कोरोना वायरस: क्या वाक़ई में बच्चों में संक्रमण का ख़तरा कम होता है?
कोरोना वायरस दुनिया भर में आतंक मचाए हुए है. इसके कोहराम से सारी दुनिया जैसे एक पिंजरे में क़ैद हो गई है.
अब तक ये वायरस हज़ारों लोगों की जान निगल चुका है.
लेकिन अच्छी बात ये है कि इस वायरस ने अभी तक बच्चों को अपना शिकार बमुश्किल ही बनाया है.
क्या ये वायरस बच्चों के लिए हमदर्दी रखता है, जो उन्हें अभी तक बख़्श रहा है?
वजह क्या है, ये आपको आगे बताएंगे. फ़िलहाल कुछ रिसर्च रिपोर्ट पढ़कर ख़ुश हो जाइए कि बच्चों में कोरोना का ख़तरा काफ़ी हद तक कम है.
क्या बच्चे भी कोरोना संक्रमित हो सकते हैं?
जी हां, बिल्कुल हो सकते हैं. लेकिन उस पैमाने पर नहीं जितना कि बड़े या बुज़ुर्ग होते हैं. चाइनीज़ सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन ने 20 फ़रवरी तक क़रीब 72,314 कोविड-19 पीड़ितों का डाटा इकट्ठा किया ,था जिसमें मात्र 2 फ़ीसद लोग 19 साल से कम उम्र के थे.
इसी तरह 508 कोरोना पीड़ितों पर अमरीका ने एक स्टडी की थी जिसमें एक भी बच्चे की मौत कोरोना से नहीं हुई थी.
बच्चों के डॉक्टर संजय पटेल कहते हैं कि कोरोना आम तौर से एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है. चूंकि वयस्क लोगों का ही बाहर आना-जाना, घूमना-फिरना और लोगों से मिलना ज़्यादा होता है लिहाज़ा इस वायरस का शिकार भी वही ज़्यादा होते हैं.
अब लगभग सभी लोग अपने-अपने घरों में हैं और बच्चों के साथ समय बिता रहे हैं. फिर भी बच्चों में कोरोना संक्रमण अभी तक देखने को नहीं मिल रहा है.
डॉक्टर पटेल का ये भी कहना है कि बहुत से देशों में अभी तक उन्हीं लोगों का टेस्ट किया जा रहा है, जिनमें कोरोना के लक्षण नज़र आ रहे हैं. और इनमें बच्चों की संख्या बहुत ही कम या यूं कहें कि ना के बराबर है. हो सकता है बच्चों में भी ये संक्रमण हो लेकिन अभी उसके लक्षण नज़र नहीं आ रहे हैं.
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बच्चों पर कोरोना वायरस कैसे अटैक करता है?
अभी तक जितनी रिसर्च हुई हैं, वो सभी ये इशारा करती हैं कि वयस्कों की तुलना में बच्चों पर इस वायरस का असर कम होता है. उनमें वायरस के लक्षण भी कम ही उजागर होते हैं. कोरोना से मरने वालों में अभी तक सिर्फ़ 3 किशोर शामिल हैं.
इनमें एक बेल्जियम की 12 साल की लड़की, लंदन का 13 साल का एक किशोर और चीन में 14 साल का एक लड़का था. कोविड-19 को लेकर बच्चों पर की गई रिसर्च के डेटा से पुष्टि होती है कि कोरोना संक्रमित आधे से ज़्यादा बच्चों में बहुत ही मामूली लक्षण नज़र आते हैं.
जैसे कि उन्हें बुख़ार, खांसी, गले में जलन, नाक बहना और बदन दर्द की शिकायत होती है. जबकि एक तिहाई बच्चों में निमोनिया, सांस लेने में परेशानी और बार-बार बुख़ार की शिकायत होती है. बहुत ही कम बच्चों में मुश्किल से सांस लेने की शिकायत देखने को मिलती है.
