कोरोना वायरस से संक्रमण की जांच इतनी मुश्किल क्यों है ?लैब में काम करने वाले भी खांस या छींक सकते हैं. इससे ना सिर्फ़ वहां काम करने वाले, बल्कि वहां रखे सैम्पल भी संक्रमित हो सकते हैं. इसका नतीजा ये भी हो सकता है कि जिस मरीज़ के सैम्पल निगेटिव हैं, वो लैब कर्मचारी के खांसने से संक्रमित होकर पॉज़िटिव हो जाए. लैब में बिल्कुल सही ढंग से जांच कराने के लिए तजुर्बेकार लैब इंचार्ज की बहुत ज़रूरत है. लेकिन बदक़िस्मती से बहुत से देशों में ऐसे लैब इंचार्ज की भारी कमी है.
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कोरोना वायरस से संक्रमण की जांच इतनी मुश्किल क्यों है?
दुनिया भर में कोविड-19 के मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है.
अगर कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करना है, तो इसके लिए ज़्यादा से ज़्यादा जांच करना ज़रूरी है. इसी से पता चलेगा कि अभी तक कितने लोग संक्रमित हैं. कितने लोगों पर वायरस अपनी मज़बूत पकड़ बना चुका है. कितने लोगों को अलग रखना है.
इस काम में सबसे बड़ी बाधा टेस्ट किट की कमी है. हर देश का हाल एक जैसा है. अगर दूसरे देशों से टेस्टिंग किट और अन्य मेडिकल उपकरण मंगवा भी लिए जाएं, तो समय पर उनका पहुंचना और सैम्पल जमा करना भी एक बड़ी चुनौती है. साथ ही हर एक को कोरोना टेस्ट करने की समझ भी नहीं है.
अभी तक देखा गया है कि जिन देशों ने भी कोरोना का टेस्ट करने में तेज़ी दिखाई है, वहीं पर इसका संक्रमण कम हुआ है.
दक्षिण कोरिया ने 20 जनवरी को पहला केस पता चलने के बाद अपने यहां कोरोना की जांच शुरू कर दी थी.
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इटली में कोरोना ने कैसा हाहाकार मचाया
छह हफ़्ते बाद 16 मार्च को दक्षिण कोरिया में हर 1000 में से 2.13 लोगों पर जांच की जा रही थी.
वहीं, इटली में पहला केस 31 जनवरी को सामने आया था और 6 हफ़्ते बाद भी वहां 1000 में से 1.65 लोगों की ही जांच की जा रही थी.
ये किसी से छिपा नहीं है. जिन देशों ने कोरोना वायरस के संक्रमण को गंभीरता से नहीं लिया, उनके यहां तो टेस्टिंग में तेज़ी लाना और भी ज़रुरी है.
जो देश अभी भी जांच में पीछे हैं, वो इसमें तेज़ी लाने में जुटे हैं.
कोविड-19 के संक्रमण की जांच एक जटिल प्रक्रिया है. इसे बड़े पैमाने पर करना आसान नहीं है. सबसे पहले तो आपको टेस्ट किट चाहिए, जो आसानी से उपलब्ध नहीं.
फिर मरीज़ की नाक से नमूना लेकर इसमें कई तरह के केमिकल मिलाए जाते हैं. इसके बाद उन्हें लैब में तजुर्बेकार तकनीशियन को भेजा जाता है.
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शुद्धता की गारंटी
सैंपल को पीसीआर मशीन में जांचा जाता है जो अपने आप में एक मेहनत वाला और भरपूर समय लेने वाला काम है.
जो लैब पहले से ही इस पर रिसर्च कर रही थीं, उन्हें न सिर्फ़ अपने काम में तेज़ी लानी पड़ी. बल्कि, नए कंप्यूटर और नई प्रशासनिक व्यवस्था भी स्थापित करनी पड़ी.
ताकि, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के सैम्पल लिए जा सकें. और, उनकी रिपोर्ट जल्दी से जल्दी स्वास्थ्य केंद्रों को भेजी जा सके.
