कोरोना लॉकडाउन: रामपुकार की तस्वीर ही नहीं, कहानी भी रुला देने वाली है
लॉकडाउन के कारण घर लौट रहे प्रवासी मज़दूरों की कई तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.
उन्हीं में से एक वायरल तस्वीर बिहार के बेगूसराय के रहने वाले रामपुकार पंडित की भी है, जिसमें वो फ़ोन पर बात करते रोते हुए दिखाई देते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ रामपुकार बेटे की मौत की ख़बर सुनकर 11 मई को दिल्ली से पैदल ही बेगूसराय के अपने गांव तारा बरियारपुर के लिए निकल पड़े थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें वहीं यूपी गेट के पास दिल्ली-यूपी बोर्डर पर रोक दिया.
यूपी पुलिस उन्हें पैदल जाने की इजाज़त नहीं दे रही थी और रामपुकार के पास इतने पैसे नहीं थे कि कोई प्राइवेट गाड़ी बुक करके घर जाएं. वो स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल भी नहीं करते थे कि रेल की ऑनलाइन टिकट बुक करा सकें या बिहार सरकार से मदद की गुहार के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकें.
बिना साधन और पैसे के तीन दिनों तक दिल्ली-यूपी बोर्डर पर फँसे रहने के बाद आख़िरकार एक सामाजिक कार्यकर्ता की मदद से रामपुकार 15 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से दरभंगा लौटे और वहां से अपने प्रखंड खोदावनपुर में बने क्वारंटीन सेंटर में पहुँचे.
पुलिस ने रोका, बदमाशों ने पैसे छीन लिए
सोमवार को बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए रामपुकार उस तस्वीर के बारे में बताते हैं, "बेटा चार दिन पहले मरा था. उसको तो आख़िरी बार देख तक नहीं सका इसलिए चाहता था कि कम से कम उसकी तेरहवीं में शामिल हो जाऊं. पिता होने का फ़र्ज़ निभा दूं."
"पुलिस ने रोक दिया तो हम इधर-उधर भटककर लोगों से मदद माँगने लगे. उसी में दो लोगों ने कहा भी कि वो हमें बोर्डर पार करा देंगे और आगे ले जाकर छोड़ देंगे. लेकिन उन दोनों ने मुझे कार में बैठाकर मेरे साथ मारपीट की और मेरे पास जो बचे-खुचे पैसे थे वो भी छीन लिए."
दक्षिण और पूर्वी एशिया में भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले सबसे अधिक हैं
आगे वो कहते हैं, "एक मैडमजी जो रात में खाना बांटने आई थीं, वो अपना कार्ड भी हमें दे गई थीं. उन्हीं को फ़ोन करके जब मैं सब कुछ बता रहा था तो किसी ने मेरा फोटो ले लिया."
बातचीत में रामपुकार जिस महिला को "मैडमजी" कह रहे थे, उनका नाम सलमा फ्रांसिस है. वे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और दिल्ली में एक सामाजिक संगठन से भी जुड़ी हैं.
सलमा के बारे में रामपुकार और बताते हैं, "वो मेरे लिए मां-बाप से बढ़कर हैं. जब सबने मेरे साथ धोखा किया तब उन्होंने मदद की."
कैसे घर लौटे रामपुकार?
हमने रामपुकार से सलमा फ्रांसिस का फ़ोन नंबर लिया और उनसे बात की. सलमा कहती हैं, "रामपुकार को घर भेजने के लिए मैंने स्पेशल सीपी साउथ ईस्ट, दिल्ली से मदद माँगी. उन्होंने ही स्पेशल ट्रेन से उनके लिए टिकट का इंतज़ाम कराया."
हमनें दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी, साउथ ईस्ट देवेश कुमार से भी संपर्क करने की कोशिश की. मगर उनसे बात नहीं हो सकी.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट में पूर्वी दिल्ली के डीएम अरुण कुमार मिश्रा के हवाले से लिखा गया है, "हमारी टीम हर वक़्त फ़िल्ड में है. जब रामपुकार पंडित के बारे में जानकारी मिली तो हमने उन्हें बस से रेलवे स्टेशन पहुँचा दिया. जहां से शाम वाली ट्रेन से वे बिहार चले गए."
काफ़ी मशक़्क़त करने और दुःख-तकलीफ़ सहने के बाद रामपुकार अपने गांव के क़रीब तो पहुंच गए हैं, मगर अभी तक अपने घर नहीं पहुँच पाए हैं. नियमों के मुताबिक़ फ़िलहाल वो क्वारंटीन सेंटर में हैं. उनके बेटे की तेरहवीं भी बीत गई है.
घरवालों से मिलने की बात पर वो कहते हैं, "कल बेटी और पत्नी आई थीं मुझसे मिलने के लिए. सत्तू, चूड़ा, गुड़, दालमोठ और दवाई लेकर आए थे वो लोग. उनसे बातचीत भी नहीं हो सकी. सारा समय रोते हुए निकल गया. नज़र में हर वक़्त बेटे का चेहरा घूम रहा है. कुछ समझ में नहीं आ रहा. मरे नहीं हैं, बस यही सोचकर ख़ुद को सांत्वना दे रहे हैं. पता नहीं अब आगे क्या होगा!"
क़सम खा लिए हैं, फ़िर दिल्ली नहीं जाएंगे
रामपुकार पहले घर पर ही रहते थे. कुछ दिन तक उन्होंने फेरीवाले का काम किया था. बाद में वो ईंटभट्टे पर रहकर काम करने लगे. तीन बेटियों के बाद पिछले साल ही उनका एक बेटा हुआ था. इसके बाद काम की तलाश में वो दिल्ली चले गए. इस दौरान उनके छोटे भाई ने घर पर रहकर परिवार संभाला.
रामपुकार अब आगे क्या करेंगे? इस सवाल के जवाब में रामपुकार कहते हैं, "पहले क्वारंटीन सेंटर से घर तक तो पहुँच जाएं. शरीर जवाब दे रहा है. बहुत कमज़ोरी हो गई है. जैसे ही उठता हूं सर में चक्कर आने लगता है. और यहां लोग किसी तरह का दवाई नहीं दे रहे हैं. कहते हैं टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद देंगे. घर पहुँचकर भी 15-20 दिन तो कम से कम सेहत ठीक करने में लगेगा. तभी किसी काम के बारे में सोच पाएंगे."
रामपुकार दिल्ली में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन में मज़दूर का काम करते थे. जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से काम भी बंद है.
वो कहते हैं कि "इकलौते बेटे को तो खो दिया, अब तीन बेटियां ही सिर्फ़ बची हैं."
लेकिन क्या परिवार चलाने और पैसे कमाने के लिए क्या फिर से दिल्ली जाएंगे?
रामपुकार कहते हैं, "अब चाहे जो हो जाए, काम मिले ना मिले, पैसे कम ही कमाएं. लकड़ी फाड़ कर बेच लेंगे, फिर से ईंट भट्टे पर काम कर लेंगे, किसी के यहां मज़दूरी कर लेंगे, पर दोबारा दिल्ली नहीं जाएंगे. क़सम खा लिए हैं.
Comments
giving this valuable information.if you are looking for best e rickshaw company In India.
then visit us on https://www.eashwa.com/