सूरत में मजदूर की पिटाई का वीडियो वायरल, क्या है पूरा मामला


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Image captionवासुदेव शर्मा

सिर से ख़ून निकलते एक शख़्स का वायरल वीडियो सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है.
इसमें वो शख़्स राजेश वर्मा नामक एक व्यक्ति पर उसकी पिटाई का आरोप लगा रहा है.
वो कह रहा है कि उसने श्रमिक स्पेशल ट्रेन की टिकट के लिए राजेश वर्मा को एक लाख सोलह हज़ार रुपये दिए थे.
उसके बावजूद राजेश वर्मा ने टिकट नहीं दिए तो वो इसका विरोध करने गया था लेकिन वहां लठ्ठ से उसकी पिटाई कर दी गई.
इस वीडियो को झारखंड में गोड्डा के बीजेपी सांसद डॉक्टर निशिकांत दुबे और कांग्रेस सोशल मीडिया के राष्ट्रीय संयोजक सरल पटेल समेत कई लोगों ने ट्वीट किया.
फिर देखते ही देखते यह वीडियो वायरल हो गया.

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो

निशिकांत दुबे के ट्वीट को जहां 17 हज़ार से अधिक बार देखा गया वहीं सरल पटेल के ट्वीट को ढाई लाख से अधिक बार देखा जा चुका है और साथ ही 10 हज़ार से अधिक बार इसे रीट्वीट भी किया गया. घटना 7 मई, सूरत की है.
शुरुआत में आरोप लगा कि वीडियो में जिस शख़्स राजेश वर्मा की बात की जा रही है उसका संबंध बीजेपी से है.
चूंकि गुजरात में बीजेपी सत्ता में है, तो इसे लेकर राजनीति गरमा गई. इसके बाद कुछ और वीडियो मिले.
आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ तो हमने अपनी पड़ताल शुरू की.

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Image captionराजेश वर्मा, राजनेता रघुवर दास के साथ

कौन है ये वीडियो में दिखने वाला शख़्स?

सबसे पहले बात करते हैं इस कहानी के दो केंद्रीय पात्रों की. पहला, वीडियो में दिख रहे उस युवक की जिसकी पिटाई की गई. इनका नाम है वासुदेव शर्मा.
दूसरा वो जिस पर यह शख़्स आरोप लगा रहा है, यानी कि कथित हमलावर राजेश वर्मा.
हमने पता लगाया तो दोनों झारखंड के गिरिडीह ज़िले के मूल निवासी निकले.
दोनों ही सूरत में बतौर प्रवासी रहते हैं. वासुदेव वहां रिक्शा चलाते हैं तो राजेश वर्मा एक गैर सरकारी संस्था 'समस्त झारखंड समाज सेवा ट्रस्ट' के उपाध्यक्ष हैं.
सात मई की सुबह हुई इस मारपीट का वीडियो वायरल हुआ और इसके बाद सूरत के लिंबायत थाने में इसकी एफआइआर दर्ज़ कराई गई.
कुछ देर के बाद एक और वीडियो आया जिसमें कथित अभियुक्त हाथों में स्टिक लेकर मारपीट करते दिख रहे हैं.

सूरत में मज़दूरों को ऐसे टोकन दिए जा रहे हैंइमेज कॉपीरइटMOHAN MANDAL
Image captionसूरत में मज़दूरों को ऐसे टोकन दिए जा रहे हैं

गिरफ़्तारी के फौरन बाद जमानत पर पुलिस ने क्या कहा?

प्राथमिकी दर्ज़ होने के बाद गुजरात पुलिस राजेश वर्मा को गिरफ़्तार करती है लेकिन कुछ ही घंटों में उन्हें थाने से ही जमानत मिल जाती है.
सूरत के असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर (एसीपी) एएम परमार ने बीबीसी से बातचीत में इसकी पुष्टि की.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "वासुदेव शर्मा और राजेश वर्मा के बीच मारपीट के बाद दर्ज़ पुलिस रिपोर्ट जमानती धाराओं में थी, लिहाजा उन्हें थाने से जमानत मिल गई. ऐसा क़ानूनी प्रावधान के तहत किया गया. दोनों के बीच में सूरत से झारखंड जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन के टिकट को लेकर विवाद हुआ था. इस दौरान दोनों में हाथापाई हुई."
एसीपी परमार ने यह भी कहा, "दरअसल राजेश वर्मा को झारखंड जाने के इच्छुक मज़दूरों की सूची बनाने और उनसे निर्धारित किराया लेकर ट्रेन टिकट देने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. वे मज़दूरों की लिस्ट कलेक्टर ऑफ़िस में जमा कराते थे. वहां से रेलवे और संबंधित राज्य सरकारों को इसकी फ़ाइनल सूची भेजकर उनकी स्वीकृति लेने का काम किया जाता है. स्वीकृति मिलने के बाद राजेश के माध्यम से यह टिकट मज़दूरों को उपलब्ध करा दिया जाता था."



