कोरोना मरीज़ों को रिस्टबैंड से ट्रैक करने की तैयारी
कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में सरकार को तीन जगहों पर सबसे ज़्यादा दिक़्क़त रही है,
• संक्रमण को ठीक करने में लगे डॉक्टर और नर्स ख़ुद संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं
• हॉटस्पॉट एरिया में रहने वाले लोग घरों और आइसोलेशन में रहने को राज़ी नहीं हैं
• क्वारंटीन छोड़ कर लोग भाग रहें हैं, कई लोग नियमों का पालन करने को तैयार नहीं हैं.
इन तीनों समस्याओं का तोड़ निकालने के लिए सरकार की एक कंपनी ब्रॉडकास्ट इंजिनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड ख़ुद सामने आई है. ये कंपनी भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंदर काम करती है.
अगर क्वारंटीन में रहने वाले लोगों को एक रिस्टबैंड पहना दिया जाए, जिससे उनके बॉडी टेम्परेचर को मापा जा सके, तो बहुत हद तक ऊपर की तीनों समस्याओं से निपटा जा सकता है.
कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर जॉर्ज कुरुविला ने अपनी सोच को बीबीसी के साथ साझा किया. उनके मुताबिक़ इस तरह के रिस्टबैंड भारत में बहुत पॉपुलर नहीं हैं. लेकिन जितने तरह के बैंड दुनिया में मौजूद है, उनका इस्तेमाल कर इस बीमारी से हम लड़ सकते हैं.
कैसे काम करेगा ये रिस्टबैंड?
कुरुविला का कहना है कि ये बैंड दो तरीक़े से काम करेगा. एक तो लोगों के शरीर के तापमान की रीडिंग लेकर बता देगा, कि किसी शख्स को बुख़ार है या नहीं.दूसरा इस बैंड में जियो फेंसिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि ये पता लगाया जा सके कि किसी व्यक्ति को अगर क्वारंटीन में ही रहने को कहा गया है तो वो उसका उलंघन तो नहीं कर रहा. इसके लिए इस बैंड को मोबाइल जीपीएस का सहारा लेना पड़ेगा.
जॉर्ज कुरुविला के मुताबिक़ हॉटस्पॉट इलाक़ों में इसका सबसे अच्छा इस्तेमाल हो सकेगा.
ऐसे इलाक़ों में स्थानीय प्रशासन के सामने चुनौती होती है कि घर-घर जा कर सैंपल ले, टेस्ट करें, और फिर हर घर के हर व्यक्ति को ट्रैक करें.
इस बैंड को हॉटस्पॉट एरिया को सील करने के बाद सभी घरों के सभी सदस्यों को पहना जाएगा, और इससे स्थानीय प्रशासन के लोग एक सर्वर पर देख पाएंगे कि किस घर के लोगों में कोरोना के लक्षण देखने को मिल रहे हैं. उसे तुंरत ट्रैक कर आइसोलेट करने में मदद मिलेगी.
इस तकनीक को एक से ज़्यादा हॉटस्पॉट में इस्तेमाल किया जा सकता है. और एक बैंड को सैनिटाइज कर के दूसरे जगह भी इस्तेमाल किया जा सकेगा.
जिस भी इलाक़े को सरकार हॉटस्पॉट घोषित करती है, उस इलाक़े के नगर निगम के अधिकार में इस बैंड को दिया जा सकता है. सर्वर में दिखने वाले ग्राफ के ज़रिए वो लोगों के शरीर के तापमान को ट्रैक करें. एक बार एरिया रेड ज़ोन से हट कर ग्रीन ज़ोन में जैसे ही आ जाएगा, वैसे ही लोगों से इसे वापस लेकर दूसरे ज़ोन में इसका इस्तेमाल भी किया जा सकेगा.
कब तक बाज़ार में आएगा ये बैंड
जॉर्ज कुरुविला के मुताबिक़ इस तरह के रिस्टबैंड बिलकुल हाथ में पहनने वाली घड़ी की तरह ही होगा. इसको बनाने वाली 4-5 भारतीय कंपनियों से वो संपर्क में हैं.कुछ हार्डवेयर सामान उन्हें बाहर से मंगवाना पड़ेगा. सॉफ्टवेयर उनके पास है. इस प्रक्रिया में उन्हें 10 से 15 दिन और वक्त लगेगा.
