कोरोना वायरस: 'निज़ामुद्दीन में मेरे जाने की ख़बर गुजरात पुलिस को कैसे मिली?'
31 मार्च को शाम 7 बजे मैं दिल्ली में बीबीसी गुजराती के दफ़्तर में काम कर रहा था. कोरोना वायरस के चलते 21 दिन के लॉकडाउन चल रहा है, इसी बीच अचानक से नई दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में मौजूद मरकज़ से बड़े पैमाने में कोविड-19 के पॉजिटिव केस सामने आने की न्यूज़ अपडेट आने लगी.
चूंकि मैं ऑफिस के फ़ोन को अपने प्राइमरी फ़ोन के तौर पर इस्तेमाल करता हूं. ऐसे में मेरा पर्सनल फ़ोन तक़रीबन सारा वक़्त बंद रहता है. लेकिन, उस दिन मैंने अपना फ़ोन चालू किया. जैसे ही मैंने फ़ोन को ऑन किया, कुछ ही मिनटों में मेरा फ़ोन बजने लगा.
मैंने फ़ोन उठाया, दूसरी ओर से आने वाली आवाज़ सौम्य और स्पष्ट थी. उन्होंने मुझसे कहा, 'हैलो, क्या आप मेहुलभाई हैं?' उन्होंने कहा, 'मैं अहमदाबाद क्राइम ब्रांच से पुलिस इंस्पेक्टर डी बी बराड़ बोल रहा हूं. क्या आप हाल में ही नई दिल्ली के निज़ामुद्दीन गए हैं? आप कैसे हैं और कहां हैं?'
मैं समझ चुका था कि मेरे पास अचानक यह कॉल क्यों आई है.
मैंने उन्हें बताया कि मैं अहमदाबाद से हूं और फ़िलहाल दिल्ली में रह रहा हूं और बीबीसी की गुजराती सेवा के लिए बतौर संवाददाता काम कर रहा हूं. मैंने यह भी बताया कि जिस इलाके़ से इतने सारे संक्रमित लोगों के होने की ख़बर आ रही है वह मेरे घर से दफ़्तर के रास्ते में पड़ता है और मैं अक्सर वहां बिरयानी पैक कराने के लिए रुकता हूं.
पुलिस इंस्पेक्टर डी बी बराड़ मेरे जवाब से संतुष्ट थे और यह बातचीत यहीं ख़त्म हो गई.
बराड़ के साथ बातचीत के बाद मुझे याद आया कि मार्च की शुरुआत में अपने दफ़्तर का काम पूरा करने के बाद मैं निज़ामुद्दीन दरग़ाह के पास एक बाज़ार में रुका था.
मुझे यह भी याद है कि मैं मास्क पहने हुए था और अपनी बिरयानी पैक कराने के तुरंत बाद मैं वहां से चला गया था.
हालांकि, कहानी में ट्विस्ट यह है कि मेरा सेलफ़ोन नंबर जिसे मैं पिछले डेढ़ साल से शायद ही इस्तेमाल कर रहा था, जिस पर इंस्पेक्टर बराड़ ने फ़ोन किया था, वह उस वक़्त बंद था जब मैं निज़ामुद्दीन गया था. इस नंबर का इस्तेमाल मैं केवल ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस के ओटीपी हासिल करने के लिए करता हूं.
संक्रमण का केंद्र निज़ामुद्दीन मरकज़ और गुजरात पुलिस की सक्रियता
गुजरात पुलिस की फ़ोन कॉल एक सरप्राइज़ जैसी थी. मैं ख़ुश था कि गुजरात पुलिस निज़ामुद्दीन मरकज़ में कोरोना वायरस के फैलने को लेकर बेहद प्रोएक्टिव अप्रोच अपना रही है.
मैं आश्चर्यचकित था कि आख़िर गुजरात क्राइम ब्रांच को मेरे फ़ोन के निजामुद्दीन इलाक़े में होने के बारे में इतनी जल्दी कैसे जानकारी मिल गई जबकि निजामुद्दीन मरकज़ में कोरोना के संक्रमण फैलने की ख़बर अभी डिवेलप हो ही रही थी.
