कोरोना लॉकडाउन: क्यों ज़रूरी है शराब की बिक्री?
भारत में आज लॉकडाउन 3.0 के पहले दिन शराब की दुकानें खुलीं तो देशभर में ख़रीददारों की लाइन लग गई.
शराब की बिक्री तो शुरू कर दी गई है लेकिन बाक़ी कारोबार बंद हैं.
ऐसे में सवाल उठा है कि शराब की बिक्री सरकारों के लिए इतनी ज़रूरी क्यों हैं.
दरअसल, शराब और पेट्रोल ये दो ऐसे उत्पाद हैं जिन पर राज्य सरकारें अपनी ज़रूरत के हिसाब से टैक्स लगाकर सबसे ज़्यादा राजस्व वसूलती हैं.
माना जा रहा है कि राज्य सरकारों को हो रहे राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए ही लॉकडाउन के बावजूद शराब की दुकानें खोली गई हैं.
लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार में आबकारी मंत्री राम नरेश अग्निहोत्री इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते.
अग्निहोत्री कहते हैं, 'शराब के ठेके खोलने के निर्णय में लोगों की सुविधा का भी ध्यान रखा गया है.'
सोशल डिस्टेंसिंग के सवाल पर वो कहते हैं, 'ठेकों के पास क़ानून व्यवस्था और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए पुलिस तैनात की गई है.'
अग्निहोत्री कहते हैं, 'उत्तर प्रदेश सरकार को शराब की बिक्री बंद होने से प्रति माह पौने तीन हज़ार करोड़ रुपए के राजस्व नुकसान हो रहा था.'
ये पूछे जाने पर कि क्या सरकार ने राजस्व वसूली के उद्देश्य से ही ठेके खोले हैं, अग्निहोत्री कहते हैं, 'राजस्व वसूली तो एक मक़सद है ही लेकिन जनता की ज़रूरत का भी ध्यान रखा गया है.'
साल 2018-19 में उत्तर प्रदेश सरकार ने शराब की बिक्री से 23,918 करोड़ रुपए का टैक्स वसूला था. इस समय उत्तर प्रदेश में ही शराब की 18 हज़ार से अधिक दुकानें हैं.
राजस्व बढ़ाने के लिए यूपी सरकार ने जनवरी 2018 में नई आबकारी नीति भी लागू की थी. इसका उद्देश्य शराब बिक्री क्षेत्र में एकाधिकार तोड़ना भी था.
जिन राज्यों में शराब बिकती हैं वहां सरकार के कुल राजस्व का पंद्रह से पच्चीस फ़ीसदी हिस्सा शराब से ही आता है. यही वजह है कि लॉकडाउन के बावजूद राज्य सरकारों ने शराब बेचने में जल्दबाज़ी दिखाई है. यूपी, कर्नाटक और उत्तराखंड अपने कुल राजस्व का बीस फ़ीसदी से अधिक सिर्फ़ शराब की बिक्री से हासिल करते हैं.
हालांकि केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में सरकार कुल राजस्व का दस फ़ीसदी से कम शराब बिक्री से हासिल करती है क्योंकि यहां शराब पर टैक्स दूसरे प्रांतों के मुक़ाबले कम है.
दरअसल शराब को जीएसटी से बाहर रखा गया है. यानी राज्य अपने हिसाब से कर निर्धारित करते हैं. गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री पर रोक है और इन राज्यों में सरकार को शराब से कोई राजस्व हासिल नहीं होता.
आंध्र प्रदेश में जहां आज से साढ़े तीन हज़ार के क़रीब शराब दुकानों को खोला जा रहा है वहीं नया शराबबंदी टैक्स भी लगाया जा रहा है.
हालांकि सरकार ने अभी टैक्स की दर निर्धारित नहीं की है. राज्य के विशेष सचिव रजत भार्गव ने कल एक प्रेस वार्ता में कहा, 'हम राजस्व वसूली की वजह से राज्य में शराब की दुकानें तो खोलने जा रहे हैं लेकिन सरकार शराब पीने के बुरे प्रभावों को लेकर भी चिंतित है. हमारे मुख्यमंत्री शराब के बुरे प्रभावों के लेकर ख़ास तौर पर चिंतित है और यही वजह है कि हम शराबबंदी कर भी लगाने जा रहे हैं. इसकी दर जल्द ही तय कर दी जाएगी.'
