से हो और वक़्त पर हो.
उन्होंने कहा,"चीज़ें काफ़ी बदली हैं. जो काम हम ऑफ़िस में आसानी से कर लेते थे उसे पूरा करने में कई तरह की दिक़्क़तें सामने आ रही हैं. मानसिक दबाव भी महसूस कर रहे हैं क्योंकि काम को वक़्त में पूरा करने का दबाव बना रहता है. पूरा रूटीन बदल गया है. हमें कंपनी को यह भी दिखाना है कि काम सही ढंग से हो रहा है इस वजह से काम के घंटे भी बढ़ रहे हैं."
सोशल मीडिया मार्केटिंग एजेंसी में काम करने वाली सिमरन (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि घर से काम करने में सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अब कोई तय शिफ़्ट नहीं है. कितने भी घंटे काम करना पड़ सकता है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा,"अब कोई फ़िक्स शिफ़्ट नहीं है. पहले जैसे 9 से 10 घंटे की शिफ़्ट होती थी अब घर से काम करने पर है कि जब तक काम ख़त्म न हो बैठे रहो. काम उतना ही है या उससे भी कम हो रहा है लेकिन डिलिवरी टाइम बढ़ गया है."
सिमरन बताती हैं कि काम में कोई फ़र्क नहीं आया लेकिन दबाव इस तरह बना दिया गया है कि दो बजे रात तक वॉट्सऐप ग्रुप में डिस्कसन चल रहे हैं. काम कम नहीं हो रहा लेकिन शायद मैनेजमेंट ये मानकर चल रहा है कि वर्क फ्रॉम होम लंबे समय तक चलेगा इसलिए सबको इसकी प्रैक्टिस ऐसी करवाई जाए कि सब इसमें ढल जाएं.
कम्युनिकेशन गैप बन रहा वजह?
सिमरन यह भी कहती हैं मैनेजमेंट को ऐसा लगता है कि जो घर से काम कर रहे हैं उनके पास कोई और काम नहीं है. कहीं बाहर भी नहीं जाना तो जितना हो सके काम करवा लिया जाए. इस वजह से फ़िज़िकल एक्टिविटी भी काफ़ी कम हो रही हैं. पहले ऑफ़िस से लौटने के बाद काम ख़त्म हो जाता था अभी काम कब ख़त्म होगा इसकी कोई सीमा नहीं है.
अधिकतर लोगों की मुश्किल यह है कि घर से काम करने पर वो काफ़ी दबाव महसूस कर रहे हैं और मैनेजर उनकी समस्या समझ नहीं रहे. घर में रहकर काम करने की वजह से रोज़ाना बातचीत की जो प्रैक्टिस है वह बदली है और उससे भ्रम की स्थिति भी बनती है.
एक निजी कंपनी में काम करने वाली सना (बदला हुआ नाम) कहती हैं, "कल रात मैं 12 बजे भी काम में उलझी थी. आज मेरी मीटिंग थी तो मुझे आज का काम भी कल ही करना पड़ा. ऑफ़िस में बैठकर काम करना आसान होता है. वहां कोई चीज़ किसी को दिखानी है, अप्रूव करानी है तो मौके पर ही हो जाती है, वहां बेहतर ढंग से समझाया जा सकता है लेकिन फ़ोन पर यह काम थोड़ा मुश्किल हो रहा है और कम्युनिकेशन गैप की वजह से काम और बिखर रहा है."
क्या ये न्यू नॉर्मल बन जाएगा?
कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अधिकतर बाज़ार और सिनेमाघर बंद कर दिए गए हैं. लोग घरों से बाहर निकलने में भी घबरा रहे हैं. ऐसे में जिन लोगों को घर में रहकर काम करना पड़ रहा है वो एक नई तरह की मुश्किल से गुज़र रहे हैं.
कोरोना के डर से वो न तो कहीं बाहर जा पा रहे है और न ही घर में काम से ब्रेक ले पा रहे. इस वजह से मानसिक और शारीरिक थकान भी बढ़ रही है.