कुरुविला चाहते हैं कि इस बैंड का इस्तेमाल सबसे पहले अस्पतालों में नर्स और डॉक्टरों पर हफ्ता दस दिन तक किया जाए. उससे पता चल जाएगा कि आख़िर कितने कारगर हैं ये बैंड. सब कुछ सुनिश्चित करके ही इसे स्थनीय प्रशासन और सरकार को देने की तैयारी की जाएगी.
कुरुविला की मानें तो इस बैंड के बारे में भारत सरकार से उनकी कोई बात नहीं हुई है. लेकिन किसी निर्णायक स्थिति में वो जब पहुंच जाएंगे तो सरकार से इस बारे में बात करेंगे. उनके मुताबिक़ वो स्थिति आने में अभी महीने भर का वक्त लग सकता है.
बैंड की सीमाएं
लेकिन जब देश में बिना लक्षण वाला कोरोना फैल रहा हो, ऐसे में केवल बुखार जांच कर कैसे पता लगा पाएंगे कि कौन कोरोना संक्रमित है और कौन नहीं?अगर कोई व्यक्ति अपना स्मार्ट फोन कहीं छोड़ कर क्वारंटीन तोड़ कर भाग जाए तो भी क्या ये कारगर उपाए होगा?
इस सवाल के जवाब में जॉर्ज कुरुविला कहते हैं, "तकनीक की अपनी सीमाएं है. लेकिन अगर हम इसमें और ज्यादा डिटेल में जाते हैं तो हमें कई तरह के दूसरी समस्याएं आ सकती है, जैसे लोगों के कुछ ज्यादा डेटा हमें लेना पड़ सकता है. हम इस पर भी फिलहाल स्टडी कर रहे हैं."
निजता के अधिकार का क्या?
कोरोना को ट्रैक करने के लिए सरकार ने आरोग्य सेतु ऐप भी बनाया है. इस पर कई लोग सवाल भी उठा रहे हैं कि इससे निजता का उलंघन होगा.ऐसे में ये रिस्टबैंड की नई तकनीक पर यही सवाल खड़े ना हो इसके लिए कंपनी पहले से ही तैयारी कर रही है.
कंपनी का मानना है कि जब हम एक बार इस्तेमाल करके सैनेटाइज़ करके दूसरे पर इसका इस्तेमाल करने की बात कर रहे है, जो निजता के अधिकार के उलंघन और डेटा चोरी का कोई सवाल ही नहीं है.
बीबीसी ने इस बारे में फील्ड के जानकारों से भी बात की. सुबिमल भट्टाचार्या के मुताबिक़ अगर सचमुच में रिस्टबैंड में इसी तकनीक का इस्तेमाल होगा तो लोगों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
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लेकिन साइबर क़ानून के जानकार पवन दुग्गल को इसमें आपत्ति है. उनके मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति का हेल्थ डेटा उसकी निजी और संवेदनशील जानकारी मानी जाती है.
आप उसकी इच्छा के बिना उसे कहीं भी स्टोर नहीं कर सकते. ना ही इस बारे में बिना कोई क़ानून लाए इसे अनिवार्य बना सकते हैं.
उनके मुताबिक़ अगर कोई कंपनी ऐसा कर रही है तो उसे साफ तौर पर पहले ये स्पष्ट करना होगा कि डेटा कहां और कितनी अवधि के लिए स्टोर किया जाएगा. इसका इस्तेमाल कौन कौन कर सकता है और किस किस को उपलब्ध होगा.
पवन दुग्गल की मानें तो प्रयास के पीछे की सोच अच्छी है. लेकिन इस पर संभल कर काम करने की ज़रूरत है. और इस समय सरकार नहीं चाहेगी कि किसी भी चीज़ को अनिवार्य बना कर किसी तरह के क़ानूनी झमेले में पड़े.
दुनिया में कहां हो रहा है इसका इस्तेमाल
न्यूयॉक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़ हांगकांग में भी क्वारंटीन में रहने वाले लोगों को वहां के प्रशासन ने इस तरह का बैंड पहनना अनिवार्य कर दिया था. तकरीबन 60 हज़ार लोगों को ऐसे बैंड पहनाए गए थे.इसके अलावा दक्षिण कोरिया ने भी इस तरह के बैंड का इस्तेमाल लोगों को क्वारंटीन में ट्रैक करने के लिए किया था.
बिजनेस इंसाइडर की ख़बर के मुताबिक़ दक्षिण कोरिया में क्वारंटीन में रहने वाले लोग प्रशासन को चकमा देने के लिए फोन छोड़ कर क्वारंटीन सेंटर से बाहर जा रहे थे. इसलिए उन्हें इस तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ा.
https://www.bbc.com से साभार
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