उन्होंने ये भी कहा कि आंध्र प्रदेश दीर्घावधि में शराब को पूरी तरह बंद करना चाहती है.
राजस्व की चिंता
रजत भार्गव ने कहा, 'कंटेनमेंट ज़ोन के बाहर की सभी शराब दुकानों को खोला जा रहा है. मॉल के भीतर कोई दुकान नहीं खुलेगी.'
गुजरात, बिहार और आंध्र प्रदेश को छोड़कर देश के सोलह बड़े राज्यों ने वित्त वर्ष 2020-21 के अपने बजट अनुमान में बताया था कि वो शराब की बिक्री से कुल मिलाकर 1.65 लाख करोड़ रुपए राजस्व हासिल करना चाहते हैं.
शराब बिक्री से अधिक राजस्व हासिल करने के उद्देश्य से हाल ही में राजस्थान ने कर बढ़ा दिया था. भारत में बनने वाली 900 रुपए से कम क़ीमत की विदेशी शराब (आईएमएफ़एल) पर कर पच्चीस फ़ीसदी से बढ़ाकर पैंतीस फ़ीसदी कर दिया गया था वहीं 900 रुपए से अधिक क़ीमत वाली बोतल पर कर पैंतीस फ़ीसदी से बढ़ाकर पैंतालीस फ़ीसदी कर दिया गया था.
यहीं नहीं राजस्थान में बीयर पर टैक्स भी पैंतीस फ़ीसदी से बढ़ाकर पैंतालीस फ़ीसदी कर दिया गया था. यानी कि यदि कोई सौ रुपए की बीयर ख़रीदता है तो वो पैंतालीस रुपए इस पर सरकार को कर देता है.
लॉकडाउन के पहले दिन जब राजस्थान में शराब की दुकानें खुलीं तो ख़रीददारों की भारी भीड़ लग गई. कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि राजस्थान सरकार लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री को फिर से रोक सकती है.
इस संबंध में जब हमने राजस्थान सरकार के प्रवक्ता और स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा से बात करनी चाही तो उनके प्रतिनिधि ने कहा कि इस संबंध में कोई निर्णय अभी नहीं लिया गया है.
वहीं हरियाणा में सोमवार को शराब की दुकानें नहीं खुली. इसकी वजह शराब विक्रेताओं और सरकार के बीच टकराव को माना जा रहा है. शराब दुकानदार लाइसेंस फ़ीस में रियायत की मांग कर रहे हैं.
वहीं मनोहर लाल खट्टर सरकार ने हरियाणा में प्रति बोतल 2 से 20 रुपये तक कोरोना सेस लगाने का निर्णय लिया है. उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने रविवार को पत्रकारों से कहा था कि सरकार दो रुपए से बीस रुपए प्रति बोतल तक कोविड-19 सेस लगाएगी.
इसी बीच राजधानी दिल्ली में पुलिस को भीड़ की वजह से कुछ शराब दुकानों को बंद कराना पड़ा. राजधानी में चौबीस मार्च के बाद से पहली बार शराब की दुकानें खुलीं तो ग्राहकों की भीड़ उमड़ पड़ी.
शराब की दुकानें खुलने से जहां पीने वालों ने राहत की सांस ली हैं वहीं दूसरे कारोबार करने वाले लोगों का कहना है कि जब शराब की दुकानें खुल सकती हैं तो उनके कारोबार क्यों नहीं खुल सकते.
फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने शराब की दुकानें खोले जाने का विरोध किया है.
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बीबीसी से कहा, 'शराब की दुकानों को खोलना राज्य सरकारों के मानसिक दिवालियेपन और राजस्व प्राप्त करने के स्वार्थ का जीता जागता सबूत है.'
उन्होंने कहा, इस निर्णय से सरकारों ने नागरिकों के स्वास्थय के साथ खिलवाड़ है और लॉकडाउन के मूल उद्देश्य ही नाकाम हो जाएगा.'
खंडेलवाल ने सरकार से प्रश्न करते हुए कहा, 'क्या देश में कोरोना का ख़तरा कम हो गया है जो शराब की दुकानों को खोला जा रहा है. यदि शराब की दुकानें खोली जा सकती हैं तो आम कारोबारियों की दुकानें क्यों नहीं खोली जा सकती हैं.'
https://www.bbc.com से साभार
https://www.bbc.com से साभार
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