कोराना वायरस: 'सरकार की नज़र में हमारी ज़िंदगी की क़ीमत महज़ 30 रुपये'
कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में डॉक्टरों की ही तरह आशा कार्यकर्ताओं को भी पूरे देश में काम पर लगाया गया है.
आशा कार्यकर्ता गांवों और शहरों में घर-घर जाकर परिवार के एक-एक सदस्य की स्वास्थ्य संबंधी जानकारी इकट्ठा करने में लगी हुई हैं.
इस दौरान आशा कार्यकर्ता पर कर्नाटक और महाराष्ट्र में हमले भी हुए हैं.
ऐसी रिपोर्ट भी आई है कि एक आशा कार्यकर्ता के हाथ पर होम क्वारंटीन की मुहर देखकर गांव से बाहर जाने को कहा गया.
आशा कार्यकर्ता कोरोना संकट के इस दौर में किन परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं, यहां ये जानने की हमने कोशिश की है.
ग्रामीण या शहरी इलाक़ों में काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं को हर रोज़ 25 घरों में जाकर सर्वे करना ज़रूरी होता है.
अलका नलवाडे का सवाल
पूरे महाराष्ट्र में 70 हज़ार आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर पूछती हैं कि क्या कोई मुंबई और पुणे से आपके घर आया है. क्या किसी को बुख़ार, खांसी और सर्दी है.
इन्हीं में से एक आशा कार्यकर्ता हैं अलका नलवाडे. अलका पुणे के पवार वाडी में पिछले दस सालों से आशा कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रही हैं.
जब बीबीसी ने उनसे उनके इस काम के अनुभव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "सरकार ने हमें कोरोना वायरस से जुड़े काम के लिए एक महीने के एक हज़ार रुपये देने का फ़ैसला लिया है. उस हिसाब से एक दिन के 30 रुपये हुए. हमें हर रोज़ अपनी जान जोखिम में डालने के 30 रुपये मिलते हैं."
"सरकार की नज़र में हमारी जान की क़ीमत 30 रुपये है. अगर हम खेतों में काम करने भी जाते हैं तो हमें 300 रुपये की दिहाड़ी मिलती है. हमें आठ दिनों की सब्ज़ी भी मिल सकती है और दो बकरियां भी पाल सकते हैं. 30 रुपये में हम कैसे अपने घर का ख़र्च चला पाएंगे. आप ही बताइए हमें."
स्वास्थ्य बीमा की घोषणा
अलका के पति उनके साथ नहीं रहते. वो और उनकी बेटी ही घर में हैं. वो पूछती हैं, "अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो गई तो कौन देखेगा हमें. क्या मैं 30 रुपये में अपना इलाज करवा लूंगी."
अलका आगे कहती हैं, "सरकार ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम से जुड़े काम में लगे लोगों की मौत होने की स्थिति में 50 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा की घोषणा की है. लेकिन एक आशा कार्यकर्ता अगर मर जाती है तो इन 50 लाख रुपये का क्या करेगी."
"सरकार उनके ज़िंदा रहते तो उन्हें पैसे देने को तैयार नहीं है. अगर कोई आशा कार्यकर्ता मर जाती है तो वो देखने आएगी कि सरकार ने 25 लाख दिए हैं या 50 लाख दिए हैं?"
सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं को अप्रैल, मई और जून के दौरान कोरोना संबंधी कार्यों के लिए अलग से एक हज़ार रुपये देने की घोषणा की है. इस तरह से उन्हें इन तीन महीनों में कुल तीन हज़ार रुपये मिलेंगे. आशा कार्यकर्ताओं को सरकार की ओर से मिलने वाली इस रक़म पर आपत्ति है.
बुरा व्यवहार
अलका जब गांवों में जाकर जानकारी इकट्ठा कर रही थी, तब उन्हें अपने साथ बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ा.
अलका रोष में आकर कहती हैं, "कुछ लोग हमें अपने घरों में घुसने से मना कर देते हैं. वो कहते हैं कि हम पूरे गांव में घूमते हैं. हम उन्हें कोरोना से संक्रमित कर देंगे. हम उनकी जानकारी बाहर पहुँचाएंगे. ऐसे मौक़े पर बहुत दुख होता है. मेरी भी ज़िंदगी है. मुझे भी मौत से डर लगता है. हम लोगों के लिए ही काम कर रहे हैं और वही लोग हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं. हम और क्या करें?"
ऐसे हालात में भी अलका कई घरों में जाती हैं और जानकारी इकट्ठा करती हैं. उन्हें इकट्ठा की गई जानकारी 'वाल्हे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र' में जमा करनी होती है. इसके लिए उन्हें चार किलोमीटर पैदल चलकर केंद्र तक पहुंचना होता है.
एक ही मास्क धोकर इस्तेमाल करने की मजबूरी
अलका और दूसरी आशा कार्यकर्ता बीबीसी से बताती हैं कि सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं को कोई सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं करवाया है.
छाया गायकवाड़ यवतमाल ज़िले के दुधगाँव में आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करती हैं.