अमरीका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी टेस्टिंग किट पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. मसला सिर्फ़ टेस्ट के लिए कच्चे माल की कमी ही नहीं बल्कि सभी केमिकल को उचित अनुपात में मिलाने और उनकी शुद्धता की गारंटी भी एक चुनौती है.
कोविड के लिए टेस्ट किट तैयार करने वाली हर कंपनी का अपना फॉर्मूला है. एक टेस्ट किट में 20 तरह के केमिकल का उपयोग होता है. और सभी का उचित मात्रा में होना ज़रूरी है. फिर हर किट के लिए पैकेजिंग भी अलग तरह की होती है.
इसके अलावा किट में हरेक चीज़ उसी कंपनी की होना लाज़मी है. किसी दूसरी कंपनी से सहायता नहीं ली जा सकती.
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अमरीका और दक्षिण कोरिया
बहुत सी प्रयोगशालाओं के पास सरकार से मान्यता प्राप्त मशीनें नहीं हैं. जब कोविड-19 का प्रकोप बढ़ा तो अमरीका और दक्षिण कोरिया ने अपने यहां सरकारी नियमों के तहत बहुत से प्राइवेट लैब को टेस्ट करने की इजाज़त दे दी. भारत में भी ऐसा ही किया गया.
कोविड-19 की जांच के लिए ख़ास तरह की काबिलियत चाहिए. शुरुआत में जो टेस्ट हुए थे उन्हें पूरा करने में चार घंटे का समय लग रहा था. दो घंटे सैम्पल लेने और उसे तैयार करने में, दो घंटे मशीन को रिज़ल्ट तैयार करने में.
रोशे और एबट कंपनी की किट से एक वक़्त में 80 से 100 सैम्पल लिए जा सकते हैं. ये किट थोड़ी ऑटोमेटेड हैं. फिर भी रिपोर्ट तैयार करने और सैम्पल में मौजूद केमिकल जांचने के लिए ख़ास तरह की ट्रेनिंग की ज़रूरत है.
एक बार अगर लैब तैयार कर ली जाए और जांच के लिए सभी ज़रुरी सामान प्राप्त हो जाए तो प्री-टेस्ट शुरु किए जा सकते हैं.
प्री-टेस्ट नाक से लिए गए नमूने से शुरू होता है. ये नमूना किसी साधारण रुई से नहीं, बल्कि नायलॉन की लंबी और पतली व लचीली छड़ से लिया जाता है. मरीज़ से ये नमूना लेना ही सबसे बड़ी चुनौती है.
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बायोसेफ़्टी हैज़ार्ड बॉक्स
कुछ रिसर्चर इसके लिए थ्री-डी प्रिंटिग की तैयारी भी कर रहे हैं. एक बार अगर नमूना लैब में आ जाता है, तो अनुभवी लैब टेक्नीशियन इसे बायोसेफ़्टी हैज़ार्ड बॉक्स में रखते हैं.
ये कांच का बना एक ऐसा बर्तन होता है जिसमें वायरस को ज़िंदा रखने के लिए हवा नियंत्रित रहती है. ये काम काफ़ी ख़तरनाक है.
लैब में काम करने वाले भी खांस या छींक सकते हैं. इससे ना सिर्फ़ वहां काम करने वाले, बल्कि वहां रखे सैम्पल भी संक्रमित हो सकते हैं.
इसका नतीजा ये भी हो सकता है कि जिस मरीज़ के सैम्पल निगेटिव हैं, वो लैब कर्मचारी के खांसने से संक्रमित होकर पॉज़िटिव हो जाए.
लैब में बिल्कुल सही ढंग से जांच कराने के लिए तजुर्बेकार लैब इंचार्ज की बहुत ज़रूरत है. लेकिन बदक़िस्मती से बहुत से देशों में ऐसे लैब इंचार्ज की भारी कमी है.
राइबो न्यूक्लिक एसिड
सैम्पल लेने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण चरण है नमूने से वायरस निकालना और उसे पहचनना.
