अमरीकी एजेंसी ने भारत से मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को रिहा करने को कहा


नागरिकता संशोधन क़ानूनइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर नज़र रखने वाली अमरीकी एजेंसी यूएस कमिशन फोर इंटरनेशनल रिलिजियस फ्ऱीडम यानी USCIRF ने भारत से कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में विवादास्पद नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे गिरफ़्तार मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को रिहा करने की अपील की है.
USCIRF ने मोदी सरकार को संबोधित करते हुए एक ट्वीट किया है. यह ट्वीट उनके आधिकारिक ट्विटर हैंडल से किया गया है.
ट्वीट के मुताबिक़, "कोविड 19 महामारी के इस दौर में ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं कि भारत सरकार सीएए का विरोध कर रहे मुस्लिम एक्टिविस्ट को गिरफ़्तार कर रही है. इसमें सफ़ूरा ज़रगर भी हैं, जो गर्भवती हैं. ऐसे समय में भारत को चाहिए कि वो इन्हें रिहा करे, उन लोगों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए जो विरोध-प्रदर्शन के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं."
USCIRF ने ख़ासतौर पर सफ़ूरा की गिरफ़्तारी का ज़िक्र किया है.

सफ़ूरा ज़रगरइमेज कॉपीरइटSAFOORA ZARGAR FB
Image captionसफ़ूरा ज़रगर

27 साल की सफ़ूरा भारत की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर हैं. दिल्ली पुलिस ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों में शामिल होने को लेकर सफ़ूरा को 10 अप्रैल को कस्टडी में लिया गया था.
विवादित नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर बीते साल दिसंबर में पूरे भारत में जगह-जगह प्रदर्शन हुए. इसमें एक बड़ा समूह मुस्लिम महिलाओं का था. प्रदर्शन कर रहे लोगों का आरोप है कि यह क़ानून कथित तौर पर मुस्लिम विरोधी है.

सीएए के विरोध में प्रदर्शनइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

USCIRF ने पिछले महीने प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि साल 2019 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति ख़राब हुई है. वार्षिक रिपोर्ट में भारत को एक ऐसे देश के रूप में परिभाषित करते हुए चिंता ज़ाहिर की गई थी जहां साल 2019 में धार्मिक स्वतंत्रता का क्रमिक उल्लंघन हुआ है.
इसी मुद्दे पर किए गए एक अन्य ट्वीट में आयोग ने दावा किया है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो नकारात्मक ट्रेंड साल 2019 में देखने को मिला था वो साल 2020 में भी जारी है.
इस वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर हुए देशव्यापी प्रदर्शनों में कम से कम 78 लोगों की मौत हुई. जिसमें से ज़्यादातर मामले राजधानी दिल्ली के थे. इसमें हिंदू-मुस्लिमों के बीच हुई हिंसा में की लोगों की जान गई.
एजेंसी ने 2019 के इस वार्षिक रिपोर्ट में भारत को टियर-2 की श्रेणी में रखा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एनआरसी मुस्लिमों के साथ भेदभाव के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास है. ग़ौरतलब है कि असम में एनआरसी की अंतिम लिस्ट जारी होने के बाद क़रीब 19 लाख लोगों को इससे बाहर रखा गया था.

मुसलमान निशाने पर?

रिपोर्ट में दिसंबर 2019 में पास हुए नागरिकता संशोधन क़ानून पर चिंता व्यक्त की गई है. रिपोर्ट के अनुसार सीएए से मुस्लिमों को निशाना बनाने की चिंता बढ़ गई है.
इस क़ानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ग़ैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात कही गई है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में सीएए लागू किए जाने के बाद वहां धार्मिक स्वतंत्रता की आज़ादी में कमी आई है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए लागू होने के तुरंत बाद भारत भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और सरकार ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ एक हिंसक कार्रवाई की.

सीएए के विरोध में प्रदर्शनइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

रिपोर्ट में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर(एनपीआर) पर भी उंगली उठाई गई है. मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 से देश भर में एनपीआर अपडेट करने का काम शुरू करने का फ़ैसला किया है.
लेकिन उसको लेकर भी लोगों में नाराज़गी है और लोग कह रहें हैं कि एनपीआर दरअसल एनआरसी का पहला क़दम है और इसलिए वो इसका भी विरोध करेंगे.
अमरीकी रिपोर्ट में कहा गया है कि एनपीआर को लेकर ऐसी आशंकाएं हैं कि यह क़ानून भारतीय नागरिकता के लिए एक धार्मिक परीक्षण बनाने के प्रयास का हिस्सा है और इससे भारतीय मुसलमानों का व्यापक नुक़सान हो सकता है !
https://www.bbc.com से साभार ।

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