2 अप्रैल को जब मैं यह ख़बर लिख रहा था, उस वक़्त तक निज़ामुद्दीन मरकज़ से 2,361 लोगों को निकाला जा चुका था. इनमें से 617 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने के आसार हैं और ऐसे में इन्हें हॉस्पिटल भेज दिया गया है. बाकी लोगों को अलग जगह पर क्वारंटाइन में भेज दिया गया है.
2 अप्रैल तक देशभर में कोरोना के 2,000 मामले सामने आ चुके थे जिनमें 378 केस निज़ामुद्दीन मरकज़ के थे.
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ऐलान किया है कि मरकज़ को 1 अप्रैल को ख़ाली करा लिया गया है. इसके लिए 36 घंटे का सर्च ऑपरेशन चलाना पड़ा.
केंद्र सरकार के आदेश के बाद पुलिस पूरे देश में उन लोगों की तलाश कर रही है जो कि निज़ामुद्दीन इलाक़े या मरकज़ गए थे.
निज़ामुद्दीन इलाक़े का दौरा कर चुके सूरत के 72 लोगों की पहचान की जा चुकी है और इनमें से 42 को क्वारंटाइन में भेजा जा चुका है. हालांकि, इनमें से सभी लोग मरकज़ नहीं गए थे. कुछ लोग कारोबारी भी हैं. जैसे कि मैं एक पत्रकार हूं और मरकज़ नहीं गया था.
गुजरात पुलिस ने मुझे कैसे ढूंढा
मैंने बराड़ को कॉल की और यह पूछा कि गुजरात पुलिस को मेरा नंबर कैसे मिला. उन्होंने मुझे बताया, 'हमें इलाक़े के टेलीकॉम टावर से किसी ख़ास इलाक़े में आने-जाने वाले लोगों के सेलफ़ोन नंबर मिलते हैं. हमें कम से कम 230 ऐसे सेलफ़ोन नंबर मिले हैं जो कि अहमदाबाद से हैं. इन सभी को 31 मार्च शाम 5 बजे तक ट्रेस किया चुका है.'
मेरे सहयोगी रॉक्सी गागाडेकर छारा ने अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर आशीष भाटिया से संपर्क किया.
आशीष भाटिया ने उन्हें बताया कि निज़ामुद्दीन मरकज़ मामले के बाद दिल्ली पुलिस ने भी उन्हें मदद दी है और इसके बाद साइबर-क्राइम डिपार्टमेंट ने एक्टिव नंबर्स की एक लिस्ट तैयार की. इस आधार पर लोगों से बात की गई और उन्हें ट्रेस किया गया.
उन्होंने कहा कि दिल्ली में तबलीग़ी जमात के लोगों में से 27 गुजरात के थे. दिल्ली छोड़ने से पहले ये 27 लोग उत्तर प्रदेश और दूसरे इलाक़ों में भी गए. इसके बाद ये लोग अहमदाबाद आ गए. हालांकि, इन सभी की कोरोना वायरस की रिपोर्ट नेगेटिव आई है.
क्राइम ब्रांच के डिप्टी कमिश्नर दीपन भद्र ने रॉक्सी गागाडेकर छारा को बताया कि गुजरात पुलिस को दिल्ली पुलिस से जानकारी मिली थी.
पुलिस के बाद कॉरपोरेशन से कॉल आई
गुजरात पुलिस से कॉल आने के बाद 1 अप्रैल को शाम 5 बजे मेरे फ़ोन पर फिर से एक कॉल आई. इस बार कॉल अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के डॉक्टर चिराग की थी.
उन्होंने मुझसे बात की और मेरे परिवार के बारे में जानकारी ली. उन्होंने यह भी पूछा कि क्या मैं हाल में अपने परिवार से मिलने अहमदाबाद आया था.
