भारत में कोरोना से हुई मौतों का सही आँकड़ा मिलना क्यों मुश्किल
इस समय भारत में कोरोना संक्रमण के कुल मामलों की तादाद एक लाख 73 हज़ार से ज़्यादा है जबकि कुल मौतों का आंकड़ा 4900 पार कर चुका है. कुल मौतों की तादाद को लेकर संशय है जिसकी कई वजहें हैं.
शहरी इलाक़ों में तो ख़ैर फिर भी श्मशान, क़ब्रिस्तान वग़ैरह से मौतों के आंकड़ों को जमा किया जा सकता है लेकिन गांवों के मामलों में ये आसान नहीं. अभी तक बहुत सारे लोग खुली जगहों पर और कई बार तो अपनी ज़मीनों में ही अंतिम क्रियाकर्म कर देते हैं.
आम दिनों में भारत में महज़ 22 प्रतिशत मौतों का रजिस्ट्रेशन हो पाता है. जो मृत्यु गांवों या घरों में होती है उनमें अधिकतर में मेडिकल-सर्टिफिकेट मौजूद नहीं होता जिसकी ग़ैर-मौजूदगी में ये पता चलाना बहुत मुश्किल है कि मौत की वजह क्या थी? मसलन, दिल का दौरा, मलेरिया या कुछ और?
उन्हीं मौतों को कोरोना से हुई मौत के तौर पर गिना जा सकता जो अस्पताल में हुई हों, रोगी का टेस्ट रिज़ल्ट पॉज़िटिव आया हो और मौत किसी अन्य कारण से नहीं, बल्कि श्वसन तंत्र के काम करना बंद करने की वजह से हुई हो.
अलग-अलग मानदंड
कोरोना से हो रही मौतों की तादाद पर हुए विवाद के बाद इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने गाइडलाइन में कुछ तब्दीलियां की हैं. इससे पहले अलग-अलग सूबे इन मामलों को अपने-अपने तरीक़े से दर्ज कर रहे थे.
कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज कर रहे डाक्टरों से कहा गया है कि वो उन मामलों में 'कोरोना को मौत के बुनियादी कारण' के रूप में दर्ज करें जिसमें मरीज़ निमोनिया, श्वसन तंत्र के बंद होने या हार्ट फेल होने से मरा हो.
इस नए दिशा-निर्देश के मुताबिक़ चिकित्सक को तीन कॉलम्स भरने होंगें जिसमें मौत की तत्काल वजह, पूर्ववर्ती कारण और दूसरी वजहें भरनी होंगी.
कोरोना संक्रमण के मामले में ज़्यादातर मरने वाले लोग डायबिटीज़, हृदय रोग या किसी अन्य गंभीर बीमारी के पहले से शिकार होते हैं, इस स्थिति को को-मॉर्बिडिटी कहते हैं, यानी कोरोना के अलावा दूसरे अन्य रोग जिनकी वजह से मौत हो सकती हो.
कुल मिलाकर, मेडिकल सर्टिफ़िकेट पर जब तक मृत्यु का बुनियादी कारण कोरना संक्रमण न लिखा हो तब तक उसकी गिनती 'कोरोना डेथ' के तौर पर नहीं होती.
जिन मौतों का मेडिकल सर्टिफिकेट मौजूद भी होता है वहां भी मौत की वजह कई बार साफ़ नहीं हो पाती है. ऐसे मामले भारत के अलावा दूसरे मुल्कों में भी सामने आते रहे हैं.
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