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"वासुदेव का नाम भी इसी लिस्ट में था"

परमार ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में हमने जांच की. उन्होंने कहा, "वासुदेव शर्मा ने कुछ पैसे और ट्रेन से झारखंड जाने के इच्छुक लोगों की सूची राजेश वर्मा को दी थी. टिकट नहीं मिलने पर उन्हें लगा कि यह सूची कलेक्टर दफ़्तर में जमा नहीं कराई गई है. इस कारण दोनों के बीच ग़लतफ़हमी में मारपीट हुई. जबकि कलेक्टर दफ़्तर में राजेश की जमा कराई गई सूची में वासुदेव का भी नाम है. यह हमारी जांच में पता चला है."
बीते 10 सालों से सूरत में रिक्शा चलाने का काम करने वाले वासुदेव के सिर में इस मारपीट के बाद बारह टांके लगाने पड़े.
मूल रूप से वासुदेव झारखंड के गिरिडीह ज़िले के जमुआ इलाके के एक गांव सलैया के रहने वाले हैं.
बीबीसी ने वासुदेव से संपर्क किया. हमसे बातचीत में वासुदेव ने कहा, "मैंने लोगों के नाम, उनके डिटेल और 800 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से एक लाख सोलह हज़ार रुपये राजेश वर्मा को दिए थे. उन्होंने हमे टिकट दिलाने का भरोसा दिया था. जब सूरत से झारखंड के लिए दो ट्रेनें खुल गईं और हमें टिकट नहीं मिला, तो मैं 7 मई की सुबह अपने कुछ दोस्तों के साथ ऋषिनगर स्थित उनके घर गया. मैंने उनसे टिकट देने या जमा कराए गए रुपये वापस देने की मांग की, तो वो बदतमीजी पर उतर आए. उन्होंने गंदी-गंदी गालियां दीं और लकड़ी से इतना मारा कि मेरा सिर फट गया."
वासुदेव ने कहा, "मुझे अस्पताल ले जाया गया. सिर में 12 टांके लगाए गए. अब भी इतना दर्द है कि मुझसे ठीक से बोला नहीं जा रहा. मेरे चाचा का निधन हो गया है. इस कारण मेरा घर जाना ज़रूरी है. मैंने इसके लिए 4 मई को ही टिकट के पैसे (1.16 लाख) राजेश वर्मा को दिए थे. उन्होंने इसके बदले मुझे टोकन दिया था. वह सबूत के तौर पर मेरे पास है."

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Image captionराजेश वर्मा

राजेश वर्मा ने क्या कहा?

वासुदेव पर हमले के कथित आरोपी राजेश वर्मा का दावा है कि वे वासुदेव शर्मा को नहीं पहचानते. उन्होंने वासुदेव से पैसे लेने से भी इनकार किया. बकौल राजेश, अगर मैंने पैसे लिए होंगे, तो वासुदेव के पास सबूत भी होगा. वह सबूत कहां है.
जब मैंने उनसे पूछा कि वे (वासुदेव और उनके साथी) आपके घर से निकलते दिख रहे हैं, तो बगैर पहचान के वे आपके घर कैसे पहुंच गए. जवाब में राजेश ने कहा कि ट्रेन टिकट के लिए कई लोग आते हैं. वे लोग भी वैसे ही आए होंगे. मेरी कोई पुरानी पहचान नहीं है.
राजेश वर्मा ने यह भी दावा किया कि उन्होंने वासुदेव से मारपीट नहीं की है. मैंने वायरल वीडियो का हवाला देकर उनके हाथ में स्टिक होने की बात बतायी, तो राजेश ने हल्की मारपीट की बात स्वीकारी.
राजेश वर्मा ने तब कहा, "वे लोग बदतमीजी कर रहे थे तो मोहल्ले वालों ने उन्हें पीटा. मैंने भी एक-दो हाथ मारा होगा लेकिन मेरी पिटाई से वासुदेव के सिर फटने की बात ग़लत है."



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सांसद निशिकांत दुबे तक कैसे पहुंचा यह वीडियो?