सबसे पहले सैम्पल को रसायनों से भरी टेस्ट ट्यूब में रखा जाता है. जहां वायरस पर जमा परत को हटाया जाता है.
कोरोना के मामले में ये उसका क्राउन है, जैसा कि हम आजकल तस्वीरों में देख रहे हैं. फिर वायरस के राइबो न्यूक्लिक एसिड (RNA) को एक दूसरी डिस्क पर रखा जाता है.
वहां भी कई तरह के केमिकल इस पर अपना काम करके इसके जीनोम की पहचान करते हैं. इस प्रक्रिया के बाद RNA वाली डिस्क को मशीन में डाला जाता है.
जहां वायरस के जीनोम को लाखों छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है. तब जाकर कोरोना वायरस की पहचान हो पाती है.
अगर सैम्पल में कोरोना वायरस नहीं है, तो लाखों टुकड़ों में टूटने के बाद भी कोई अलग से वायरस नज़र नहीं आता है.
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वायरस से लड़ने की क्षमता
अगर सैम्पल लेने में कोई गड़बड़ हुई है तो रिपोर्ट निगेटिव ही आएगी. कई बार वायरस फेफड़ों तक पहुंच जाता है. लेकिन नाक में नहीं आ पाता.
इसलिए सैम्पल अगर ठीक से नहीं लिया गया तो जांच बेकार हो जाती है.
अब ऐसे ब्लड टेस्ट भी किए जा रहे हैं, जिससे पता चल सके कि क्या मरीज़ को पहले भी बीमारी हो चुकी है और उसके लिए शरीर में इम्यून सेल तैयार हो चुके हैं.
इन्हें सीरोलॉजी या एंटीबॉडी टेस्ट कहते हैं. इससे ये भी पता चल जाता है कि मरीज़ के शरीर में कौन से वायरस से लड़ने की क्षमता पहले से मौजूद है.
भारत में कोरोनावायरस के मामले
यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.
राज्य या केंद्र शासित प्रदेश
कुल मामले
जो स्वस्थ हुए
मौतें
महाराष्ट्र
12974
2115
548
गुजरात
5428
1042
290
दिल्ली
4549
1362
64
तमिलनाडु
3023
1379
30
राजस्थान
2886
1356
71
मध्य प्रदेश
2846
798
156
उत्तर प्रदेश
2645
754
43
आंध्र प्रदेश
1583
488
33
पंजाब
1102
117
21
तेलंगाना
1082
490
29
पश्चिम बंगाल
963
151
35
जम्मू और कश्मीर
701
287
8
कर्नाटक
614
293
25
बिहार
503
125
4
केरल
500
401
4
हरियाणा
442
245
5
ओडिशा
162
56
1
झारखंड
115
22
3
चंडीगढ़
94
19
0
उत्तराखंड
60
39
0
छत्तीसगढ़
57
36
0
असम
43
32
1
लद्दाख
41
17
0
हिमाचल प्रदेश
40
34
1
अंडमान निकोबार द्वीप समूह
33
15
0
पुडुचेरी
8
5
0
गोवा
7
7
0
मणिपुर
2
2
0
मिज़ोरम
1
0
0
स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
11: 39 IST को अपडेट किया गया
कुछ लोग एंटीबॉडी विकसित किए बिना भी किसी वायरस से लड़ सकते हैं. जैसा कि ज़ुकाम के वायरस के साथ होता है.
कोरोना के लिए कई तरह के एंटी बॉडी टेस्ट सामने आ चुके हैं. लेकिन अभी तक कोई भी टेस्ट कारगर नहीं है.
अब तक हम सभी ने जो जाना और सीखा है वो यही कि हम किसी भी वायरस को दी जाने वाली जानकारों की चेतावनी को नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते.
फ़िलहाल तो ज़रूरत इसी बात की है कि दुनिया भर में ज़्यादा से ज़्यादा टेस्ट के लिए जल्दी से जल्दी टेस्ट किट मुहैया कराई जाएं. और जांच पूरी सावधानी से की जाए. https://www.bbc.com से साभार
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