सरकार ने क्या उनकी सुरक्षा के लिए कुछ मुहैया किया है?
इस पर वो कहती हैं, "हम कोरोना से संबंधित सर्वे पिछले 12-13 दिन से कर रहे हैं. हमें इसके लिए सूती कपड़े का मास्क दिया गया है. हम अब तक वहीं मास्क इस्तेमाल कर रहे हैं. सर्वे से घर लौटने के बाद उसे धोते हैं और फिर अगले दिन वही मास्क इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा हमें 10 मिलीलीटर का एक स्प्रिट दिया गया है जिसे हम पानी मिलाकर इस्तेमाल करते हैं."
जालना ज़िले के पचनावदगांव की आशा कार्यकर्ता करुणा शिंदे कोरोना से जुड़े सर्वे के दौरान अपने दुपट्टे का इस्तेमाल करती हैं. वो बताती हैं कि सरकार ने किसी भी तरह का कोई सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराया है.
परिवार की आपत्ति
इन आशा कार्यकर्ताओं को अपने परिवार वालों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. यवतमाल की अंजना वानखेड़े इनमें से एक हैं.
वो कहती हैं, "जब हम कोरोना से संबंधित आंकड़े इकट्ठा करने जाते हैं तो हमारे परिवार वाले डरे रहते हैं. वो इस बात को लेकर चिंतिंत रहते हैं कि कहीं हमें भी संक्रमण न लग जाए. यह हमारे परिवार के सदस्यों को भी फिर संक्रमित करेगा और फिर पूरे गांव को. हमारे परिवार वाले कहते हैं कि हमें ना तो सैलेरी मिलती है और ना ही कोई और सुविधा. फिर भी हम अपनी जान जोखिम में डाल कर आकड़ें जुटाने में लगे हुए हैं."
वो सरकार से उम्मीद करती हैं कि उन लोगों को कम से कम सेफ्टी के सामान तो उपलब्ध करवा दें.
जालना की आशा कार्यकर्ता करुणा कहती हैं, "कोरोना के डर से मेरे पति मुझे सर्वे के काम पर जाने से रोकते हैं. वो कहते हैं कि दूसरे लोग जैसे डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्य सेवियों को तनख्वाह मिलती है, उन्हें ये काम करने दो."
'हमारा कहीं ज़िक्र नहीं होता'
कई आशा कार्यकर्ताओं की ये भी शिकायत है कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक हर कोई डॉक्टर, नर्स और पुलिस वालों की तो तारीफ़ करता है. लेकिन कोई हमारे बारे में बात नहीं करता कि आशा कार्यकर्ता कर रही हैं.
आशा कार्यकर्ता अनजना कहती हैं, "कोरोना से जुड़ा असल काम तो हम आशा कार्यकर्ता कर रही हैं लेकिन कोई हमारी बात नहीं कर रहा. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सब डॉक्टर और पुलिस की तारीफ़ कर रहे हैं."
वो कहती हैं, "सरकार हर रोज़ नए आंकड़ें पेश करती हैं. कौन ये आकड़े जुटाता है? हम घर-घर जाकर ये आंकड़ें इकट्ठा कर सरकार को देते हैं. सरकार आंकड़ों की तो बात करती है लेकिन इन आंकड़ों को जुटाने वाली आशा कार्यकर्ताओं पर कुछ नहीं कहती."
सरकार क्या कहती है?
आशा कार्यकर्ताओं की समस्याओं के मद्देनज़र हमने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र यदरावकर से संपर्क किया.
उन्हें बताया कि आशा कार्यकर्ता बिना किसी सेफ्टी के काम कर रही हैं तो उनका कहना था, "पिछले डेढ़ महीने से आशा कार्यकर्ता बहुत अच्छा काम कर रही हैं. जहां कहीं भी सुरक्षा उपकरणों की कमी है, हमने स्थानीय प्रशासन को इसके बारे निर्देश दिए हैं. आशा कार्यकर्ता बहुत कम पैसे में अपनी जान जोखिम में डाल कर काम कर रही हैं. उनकी जान की सुरक्षा होनी चाहिए. उन्हें मदद करना सरकार की ज़िम्मेवारी है."
आशा कार्यकर्ताओं को जगह-जगह पर लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
इस पर वो कहते हैं, "राज्य में ऐसी घटना एक या दो जगहों पर हुई है. आशा कार्यकर्ता बाहर आकर काम कर रही हैं. बिना यह जाने की सामने वाला इंसान कोरोना पॉजिटिव है या निगेटिव, वे घर-घर जाकर लोगों की जानकारियां इकट्ठा कर रही हैं. वो बहुत बड़ी ज़िम्मेवारी निभा रही है. लोगों को बिना किसी विरोध उनके साथ सहयोग करना चाहिए."
आशा कार्यकर्ताओं को बहुत कम पैसे मिलने के सवाल पर वो कहते हैं, "इस वक़्त हमारे लिए कोरोना का मुद्दा ज़रूरी है. जो इस मुश्किल घड़ी में अपना काम लगन से कर रहे हैं, उनके साथ न्याय ज़रूर होगा. मैं इसकी कोशिश करूँगा."
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