ब्रिटेन की साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी में बाल रोग के वरिष्ठ विशेषज्ञ ग्राहम रॉबर्ट्स कहते हैं कि कोविड-19 बच्चों के फेफड़ों में ना जाकर ऊपरी हिस्सों यानी नाक, मुंह, गले तक ही सीमित रहता है. और, उन्हें खांसी, नज़ले की मामूली शिकायत होती है.
यही वजह है कि बच्चों में कोरोना के लक्षण वयस्कों जैसे नज़र नहीं आते. और ना ही उनमें ये वायरस मौत की वजह बनता है.
बच्चों की हालत बेहतर कैसे है?
डॉक्टर ग्राहम रॉबर्ट का कहना है कि रिसर्च के लिहाज़ से ये वायरस अभी नया है. लिहाज़ा अभी कुछ भी पुख़्ता तौर पर कहना जल्दबाज़ी होगा. बहरहाल, अब तक जो रिसर्च हुई है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस को शरीर में पहुंचकर एक्टिव होने के लिए एंजियोटेनसिन कनवर्टिंग एंज़ाइम II (ACI-2) की ज़रूरत होती है.
और बच्चों के लोवर एयरवेज़ यानी फेफड़ों में (ACI-2) उनके अपर एयरवेज़ यानी नाक, मुंह, गले के मुक़ाबले कम होता है. इसलिए बच्चों में ये वायरस इन्हीं इलाक़ों में अपना असर दिखाता है. एक वजह ये भी है कि बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता लगातार बढ़ती रहती है.
खासतौर से अगर हम बात करें स्कूल जाने वाले या नर्सरी के बच्चों की, तो वो हर समय सांसों के तरह तरह के वायरस का सामना करते रहते हैं उनका शरीर खुद ही उन वायरस से लड़ने की क्षमता पैदा करता रहता है. इसीलिए कई मायनों में बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, वयस्कों की तुलना में बेहतर होती है.
हमारा शरीर किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए ख़ुद भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. इसे साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं. ये कई बार मल्टी ऑर्गन फेलियर की वजह भी बनता है. जबकि बच्चों की अपरिपक्व प्रतिरोधक क्षमता इस स्तर तक नहीं पहुंच पाती.
इसलिए भी कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद बच्चों में वो स्थिति पैदा नहीं हो पाती, जो कि हम वस्कों में देखते हैं. हालांकि बहुत से जानकार इस रिसर्च से सहमत नहीं हैं.
क्या बच्चे बिना किसी बीमारी या हल्के लक्षणों के साथ कोरोना को दूसरों तक पहुंचाने का माध्यम बन सकते हैं?
जी, बिल्कुल बन सकते हैं. कोरोना वायरस एक दूसरे के संपर्क में आने पर ही फैलता है. ऐसे में अगर कोई बच्चा संक्रमित है और वो किसी सेहतमंद शख्स से मिलता है, खुले में छींकता या खांसता है, तो ज़ाहिर है मुंह से निकलने वाली छोटी-छोटी बूंदों के ज़रिए ये वायरस उस तक पहुंच ही जाएगा.
और इसका शिकार सबसे ज़्यादा ख़ुद उस बच्चे के परिवार के लोग होंगे. यही वजह है कि स्कूल बंद करने पड़े. जानकारों का कहना है कि कोरोना से बच्चों को शायद उतना नुक़सान न पहुंचे, जितना बड़ों को हो रहा है. लेकिन, बच्चे दूसरों को कहीं ज़्यादा नुक़सान पहुंचा सकते हैं. ख़ास तौर से बीमार और बुज़ुर्गों के लिए ये जानलेवा भी हो सकता है.