कोरोना वायरस हो या नहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि घर से काम करने में अक्सर कम्युनिकेशन गैप की स्थिति बनती है और लोग यह नहीं समझ पाते कि उनके मैनेजर असल में कैसा काम चाहते हैं. जबकि ऑफ़िस में यह चीज़ बेहद आसान होती है.
फिलहाल लोग इस बात का अनुमान लगा रहे हैं कि घर से काम करना लंबे समय तक चलेगा इसलिए अब यह न्यू नॉर्मल वाली स्थिति होने वाली है.
बोस्टन की नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में रिमोट वर्किंग पर अध्ययन करने वाली प्रो. बारबरा लार्सन का मानना है कि हर दिन आपको चीज़ें सही से तय करनी होंगी तभी काम होगा.
प्रो. बारबरा लार्सन कहती हैं, "अपने मैनेजर से पूछें कि क्या वो 10 मिनट के लिए बात करके चीज़ें स्पष्ट कर सकते हैं ताकि दिनभर का काम वक़्त पर कैसे होगा इसे लेकर एक रणनीति बनाई जा सके. अक्सर मैनेजर इस बारे में नहीं सोचते."
प्रो. लार्सन का मानना है कि अधिकतर कर्मचारी ऑफिस में अपने मैनेजर के आसपास होते हैं और बातचीत भी आसानी से होती है लेकिन घर से काम करने में स्थिति बदल जाती है. वो कहती हैं, "अगर पहले कभी घर से काम करने का चलन किसी कंपनी में नहीं रहा तो कम्युनिकेशन ब्रेकडाउन होना बहुत आम बात है. हो सकता है मैनेजर लोगों से इस तरह काम लेने के आदी न हों."
साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीतू राणा भी इस बात से सहमत नज़र आती हैं. उनका मानना है कि घर से काम करने का ट्रेंड कई कंपनियों के लिए अभी पूरी तरह नया सा है. इस पर ढलने में लोगों को वक़्त लगेगा और धीरे-धीरे चीज़ें सही रास्ते पर आएंगी.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारी रोज़ाना की दिनचर्या इससे प्रभावित हुई है. इसका असर आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर न पड़े इसलिए आपको कुछ सीमाएं तय करनी होंगी. बेडरूम या डाइनिंग टेबल पर बैठकर काम करने की बजाय घर के एक कोने को ऑफिस समझें और वहीं काम करें. जब ब्रेक लेना हो तो अपनी कॉलोनी या सोसाइटी का एक चक्कर लगा लें, पास में पार्क हो तो वहां चले जाएं. किसी से मिलें नहीं लेकिन ख़ुद का ख़याल रखते हुए बाहर निकलें."
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धीरे-धीरे बदलेगी आदत?
डॉ. नीतू राणा यह भी मानती हैं कि ऑफ़िस में काम करते हुए लोग छोटे-छोटे ब्रेक लेते रहते हैं लेकिन घर में शायद वो ऐसा नहीं कर पा रहे. ऐसे में उनके लिए ज़रूरी है कि अगर वो घर से बाहर नहीं निकल पा रहे तो थोड़ा वक़्त निकालकर किसी से फ़ोन पर बात कर लें, घर में ही टहल लें ताकि थोड़ा रिलैक्स महसूस कर पाएं.
वो कहती हैं,"जिस तरह की सेमी-लॉकडाउन स्थिति बनी है वो अभी पांच-छह दिनों से ही है. लोग इसके आदी नहीं है. शुरू में थोड़ा दबाव महसूस होगा लेकिन धीरे-धीरे कुछ दिनों में कर्मचारी और मैनेजर दोनों को यह महसूस होगा कि रोज़ाना इस तरह दबाव में काम नहीं हो सकता और चीज़ें अपने आप सामान्य हो जाएंगी."
विशेषज्ञों का मानना है कि मैनेजर को इस बारे में ज़्यादा सोचना चाहिए कि वो कर्मचारी पर बेवजह दबाव न डालें. कम्युनिकेशन गैप से बचने के लिए फ़ोन कॉल के बजाय वीडियो कॉल पर बात करें ताकि किसी को यह महसूस न हो कि वो अकेले काम कर रहे हैं. ख़ासकर वो लोग जो घर से दूर और अकेले रहते हैं.
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