2 अप्रैल की सुबह मुझे अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के डॉक्टर हेमल का फ़ोन आया. उन्होंने भी मुझसे मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली.
सर्विलांस की ताक़त
मैं यह सोचकर चकित था कि क्या पुलिस के पास मोबाइल लोकेशन और नंबर को ट्रेस करने की ताक़त है? क्या पुलिस हमेशा ऐसा करती है या ऐसा केवल ख़ास स्थितियों में ही किया जाता है?
मैंने रिटायर्ड आईपीएस अफ़सर रमेश सावानी से इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश की.
रमेश सावानी ने मुझे कहा कि पुलिस के पास क़ानून और व्यवस्था, पब्लिक हेल्थ क्राइसिस जैसे मौक़ों पर मोबाइल सर्विलांस का अधिकार होता है.
पुलिस कमिश्नर, इंटेलिजेंस ब्यूरो, क्राइम ब्रांच वगैरह के पास इस के आदेश देने का अधिकार होता है.
एरिया टावर की मदद से पुलिस लोकेशन को ट्रेस कर सकती है. पुलिस टेलीकॉम कंपनी से कॉल डिटेल्स की मांग कर सकती है. रमेश सावानी के मुताबिक़, प्राइमरी मोबाइल सर्विलांस आज के वक़्त में काफ़ी आसान है और पुलिस के पास ज़रूरी ब्यौरे काफ़ी जल्दी पहुंच जाते हैं.
सीनियर जर्नलिस्ट प्रशांत दयाल ने कहा कि मोबाइल सर्विलांस के लिए अफ़सरों के पास उनकी रैंक के हिसाब से अधिकार होते हैं. आईजी स्तर के अधिकारी के आदेश पर 15 दिनों के लिए सर्विलांस किया जा सकता है. एक महीने के लिए सर्विलांस के लिए आदेश होम सेक्रेटरी का होना चाहिए.
प्रशांत दयाल के मुताबिक़, लोगों को क्वारंटाइन में भेजने में सर्विलांस जितनी अहम साबित हो रही है, उतनी ही अहम यह अपराधों की जांच करने और ख़ुद को बेगुनाह साबित करने में भी मददगार साबित होती है .
हेग्ज़ागन और ट्राइएंगल की दुनिया
प्रशांस दयाल ने बताया कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने इस डेटा को केवल गुजरात पुलिस के साथ ही साझा नहीं किया होगा. उन्होंने कहा कि यह डेटा अलग-अलग राज्यों की पुलिस को भी दिया गया होगा.
दयाल ने कहा कि पुलिस ने मोबाइल इंटरसेप्शन नहीं किया होगा बल्कि यह केवल लोकेशन ट्रेसिंग तक सीमित रहा होगा.
आख़िर पुलिस यह सब कैसे करती है, इसका जवाब जानने के लिए मैंने साइबर एक्सपर्ट और टेक डिफ़ेंस के सीईओ सनी वाघेला से बात की.
वाघेला ने कहा कि मोबाइल फ़ोन की दुनिया में एक एरिया हेग्ज़ागन यानी छह हिस्सों में बंटा होता है.
एक हेग्ज़ागन के केंद्र में एक मोबाइल टावर होता है. एक हेग्ज़ागन में छह ट्राइएंगल बनते हैं. किसी क्राइम होने की दशा में यह देखा जाता है कि किस ट्राइएंगल में क्राइम सीन या ठिकाना होता है.
दिल्ली वाले मामले में, टेलीकॉम सर्विस कंपनी ने निज़ामुद्दीन एरिया ट्राइएंगल में मौजूद सेल नंबरों का ब्यौरा राज्य सरकार को दिया होगा. अगर आपका सेलफ़ोन नंबर इस ट्राइएंगल में पाया गया होगा तो निश्चित तौर पर आपके पास अथॉरिटी से कॉल आई होगी.
वाघेला ने कहा कि पुलिस के पास एक ख़ास सॉफ्टवेयर होता है जिसके ज़रिए वे कॉल डिटेल एनालिसिस करते हैं.
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