पिटाई के इस वीडियो को सबसे पहले (7 मई की दोपहर 3.35 बजे) गोड्डा के बीजेपी सांसद डॉक्टर निशिकांत दुबे ने ट्वीट किया था.
उन्होंने अपने ट्वीट में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, गृहमंत्री अमित शाह और रेल मंत्री पीयूष गोयल को टैग करते हुए इसकी सत्यता जांचने और अविलंब कार्रवाई करने की मांग की थी. साथ ही उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री को यह भी लिखा कि यदि टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग हो रही है तो इसके खुद सोरेन ही ज़िम्मेदार हैं.
इसके दो दिन बाद 9 मई की सुबह 9.23 पर उन्होंने एक और ट्वीट कर वीडियो के सही पाए जाने और हमलावर राजेश वर्मा को गिरफ़्तार किए जाने की सूचना दी. इसके लिए उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री को धन्वाद भी दिया.
हालांकि, राजेश वर्मा को उनके इस ट्वीट से पहले ही जमानत मिल चुकी थी.
सांसद निशिकांत दुबे ने बीबीसी से बातचीत में बताया, "मुझे राजेश वर्मा के जमानत की ख़बर नहीं मिली है. ऐसा किसी अख़बार में नहीं छपा है. मुझे वह वीडियो किसी कार्यकर्ता ने व्हाट्सएप्प पर भेजा था. तब मैंने न केवल यह ट्वीट किया था बल्कि गुजरात में संबंधित अधिकारियों से बात की. मुख्यमंत्री को सूचना दी. इसके बाद आरोपी गिरफ़्तार कर लिया गया."

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तो अब इस पूरे मसले में राजनीति कहां है?

8 मई को ही गुजरात से संबंध रखने वाले कांग्रेस सोशल मीडिया के राष्ट्रीय संयोजक सरल पटेल ने वही वीडियो अपने हैंडल से ट्वीट कर हमलावर राजेश वर्मा को बीजेपी का कार्यकर्ता बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि वे मज़दूरों से तिगुना किराया वसूल रहे हैं.
झारखंड में सत्तासीन झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इसे रीट्वीट करते हुए गुजरात की बीजेपी सरकार पर सवाल खड़े किए.
जेएमएम के राष्ट्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बीजेपी नेताओं को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए.
वो सवाल करते हैं, "जब उनकी ही पार्टी के कार्यकर्ता पर ट्रेन टिकट की कालाबाज़ारी के आरोप लग रहे हैं, तो वे किस मुंह से हमारी सरकार और मुख्यमंत्री पर सवाल खड़े कर रहे हैं."

पीएम नरेंद्र मोदी के साथ तस्वीर में राजेश वर्मा भी हैइमेज कॉपीरइटMOHAN MANDAL

तो क्या वाकई राजेश वर्मा बीजेपी से जुड़े हैं?

वासुदेव पर हमले के आरोपी राजेश वर्मा का बीजेपी कार्यकर्ता होने की बात वायरल होने के बाद सूरत के बीजेपी प्रमुख नितिन भाजीवाला ने मीडिया से कहा कि उनकी पार्टी का राजेश वर्मा से कोई संबंध नहीं है.
हालांकि, राजेश वर्मा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर नरेंद्र मोदी, रघुवर दास समेत बीजेपी के कई नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें लगा रखी हैं.
कुछ तस्वीरों में उन्होंने बीजेपी का चुनाव चिन्ह लगी टोपी और साफ़ा भी लगा रखा है. बीजेपी अध्यक्ष नितिन भाजीवाला के एक वायरल पत्र में भी राजेश वर्मा का नाम पदाधिकारियों की सूची में शामिल दिख रहा है.

नितिन भाजीवालाइमेज कॉपीरइटMOHAN MANDAL

सोशल मीडिया पर

इन सबके बावजूद जब बीबीसी ने उनसे बात की और सोशल मीडिया पर तस्वीरों वाली बात के बारे में पूछा तो उन्होंने बीजेपी के साथ किसी भी संबंध के होने से इनकार कर दिया.
राजेश वर्मा ने बीबीसी से कहा, "मैं एक समाजसेवी हूं. पिछले 25 सालों से समाजसेवा के काम में जुटा हूं. इस दौरान मेरी सभी पार्टियों के नेताओं से मुलाक़ात होती रहती है. इसी क्रम में मेरी मुलाक़ात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास से हुई थी. इसका मतलब यह नहीं है कि मैं बीजेपी का कार्यकर्ता हूं. मेरा किसी भी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध नहीं है."
बहरहाल, सिर्फ़ 2 पात्रों से शुरू हुई इस कहानी के कुछ और पात्र भी हैं. जिसकी परतें भी प्याज़ के छिलके की तरह कई लेयर में हैं.

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