देश में #Corona_Covid19 किस ने फैलाया ? मजहबी चश्मे से नहीं सच्चाई के आईने में देखें ....... पढ़िए एक रिपोर्ट
लॉकडाउन: हजारों प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा, सोशल डिस्टेंसिग तार-तार, कौन है इसका गुनहगार?
Chandra Pandey | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 29 Mar 2020, 03:31:00 AM
दिल्ली के आनंद विहार और धौला कुआं में हजारों की तादाद में प्रवासी मजदूरों को हुजूम उमड़ा हुआ है। लॉकडाउन के दौरान ये मजदूर अपने-अपने गांवों के लिए यहां जुटे हैं क्योंकि दिल्ली और यूपी सरकार उनके लिए बसें चला रही हैं। ये मजदूर खचाखच भीड़ की शक्ल में हैं, जिससे उनके कोरोना के चपेट में आने का खतरा भी बढ़ गया है।
हाइलाइट्स:
- देशव्यापी लॉकडाउन के बीच दिल्ली के आनंद विहार और धौला कुआं में प्रवासी मजदूरों का उमड़ा हुजूम
- इन प्रवासी मजदूरों में ज्यादातर यूपी के तमाम हिस्सों के हैं, उन्हें ले जाने के लिए यूपी सरकार ने बसें लगाई हैं
- मजदूरों के हुजूम से न सिर्फ उनके कोरोना वायरस के चपेट में आने की आशंका बढ़ी है, बल्कि गांवों में भी खतरा बढ़ चुका है
- मजदूरों के रहने, खाने, पीने, इलाज की व्यवस्था करने के बजाय उन्हें बिना जांच के लिए ले जाने से बढ़ा खतरा
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में 21 दिनों का लॉकडाउन सिस्टम की नाकाबिलयत की भेंट चढ़ता दिख रहा है। दिल्ली-एनसीआर में जगह-जगह मजदूरों के सामूहिक पलायन की खतरनाक तस्वीरें आ रही हैं। आनंद विहार और धौला कुआं में हजारों प्रवासी मजदूर इस आस में उमड़े हुए हैं कि उनके लिए बसें चलेंगी और वे अपने-अपने घर पहुंचेंगे। ये तस्वीरें लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में ही इसके मकसद में नाकामी की मुनादी कर रही हैं। ये तस्वीरें डराती हैं। सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) तार-तार हो चुकी है। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इन खतरनाक मंजरों के लिए कौन है जिम्मेदार, कौन हैं मजदूरों के पलायन के गुनहगार?
दिल्ली-एनसीआर की इन डरावनी तस्वीरों की जिम्मेदारी से न तो केंद्र सरकार बच सकती है, न दिल्ली सरकार और न ही यूपी सरकार। यह समूचे सिस्टम की सामूहिक नाकामी है। यह सरकारों के बीच सामंजस्य की कमी का भी बेपर्दा होना है। इन सबके ऊपर अफवाहों ने आग में घी डालने का काम किया। इन सबने मिलकर लॉकडाउन के उद्देश्यों की ही पूर्णाहूति दे दी।
कोरोना: बढ़ गए मरीज, देखें पूरे राज्यों की लिस्ट
भूख, गरीबी, मजबूरी और अफवाह
लॉकडाउन के बाद इन मजदूरों के सामने संकट आ गया कि इस दौरान कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे? धंधा-पानी, रोजगार सब ठप। कमरे का किराया कैसे देंगे? इन्हीं सवालों और आशंकाओं के बीच पहले तो मजदूरों ने पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने-अपने घरों के लिए कूच किया। इस बीच शुक्रवार को ही अफवाहें फैल गईं कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर बसें मिल रही हैं जो यूपी के तमाम शहरों को जा रही हैं। इसके बाद तो मजदूरों का रेला ही उमड़ पड़ा बॉर्डर पर। सोशल डिस्टेंसिंग हवा हो गई। मजदूरों के साथ-साथ उस भीड़ को संभालने में लगे पुलिसकर्मियों के भी कोरोना वायरस के चपेट में आने का खतरा बढ़ चुका है। इन मजदूरों में कुछ वैसे भी लोग हैं, जिन्हें लगता है कि शहर में उन्हें कोरोना वायरस का खतरा है लेकिन वे अगर गांव पहुंच गए तो इससे बच जाएंगे।
क्यों यह मदद नहीं, मजदूरों को मरने के लिए छोड़ने जैसा
शुक्रवार को दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर मजदूरों को हुजूम इस उम्मीद में उमड़ना शुरू हुआ कि वहां से उन्हें अपने-अपने शहरों के लिए बसें मिलेंगी। आनन-फानन में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि मजदूर कहीं नहीं जाएंगे, उनके खाने-पीने, रहने का इंतजाम हम करेंगे। मीडिया में मजदूरों के पलायन की खबरें सुर्खियां बंटोरने लगीं। सोशल मीडिया में ये तस्वीरें वायरल हो गईं। शाम होते-होते यूपी सरकार ने बसें भेजने का ऐलान कर दिया। दिल्ली सरकार ने भी बसें लगा दीं। अब तक कई मजदूरों को उनके-उनके घर भेजा भी जा चुका है, बिना किसी स्क्रीनिंग के, बिना किसी जांच के। मजदूरों को बसों से पहुंचाने के पीछे नीयत चाहे जो हो, लेकिन हकीकत यही है कि यह मदद के नाम पर उन्हें मरने के लिए छोड़ने जैसा है। क्या दिल्ली सरकार या यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार इस बात की गारंटी लेगी कि इन मजदूरों में से किसी में कोरोना का संक्रमण नहीं था। इसने ग्रामीण भारत में भी कोरोना के संक्रमण का खतरा बढ़ा दिया है, जो अब तक बहुत हद तक इस महामारी से अछूता था।
दिल्ली सरकार की नाकामी