सिर्फ़ कोरोना ही नहीं, और भी कई तरह के वायरस हैं, जो बच्चों को कम नुक़सान पहुंचाते हैं लेकिन वयस्कों में बच्चों से ये वायरस पहुंच जाता है. मिसाल के लिए स्वाइन फ्लू का वायरस बच्चों के लिए उतना घातक नहीं था जितना कि गर्भवती महिलाओं और बज़ुर्गों के लिए था.
बच्चों में चूंकि लक्षण साफ़ तौर पर नज़र नहीं आते हैं, इसीलिए लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेते और संक्रमण फैल जाता है.
क्या कोविड-19 अलग-अलग उम्र के बच्चों पर अलग-अलग तरह से असर डालता है?
चीन के आंकड़ों के मुताबिक़ गोद के बच्चों में दूसरी उम्र के बच्चों के मुक़ाबले कोरोना से पीड़ित होने की संभावना ज़्यादा है.
गोद के बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता चलने फिरने वाले बच्चों की तुलना में काफ़ी कम होती है.
क्या नवजात भी कोविड-19 का शिकार हो सकते हैं?
जी, बिल्कुल हो सकते हैं. कोरोना महामारी में लंदन और वुहान में दो नवजात के संक्रमित होने की भी ख़बर है.
हालांकि अभी तक ये पता नहीं चल पाया है कि ये नवजात गर्भ से ही संक्रमित थे या पैदा होने के बाद संक्रमित हुए. दोनों ही केस में नवजातों की मां कोरोना पॉज़िटिव थीं.
कोरोना गर्भ में बच्चे को संक्रमित करता है इसके बारे में हम क्या जानते हैं?
बहुत ज़्यादा नहीं.
चूंकि कोरोना वायरस एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) और मिडिल ईस्ट रेस्पेरेट्री (MERS) सिंड्रोम को जन्म देता है.
ज़ाहिर है ये गर्भ में पल रहे बच्चे को भी प्रभावित करेगा. इसकी वजह से गर्भपात हो सकता है. बच्चे की वृद्धि पर असर पड़ सकता है.
या समय से पहले बच्चा पैदा करना पड़ सकता है. हालांकि अभी तक इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया है. और ये रिसर्च भी दो छोटी स्टडी पर आधारित हैं.
बच्चों को कोरोना संक्रमित होने से परिवार कैसे रोक सकते हैं?
अच्छी तरह साबुन से हाथ धोकर, सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर और आस-पास का इलाक़ा संक्रमित होने से बचाकर ही कोरोना से बचा जा सकता है.
अगर कहीं किसी चीज़ को हाथ से छुआ है, तो अपना हाथ चेहरे पर ना लगाएं.
बल्कि तुरंत हाथ साबुन से धोएं और बच्चों को भी ऐसा करने को कहें. ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) की वेबसाइट पर कोविड-19 से बच्चों को बचाने की पूरी जानकारी मौजूद है.
क्या परिवार अपने बुज़ुर्गों और बीमार लोगों को बच्चों से संक्रमित होने से बचा सकते हैं?
बिल्कुल बचा सकते हैं. लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा. सोशल डिस्टेंसिंग इस संक्रमण को रोकने का एक मात्र उपाय है.
बच्चों को दादी-दादा, नानी-नाना और अन्य बुज़ुर्ग लोगों से दूर रखें. घर के बुज़ुर्ग और बच्चे दोनों के लिए ज़रूरी है.
कोविड-19 पर बच्चों से बात करना क्यों ज़रूरी है?
बिल्कुल. ये परिवार की ज़िम्मेदारी है कि वो अपने बच्चों को इस महामारी की गंभीरता से अवगत कराएं.
उन्हें बताएं कि ये कितना ख़तरनाक है, और इससे कैसे बचा जा सकता है. बच्चों को कोरोना के सभी लक्षण ध्यान से समझाएं.
ताकि कोरोना की चपेट में आने पर बच्चा ख़ुद ही इसकी पहचान कर परिवार को बता दे. ये समय कोरोना को पहचानने और उससे बचने का उपाय सोचने का समय है.
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