दिल्ली सरकार लगातार कह रही है कि वह किसी को भूखे नहीं सोने देगी और लाखों लोगों के लिए खाने-पीने का इंतजाम कर रही है। वह बार-बार मजदूरों से अपील कर रही है कि वे बॉर्डर से लौट आएं, उनकी हर जरूरतों का वह ख्याल रखेगी। लेकिन इन सबसे केजरीवाल सरकार अपनी जिम्मेदारी और अपने गलतियों से पल्ला नहीं झाड़ सकती। लॉकडाउन के दौरान आखिर इतने बड़े पैमाने पर मजदूरों का मूवमेंट कैसे होने दिया गया? डीटीसी बसों के एक तिहाई बेड़े को चलाने का वादा था तो आधे बेड़े को क्यों उतार दिया गया? बसों से मजदूरों को बॉर्डर तक क्यों छोड़ा गया? इन सवालों से दिल्ली सरकार नहीं बच सकती। मजदूरों का पलायन इस बात की भी तस्दीक करता है कि अरविंद केजरीवाल उन्हें भरोसा देने में नाकाम रहें कि उन्हें उनकी कर्मभूमि दिल्ली में भूखों नहीं मरना पड़ेगा।
यूपी सरकार का 'गुनाह'
पलायन कर रहे मजदूरों का समंदर जब दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर उमड़ने लगा तो यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार दबाव में आ गई। आनन-फानन में उसने मजदूरों को लाने के लिए बसें उतारने का फैसला किया। यूपी सरकार के इस फैसले ने अब सूबे के गांवों में भी कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को बढ़ा दिया है। कहां तो मजदूरों के लिए राहत शिविर बनाने की जरूरत थी, जहां उनके रहने, खाने-पीने, इलाज जैसी सुविधाओं का इंतजाम हो और कहां योगी आदित्यनाथ सरकार ने हड़बड़ी में कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को बढ़ा दिया है।
पढ़ें: कैसे थमेगा कोरोना? आनंद विहार-धौला कुंआ में हजारों यात्री
जरूरत थी कि मजदूर जहां थे, या जहां हैं, वहीं पर उनके ठहरने, खाने, पीने, दवाई वगैरह का पुख्ता इंतजाम किया जाता। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल रखने की कोशिश की जाती। ठीक वैसे ही जैसे बाढ़ जैसी विभीषिकाओं के वक्त राहत शिविरों का इंतजाम होता है। लेकिन यूपी सरकार ने हड़बड़ी में मजदूरों को उनके घर भेजना शुरू कर दिया। बिना किसी जांच के। बिना किसी स्क्रीनिंग के। होने को तो यह भी हो सकता था कि मजदूर जिन जिलों के थे, वहां मुख्यालयों पर उनके लिए शिविर बनाकर उन्हें कम से कम 14-15 दिनों के लिए आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था होती। उनकी निगरानी होती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब अगर इनमें से एक में भी कोरोना संक्रमण पाया गया तो यह इन हजारों मजदूरों और उनके परिवारों के साथ-साथ उनके गांवों लिए भी खतरे की घंटी होगी। ऐसा न हो तभी बेहतर, अगर हुआ तो नतीजे बहुत खतरनाक होंगे।
मोदी सरकार की नाकामी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान किया था। तब उन्होंने देशवासियों से हाथ जोड़कर अपील की थी कि वे इन 21 दिनों में बिल्कुल भी घरों से बाहर न निकलें नहीं तो देश 21 साल पीछे चला जाएगा। कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लॉकडाउन तो जरूरी था, लेकिन क्या सरकार मजदूरों के सामूहिक पलायन के लिए तैयार थी? मजदूरों का पलायन बताता है कि केंद्र सरकार इन लोगों को यह भरोसा दे पाने में नाकाम रही कि वे भूख से नहीं मरेंगे। पीएम मोदी ने लॉकडाउन के ऐलान के बाद गरीबों के लिए 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज का भी ऐलान किया, लेकिन यह भी इन मजदूरों को भरोसा नहीं दिला पाया कि केंद्र या राज्य की सरकारें उन्हें भूख से नहीं मरने देंगी।
भारत : इन लोकप्रिय खबरों को भी पढ़ें
देश-दुनिया की बड़ी खबरें मिस हो जाती हैं?
इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Web Title : mass exodus of migrant workers jeopardize the very purpose of lockdown who is responsible for this mess (Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)
अगला लेख
रीजीजू ने एक महीने का वेतन दान में दिया
डिसक्लेमर:यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है।
भाषा | Updated: 28 Mar 2020, 11:00:00 PM
नयी दिल्ली, 28 मार्च (भाषा) खेल मंत्री किरेन रीजीजू ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाजपा सांसदों को दिये गये निर्देश पर अपनी ओर से योगदान करते हुए कोविड-19 से लड़ने के लिये एक महीने का वेतन दान में दिया। मोदी ने कोविड-19 महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई के लिये भाजपा के सभी सांसदों को अपनी सांसद निधि से एक करोड़ रूपये का योगदान देने को कहा था। रीजीजू ने ट्वीट कर लिखा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा प्रबंधन क्षमताओं को मजबूत करने और नागरिकों की सुरक्षा पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री नागरिक
भारत : इन लोकप्रिय खबरों को भी पढ़ें
देश-दुनिया की बड़ी खबरें मिस हो जाती हैं?
Web Title : rijiju donated one month's salary (Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)
अगला लेख
कोरोना वायरस: 22 लाख से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को मिलेगा 50 लाख रुपये का बीमा कवर
डिसक्लेमर:यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है।
भाषा | Updated: 28 Mar 2020, 10:55:00 PM
Comments